चमोलीः विश्व धरोहर फूलों की घाटी एक बार फिर पर्यटकों से गुलजार हो गई है. जहां एक ओर चारधाम यात्रा में मॉनसून के चलते यात्रियों की संख्या में गिरावट आ रही है तो वहीं फूलों की घाटी में लगातार पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो रहा है. अभी तक 3,868 पर्यटक फूलों की घाटी का दीदार कर चुके हैं. जिसमें 47 विदेशी सैलानी भी शामिल हैं.
फूलों की घाटी वो जगह है, जहां रिसर्च, आध्यात्म, शांति और प्रकृति को करीब से जानने का मौका मिलता है. यह घाटी ट्रैकिंग में रुचि रखने वालों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है. यही वजह है कि यहां सैलानियों का हुजूम उमड़ रहा है. बीते रोज यानी मंगलवार को भी 434 देशी-विदेशी पर्यटकों ने फूलों की घाटी (valley of flowers) का दीदार किया. अभी तक 3,821 भारतीय और 47 विदेशी पर्यटक फूलों की घाटी का दीदार कर चुके हैं. इतना ही नहीं पार्क प्रशासन को पर्यटकों से लिए जाने वाले प्रवेश शुल्क से साढ़े पांच लाख की भी आय हो चुकी है.
इन दिनों खिले 200 प्रजाति के फूलः जुलाई और अगस्त महीने में फूलों की घाटी में सबसे ज्यादा प्रजाति के फूल खिलते हैं. इन्हीं दो महीने में ही सबसे ज्यादा पर्यटक यहां पहुंचते हैं. मौजूदा समय में फूलों की घाटी में 200 प्रजाति के फूल खिले हैं, जो सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं.
बता दें कि समुद्र तल से करीब 12,500 फीट की ऊंचाई पर 87.5 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली फूलों की घाटी जैव विविधता का खजाना है. यहां पर दुनिया के दुर्लभ प्रजाति के फूल, वन्य जीव-जंतु, जड़ी-बूटियां व पक्षी पाए जाते हैं. फूलों की घाटी को साल 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और साल 2005 में यूनेस्को ने इसे विश्व प्राकृतिक धरोहर का दर्जा दिया.
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फूलों की घाटी में भ्रमण के लिए जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीनों को सर्वोत्तम माना जाता है. सितंबर में यहां ब्रह्मकमल खिलते हैं. चमोली स्थित फूलों की घाटी को देखकर ऐसा लगता है, जैसे किसी ने खूबसूरत पेंटिंग बनाकर यहां रख दी हो. चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पर्वत और उन पर्वतों के ठीक नीचे यह फूलों की घाटी प्रकृति का मनोरम दृश्य है. यहां घूमने के लिए विदेशियों और भारतीय पर्यटकों से अलग-अलग शुल्क लगता है.
घांघरिया से करीब एक किलोमीटर के दायरे में वन विभाग की चौकी मिलती है. यहीं से फूलों की घाटी शुरू होती है. यहीं पर शुल्क जमा होता है. यहां जाएं, तो परिचय पत्र अवश्य साथ रखें. घांघरिया तक खच्चर भी मिलते हैं. गोविंद घाट पर सस्ते प्लास्टिक रेनकोट भी उपलब्ध हो जाते हैं. यहां गाइड भी उपलब्ध हैं.
रामायण काल से मौजूदगी: वहीं, मान्यता है कि यहीं से भगवान हनुमान लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी ले गए थे. क्योंकि इस जगह पर इतने पुष्प और जड़ी बूटी मौजूद हैं, जिसकी पहचान करना भी मुश्किल है. लिहाजा कई लोग इसे रामायण काल से भी जोड़ कर देखते हैं.
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ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने की थी खोज: इस घाटी की खोज ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आरएल होल्ड्सवर्थ ने की थी. बताया जाता है कि वो अपने एक अभियान से लौट रहे थे. साल 1931 का वक्त था, जब वो यहां की खूबसूरती और फूलों को देख कर इतने अचंभित और प्रभावित हुए कि कुछ समय उन्होंने यहीं पर बिताया. इतना ही नहीं वह यहां से जाने के बाद एक बार फिर से 1937 में वापस लौटे और यहां से जाने के बाद एक किताब भी लिखी, जिसका नाम वैली ऑफ फ्लावर रखा.
जुलाई-अगस्त में आना होगा बेहतर: फूलों की घाटी 3 किलोमीटर लंबी और लगभग आधा किलोमीटर चौड़ी है. यहां पर आने के लिए जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीने सबसे बेहतर रहते हैं. चारधाम यात्रा पर अगर आप आ रहे हैं तो बदरीनाथ धाम जाने से पहले आप यहां पर आ सकते हैं. राज्य सरकार की तरफ से गोविंदघाट में रुकने की व्यवस्था है, लेकिन आप यहां पर रात नहीं बिता सकते हैं. लिहाजा आपको शाम ढलने से पहले पार्क से लौटना ही पड़ेगा.