बागेश्वरः पलायन के दंश से जिले के गांव किस कदर प्रभावित हैं, इसकी बानगी पिंडर घाटी के दूरस्थ गांव बोरबलड़ा में देखने को मिला. जहां एक घायल व्यक्ति को मोटर मार्ग तक लाने के लिए युवा ही नहीं मिले, ऐसे कठिन हालत में गांव की बेटियों ने हिम्मत दिखाई और घायल को 10 किमी दूर सड़क तक लाने के लिए अन्य लोगों के साथ डोली को कंधा दिया. जहां उन्होंने विपरीत हालत में घायल की मदद की और महिला सशक्तीकरण की मिशाल पेश की.
जानकारी के मुताबिक, बोरबलड़ा के समडर तोक के रहने वाले खिलाफ सिंह चारा काटने के दौरान पेड़ से गिर गए थे. जिससे वो गंभीर रूप से घायल हो गए थे. जिन्हें घायल अवस्था में अस्पताल तक लाना था, लेकिन बुजुर्ग,महिलाएं और बच्चे ही गांव में मौजूद थे. ऐसे हालत में उन्हें 10 किमी दूर बदियाकोट तक डोली में लाना बेहद चुनौतीपूर्ण था.
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लोगों की परेशानी को देखते हुए गांव की महिलाओं ने साहस का परिचय दिया और घायल की डोली को सड़क तक पहुंचाने में मदद की. इतना ही नहीं महिलाओं ने उबड़-खाबड़ रास्ते में लोगों का साथ देते हुए डोली को कंधा दिया और आखिरकार घायल व्यक्ति को सड़क तक पहुंचाया. जिसके बाद उसे वाहन के जरिए अस्पताल ले जाया गया.
बता दें कि समडर तोक में 14 परिवार रहते हैं. जहां पर 76 वोटर हैं, लेकिन वर्तमान में युवा नौकरी की तलाश में महानगरों की ओर पलायन कर गए हैं. गांव में कुल 28 महिला और बच्चे, जबकि 15 पुरुष ही बचे हैं. ऐसे में कोई बड़ा काम और मुसीबत की स्थिति में ग्रामीणों को काफी दिक्कतें होती है.
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ये तस्वीर सरकार के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है. ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है कि राज्य गठन के 19 साल बीत जाने के बाद भी मूलभूत सुविधाओं से गांव क्यों वंचित हैं? पलायन को रोकने के लिए सरकार ठोस कदम क्यों नहीं उठा पा रही है. जबकि, बेरोजगारी के चलते युवा रोजगार की तलाश में गांव से पलायन करने को मजबूर हैं.