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जागर को अन्तरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने वाले प्रीतम और फोटोग्राफी में अनूप को पद्म श्री, पर्वतारोही बछेंद्री को पद्म भूषण मिला - अनूप शाह को पद्म भूषण

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शनिवार को 2019 के लिए राष्ट्रपति भवन में लोक गायक प्रीतम भरतवाण और अंतरराष्ट्रीय छायाकार अनूप शाह को पद्म श्री तो पर्वतारोही बछेंद्री पाल को पद्म भूषण सम्मान प्रदान किए.

पद्मश्री सम्मान.
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Published : Mar 16, 2019, 10:06 PM IST

Updated : Mar 16, 2019, 11:11 PM IST

देहरादूनः राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शनिवार को 2019 के लिए राष्ट्रपति भवन में लोक गायक प्रीतम भरतवाण औरअंतरराष्ट्रीय छायाकार अनूप शाह को पद्म श्रीऔर पर्वतारोही बछेंद्री पाल को पद्म भूषण सम्मान प्रदान किए. प्रीतम को यह सम्मान लोक गीत को विदेशों तक पहुंचाने के लिए दिया गया तो मशहूर फोटोग्राफर अनूप शाह को फोटोग्राफी और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये प्रदान किया गया. वहीं बछेंद्री पाल को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने पर दिया गया.

पढ़ें:गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के दावों की पोल खोलता यह वीडियो

प्रीतम भरतवाण को विरासत में मिला संगीत

प्रीतम भरतवाण का जन्म देहरादून के रायपुर ब्लॉक के सिला गांव में एक औजी परिवार में हुआ. जिस कारण लोक संगीत उन्हें विरासत में मिली. उनके घर पर ढोल, डौर, थाली जैसे कई उत्तराखंडी वाद्य यंत्र हुआ करते थे. उनके पापा और दादा घर पर ही गाया करते थे. पहाड़ में होने वाले खास त्योहारों में प्रीतम का परिवार जागर लगाया करता था. वहीं से उन्होंने संगीत की शिक्षा भी ली.

padma bhushan
पद्मश्री सम्मान.

प्रीतम भरतवाण की कला को पहचान सबसे पहले स्कूल में रामी बारौणी के नाटक में बाल आवाज़ देने से हुई. मात्र 12 साल की उम्र में ही उन्होंने लोगों के सामने जागर गाना शुरू कर दिया था. 1988 में प्रीतम भरतवाण ने सबसे पहले ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाई. 1995 में प्रीतम भरतवाण की कैसेट रामा कैसेट से तौंसा बौं निकली. इस कैसेट को जनता ने हाथों-हाथ लिया. प्रीतम भरतवाण को सबसे अधिक लोकप्रियता उनके गीत सरूली मेरू जिया लगीगे गीत से मिली. यह गीत आज भी सबसे लोकप्रिय गढ़वाली गीतों में शामिल है जिसके अब न जाने कितने रिमिक्स बन चुके हैं.

प्रीतम भरतवाण ने उत्तराखंड की संस्कृति का विदेशों में भी खूब प्रचार-प्रसार किया है. अमेरिका, इंग्लैंड जैसे कई देशों में उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रदर्शन किया है. आज प्रीतम भरतवाण का जन्मदिन अब उत्तराखंड में जागर संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है.

पिता के गिफ्ट ने बदल दी अनूप शाह की जिंदगी

फोटोग्राफर अनूप शाह का पूरा जीवन पर्वतारोहण, पर्यावरण संरक्षण और फोटोग्राफी के लिए समर्पित रहा है. 350 से ज्यादा उनके फोटोग्राफ्स को पुरस्कार मिल चुके हैं, जबकि 3500 से ज्यादा फोटोग्राफ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का हिस्सा बन चुके हैं. अनूप शाह कई ट्रेकिंग अभियानों में शामिल रह चुके हैं, उन्होंने छह दुर्गम चोटियों पर सफल आरोहण किया है.

padma bhushan
पद्मश्री सम्मान.

अनूप शाह का जन्म 8 अगस्त 1949 में नैनीताल में हुआ था. फोटोग्राफी की शुरुआत उन्होंने अपने पिता की तरफ से उपहार में मिले कैमरे से की, धीरे-धीरे उनका ये शौक जूनून बन गया. स्वभाव से बेहद शांत अनूप शाह को उत्तराखंड के पर्यावरण और जैव विविधता की गहरी जानकारी है. उन्हें हिमालय, यहां की वनस्पतियों और जैव विविधता का इन्साइक्लोपिडिया कहा जाता है. वो पर्यावरण संरक्षण के लिए समय-समय पर मुहिम चलाते रहे हैं.

काफी संघर्षों भरा रहा है बछेंद्री पाल का जीवन

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल को आज पद्म भूषण से नवाजा गया. राष्ट्रपति भवन में शनिवार को आयोजित एक कार्यक्रम में बछेंद्री को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ये सम्मान दिया. बछेंद्री पाल आज पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. साथ ही बछेंद्री पाल महिला सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण हैं. बछेंद्री को ये सम्मान मिलने पर उनके परिवार में खुशी की लहर है.

padma bhushan
पद्म भूषण सम्मान.

बछेंद्री पाल के जीवन को अगर करीब से देखा जाए तो साफ तौर पर पता चलता है कि वे आज जिस मुकाम पर पहुंची हैं, वो उनके सतत प्रयास और कड़ी मेहनत का ही फल है. प्रदेश के पहाड़ी जिले उत्तरकाशी के छोटे से गांव नाकूरी से ताल्लुक रखने वाली बछेंद्री पाल का बचपन अभावों में बीता.

अपने प्रारंभिक जीवन में उन्हें वो सब दुख देखने पड़े जो कि एक आम पहाड़ी लड़की को झेलने पड़ते हैं. बछेंद्री पाल को गरीबी के कारण 8वीं के बाद स्कूली पढ़ाई छोड़नी पड़ी. जिसके बाद बछेंद्री ने घर के काम करते हुए खुद से पढ़ना जारी रखा. बछेंद्री को ऐसा करता देख उनके भाई ने उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित किया.

बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली बछेंद्री ने इस क्षेत्र में हाथ आजमाया लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था. बाद में बछेंद्री पाल ने आर्ट साइड से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर बीएड तक पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी करने के बाद तक बछेंद्री की पर्वतारोहण में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

नौकरी की तलाश करते-करते उनका रुझान इस ओर बढ़ा. जिसके बाद एक जाने माने पर्वतारोही ने बछेंद्री को पर्वतारोहण की बारिकियों के बारे में जानकारी दी और पर्वतारोहण के क्षेत्र में आगे बढ़ने को कहा.

देहरादूनः राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शनिवार को 2019 के लिए राष्ट्रपति भवन में लोक गायक प्रीतम भरतवाण औरअंतरराष्ट्रीय छायाकार अनूप शाह को पद्म श्रीऔर पर्वतारोही बछेंद्री पाल को पद्म भूषण सम्मान प्रदान किए. प्रीतम को यह सम्मान लोक गीत को विदेशों तक पहुंचाने के लिए दिया गया तो मशहूर फोटोग्राफर अनूप शाह को फोटोग्राफी और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये प्रदान किया गया. वहीं बछेंद्री पाल को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने पर दिया गया.

पढ़ें:गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के दावों की पोल खोलता यह वीडियो

प्रीतम भरतवाण को विरासत में मिला संगीत

प्रीतम भरतवाण का जन्म देहरादून के रायपुर ब्लॉक के सिला गांव में एक औजी परिवार में हुआ. जिस कारण लोक संगीत उन्हें विरासत में मिली. उनके घर पर ढोल, डौर, थाली जैसे कई उत्तराखंडी वाद्य यंत्र हुआ करते थे. उनके पापा और दादा घर पर ही गाया करते थे. पहाड़ में होने वाले खास त्योहारों में प्रीतम का परिवार जागर लगाया करता था. वहीं से उन्होंने संगीत की शिक्षा भी ली.

padma bhushan
पद्मश्री सम्मान.

प्रीतम भरतवाण की कला को पहचान सबसे पहले स्कूल में रामी बारौणी के नाटक में बाल आवाज़ देने से हुई. मात्र 12 साल की उम्र में ही उन्होंने लोगों के सामने जागर गाना शुरू कर दिया था. 1988 में प्रीतम भरतवाण ने सबसे पहले ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाई. 1995 में प्रीतम भरतवाण की कैसेट रामा कैसेट से तौंसा बौं निकली. इस कैसेट को जनता ने हाथों-हाथ लिया. प्रीतम भरतवाण को सबसे अधिक लोकप्रियता उनके गीत सरूली मेरू जिया लगीगे गीत से मिली. यह गीत आज भी सबसे लोकप्रिय गढ़वाली गीतों में शामिल है जिसके अब न जाने कितने रिमिक्स बन चुके हैं.

प्रीतम भरतवाण ने उत्तराखंड की संस्कृति का विदेशों में भी खूब प्रचार-प्रसार किया है. अमेरिका, इंग्लैंड जैसे कई देशों में उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रदर्शन किया है. आज प्रीतम भरतवाण का जन्मदिन अब उत्तराखंड में जागर संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है.

पिता के गिफ्ट ने बदल दी अनूप शाह की जिंदगी

फोटोग्राफर अनूप शाह का पूरा जीवन पर्वतारोहण, पर्यावरण संरक्षण और फोटोग्राफी के लिए समर्पित रहा है. 350 से ज्यादा उनके फोटोग्राफ्स को पुरस्कार मिल चुके हैं, जबकि 3500 से ज्यादा फोटोग्राफ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का हिस्सा बन चुके हैं. अनूप शाह कई ट्रेकिंग अभियानों में शामिल रह चुके हैं, उन्होंने छह दुर्गम चोटियों पर सफल आरोहण किया है.

padma bhushan
पद्मश्री सम्मान.

अनूप शाह का जन्म 8 अगस्त 1949 में नैनीताल में हुआ था. फोटोग्राफी की शुरुआत उन्होंने अपने पिता की तरफ से उपहार में मिले कैमरे से की, धीरे-धीरे उनका ये शौक जूनून बन गया. स्वभाव से बेहद शांत अनूप शाह को उत्तराखंड के पर्यावरण और जैव विविधता की गहरी जानकारी है. उन्हें हिमालय, यहां की वनस्पतियों और जैव विविधता का इन्साइक्लोपिडिया कहा जाता है. वो पर्यावरण संरक्षण के लिए समय-समय पर मुहिम चलाते रहे हैं.

काफी संघर्षों भरा रहा है बछेंद्री पाल का जीवन

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल को आज पद्म भूषण से नवाजा गया. राष्ट्रपति भवन में शनिवार को आयोजित एक कार्यक्रम में बछेंद्री को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ये सम्मान दिया. बछेंद्री पाल आज पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. साथ ही बछेंद्री पाल महिला सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण हैं. बछेंद्री को ये सम्मान मिलने पर उनके परिवार में खुशी की लहर है.

padma bhushan
पद्म भूषण सम्मान.

बछेंद्री पाल के जीवन को अगर करीब से देखा जाए तो साफ तौर पर पता चलता है कि वे आज जिस मुकाम पर पहुंची हैं, वो उनके सतत प्रयास और कड़ी मेहनत का ही फल है. प्रदेश के पहाड़ी जिले उत्तरकाशी के छोटे से गांव नाकूरी से ताल्लुक रखने वाली बछेंद्री पाल का बचपन अभावों में बीता.

अपने प्रारंभिक जीवन में उन्हें वो सब दुख देखने पड़े जो कि एक आम पहाड़ी लड़की को झेलने पड़ते हैं. बछेंद्री पाल को गरीबी के कारण 8वीं के बाद स्कूली पढ़ाई छोड़नी पड़ी. जिसके बाद बछेंद्री ने घर के काम करते हुए खुद से पढ़ना जारी रखा. बछेंद्री को ऐसा करता देख उनके भाई ने उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित किया.

बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली बछेंद्री ने इस क्षेत्र में हाथ आजमाया लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था. बाद में बछेंद्री पाल ने आर्ट साइड से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर बीएड तक पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी करने के बाद तक बछेंद्री की पर्वतारोहण में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

नौकरी की तलाश करते-करते उनका रुझान इस ओर बढ़ा. जिसके बाद एक जाने माने पर्वतारोही ने बछेंद्री को पर्वतारोहण की बारिकियों के बारे में जानकारी दी और पर्वतारोहण के क्षेत्र में आगे बढ़ने को कहा.

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जागर को अन्तरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने वाले प्रीतम और फोटोग्राफी में अनूप के साथ ही पर्वतारोही बछेंद्री को मिला पद्म श्री



देहरादूनः राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शनिवार को 2019 के लिए राष्ट्रपति भवन में लोक गायक प्रीतम भरतवाण, अंतरराष्ट्रीय छायाकार अनूप साह और पर्वतारोही बछेंद्री पाल को पद्मश्री सम्मान प्रदान किए. प्रीतम को यह सम्मान लोक गीत को विदेशों तक पहुंचाने के लिए दिया गया तो मशहूर फोटोग्राफर अनूप शाह को फोटोग्राफी और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये प्रदान किया गया. वहीं बछेंद्री पाल को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने पर दिया गया. 



प्रीतम भरतवाण को विरासत में मिला संगीत

प्रीतम भरतवाण का जन्म देहरादून के रायपुर ब्लॉक के सिला गांव में एक औजी परिवार में हुआ. जिस कारण लोक संगीत उन्हें विरासत में मिली. उनके घर पर ढोल, डौर, थाली जैसे कई उत्तराखंडी वाद्य यंत्र हुआ करते थे. उनके पापा और दादा घर पर ही गाया करते थे. पहाड़ में होने वाले खास त्योहारों में प्रीतम का परिवार जागर लगाया करता था. वहीं से उन्होंने संगीत की शिक्षा भी ली.

प्रीतम भरतवाण की कला को पहचान सबसे पहले स्कूल में रामी बारौणी के नाटक में बाल आवाज़ देने से हुई. मात्र 12 साल की उम्र में ही उन्होंने लोगों के सामने जागर गाना शुरू कर दिया था. 1988 में प्रीतम भरतवाण ने सबसे पहले ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाई. 1995 में प्रीतम भरतवाण की कैसेट रामा कैसेट से तौंसा बौं निकली. इस कैसेट को जनता ने हाथों-हाथ लिया. प्रीतम भरतवाण को सबसे अधिक लोकप्रियता उनके गीत सरूली मेरू जिया लगीगे गीत से मिली. यह गीत आज भी सबसे लोकप्रिय गढ़वाली गीतों में शामिल है जिसके अब न जाने कितने रिमिक्स बन चुके हैं.

प्रीतम भरतवाण ने उत्तराखंड की संस्कृति का विदेशों में भी खूब प्रचार-प्रसार किया है. अमेरिका, इंग्लैंड जैसे कई देशों में उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रदर्शन किया है. आज प्रीतम भरतवाण का जन्मदिन अब उत्तराखंड में जागर संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है.



पिता के गिफ्ट ने बदल दी अनूप शाह की जिंदगी

 फोटोग्राफर अनूप शाह का पूरा जीवन पर्वतारोहण, पर्यावरण संरक्षण और फोटोग्राफी के लिए समर्पित रहा है. 350 से ज्यादा उनके फोटोग्राफ्स को पुरस्कार मिल चुके हैं, जबकि 3500 से ज्यादा फोटोग्राफ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का हिस्सा बन चुके हैं. अनूप शाह कई ट्रेकिंग अभियानों में शामिल रह चुके हैं, उन्होंने छह दुर्गम चोटियों पर सफल आरोहण किया है. 

अनूप शाह का जन्म 8 अगस्त 1949 में नैनीताल में हुआ था. फोटोग्राफी की शुरुआत उन्होंने अपने पिता की तरफ से उपहार में मिले कैमरे से की, धीरे-धीरे उनका ये शौक जूनून बन गया. स्वभाव से बेहद शांत अनूप शाह को उत्तराखंड के पर्यावरण और जैव विविधता की गहरी जानकारी है. उन्हें हिमालय, यहां की वनस्पतियों और जैव विविधता का इन्साइक्लोपिडिया कहा जाता है. वो पर्यावरण संरक्षण के लिए समय-समय पर मुहिम चलाते रहे हैं. 

काफी संघर्षों भरा रहा है बछेंद्री पाल का जीवन

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल को आज पद्म भूषण से नवाजा गया. राष्ट्रपति भवन में शनिवार को आयोजित एक कार्यक्रम में बछेंद्री को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ये सम्मान दिया. बछेंद्री पाल आज पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. साथ ही बछेंद्री पाल महिला सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण हैं. बछेंद्री को ये सम्मान मिलने पर उनके परिवार में खुशी की लहर है.

बछेंद्री पाल के जीवन को अगर करीब से देखा जाए तो साफ तौर पर पता चलता है कि वे आज जिस मुकाम पर पहुंची हैं, वो उनके सतत प्रयास और कड़ी मेहनत का ही फल है. प्रदेश के पहाड़ी जिले उत्तरकाशी के छोटे से गांव नाकूरी से ताल्लुक रखने वाली बछेंद्री पाल का बचपन अभावों में बीता.

अपने प्रारंभिक जीवन में उन्हें वो सब दुख देखने पड़े जो कि एक आम पहाड़ी लड़की को झेलने पड़ते हैं.  बछेंद्री पाल को गरीबी के कारण 8वीं के बाद स्कूली पढ़ाई छोड़नी पड़ी. जिसके बाद बछेंद्री ने घर के काम करते हुए खुद से पढ़ना जारी रखा. बछेंद्री को ऐसा करता देख उनके भाई ने उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित किया.

बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली बछेंद्री ने इस क्षेत्र में हाथ आजमाया लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था. बाद में बछेंद्री पाल ने आर्ट साइड से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर बीएड तक पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी करने के बाद तक बछेंद्री की पर्वतारोहण में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

नौकरी की तलाश करते-करते उनका रुझान इस ओर बढ़ा. जिसके बाद एक जाने माने पर्वतारोही ने बछेंद्री को पर्वतारोहण की बारिकियों के बारे में जानकारी दी और पर्वतारोहण के क्षेत्र में आगे बढ़ने को कहा.

 


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Last Updated : Mar 16, 2019, 11:11 PM IST
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