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फिर चर्चा में आया बेनीताल बुग्याल का विवाद, जानें पूरी कहानी - Benital Bugyal Controversy Latest News

बेनीताल बुग्याल की कुछ तस्वीरें और वीडियोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. इनमें वहां निजी संपत्ति का बोर्ड लगा दिखाया गया. जिस पर ही सारा विवाद है.

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सोशल मीडिया में एक बार फिर चर्चाओं में आया बेनीताल बुग्याल विवाद
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Published : Jul 10, 2021, 8:01 PM IST

चमोली: बीते कुछ दिनों से उत्तराखंड में मजबूत भू-कानून (land law) लागू करने की मांग तेज हो रही है. वहीं, इस बीच बुग्यालों पर निजी संपत्ति के बोर्ड लगाने की खबरें भी चर्चाओं में आईं. चमोली के कर्णप्रयाग तहसील स्थित बेनीताल बुग्याल (Benital Bugyal) पर जगह-जगह निजी संपत्ति होने के बोर्ड लगे थे. ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. अब उत्तराखंड क्रांति दल ने ऐसे कथित कब्जाधारियों के खिलाफ अपनी मुहिम तेज कर दी है.

यूकेडी के नेता उमेश खंडूड़ी ने ऐसे कब्जों को गलत बताते हुए अपने अन्य साथियों के साथ बेनीताल बुग्याल पर लगे निजी संपत्ति के बोर्ड को उखाड़ फेंका. दरससल, पिछले दिनों राज्य आंदोलनकारी मुकुंद कृष्ण दास उर्फ मनोज ध्यानी ने खुलासा किया था कि बेनीताल बुग्याल पर निजी कब्जा हो रहा है.

पढ़ें- CM धामी ने मां गंगा का लिया आशीर्वाद, बोले- योगी से हुई बात, कांवड़ यात्रा पर परिस्थिति अनुसार निर्णय


ध्यानी ने फेसबुक पर वीडियो जारी कर बताया कि बुग्याल सरकारी संपत्ति होते हैं. वन विभाग की जमीन होती है. फिर भी यहां राजीव सरीन नाम के व्यक्ति ने निजी संपत्ति होने का बोर्ड लगा दिया है. साथ ही बेनीताल बुग्याल तक पहुंचने वाली कच्ची सड़क को भी ध्वस्त किया गया है. अब ऐसे कथित कब्जेधारियों के खिलाफ उत्तराखंड क्रांति दल ने मुहिम छेड़ी है. यूकेडी नेता उमेश खंडूड़ी, पार्टी नेता केएल शाह व अन्य कार्यकर्ताओं के साथ यहां पहुंचे.

पढ़ें- CM आवास पहुंचने से पहले पुलिस ने कांग्रेसियों को रोका, हिरासत में कई नेता

यूकेडी नेता उमेश खंडूड़ी का कहना है कि बेनीताल बुग्याल आसपास की ग्रामसभाओं की गौचर भूमि है. यहां बाहरी लोगों का कब्जा हो गया है. 1600 हेक्टयर जमीन पहाड़ियों के हाथ से निकलकर भू माफिया के हाथों में गयी है. खंडूड़ी ने कहा खुद उनके परदादाओं के समय से यहां के गांवों का गौचर क्षेत्र था, तो कैसे ये जमीन किसी एक की हो सकती है. यदि आज नहीं जागे तो पूरा पहाड़ बिक जाएगा. उमेश खंडूड़ी का कहना है कि जमीन निजी हाथों में जाने से बचाने के लिए आंदोलन करेंगे. ठीक वैसे ही जैसा आंदोलन गैरसैंण राजधानी के लिए बाबा मोहन उत्तराखण्डी ने किया था.

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नया नहीं है बेनीताल भूमि विवाद
बेनीताल बुग्याल की भूमि पर आजादी से पहले टी स्टेट हुआ करती थी. 1960 से पहले इस भूमि पर गंगा राम सरीन का कब्जा था. इस दौरान भूमि राजस्व रिकॉर्ड में भी गंगाराम सरीन के नाम दर्ज थी. गंगा राम सरीन के बाद यह भूमि उनके परिजन प्रेम नाथ सरीन के नाम दर्ज हुई. राजीव सरीन व अन्य के नाम दर्ज हुई. मामले में भू स्वामित्व विवाद हाईकोर्ट इलाहाबाद, नैनीताल के बाद लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट में चला.

पढ़ें- CM धामी ने मां गंगा का लिया आशीर्वाद, बोले- योगी से हुई बात, कांवड़ यात्रा पर परिस्थिति अनुसार निर्णय

2015 में सुप्रीम कोर्ट में भूमि विवाद पर निर्णय आने के बाद 697.484 हेक्टेयर भूमि उत्तराखण्ड सरकार के नाम दर्ज हुई. इस भूमि पर सरीन बन्धुओं को मुआवजे के रूप में धनराशि भी दी गई. वहीं, 21.186 हेक्टेयर भूमि राजीव सरीन,अजीत, सरीन, आदित्य सरीन के स्वामित्व में दर्ज की गई. सरीन बंधुओं का इस भूमि पर वर्तमान समय में एक तालाब, बुग्याल व भवन मौजूद हैं. सरीन बंधुओं द्वारा अपनी चिह्नित भूमि पर ही निजी संपति का बोर्ड लगाया गया था.

पढ़ें- महंगी बिजली यूनिट के खिलाफ AAP का प्रदर्शन, बिल की प्रति जलाकर जताया विरोध

मामले में एसडीएम कर्णप्रयाग वैभव गुप्ता का कहना है कि अतिक्रमण को लेकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे फोटो-वीडियो की सत्यता जानने के लिए राजस्व उपनिरिक्षक कोटी देवेन्द्र कंडारी के नेतृत्व में टीम मौके पर भेजी गई. जो भूमि विवादस्पद बताई जा रही है वो भूमि के राजस्व रिकॉर्ड में राजीव सरीन बंधु की ही है. सरकारी भूमि पर कोई भी निजी बोर्ड या तारबाड़ नहीं की गई है.

बाबा मोहन उत्तराखंडी का आंदोलन

राज्य निर्माण के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी ने वर्ष 1997 से आमरण अनशन शुरू किया. 13 बार उन्होंने आमरण अनशन कर उत्तराखंड को एक करने की कोशिश की. सरकारी नौकरी के साथ घर-परिवार को छोड़कर उन्होंने पहाड़ में आंदोलन का नया स्वरूप तैयार किया.

9 नवंबर 2000 को जब देश के नक्शे पर उत्तराखंड का नये राज्य के रूप में उदय हुआ तो इसके बाद भी बाबा मोहन उत्तराखंडी का संघर्ष जारी रहा. अब उन्हें गैरसैंण को राजधानी बनाने का सपना पूरा करना था. उन्होंने अपना आखिरी आमरण अनशन बेनीताल में 2 जुलाई 2004 को शुरू किया. 37वें दिन 8 अगस्त को उन्हें कर्णप्रयाग तहसील प्रशासन द्वारा जबरन उठाकर सीएचसी में भर्ती कराया गया. उन्होंने रात में दम तोड़ दिया था. उनके आंदोलन को आंदोलनकारी प्रेरणा मानते हैं.

कौन थे बाबा मोहन उत्तराखंडी ?

बाबा मोहन उत्तराखंडी का जन्म 1948 में पौड़ी जिले के बठोली गांव में हुआ था. बाबा मोहन इंटरमीडिएट और आईटीआई की पढ़ाई के बाद वर्ष 1970 में बंगाल इंजीनियरिंग में भर्ती हुए. लेकिन उनका सेना में मन नहीं लगा. 1994 में नौकरी छोड़ दी. उन दिनों उत्तराखंड आंदोलन अपने चरम पर था. बाबा मोहन भी राज्य आंदोलन में कूद पड़े. 2 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहे में हुई घटना से उन्होंने आजीवन बाल, दाड़ी न काटने की शपथ ली. 11 जुलाई 1997 को राज्य व राजधानी गैरसैंण के लिए शुरू अनशन का सफर 8 अगस्त 2004 की रात्रि को मौत के साथ ही खत्म हुआ.

चमोली: बीते कुछ दिनों से उत्तराखंड में मजबूत भू-कानून (land law) लागू करने की मांग तेज हो रही है. वहीं, इस बीच बुग्यालों पर निजी संपत्ति के बोर्ड लगाने की खबरें भी चर्चाओं में आईं. चमोली के कर्णप्रयाग तहसील स्थित बेनीताल बुग्याल (Benital Bugyal) पर जगह-जगह निजी संपत्ति होने के बोर्ड लगे थे. ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. अब उत्तराखंड क्रांति दल ने ऐसे कथित कब्जाधारियों के खिलाफ अपनी मुहिम तेज कर दी है.

यूकेडी के नेता उमेश खंडूड़ी ने ऐसे कब्जों को गलत बताते हुए अपने अन्य साथियों के साथ बेनीताल बुग्याल पर लगे निजी संपत्ति के बोर्ड को उखाड़ फेंका. दरससल, पिछले दिनों राज्य आंदोलनकारी मुकुंद कृष्ण दास उर्फ मनोज ध्यानी ने खुलासा किया था कि बेनीताल बुग्याल पर निजी कब्जा हो रहा है.

पढ़ें- CM धामी ने मां गंगा का लिया आशीर्वाद, बोले- योगी से हुई बात, कांवड़ यात्रा पर परिस्थिति अनुसार निर्णय


ध्यानी ने फेसबुक पर वीडियो जारी कर बताया कि बुग्याल सरकारी संपत्ति होते हैं. वन विभाग की जमीन होती है. फिर भी यहां राजीव सरीन नाम के व्यक्ति ने निजी संपत्ति होने का बोर्ड लगा दिया है. साथ ही बेनीताल बुग्याल तक पहुंचने वाली कच्ची सड़क को भी ध्वस्त किया गया है. अब ऐसे कथित कब्जेधारियों के खिलाफ उत्तराखंड क्रांति दल ने मुहिम छेड़ी है. यूकेडी नेता उमेश खंडूड़ी, पार्टी नेता केएल शाह व अन्य कार्यकर्ताओं के साथ यहां पहुंचे.

पढ़ें- CM आवास पहुंचने से पहले पुलिस ने कांग्रेसियों को रोका, हिरासत में कई नेता

यूकेडी नेता उमेश खंडूड़ी का कहना है कि बेनीताल बुग्याल आसपास की ग्रामसभाओं की गौचर भूमि है. यहां बाहरी लोगों का कब्जा हो गया है. 1600 हेक्टयर जमीन पहाड़ियों के हाथ से निकलकर भू माफिया के हाथों में गयी है. खंडूड़ी ने कहा खुद उनके परदादाओं के समय से यहां के गांवों का गौचर क्षेत्र था, तो कैसे ये जमीन किसी एक की हो सकती है. यदि आज नहीं जागे तो पूरा पहाड़ बिक जाएगा. उमेश खंडूड़ी का कहना है कि जमीन निजी हाथों में जाने से बचाने के लिए आंदोलन करेंगे. ठीक वैसे ही जैसा आंदोलन गैरसैंण राजधानी के लिए बाबा मोहन उत्तराखण्डी ने किया था.

पढ़ें- एक ही दिन में 'बरगद' से 'गुटबाज' बने हरदा, कांग्रेस छोड़ने पर हरक ने लगाया ये इल्जाम

नया नहीं है बेनीताल भूमि विवाद
बेनीताल बुग्याल की भूमि पर आजादी से पहले टी स्टेट हुआ करती थी. 1960 से पहले इस भूमि पर गंगा राम सरीन का कब्जा था. इस दौरान भूमि राजस्व रिकॉर्ड में भी गंगाराम सरीन के नाम दर्ज थी. गंगा राम सरीन के बाद यह भूमि उनके परिजन प्रेम नाथ सरीन के नाम दर्ज हुई. राजीव सरीन व अन्य के नाम दर्ज हुई. मामले में भू स्वामित्व विवाद हाईकोर्ट इलाहाबाद, नैनीताल के बाद लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट में चला.

पढ़ें- CM धामी ने मां गंगा का लिया आशीर्वाद, बोले- योगी से हुई बात, कांवड़ यात्रा पर परिस्थिति अनुसार निर्णय

2015 में सुप्रीम कोर्ट में भूमि विवाद पर निर्णय आने के बाद 697.484 हेक्टेयर भूमि उत्तराखण्ड सरकार के नाम दर्ज हुई. इस भूमि पर सरीन बन्धुओं को मुआवजे के रूप में धनराशि भी दी गई. वहीं, 21.186 हेक्टेयर भूमि राजीव सरीन,अजीत, सरीन, आदित्य सरीन के स्वामित्व में दर्ज की गई. सरीन बंधुओं का इस भूमि पर वर्तमान समय में एक तालाब, बुग्याल व भवन मौजूद हैं. सरीन बंधुओं द्वारा अपनी चिह्नित भूमि पर ही निजी संपति का बोर्ड लगाया गया था.

पढ़ें- महंगी बिजली यूनिट के खिलाफ AAP का प्रदर्शन, बिल की प्रति जलाकर जताया विरोध

मामले में एसडीएम कर्णप्रयाग वैभव गुप्ता का कहना है कि अतिक्रमण को लेकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे फोटो-वीडियो की सत्यता जानने के लिए राजस्व उपनिरिक्षक कोटी देवेन्द्र कंडारी के नेतृत्व में टीम मौके पर भेजी गई. जो भूमि विवादस्पद बताई जा रही है वो भूमि के राजस्व रिकॉर्ड में राजीव सरीन बंधु की ही है. सरकारी भूमि पर कोई भी निजी बोर्ड या तारबाड़ नहीं की गई है.

बाबा मोहन उत्तराखंडी का आंदोलन

राज्य निर्माण के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी ने वर्ष 1997 से आमरण अनशन शुरू किया. 13 बार उन्होंने आमरण अनशन कर उत्तराखंड को एक करने की कोशिश की. सरकारी नौकरी के साथ घर-परिवार को छोड़कर उन्होंने पहाड़ में आंदोलन का नया स्वरूप तैयार किया.

9 नवंबर 2000 को जब देश के नक्शे पर उत्तराखंड का नये राज्य के रूप में उदय हुआ तो इसके बाद भी बाबा मोहन उत्तराखंडी का संघर्ष जारी रहा. अब उन्हें गैरसैंण को राजधानी बनाने का सपना पूरा करना था. उन्होंने अपना आखिरी आमरण अनशन बेनीताल में 2 जुलाई 2004 को शुरू किया. 37वें दिन 8 अगस्त को उन्हें कर्णप्रयाग तहसील प्रशासन द्वारा जबरन उठाकर सीएचसी में भर्ती कराया गया. उन्होंने रात में दम तोड़ दिया था. उनके आंदोलन को आंदोलनकारी प्रेरणा मानते हैं.

कौन थे बाबा मोहन उत्तराखंडी ?

बाबा मोहन उत्तराखंडी का जन्म 1948 में पौड़ी जिले के बठोली गांव में हुआ था. बाबा मोहन इंटरमीडिएट और आईटीआई की पढ़ाई के बाद वर्ष 1970 में बंगाल इंजीनियरिंग में भर्ती हुए. लेकिन उनका सेना में मन नहीं लगा. 1994 में नौकरी छोड़ दी. उन दिनों उत्तराखंड आंदोलन अपने चरम पर था. बाबा मोहन भी राज्य आंदोलन में कूद पड़े. 2 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहे में हुई घटना से उन्होंने आजीवन बाल, दाड़ी न काटने की शपथ ली. 11 जुलाई 1997 को राज्य व राजधानी गैरसैंण के लिए शुरू अनशन का सफर 8 अगस्त 2004 की रात्रि को मौत के साथ ही खत्म हुआ.

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