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भारतीय सेना की शान है खुखरी, अमेरिकी सेना ने अपनाई गोरखा रेजिमेंट की ये शान

पूरे देश में सिर्फ देहरादून से ही खुखरी सप्लाई की जाती है.

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Published : Apr 23, 2019, 9:33 PM IST

Updated : Apr 24, 2019, 7:55 AM IST

देहरादून: खुखरी का नाम सुनते ही आपके दिमाग में गोरखा रेजिमेंट का चित्र उभकर सामने आता होगा, जिनकी कमर पर हमेशा खुखरी (हथियार) बंधा रहता है. गोरखा रेजिमेंट के जवान बन्दूक की गोली से ज्यादा खुखरी पर भरोसा करते है. शायद यही कारण है कि वे अपनी शरीर से इसे कभी अलग नहीं करते है.गोरखा सैनिकों के कभी पैर तो कभी कमर से हमेशा खुखरी बंधी होती है. आज हम आपको खुखरी से जुड़ी कुछ विशेष जानकारियां देने के साथ ये भी बताएंगे की खुखरी देशभर में कहां बनाई जाती है.

भारतीय सेना की शान है उत्तराखंडी खुखरी.

पढ़ें- गोरखालियों ने अंग्रेजों के इस युद्ध में छुड़ा दिए थे छक्के, खुखरी से दिया था बंदूक का जवाब

गोरखा रेजिमेंट का मुख्य हथियार है खुखरी
राजधानी देहरादून के गढ़ी कैंट स्थित डाकरा बाजार सेना के साजो-सामान के साथ के लिए प्रसिद्ध है. इसके अलावा यहां कभी गोरखा रेजिमेंट के बेस कैंप भी हुआ करता था. इसी डाकरा बाजार में मौजूद है वो खास दुकान जिनकी चार पीढ़ियां खुखरी बनाने का काम कर रही है.

गोरखा रेजिमेंट के साथ अब सेना की सभी विंग खुखरी का इस्तेमाल करती है. डाकरा बाजार में खुखरी की दुकान चला रहे विकास बताते हैं कि उनका परिवार सालों से सेना के लिए खुखरी बना रहा है. उनकी बनायी हुई खुखरी न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी इस्तेमाल की जाती है.

पढ़ें- दिल्ली तक पहुंची चैंपियन की 'चाल', अमित शाह से जल्द कर सकते हैं मुलाकात

ब्रिटिश काल से बना रहे हैं खुखरी
विकास ने बताया कि जिस तरह देहरादून की बासमती और लीची विश्व प्रसिद्ध है, उसी तरह यहां की खुखरी भी सैनिक पसंद करते हैं. विकास के मुताबिक ब्रिटिश काल में भी डाकरा बाजार की इसी दुकान से खुखरी बनकर जाया करती थी. पूरे देश में सिर्फ देहरादून से ही खुखरी सप्लाई की जाती है.

आखिरी समय में काम आती है खुखरी
बताया जाता है कि आजादी के बाद जब युद्ध में सैनिकों के पास गोला बारुद खत्म हो गया था तो सैनिकों ने खुखरी के सहारे ही दुश्मनों का सिर कलम किया था. ब्रिटिश सेना के अधिकारी भी गोरखा रेजिमेंट की खुखरी की धार और उनके पराक्रम व साहस का लोहा मानते थे. यही कारण था कि गोरखा रेजिमेंट की एक बटालियन को ब्रिटिश अपने साथ ले गए थे, जो आज भी वहां पर तैनात है.

पढ़ें- पेशावर कांड के महानायक के वंशज बोले- परिजनों को आज तक नहीं मिला सम्मान

गौर हो कि देहरादून एक सैनिक बाहुल्य क्षेत्र है. यहां हर कोई खुखरी की खासियत को जनता है. गोरखा रेजिमेंट से रिटायर हुए सेना के जवान की मानें तो सैनिक कभी भी खुखरी को अपने से अलग नहीं करता है. आखिर समय में खुखरी ही उसने काम आती है.

अमेरीकी सेना ने भी दिया ऑर्डर
देहरादून में बनी इस खुखरी का इस्तेमाल अबतक भारतीय सेना के साथ ब्रिटिश आर्मी ही करती थी, लेकिन अब देहरादून की बनी खुखरी का इस्तेमाल अमेरिकी सेना भी करेगी. यूएस मरीन कमांडो के अधिकारियों ने देहरादून में खुखरी बनने वाले विकास को इसका काम दिया है.

हाथों से तैयारी की जाएगी खुखरी

विकास का कहना है कि हाल ही में उनके पास ये ऑफर आया है, जिसके बाद वे इस काम में लग गए हैं. मरीन कमांडो जो चाकू इस्तेमाल करते हैं वो खुखरी से बहुत छोटा होता है. लेकिन अब हमारी खुखरी वे पसंद कर रहे हैं. अमेरीकी ने जिस खुखरी का ऑर्डर दिया वे मशीन से नहीं हाथों से तैयार होगी.

पढ़ें- जनता से किए वादे पूरे करने के लिए पार्षदों ने किया ये काम, बौखलाए मेयर गामा

अब्दुल बनाते हैं देश के लिए खुखरी
इस खुखरी को बनाने वाले कारीगर का नाम अब्दुल है. अब्दुल ने बताया कि उनके दादा और पिता भी खुखरी बनाने का काम करते है. इस काम में उन्हें 40 साल हो गए है. ये काम उन्हें बेहद पसंद है क्योंकि उनकी बनायी हुई खुखरी से ही सैनिक दुश्मनों को मौत के घाट उतारते है. उनके लिए ये काम भारत की सेवा जैसा ही है.

लंदन की पासिंग आउट परेड में दिखेगी देहरादून की तलवारें
खुखरी के साथ देहरादून में ही तलवारें भी बनाई जा रही है, जिनका इस्तेमाल भारतीय और विदेशी सेना करती है. देहरादून में खुखरी और तलवारें बनाने वाली फैक्ट्री चला रहे नसीम अली कहते हैं कि उनके पास काम की कमी नहीं है. एक खुखरी को बनाने में काफी समय लगाता है.

खुखरी के साथ-साथ नशीम अली की फैक्ट्री में तलवारें भी बनायी जाती है. इनके यहां के बने हथियार विदेशों में जाते हैं. अभी उनके पास लंदन से तलवार बनाने के एक ऑर्डर मिला है. नसीम ने बताया कि जो तलवार वे बनाने वाले हैं उनका इस्तेमाल लंदन की पासिंग आउट परेड में किया जाएगा.

देहरादून: खुखरी का नाम सुनते ही आपके दिमाग में गोरखा रेजिमेंट का चित्र उभकर सामने आता होगा, जिनकी कमर पर हमेशा खुखरी (हथियार) बंधा रहता है. गोरखा रेजिमेंट के जवान बन्दूक की गोली से ज्यादा खुखरी पर भरोसा करते है. शायद यही कारण है कि वे अपनी शरीर से इसे कभी अलग नहीं करते है.गोरखा सैनिकों के कभी पैर तो कभी कमर से हमेशा खुखरी बंधी होती है. आज हम आपको खुखरी से जुड़ी कुछ विशेष जानकारियां देने के साथ ये भी बताएंगे की खुखरी देशभर में कहां बनाई जाती है.

भारतीय सेना की शान है उत्तराखंडी खुखरी.

पढ़ें- गोरखालियों ने अंग्रेजों के इस युद्ध में छुड़ा दिए थे छक्के, खुखरी से दिया था बंदूक का जवाब

गोरखा रेजिमेंट का मुख्य हथियार है खुखरी
राजधानी देहरादून के गढ़ी कैंट स्थित डाकरा बाजार सेना के साजो-सामान के साथ के लिए प्रसिद्ध है. इसके अलावा यहां कभी गोरखा रेजिमेंट के बेस कैंप भी हुआ करता था. इसी डाकरा बाजार में मौजूद है वो खास दुकान जिनकी चार पीढ़ियां खुखरी बनाने का काम कर रही है.

गोरखा रेजिमेंट के साथ अब सेना की सभी विंग खुखरी का इस्तेमाल करती है. डाकरा बाजार में खुखरी की दुकान चला रहे विकास बताते हैं कि उनका परिवार सालों से सेना के लिए खुखरी बना रहा है. उनकी बनायी हुई खुखरी न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी इस्तेमाल की जाती है.

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ब्रिटिश काल से बना रहे हैं खुखरी
विकास ने बताया कि जिस तरह देहरादून की बासमती और लीची विश्व प्रसिद्ध है, उसी तरह यहां की खुखरी भी सैनिक पसंद करते हैं. विकास के मुताबिक ब्रिटिश काल में भी डाकरा बाजार की इसी दुकान से खुखरी बनकर जाया करती थी. पूरे देश में सिर्फ देहरादून से ही खुखरी सप्लाई की जाती है.

आखिरी समय में काम आती है खुखरी
बताया जाता है कि आजादी के बाद जब युद्ध में सैनिकों के पास गोला बारुद खत्म हो गया था तो सैनिकों ने खुखरी के सहारे ही दुश्मनों का सिर कलम किया था. ब्रिटिश सेना के अधिकारी भी गोरखा रेजिमेंट की खुखरी की धार और उनके पराक्रम व साहस का लोहा मानते थे. यही कारण था कि गोरखा रेजिमेंट की एक बटालियन को ब्रिटिश अपने साथ ले गए थे, जो आज भी वहां पर तैनात है.

पढ़ें- पेशावर कांड के महानायक के वंशज बोले- परिजनों को आज तक नहीं मिला सम्मान

गौर हो कि देहरादून एक सैनिक बाहुल्य क्षेत्र है. यहां हर कोई खुखरी की खासियत को जनता है. गोरखा रेजिमेंट से रिटायर हुए सेना के जवान की मानें तो सैनिक कभी भी खुखरी को अपने से अलग नहीं करता है. आखिर समय में खुखरी ही उसने काम आती है.

अमेरीकी सेना ने भी दिया ऑर्डर
देहरादून में बनी इस खुखरी का इस्तेमाल अबतक भारतीय सेना के साथ ब्रिटिश आर्मी ही करती थी, लेकिन अब देहरादून की बनी खुखरी का इस्तेमाल अमेरिकी सेना भी करेगी. यूएस मरीन कमांडो के अधिकारियों ने देहरादून में खुखरी बनने वाले विकास को इसका काम दिया है.

हाथों से तैयारी की जाएगी खुखरी

विकास का कहना है कि हाल ही में उनके पास ये ऑफर आया है, जिसके बाद वे इस काम में लग गए हैं. मरीन कमांडो जो चाकू इस्तेमाल करते हैं वो खुखरी से बहुत छोटा होता है. लेकिन अब हमारी खुखरी वे पसंद कर रहे हैं. अमेरीकी ने जिस खुखरी का ऑर्डर दिया वे मशीन से नहीं हाथों से तैयार होगी.

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अब्दुल बनाते हैं देश के लिए खुखरी
इस खुखरी को बनाने वाले कारीगर का नाम अब्दुल है. अब्दुल ने बताया कि उनके दादा और पिता भी खुखरी बनाने का काम करते है. इस काम में उन्हें 40 साल हो गए है. ये काम उन्हें बेहद पसंद है क्योंकि उनकी बनायी हुई खुखरी से ही सैनिक दुश्मनों को मौत के घाट उतारते है. उनके लिए ये काम भारत की सेवा जैसा ही है.

लंदन की पासिंग आउट परेड में दिखेगी देहरादून की तलवारें
खुखरी के साथ देहरादून में ही तलवारें भी बनाई जा रही है, जिनका इस्तेमाल भारतीय और विदेशी सेना करती है. देहरादून में खुखरी और तलवारें बनाने वाली फैक्ट्री चला रहे नसीम अली कहते हैं कि उनके पास काम की कमी नहीं है. एक खुखरी को बनाने में काफी समय लगाता है.

खुखरी के साथ-साथ नशीम अली की फैक्ट्री में तलवारें भी बनायी जाती है. इनके यहां के बने हथियार विदेशों में जाते हैं. अभी उनके पास लंदन से तलवार बनाने के एक ऑर्डर मिला है. नसीम ने बताया कि जो तलवार वे बनाने वाले हैं उनका इस्तेमाल लंदन की पासिंग आउट परेड में किया जाएगा.

Intro:देहरादून का बासमती और लीची की मशहूर नहीं है बल्कि यहां बनने वाली खोकरिया भी बेहद मशहूर क्या आप जानते हैं कि गोरखा रेजीमेंट के साथ साथ तमाम सेना की विंग्स में देहरादून की बनी हुई खूबियों का ही इस्तेमाल किया जाता है देहरादून के बकरा बाजार में स्थित ऐसी ही कई 100 साल पुरानी दुकान है जो खुखरी बनाने का काम ही करते हैं खास बात यह है कि अब इनकी खुकरी भारतीय सेना के साथ-साथ विदेशी सेना में भी इस्तेमाल की जा रही है हाल ही में इन्हें अमेरिकी सेना में शामिल मरीन कमांडो की तरफ से एक आर्डर मिला है जिसमें खुकरी बनाने और खास तरह की खुकरी का ऑर्डर मिला है


Body:देशभर में सिर्फ खुकरी देहरादून में ही बनाई जाती है आजादी के बाद ज्यादातर युद्धों में सैनिकों के पास जब हथियार और गोला-बारूद खत्म हो जाते थे तब वह खुकरी का ही अंत समय में प्रयोग करते थे


Conclusion:खास बात यह है कि यह खुकरी अब्दुल नाम के व्यक्ति पिछले 40 साल से बना रहे हैं इससे पहले उनके पिता और दादा भी इसी काम को करते थे उनका कहना है कि जब उनकी खुखरी सेना के लोग इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें गर्व होता है
Last Updated : Apr 24, 2019, 7:55 AM IST
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