चमोली: पहाड़ों के जंगलों में इन दिनों बहुत ही रसीला फल काफल पाया जाता है. इंसान से लेकर जानवर भी इस फल के दीवाने हैं. काफल के सीजन में जंगलों में भालू काफल खाने के लिए इनके पेड़ों पर चढ़ते रहते हैं. नारायणबगड़ ब्लॉक में बदरीनाथ वन प्रभाग के पिंडर रेंज क्षेत्र में एक विशालकाय मादा भालू की काफल के पेड़ से गिरने के कारण मौत हो गई. लोगो को भालू का शव काफल के पेड़ के नीचे मिला.
काफल के पेड़ से गिरकर भालू की मौत: विशालकाय भालू को वन विभाग की टीम रस्सियों के सहारे पशु चिकित्सालय तक ले गई. वहां पोस्टमार्टम के बाद भालू के शव का दाह संस्कार दिया गया है. जिस स्थान पर भालू मृत अवस्था में पड़ा था, वहां काफल का पेड़ है. पेड़ की टहनियां टूट कर जमीन पर पड़ी थीं. इससे वन विभाग के अधिकारियों को प्रतीत हो रहा है कि भालू काफल के पेड़ से फिसला होगा और वहां से नीचे गिर गया. भालू के सिर पर भी गंभीर चोट आई है.
पोस्टमार्टम के बाद भालू का शव नष्ट किया: बदरीनाथ वन प्रभाग के डीएफओ सर्वेश कुमार दुबे ने बताया कि मंगलवार 30 मई को सूचना मिली कि सेम धारकोट मोटर मार्ग पर सड़क किनारे एक भालू मरा पड़ा हुआ है. इसके तत्काल बाद वन कर्मी मौके पर पहुंचे. भालू के शव को कब्जे में लेकर रेंज कार्यालय नारायणबगड़ लाये. बुधवार को पोस्टमार्टम कराने के बाद भालू के शव को नष्ट कर दिया गया.
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काफल क्या है: काफल उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में गर्मियों में होने वाला जंगली फल है. काफल औषधीय गुणों से भरपूर होता है. मार्च की शुरुआत में काफल के पेड़ों पर फूल आते हैं. मई और जून के महीनों में काफल के फल पक जाते हैं. इसके बाद स्थानीय लोग इन्हें खाने के लिए तोड़ते हैं. जंगली जानवर भी काफल को शौक से खाते हैं. काफल का इतना नाम है कि इस पर गाना तक बना है. बेड़ू पाको बारामासा, हो नरैण काफल पाको चैता मेरी छैला गीत में काफल का जिक्र है. ये लोकगीत उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है.