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दून में विभाजन की पीड़ा बयां करते उपन्यास 'दरिया पार का शहर' का हुआ विमोचन

1947 के भारत- पाकिस्तान विभाजन पर आधारित उपन्यास 'दरिया पार का शहर' का लोकार्पण हुआ. लेखक राम प्रकाश अग्रवाल ने स्वयं पर बीते अनुभवों को किताब के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाया है.

'दरिया पार का शहर' का लोकार्पण
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Published : Jun 22, 2019, 10:54 AM IST

देहरादून: राजधानी देहरादून में लेखक राम प्रकाश अग्रवाल के तीसरे उपन्यास दरिया पार का शहर का लोकार्पण प्रेस क्लब में किया गया. भारत-पाकिस्तान के विभाजन पर आधारित इस उपन्यास को प्रेम कहानी से जोड़कर लिखा गया है. दून प्रेस क्लब में राम प्रकाश अग्रवाल के तीसरे उपन्यास दरिया पार का शहर का लोकार्पण किया गया.

उपन्यास 'दरिया पार का शहर' का लोकार्पण.

इस मौके पर जाने-माने साहित्यकार और लेखक गुरदीप खुराना ने कहा कि दरिया पार का शहर कई लिहाज उसे एक अलग तरीके का उपन्यास है. इसमें 1947 के विभाजन की जो तस्वीर खींची गई है, वो बेहद रोमांचक और हैरान कर देने वाली हैं. उस दौरान लोगों ने किस कदर तकलीफें झेली होंगी. इससे इस बात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

साहित्यकार खुराना ने कहा कि इतनी शिद्दत से बेहद कम उपन्यास लिखे गए हैं .इस उपन्यास की विशेषता यह है कि लेखक ने स्वयं विभाजन के समय को अपनी आंखों से देखा है और यही कारण है कि लेखक ने उस दौरान के अपने अनुभवों को किताब के माध्यम से साझा किया है.

दरअसल, दरिया का पार के लेखक राम प्रकाश अग्रवाल खुद किशोरावस्था में विभाजन की घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं. पुस्तक के लेखक राम प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि उपन्यास की कहानी बड़ी रोचक है और यह भाषा सरल, सहज शब्दों में लिखी गई है.

यह भी पढ़ेंः रॉयल वेडिंग : बॉलीवुड अभिनेत्री कैटरीना कैफ ने शादी में लगाए ठुमके, अभिजीत सावंत ने बांधा समां

यह उपन्यास महिला के जीवन की त्रासदी और कुंठाओं को सामने लाता है, लेकिन सबसे सुखद पहलू यह है कि उपन्यास का अंत सुखद है. लेखक राम प्रकाश अग्रवाल का कहना है कि ने अपनी बात रखते हुए लिखा है कि सन 1947 में देश का बंटवारा हुआ था और देश के बंटवारे के पूर्व विभिन्न धर्म के समुदाय एक साथ भाईचारे के साथ रहते थे और एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए आपसी प्रेमभाव से रह रहे थे.

अचानक बंटवारे के पश्चात ऐसा क्या हुआ कि वही लोग पूर्व के आपसी रिश्ते नाते, मित्रता, भाईचारा, प्यार मोहब्बत को भुलाकर एक दूसरे की जान के दुश्मन बन गए.

देहरादून: राजधानी देहरादून में लेखक राम प्रकाश अग्रवाल के तीसरे उपन्यास दरिया पार का शहर का लोकार्पण प्रेस क्लब में किया गया. भारत-पाकिस्तान के विभाजन पर आधारित इस उपन्यास को प्रेम कहानी से जोड़कर लिखा गया है. दून प्रेस क्लब में राम प्रकाश अग्रवाल के तीसरे उपन्यास दरिया पार का शहर का लोकार्पण किया गया.

उपन्यास 'दरिया पार का शहर' का लोकार्पण.

इस मौके पर जाने-माने साहित्यकार और लेखक गुरदीप खुराना ने कहा कि दरिया पार का शहर कई लिहाज उसे एक अलग तरीके का उपन्यास है. इसमें 1947 के विभाजन की जो तस्वीर खींची गई है, वो बेहद रोमांचक और हैरान कर देने वाली हैं. उस दौरान लोगों ने किस कदर तकलीफें झेली होंगी. इससे इस बात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

साहित्यकार खुराना ने कहा कि इतनी शिद्दत से बेहद कम उपन्यास लिखे गए हैं .इस उपन्यास की विशेषता यह है कि लेखक ने स्वयं विभाजन के समय को अपनी आंखों से देखा है और यही कारण है कि लेखक ने उस दौरान के अपने अनुभवों को किताब के माध्यम से साझा किया है.

दरअसल, दरिया का पार के लेखक राम प्रकाश अग्रवाल खुद किशोरावस्था में विभाजन की घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं. पुस्तक के लेखक राम प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि उपन्यास की कहानी बड़ी रोचक है और यह भाषा सरल, सहज शब्दों में लिखी गई है.

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यह उपन्यास महिला के जीवन की त्रासदी और कुंठाओं को सामने लाता है, लेकिन सबसे सुखद पहलू यह है कि उपन्यास का अंत सुखद है. लेखक राम प्रकाश अग्रवाल का कहना है कि ने अपनी बात रखते हुए लिखा है कि सन 1947 में देश का बंटवारा हुआ था और देश के बंटवारे के पूर्व विभिन्न धर्म के समुदाय एक साथ भाईचारे के साथ रहते थे और एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए आपसी प्रेमभाव से रह रहे थे.

अचानक बंटवारे के पश्चात ऐसा क्या हुआ कि वही लोग पूर्व के आपसी रिश्ते नाते, मित्रता, भाईचारा, प्यार मोहब्बत को भुलाकर एक दूसरे की जान के दुश्मन बन गए.

Intro:राम प्रकाश अग्रवाल के तीसरे उपन्यास दरिया पार का शहर का लोकार्पण शुक्रवार शाम को देहरादून के प्रेस क्लब में आयोजित किया गया । भारत-पाकिस्तान के विभाजन पर आधारित इस उपन्यास को प्रेम कहानी से जोड़कर लिखा गया है।
summary- दरिया पार का शहर नामक उपन्यास में विभाजन के समय के दर्द को सामने रखा गया है, दरअसल दरिया का पार के लेखक राम प्रकाश अग्रवाल खुद किशोरावस्था में विभाजन की घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं।


Body:दरिया पार का शहर पुस्तक के लेखक राम प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि कहानी बड़ी रोचक है ,उपन्यास की भाषा सरल, सहज शब्दों में लिखी गई है ,यह उपन्यास महिला के जीवन की त्रासदी और कुंठाओं को सामने लाता है। लेकिन सबसे सुखद पहलू यह है कि उपन्यास का अंत सुखांत कहानी है। जाने-माने साहित्यकार और लेखक गुरदीप खुराना ने कहा कि दरिया पार का शहर कई लिहाज उसे एक अलग तरीके की किताब है इसमें सन 1947 के विभाजन की जो तस्वीर खींची गई है, वो बेहद रोमांचक और हैरान कर देने वाली है ।उस दौरान लोगों ने किस कदर तकलीफें झेली होंगी जिसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इतनी शिद्दत से बेहद कम उपन्यास लेकर गए हैं जबकि कई जाने-माने लेखकों ने विभाजन पर किताबें लिखी हैं। हैं लेकिन प्रतिष्ठित लेखकों के अनुभव अपने नहीं हुए हैं। इस उपन्यास की विशेषता यह है कि लेखक ने स्वयं विभाजन के समय को अपनी आंखों से देखा है, और यही कारण है कि लेखक ने उस दौरान भोगे गए अनुभवों को किताब के माध्यम से साझा किया है ,जो सराहनीय है।

बाईट- गुरदीप खुराना, साहित्यकार व लेखक

बाईट- रामप्रकाश अग्रवाल, उपन्यास के लेखक




Conclusion:दरअसल लेखक राम प्रकाश अग्रवाल ने अपनी बात रखते हुए लिखा है कि सन 1947 में देश का बंटवारा हुआ था ,और देश के बंटवारे के पूर्व विभिन्न धर्म के समुदाय एक साथ भाईचारे के साथ रहते थे और एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए आपसी प्रेमभाव से रह रहे थे। अचानक बंटवारे के पश्चात ऐसा क्या हुआ कि वही लोग पूर्व के आपसी रिश्ते नाते, मित्रता, भाईचारा, प्यार मोहब्बत को भुलाकर एक दूसरे की जान के दुश्मन बन गए ।इसका अर्थ यह हुआ कि देश का विभाजन होना ही नहीं चाहिए था और हिंदुस्तान को दो टुकड़ों में बांटकर पाकिस्तान नहीं बनाना चाहिए था ।धर्म के नाम पर कत्लेआम हुआ लाखों युक्तियां बलात्कार की शिकार हुई और कई बच्चे अनाथ हो गए। उस समय किशोरावस्था में वह इन सब घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं, और यही अनुभव उन्होंने उपन्यास के माध्यम से साझा किए है।
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