चमोली: समुद्र तल से 11808 फीट की ऊंचाई पर स्थित चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ जी के कपाट 17 अक्टूबर को शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे. इस दौरान करीब 500 श्रद्धालु कपाट बंद होने के साक्षी रहेंगे. रुद्रनाथ के कपाट बंद होने के बाद अगले 6 माह तक भगवान रुद्रनाथ के दर्शन शीतकालीन गद्दी स्थल गोपीनाथ मंदिर में श्रदालु कर सकेंगे.
पंचकेदार में प्रसिद्ध चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ जी के कपाट शनिवार को ब्रह्म मुहूर्त में 6:30 पर शीतकाल के लिए बंद होंगे. इस दौरान मंदिर के पंडित वेद प्रकाश भट्ट भगवान का विधि-विधान से विशेष पूजा-अर्चना करेंगे. जिसके बाद शनिवार शाम तक भगवान रुद्रनाथ जी की डोली अपने शीतकालीन गद्दी स्थल गोपीनाथ मंदिर प्रांगण में पहुंच जाएगी.
चमोली जिले के दशोली ब्लॉक में गोपेश्वर से करीब 21 किलोमीटर की दूरी पर रुद्रनाथ धाम स्थित है. यहां जाने के लिए गोपेश्वर के सदर गांव से करीब 18 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है. शीतकाल के दौरान भगवान रुद्रनाथ के कपाट बंद कर चल विग्रह डोली गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में स्थापित की जाती है.
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आपको बता दें कि रुद्रनाथ में भगवान शिव के मुखारविंद के दर्शन होते हैं. जो अपने आप में इस मंदिर की विशेष महत्ता है. इसे लेकर हजारों की संख्या देश-विदेश से हर वर्ष श्रद्धालु खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद पहुंचते हैं. केदारनाथ वन प्रभाग के उप-वन संरक्षक अमित कंवर ने बताया कि कपाट खुलने के दौरान मई से 16 अक्टूबर तक 9,176 श्रदालु रुद्रनाथ के दर्शन कर चुके हैं.
रुद्रनाथ मंदिर की विशेषता
चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ की पूजा होती है. रुद्रनाथ मंदिर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है. बुग्यालों के बीच गुफा में भगवान शिव के चेहरे के दर्शन श्रद्धालु करते हैं. भारत में रुद्रनाथ मंदिर अकेला स्थान है, जहां भगवान शिव के चेहरे की पूजा होती है.
रुद्रनाथ में भगवान शिव के एकानन रूप, पशुपतिनाथ मंदिर में चतुरानन रूप और इंडोनेशिया में भगवान शिव के पंचानन विग्रह रूप की पूजा होती है. रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है. रास्त बेहद दुर्गम होने के कारण श्रद्धालुओं को पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं. इसलिए अधिकतर श्रद्धालु गोपेश्वर के पास स्थित सगर गांव से यात्रा शुरू करते हैं. शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होने के कारण गोपेश्वर में भगवान रुद्रनाथ की पूजा-अर्चना होती है.