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पहाड़ों में कीड़ा जड़ी की जोरदार मांग, खोजने के लिए बर्फीले तूफान से हो रही 'जंग'

हिमालयन वियाग्रा की तलाश में चमोली के ग्रामीण भारी बर्फबारी के बीच पहाड़ की गुफाओं में डेरा जमाए हुए हैं और कीड़ा जड़ी की तलाश कर रहे हैं.

पहाड़ों में कीड़ा जड़ी की तूफानी मांग
पहाड़ों में कीड़ा जड़ी की तूफानी मांग
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Published : Jun 9, 2021, 7:33 PM IST

Updated : Jun 9, 2021, 9:46 PM IST

चमोली: उत्तराखंड में हिमालय के जंगलों में बेशुमार नायाब जड़ी बूटियां मिलती हैं. लेकिन यारसागुंबा (Caterpillar fungus) की तलाश में वहां जाने वाले लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. आम तौर पर हिमालयन वियाग्रा कही जाने वाली यारसागुंबा यौन शक्ति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होती है और बाजार में इसकी काफी मांग है.

दुनिया के कई देशों में हिमालयन वियाग्रा के नाम से मशहूर कीड़ा जड़ी (Caterpillar fungus) को सेक्स वर्धक होने के साथ-साथ ट्यूमर, टीबी, कैंसर और हेपेटाइटिस जैसी जानलेवा बीमारियों का इलाज माना जाता है. हालांकि इस बूटी को लेकर किए जा रहे सभी दावों की जांच नहीं हुई है और उन पर वैज्ञानिक शोध आज भी चल ही रहा है. एक अनुमान के मुताबिक कीड़ा जड़ी ने दुनिया भर में करीब 1000 करोड़ अमेरिकी डॉलर यानी कोई 70,000 करोड़ रुपये का सालाना बाजार खड़ा कर लिया है.

ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसी बढ़ती मांग को देखते हुए बड़ी संख्या में लोग इनकी तलाश में पहाड़ों में डेरा जमाए हुए हैं. चमोली के ऊंचाई वाले गांवों के लोग कीड़ा जड़ी की तलाश में बुग्याली क्षेत्रों में हैं. बीते एक माह से सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण जमीन के अंदर से कीड़ा जड़ी खोज चुके हैं. बारीक नजरों से देखने पर बर्फ के बीच जड़ी का ऊपरी हिस्सा नजर आता है, जिसे बड़ी ही सावधानी से ग्रामीण निकालते हैं.

उत्तराखंड में यारसागुंबा की तलाश में वहां जाने वाले लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. इससे हिमालय के हरे भरे इलाके प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ कीड़ा जड़ी उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आर्थिकी का जरिया भी है. भारत में कीड़ा जड़ी का स्थायी बाजार न होने के कारण बिचौलियों के द्वारा बड़े स्तर पर कीड़ा जड़ी की तस्करी भी की जाती है.

पढ़ें: 'हिमालयन वियाग्रा' के दोहन में दूसरे नंबर पर भारत, मगर उपयोग के मामले में पीछे

क्या है कीड़ाजड़ी?

कीड़ाजड़ी (यारसागुंबा) में एक फंफूद एक कीड़े पर हमला करता है और परजीवी की तरह उसका शोषण करता है. फंफूद और कीड़े का यही संयोग एक अद्भुत बूटी तैयार करता है, जिसे उत्तराखंड के गांवों में यारसागुंबा या कीड़ाजड़ी के नाम से जाना जाता है.

भारत के पश्चिमी और मध्य हिमालयी क्षेत्र के अलावा यारसागुंबा तिब्बत, नेपाल और भूटान के इलाके में पाया जाता है. भारत में इसके खरीदार नहीं हैं. लेकिन दुनिया के दूसरे देशों खासतौर से चीन, सिंगापुर, ताइवान, इंडोनेशिया और अमेरिका जैसे देशों में इसकी काफी मांग है. पिछले करीब दो दशकों में इसकी बढ़ती मांग की वजह से कीड़ा जड़ी की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच गई है.

साल 2003 तक करीब 20,000 रुपये प्रति किलो में मिलने वाली कीड़ा जड़ी की कीमत आज 7 से 10 लाख रुपये प्रति किलो पहुंच गई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कारोबारियों को इसकी कीमत 40 से 50 लाख रुपये प्रति किलो तक मिल जाती है.

वजूद पर संकट

कीड़ा जड़ी हिमालयी लोगों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण जरिया है. हालांकि रिजर्व फॉरेस्ट से किसी तरह वन उत्पाद को निकालने पर मनाही है. लेकिन वन पंचायतों के अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले इलाकों से कीड़ा जड़ी निकाली जाती है. जंगल से निकाली गई इस बूटी के बदले ग्रामीणों को सरकार को रॉयल्टी अदा करनी पड़ती है.

कीड़ा जड़ी निकालने का कारोबार ऐसा है कि कागजों पर इसका रिकॉर्ड बहुत सीमित है और ज्यादातर गैरकानूनी तरीके से तस्करी के जरिये देश के बाहर भेज दिया जाता है. पिछले कुछ वक्त में इस बूटी के अति दोहन की वजह से अब हिमालयी क्षेत्र में यह गायब होती जा रही है. इसे निकालने के कारोबार में लगे ग्रामीण बताते हैं कि इसकी उपलब्धता में पिछले 10 सालों में 20% से 25% की कमी आई है.

चमोली: उत्तराखंड में हिमालय के जंगलों में बेशुमार नायाब जड़ी बूटियां मिलती हैं. लेकिन यारसागुंबा (Caterpillar fungus) की तलाश में वहां जाने वाले लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. आम तौर पर हिमालयन वियाग्रा कही जाने वाली यारसागुंबा यौन शक्ति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होती है और बाजार में इसकी काफी मांग है.

दुनिया के कई देशों में हिमालयन वियाग्रा के नाम से मशहूर कीड़ा जड़ी (Caterpillar fungus) को सेक्स वर्धक होने के साथ-साथ ट्यूमर, टीबी, कैंसर और हेपेटाइटिस जैसी जानलेवा बीमारियों का इलाज माना जाता है. हालांकि इस बूटी को लेकर किए जा रहे सभी दावों की जांच नहीं हुई है और उन पर वैज्ञानिक शोध आज भी चल ही रहा है. एक अनुमान के मुताबिक कीड़ा जड़ी ने दुनिया भर में करीब 1000 करोड़ अमेरिकी डॉलर यानी कोई 70,000 करोड़ रुपये का सालाना बाजार खड़ा कर लिया है.

ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसी बढ़ती मांग को देखते हुए बड़ी संख्या में लोग इनकी तलाश में पहाड़ों में डेरा जमाए हुए हैं. चमोली के ऊंचाई वाले गांवों के लोग कीड़ा जड़ी की तलाश में बुग्याली क्षेत्रों में हैं. बीते एक माह से सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण जमीन के अंदर से कीड़ा जड़ी खोज चुके हैं. बारीक नजरों से देखने पर बर्फ के बीच जड़ी का ऊपरी हिस्सा नजर आता है, जिसे बड़ी ही सावधानी से ग्रामीण निकालते हैं.

उत्तराखंड में यारसागुंबा की तलाश में वहां जाने वाले लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. इससे हिमालय के हरे भरे इलाके प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ कीड़ा जड़ी उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आर्थिकी का जरिया भी है. भारत में कीड़ा जड़ी का स्थायी बाजार न होने के कारण बिचौलियों के द्वारा बड़े स्तर पर कीड़ा जड़ी की तस्करी भी की जाती है.

पढ़ें: 'हिमालयन वियाग्रा' के दोहन में दूसरे नंबर पर भारत, मगर उपयोग के मामले में पीछे

क्या है कीड़ाजड़ी?

कीड़ाजड़ी (यारसागुंबा) में एक फंफूद एक कीड़े पर हमला करता है और परजीवी की तरह उसका शोषण करता है. फंफूद और कीड़े का यही संयोग एक अद्भुत बूटी तैयार करता है, जिसे उत्तराखंड के गांवों में यारसागुंबा या कीड़ाजड़ी के नाम से जाना जाता है.

भारत के पश्चिमी और मध्य हिमालयी क्षेत्र के अलावा यारसागुंबा तिब्बत, नेपाल और भूटान के इलाके में पाया जाता है. भारत में इसके खरीदार नहीं हैं. लेकिन दुनिया के दूसरे देशों खासतौर से चीन, सिंगापुर, ताइवान, इंडोनेशिया और अमेरिका जैसे देशों में इसकी काफी मांग है. पिछले करीब दो दशकों में इसकी बढ़ती मांग की वजह से कीड़ा जड़ी की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच गई है.

साल 2003 तक करीब 20,000 रुपये प्रति किलो में मिलने वाली कीड़ा जड़ी की कीमत आज 7 से 10 लाख रुपये प्रति किलो पहुंच गई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कारोबारियों को इसकी कीमत 40 से 50 लाख रुपये प्रति किलो तक मिल जाती है.

वजूद पर संकट

कीड़ा जड़ी हिमालयी लोगों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण जरिया है. हालांकि रिजर्व फॉरेस्ट से किसी तरह वन उत्पाद को निकालने पर मनाही है. लेकिन वन पंचायतों के अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले इलाकों से कीड़ा जड़ी निकाली जाती है. जंगल से निकाली गई इस बूटी के बदले ग्रामीणों को सरकार को रॉयल्टी अदा करनी पड़ती है.

कीड़ा जड़ी निकालने का कारोबार ऐसा है कि कागजों पर इसका रिकॉर्ड बहुत सीमित है और ज्यादातर गैरकानूनी तरीके से तस्करी के जरिये देश के बाहर भेज दिया जाता है. पिछले कुछ वक्त में इस बूटी के अति दोहन की वजह से अब हिमालयी क्षेत्र में यह गायब होती जा रही है. इसे निकालने के कारोबार में लगे ग्रामीण बताते हैं कि इसकी उपलब्धता में पिछले 10 सालों में 20% से 25% की कमी आई है.

Last Updated : Jun 9, 2021, 9:46 PM IST
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