देहरादूनः उत्तराखंड राज्य बनने के 18 सालों में यह पहली हुआ जब नए वित्तीय वर्ष के 22 दिन से ज्यादा का समय बीत जाने के बावजूद प्रदेशभर में देशी व अंग्रेजी की 289 मदिरालयों का आवंटन नहीं हो पाया है. उन दुकानों पर ताला जड़ा हुआ है. भारी संख्या में शराब की इन दुकानों का आवंटन न होने के चलते सरकार को अब तक 920 करोड़ रुपये का घाटा हो चुका है, जो प्रतिदिन के हिसाब से करोड़ों में बढ़ता ही जा रहा है.
उधर इन सबके बावजूद आबकारी विभाग के ऊपर से लेकर नीचे तक के संबंधित अधिकारी समस्या का हल निकालने के बजाए तमाशबीन बन सरकार को होने वाले घाटे को बढ़ाते जा रहे हैं.
एक नजर 13 जिलों में आवंटित न होने वाली दुकानों पर
देहरादून -36, अल्मोड़ा- 34, बागेश्वर- 7, नैनीताल -18, उधम सिंह नगर- 63, हरिद्वार- 75, चमोली -4, पौड़ी गढ़वाल -17, टिहरी गढ़वाल-7, रुद्रप्रयाग 1, उत्तरकाशी- 6, पिथौरागढ़ -20, चंपावत- 4
देहरादून में प्रतिमाह 34 करोड़ का घाटा !
वहीं राजधानी देहरादून में विगत वर्षों की बात करें तो यहां शराब की दुकानों को खरीदने की ऐसे होड़ लगी रहती थी कि लोग अपनी पूंजी सहित हर तरह से दांव पेंच लगाकर इस धंधे में हाथ आजमाते थे, लेकिन इस बार अब तक 36 दुकानों को खरीदार नहीं मिल रहा है.
विभागीय आंकड़ों के अनुसार जहां पिछले वर्ष 2018 तक देहरादून की लाइसेंसी दुकानों से प्रतिमाह 44 करोड़ रुपये का राजस्व सरकार को प्राप्त हो रहा था वह इस नए वित्तीय वर्ष में घटकर मात्र 10 करोड़ प्रतिमाह रह गया है.
आबकारी अधिकारियों में आपसी सामंजस्य की भारी कमी
वहीं जानकारों की मानें तो प्रदेश में इस नए वित्तीय वर्ष में भारी संख्या में शराब की दुकानों के आवंटित न होने से विभाग में खलबली मची हुई है. इस समस्या के समाधान में उच्च आलाधिकारियों का विभाग के निचले अधिकारियों के साथ तालमेल व सामंजस्य की कमी भी सामने आ रही है. जिससे उत्तराखंड में पहली बार शराब की दुकानों का आवंटन मझधार में लटका हुआ नजर आ रहा है.
जानकारों की मानें तो ऐसे में विभाग के मझौले अधिकारी जिनके द्वारा जिले में दुकानों को आवंटित कराने से लेकर उनको चलाने तक की जिम्मेदारी होती है उनकी कार्यप्रणाली पर भी कई तरह के गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं.
दुकानें न आवंटित हों, लेकिन टैक्स रेट नहीं घटेगा-कमिश्नर
उधर प्रदेशभर में अब तक 289 देशी-विदेशी शराब की दुकानें आवंटित न होने के चलते 920 करोड़ के घाटे पर आबकारी आयुक्त दीपेंद्र चौधरी का मानना है कि भले ही इन दुकानों को खरीदार न मिले लेकिन इस वर्ष लाइसेंस पर बढ़ाये गए 20 फीसदी भार ( टैक्स) पर कोई रियायत नहीं दी जाएगी.
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चुनाव आचार संहिता के चलते कैमरे पर साफ तौर पर कुछ न बोलते हुए उत्तराखंड आबकारी आयुक्त दीपेंद्र चौधरी के अनुसार सभी सम्बंधित अधिकारियों के प्रयासों से बची हुई दुकानों को आवंटित करने का कार्य गति पर है.
राज्यभर में आबकारी विभाग की लाइसेंस दुकानों की संख्या कुल 617 है. इनमें से सबसे ज्यादा बिक्री करने वाली आधी दुकानें 20 फीसदी अतिरिक्त नए अधिभार (टैक्स) लगते ही आराम से आवंटित हो चुकी हैं, लेकिन पहले से घाटे के बोझ तले चल रहीं बाकी दुकानों को चलाने का जोखिम कोई लेना नहीं चाह रहा है.
जानकारों के मुताबिक इस नाकामी की सबसे बड़ी वजह आबकारी विभाग के मंझौले अधिकारी हैं जिनके गोलमाल रवैये की वजह से लाइसेंसी शराब की दुकानों को खरीदार नहीं मिल रहा है और सरकार को प्रतिदिन करोड़ों का घाटा उठाना पड़ रहा है. ऐसे में नए वित्तीय का राजस्व लक्ष्य भी लगातार पीछे छूटता जा रहा है.
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एक अप्रैल 2019 नए वित्तीय वर्ष से आबकारी विभाग ने ई-टेंडर पॉलिसी को दरकिनार कर पहले से चल रही दुकानों को 20 प्रतिशत टैक्स रेट बढ़ाकर ठेकों का आवंटन शुरू किया गया था जिसके तहत अधिक मुनाफे की दुकानें आराम से नए टैक्स रेट के मुताबिक आवंटित हो गईं, लेकिन बाकी कम मुनाफे की बची दुकानों को अब खरीदार नहीं मिल रहा है.
नए वित्तीय वर्ष में तय राजस्व लक्ष्य खतरे में
उधर नए वित्तीय वर्ष 2019 में पूरे प्रदेश से शराब राजस्व वसूली के लिए सरकार द्वारा आबकारी विभाग को 3,180 करोड़ का लक्ष्य निर्धारित किया गया है लेकिन भारी संख्या में देसी व विदेशी शराब दुकानों के आवंटित ना होने के चलते अब राजस्व वसूली का लक्ष्य खटाई में पड़ता नजर आ रहा है.