देहरादून: पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच काफी तनाव की स्थिति है. इस बीच मिग-21 क्रैश होने की वजह से भारतीय पायलट अभिनंदन पाकिस्तानी सेना की हिरासत में थे, जिन्हें शुक्रवार को रिहा कर दिया गया. पाकिस्तान में अभिनंदन के साथ कैसा बर्ताव हुआ होगा इसका अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता. लेकिन आज हम आपको बताएंगे 1971 में पाकिस्तान द्वारा धोखे से बंदी बनाये गए सेना के पूर्व कैप्टन विजेंद्र सिंह गुरुंग के साथ पाकिस्तान ने कैसा सलूक किया था.
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पूर्व कैप्टन विजेंद्र ने ईटीवी के साथ अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि 13 महीने तक उनके साथ पाकिस्तान ने कैसा सलूक किया. उन दिनों को याद करते हुए पूर्व कैप्टन ने बताया कि पहले तो उन्हें धोखे से कैदी बनाया गया और उसके बाद उन्हें जख्मी हालत में घसीटते हुए पाक सेना एक ठिकाने तक लेकर गई. इसके बाद फिर धोखे से 6 अन्य को पाक ने बंदी बनाया और फिर सभी बंदी कैदियों पर पाकिस्तान के तत्कालीन मेजर ने गोली चलाने के आदेश दे दिए.
उन्होंने बताया कि आंखों में पट्टी बांधे उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता था और हर बार पिस्टल कभी कनपटी में तो कभी गले में लगाकर डराने की कोशिश की जाती थी. बार-बार मारने के ऑर्डर भी पाकिस्तान के तत्कालीन मेजर द्वारा दिए जाते थे. लेकिन हर बार वो ये कहकर विरोध करते थे कि एक सेना के ऑफिसर के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया जा सकता, भारत कभी भी पाक सेना के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करता है.
चाबुक से किये वार
पूर्व कैप्टन विजेंद्र सिंह ने एक किस्सा सुनाते हुए बताया कि आंखों में पट्टी बांधे सुलेमान के एक हेड वर्क ले जाया गया. इसके बाद उनके हाथ-पांव खोलकर उनसे इंक्वायरी की गई. फिर अचानक एक हवलदार ने चाबुक से उन्हें मारना शुरू कर दिया. इस वाकयेको याद करते हुए गुस्साएविजेंद्र ने बताया कि उन्होंने तुरंत इसका विरोध किया और कहा कि इस तरह से उनके साथ व्यवहार नहीं किया जा सकता.
चाय पिलाने के बाद किया काल कोठरी में बंद
विजेंद्र सिंह ने बताया कि चाबुक के विरोध के बाद मेजर ने उन्हें चाय ऑफर की. इसे पीने के बाद उन्हें काल कोठरी में बंद कर दिया गया. काल कोठरी में बिताये दिनों को याद करते हुए पूर्व कैप्टन ने बताया कि काल कोठरी में एक रात बिताने के बाद उन्हें मुल्तान ले जाया गया.
मुल्तान में थप्पड़ का दिया जवाब
उन्होंने बताया कि मुल्तान में पूछताछ के दौरान उन्हें थप्पड़ मारने की कोशिश की. थप्पड़ के लिए उठे हाथ को उन्होंने तुरंत रोकते हुए कहा कि गोली मार दो लेकिन इस तरह से उनकी बेज्जती न की जाए. इसके बाद बंदी बनाने के करीब 13 माह बाद गुरुंग को पाक सेना ने 31 दिसंबर 1972 को मुक्त किया.
बता दें कि दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले सेना के पूर्व कैप्टन विजेंद्र सिंह गुरुंग 1971 में थर्ड असम रायफल में शामिल हुए थे. इसी बीच भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ था. कारगिल सेक्टर में लड़ाई के दौरान गुरुंग कई जवानों की बटालियन के साथ मौजूद थे.