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2019 के पहले ट्रैकिंग दल ने सतोपंथ झील पर फहराया तिरंगा, यहीं से स्वर्ग गए थे पांडव

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Published : Jun 17, 2019, 12:50 PM IST

ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए सतोपंथ ट्रैकिंग रूट खुल चुका है. इस वर्ष का पहला दल 9 जून को माणा से सतोपंथ की यात्रा शुरू कर 13 जून को सकुशल वापस जोशीमठ लौट आया.

सतोपंथ पहुंच कर सतोपंथ झील में भारत का धवज फहराता दल सदस्य.

चमोली: ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए सतोपंथ ट्रैकिंग रूट खुल चुका है. वहीं इस वर्ष का पहला दल 9 जून को माणा से सतोपंथ की यात्रा शुरू कर सतोपंथ झील पहुंचा. सतोपंथ में भारत का झंडा फहराने के बाद दल 13 जून को सकुशल वापस जोशीमठ लौट आया. इस दल से पूर्व भी कई दल सतोपंथ ट्रैकिंग के लिए निकले थे. लेकिन रास्तें में अधिक बर्फ और ग्लेशियरों के टूटने से ट्रैकर लक्ष्मीवन और चक्रतीर्थ से आगे नहीं जा पाए. जिसके चलते स्थानीय युवकों का यह दल साल 2019 में सतोपंथ की यात्रा करने वाला पहला दल बन गया है.

बता दें कि सतोपंथ पैदल ट्रैक समुद्रतल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. सतोपंथ के पैदल ट्रैक की दूरी माणा गांव से 19 किलोमीटर है. यहां पहुंचने के लिए दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है. सतोपंथ अपनी खूबसूरती के लिए विश्वभर में विख्यात है. जिसे देखने के लिए ट्रैकिंग के शौकीन लोग सतोपंथ झील का दीदार करने सतोपंथ पहुंचते हैं.

सतोपंथ की यात्रा पर गए स्थानीय युवा हर्षवर्धन ने बताया कि लक्ष्मीवन से आगे का रास्ता ग्लेशियरों के बीच से होकर जाता है. जहां बर्फ में चलते हुए जाना जोखिम में रहती है. साथ ही बताया कि सतोपंथ में तापमान माइनस में रहता है. जिसके चलते मौसम खराब होते ही बर्फ गिरना शुरू हो जाती है.

सतोपंथ में भारत का झंडा फहराने बाद दल 13 जून को सकुशल वापस जोशीमठ लौटा 2019 का पहला ट्रैकिंग दल.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पांडव भी सतोपंथ के रास्ते स्वर्गारोहिणी पहुंचे थे. सतोपंथ से ही धर्मराज युधिष्ठिर ने स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान किया था. साथ ही यह भी कहा जाता है कि ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश ने सतोपंथ झील के कोनों पर तपस्या की थी.

जिसके चलते सतोपंथ झील का आकार तिकोना है. हालांकि इन दिनों सतोपंथ झील पूरी बर्फ से जमी हुई है. लेकिन सितम्बर माह में सतोपंथ झील का पानी गहरे नीले रंग का रहता है. जो पर्यटकों को झील की ओर आकर्षित करता है.

चमोली: ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए सतोपंथ ट्रैकिंग रूट खुल चुका है. वहीं इस वर्ष का पहला दल 9 जून को माणा से सतोपंथ की यात्रा शुरू कर सतोपंथ झील पहुंचा. सतोपंथ में भारत का झंडा फहराने के बाद दल 13 जून को सकुशल वापस जोशीमठ लौट आया. इस दल से पूर्व भी कई दल सतोपंथ ट्रैकिंग के लिए निकले थे. लेकिन रास्तें में अधिक बर्फ और ग्लेशियरों के टूटने से ट्रैकर लक्ष्मीवन और चक्रतीर्थ से आगे नहीं जा पाए. जिसके चलते स्थानीय युवकों का यह दल साल 2019 में सतोपंथ की यात्रा करने वाला पहला दल बन गया है.

बता दें कि सतोपंथ पैदल ट्रैक समुद्रतल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. सतोपंथ के पैदल ट्रैक की दूरी माणा गांव से 19 किलोमीटर है. यहां पहुंचने के लिए दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है. सतोपंथ अपनी खूबसूरती के लिए विश्वभर में विख्यात है. जिसे देखने के लिए ट्रैकिंग के शौकीन लोग सतोपंथ झील का दीदार करने सतोपंथ पहुंचते हैं.

सतोपंथ की यात्रा पर गए स्थानीय युवा हर्षवर्धन ने बताया कि लक्ष्मीवन से आगे का रास्ता ग्लेशियरों के बीच से होकर जाता है. जहां बर्फ में चलते हुए जाना जोखिम में रहती है. साथ ही बताया कि सतोपंथ में तापमान माइनस में रहता है. जिसके चलते मौसम खराब होते ही बर्फ गिरना शुरू हो जाती है.

सतोपंथ में भारत का झंडा फहराने बाद दल 13 जून को सकुशल वापस जोशीमठ लौटा 2019 का पहला ट्रैकिंग दल.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पांडव भी सतोपंथ के रास्ते स्वर्गारोहिणी पहुंचे थे. सतोपंथ से ही धर्मराज युधिष्ठिर ने स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान किया था. साथ ही यह भी कहा जाता है कि ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश ने सतोपंथ झील के कोनों पर तपस्या की थी.

जिसके चलते सतोपंथ झील का आकार तिकोना है. हालांकि इन दिनों सतोपंथ झील पूरी बर्फ से जमी हुई है. लेकिन सितम्बर माह में सतोपंथ झील का पानी गहरे नीले रंग का रहता है. जो पर्यटकों को झील की ओर आकर्षित करता है.

Intro:बदरीनाथ धाम से आगे सतोपंथ ट्रैकिंग रुट ट्रैकिंग के शौकीन लोगो के लिए खुल चुका है ।स्थानीय युवाओ का वर्ष 2019 का पहला दल सतोपंथ सागर के दर्शन कर सकुशल वापस जोशीमठ भी पहुंच चुका है।इस दल से पूर्व भी कई दल सतोपंथ ट्रैकिंग के लिए निकले थे ,लेकिन रास्तो में अधिक बर्फ और ग्लेशियरों के टूटने से ट्रैकर लक्ष्मीवन और चक्रतीर्थ से आगे नही जा पाने के कारण ट्रैक अधूरा छोड़कर वापस लौट आये थे।लेकिन उसके बाद 9 जून को माणा से सतोपंथ की यात्रा शुरू कर 13 जून को सफल वापसी के बाद यह दल सतोपंथ की यात्रा करने वाला 2019 का पहला दल बना।

नोट-खवर अरेंज होने के कारण विस्वल मेल से भेजे है।


Body:जंहा सतोपंथ के रास्तो और सतोपंथ में जबरदस्त बर्फ जमी हुई है।वंही सतोपंथ झील का पानी भी अभी जमा हुआ है ।बता दे कि समुद्रतल से 4600 मीटर पर स्थित सतोपंथ के पैदल ट्रैक की दूरी माणा गांव से 19 किलोमीटर है ।जो कि दुर्गम रास्तो से होकर गुजरता है ।सतोपंथ अपनी खूबसूरती के लिए विश्वभर में विख्यात है ,जिसको देखकर ट्रैकिंग के शौकीन सतोपंथ झील का दीदार करने सतोपंथ पहुंचते है।इस वर्ष सतोपंथ पहुंचे पहले दल ने सतोपंथ में भारत का झंडा फहराने के साथ साथ अपने अनुभव जोशीमठ पहुंचकर लोगो से साझा भी किये।सतोपंथ की यात्रा पर गए स्थानीय युवा हर्षवर्धन ने बताया कि लक्ष्मीवन से आगे का रास्ता ग्लेशियरों के बीच से है ,जिसमें कि बर्फ में चलकर जाना काफी जोखिम भरा है ।साथ ही सतोपंथ का तापमान माइन्स डिग्री में है ,मौसम हल्का भी खराब होने पर बर्फवारी शुरू हो जा रही है।


Conclusion:धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पांडव भी सतोपंथ के रास्ते स्वर्गारोहिणी पहुंचे थे।जंहा से कि धर्मराज युधिष्ठिर ने स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान किया था।साथ ही यह भी कहा जाता है कि ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश ने सतोपंथ झील के कोनो पर तपस्या की थी,जिस कारण सतोपंथ झील का आकार तिकोना है।हालांकि इन दिनों सतोपंथ झील पूरी बर्फ से जमी हुई है,लेकिन सितम्बर माह में सतोपंथ झील का पानी गहरे नीले रंग का रहता है।जो कि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
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