चमोली: आज भगवान नरसिंह की जयंती है. आज ही के दिन भगवान विष्णु ने धरती पर नरसिंह अवतार लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की राक्षस हिरण्यकश्यप का वध किया कर रक्षा की थी. आज के दिन भगवान नरसिंह की पूजा अर्चना बड़े ही हर्षोल्लास के साथ की जाती है. लेकिन कोविड-19 के प्रभाव को देखते हुए नरसिंह मंदिर जोशीमठ में भी सादगी के साथ भगवान की जयंती मनाई गई.
चमोली जनपद के जोशीमठ में विराजमान भगवान नरसिंह के मंदिर में सुबह विशेष पूजा-अर्चना की गई. इसके बाद भगवान का विशेष श्रृंगार कर भोग लगाया गया. बता दें, भगवान नरसिंह शक्ति और पराक्रम के देवता माने जाते हैं. भगवान नरसिंह, श्रीहरि विष्णु के उग्र और शक्तिशाली अवतार कहे जाते हैं.
मान्यता है कि इनकी पूजा-अर्चना करने से हर तरह के संकट से रक्षा होती है. देश के हर कोने में भगवान नरसिंह की पूजा होती है. खासतौर पर दक्षिण भारत में भगवान नरसिंह को वैष्णव संप्रदाय के लोग संकट के समय रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजते हैं. जयंती वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. भगवान नरसिंह विष्णु के पांचवें अवतार हैं. वैसे तो देश के हर कोने में भगवान नरसिंह की पूजा होती है, लेकिन खासतौर पर दक्षिण भारत में नरसिंह को वैष्णव संप्रदाय के लोग संकट के समय रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजते हैं.
उत्तराखंड के जोशीमठ में विराजमान भगवान नरसिंह के भव्य मंदिर की विशेष मान्यता है. माना जाता है कि जब अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप लिया था और हिरण्यकश्यप के वध के बाद भगवान नरसिंह अपने उग्र रूप को शांत करने के लिए हिमालय की ओर पहुंचे. हिमालय की ओर पहुंचने पर वे जोशीमठ जैसी सुंदर जगह में विराजमान हो गए. उसी दिन से इस मंदिर में भगवान नरसिंह की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
मान्यता यह भी है कि भगवान नरसिंह शंकराचार्य के इष्ट देवता भी थे. इसीलिए शंकराचार्य जी ने आज से ढाई हजार साल पहले इसी स्थान पर उनकी पूजा की थी. तब से निरंतर भगवान नरसिंह की पूजा विधि-विधान के साथ की जा रही है.
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मंदिर के पुजारी संजय डिमरी के अनुसार पुराने समय में शंकराचार्य जब बदरीनाथ को ओर जा रहे थे, तो वह कर्णप्रयाग संगम में स्नान के लिए रुके. उन्हें पानी के अंदर शालिग्राम के पत्थर पर भगवान नरसिंह की मूर्ति मिली. उन्होंने मूर्ति को जोशीमठ में स्थापित किया.
पुजारी संजय डिमरी ने बताया कि मंदिर में भगवान की मूर्ति करीब डेढ़ हजार साल पुरानी है. भगवान नरसिंह की मूर्ति के बाएं हाथ की कलाई बाल की तरह कमजोर है. शास्त्रों में उल्लेख है कि जिस दिन ये हाथ खंडित हो जाएगा, तो भगवान बदरीनाथ अपना स्थान छोड़कर यहां से 22 किलोमीटर दूर भविष्य बदरी नाम के स्थान पर चले जाएंगे. बताया जाता है कि यहां भगवान बदरीनाथ की मूर्ति स्वयं बन रही है. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान की मूर्ति वहां बन जाएगी, तो फिर वहीं पर भगवान की पूजा होगी.