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देवभूमि की ये तस्वीर देख रो देंगे आप, कंधे पर हल रखकर खेत जोतने को मजबूर हैं महिलाएं

बागेश्वर के रिठकुला गांव में संसाधनों की कमी और गरीबी के कारण वहां की महिलाएं खेतों का काम बैलों के बजाय खुद करने को मजबूर हैं.

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Published : Jun 7, 2021, 10:09 AM IST

Updated : Jun 7, 2021, 10:49 AM IST

बागेश्वर: पहाड़ी जनपदों में जीवन गुजर-बसर करना बेहद ही मुश्किलों भरा है. अक्सर हम सभी पहाड़ों में महिलाओं के कठिन जीवन को लेकर बहुत सारी कहानियां सुनते आ रहे हैं. उन कहानियों की हकीकत बागेश्वर जिले में देखी जा रही है. यहां महिलाओं को देखकर उनके कठिन परिश्रम का खुद-ब-खुद अंदाजा लगाया जा सकता है. गरीबी के दंश के चलते यहां कई परिवारों की महिलाएं खेतों का काम बैलों के बजाय खुद करने को मजबूर हैं. इन गांवों में विकास के नाम पर कोई काम नहीं हुआ है.

महिलाएं कंधे पर हल रखकर जोत रहीं खेत.

बागेश्वर जिले की शामा तहसील के दूरस्थ क्षेत्र रिठकुला में महिलाओं की जीवन शैली किसी पहाड़ से कम नहीं है. यहां की महिलाएं देश दुनिया में नाम कमाने के साथ ही कठोर परिश्रम से भी पीछे नहीं हटती हैं. ऐसा ही एक जीता जागता उदाहरण है गोगिना क्षेत्र के रिठकुला, रातिरकेटी समेत अन्य गांवों की महिलाओं के साथ देखने को मिला है. ये हर परिस्थिति में भी डटी रहती हैं. इन क्षेत्रों के वाशिंदों के पूर्वजों द्वारा पहाड़ को काटकर बनाए गए छोटे-छोटे खेतों में फसल के उत्पादन के लिए आज भी हर परिवार जुटा रहता है. गरीबी के दंश के चलते ज्यादातर परिवार खुद ही खेतों को बैलों की जगह कंधे में हल रखकर जोतने में लगे रहते हैं. ताकि उन्हें अनाज मिल सके. 21वीं सदी में जहां हर जगह विकास की बातें हो रही हैं, वहीं इस क्षेत्र में विकास कितना पहुंचा है इसकी सच्चाई ये तस्वीर खुद बयां करती है.

बागेश्वर जिले के कपकोट क्षेत्र से करीब 30 किमी आगे शामा क्षेत्र सब्जी व फल उत्पादन में जिले का सबसे अग्रणी क्षेत्र है. यहां के आलू और कीवी की मांग देश-विदेश में है. हर कोई यहां के किसानों की तारीफ करते नहीं थकता है. लेकिन अगर सुविधाओं और मदद की बात की जाए तो यहां कुछ विशेष दिखता नहीं है.

पढ़ें: भारी भूस्खलन से गंगोत्री हाईवे बंद, अंतरराष्ट्रीय सीमा से संपर्क कटा

गोगिना की ग्राम प्रधान शीतल रौतेला का कहना है कि गरीबी और साधनों की कमी की वजह से महिलाओं द्वारा खुद खेतों में बैलों का काम किया जा रहा है. संसाधनों की कमी के चलते लोगों को काफी परेशानी हो रही है. लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. दूरस्थ क्षेत्र होने और संचार की व्यवस्था नहीं होने से लोग सरकारी योजनाओं का भी पूरी तरह से लाभ नहीं ले पाते हैं.

कोलकाता में हाथ से खींचते थे रिक्शॉ

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हाथ से रिक्शॉ खींचा जाता था. ‘सिटी ऑफ जॉय’ के नाम से मशहूर कोलकाता के माथे पर इसे कलंक की तरह माना जाता था. मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय ने अपनी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ में इसका मार्मिक फिल्मांकन किया था. इस फिल्म में जाने-माने अभिनेता बलराज साहनी को हाथ रिक्शॉ खींचते दिखाया गया था. हालांकि अब कोलकाता में इस अमानवयी सवारी को बंद करा दिया गया है. दुर्भाग्य से उत्तराखंड जिसे देवभूमि भी कहते हैं, वहां महिलाएं बैलों के जुए अपने कंधे पर रखकर खेत जोतने को मजबूर हैं.

बागेश्वर: पहाड़ी जनपदों में जीवन गुजर-बसर करना बेहद ही मुश्किलों भरा है. अक्सर हम सभी पहाड़ों में महिलाओं के कठिन जीवन को लेकर बहुत सारी कहानियां सुनते आ रहे हैं. उन कहानियों की हकीकत बागेश्वर जिले में देखी जा रही है. यहां महिलाओं को देखकर उनके कठिन परिश्रम का खुद-ब-खुद अंदाजा लगाया जा सकता है. गरीबी के दंश के चलते यहां कई परिवारों की महिलाएं खेतों का काम बैलों के बजाय खुद करने को मजबूर हैं. इन गांवों में विकास के नाम पर कोई काम नहीं हुआ है.

महिलाएं कंधे पर हल रखकर जोत रहीं खेत.

बागेश्वर जिले की शामा तहसील के दूरस्थ क्षेत्र रिठकुला में महिलाओं की जीवन शैली किसी पहाड़ से कम नहीं है. यहां की महिलाएं देश दुनिया में नाम कमाने के साथ ही कठोर परिश्रम से भी पीछे नहीं हटती हैं. ऐसा ही एक जीता जागता उदाहरण है गोगिना क्षेत्र के रिठकुला, रातिरकेटी समेत अन्य गांवों की महिलाओं के साथ देखने को मिला है. ये हर परिस्थिति में भी डटी रहती हैं. इन क्षेत्रों के वाशिंदों के पूर्वजों द्वारा पहाड़ को काटकर बनाए गए छोटे-छोटे खेतों में फसल के उत्पादन के लिए आज भी हर परिवार जुटा रहता है. गरीबी के दंश के चलते ज्यादातर परिवार खुद ही खेतों को बैलों की जगह कंधे में हल रखकर जोतने में लगे रहते हैं. ताकि उन्हें अनाज मिल सके. 21वीं सदी में जहां हर जगह विकास की बातें हो रही हैं, वहीं इस क्षेत्र में विकास कितना पहुंचा है इसकी सच्चाई ये तस्वीर खुद बयां करती है.

बागेश्वर जिले के कपकोट क्षेत्र से करीब 30 किमी आगे शामा क्षेत्र सब्जी व फल उत्पादन में जिले का सबसे अग्रणी क्षेत्र है. यहां के आलू और कीवी की मांग देश-विदेश में है. हर कोई यहां के किसानों की तारीफ करते नहीं थकता है. लेकिन अगर सुविधाओं और मदद की बात की जाए तो यहां कुछ विशेष दिखता नहीं है.

पढ़ें: भारी भूस्खलन से गंगोत्री हाईवे बंद, अंतरराष्ट्रीय सीमा से संपर्क कटा

गोगिना की ग्राम प्रधान शीतल रौतेला का कहना है कि गरीबी और साधनों की कमी की वजह से महिलाओं द्वारा खुद खेतों में बैलों का काम किया जा रहा है. संसाधनों की कमी के चलते लोगों को काफी परेशानी हो रही है. लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. दूरस्थ क्षेत्र होने और संचार की व्यवस्था नहीं होने से लोग सरकारी योजनाओं का भी पूरी तरह से लाभ नहीं ले पाते हैं.

कोलकाता में हाथ से खींचते थे रिक्शॉ

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हाथ से रिक्शॉ खींचा जाता था. ‘सिटी ऑफ जॉय’ के नाम से मशहूर कोलकाता के माथे पर इसे कलंक की तरह माना जाता था. मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय ने अपनी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ में इसका मार्मिक फिल्मांकन किया था. इस फिल्म में जाने-माने अभिनेता बलराज साहनी को हाथ रिक्शॉ खींचते दिखाया गया था. हालांकि अब कोलकाता में इस अमानवयी सवारी को बंद करा दिया गया है. दुर्भाग्य से उत्तराखंड जिसे देवभूमि भी कहते हैं, वहां महिलाएं बैलों के जुए अपने कंधे पर रखकर खेत जोतने को मजबूर हैं.

Last Updated : Jun 7, 2021, 10:49 AM IST
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