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मां कोट भ्रामरी मेले में उमड़ा श्रद्धालुओं का हुजूम, लोगों ने विधि-विधान की इष्ट देवी की पूजा - बागेश्वर न्यूज

कुमाऊं और गढ़वाल मंडल की सांस्कृतिक एकता का गवाह मां कोट भ्रामरी मेला संपन्न हो गया. दो दिवसीय मेले में पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने मां कोट भ्रामरी के दर्शन किये.

मां कोट भ्रामरी मेले
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Published : Sep 7, 2019, 12:25 PM IST


बागेश्वरः क्षेत्र के डंगोली में लगने वाला पौराणिक कोट भ्रामरी मेला डोली उठने के साथ संपन्न हो गया. मेला क्षेत्र में दिन भर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर चलता रहा. इस बार मेले में 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने मां कोट भ्रामरी के दर्शन किये. मेला प्रशासन और जिलाधिकारी ने समय-समय पर मेले में व्यवस्थाओं का जायजा लिया. आपको बता दें कि बागेश्वर जिले के डंगोली का यह मेला गढ़वाल और कुमाऊं की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है.

मां कोट भ्रामरी मेले का समापन.

यहां हर साल मेले के दिन चमोली, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, और अल्मोड़ा से हजारों श्रद्धालु आते हैं. गढ़वाल और कुमाऊं के लोग मां कोट भ्रामरी को अपनी इष्ट देवी के तौर पर पूजते हैं.

यह भी पढ़ेंः महिला ने पति पर लगाया तीन तलाक देने का आरोप, पुलिस ने मामला दर्ज किया

बताया जाता है कि करीब 20 साल पहले तक यहां दर्जनों की संख्या में भैंसों और सैकड़ों की संख्या में बकरों की बलि दी जाती थी. सरकार की बलि प्रथा पर रोक के बाद अब यहां श्रद्धालु केवल नारियल और फल-फूल से मां की पूजा अर्चना करते हैं.


बागेश्वरः क्षेत्र के डंगोली में लगने वाला पौराणिक कोट भ्रामरी मेला डोली उठने के साथ संपन्न हो गया. मेला क्षेत्र में दिन भर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर चलता रहा. इस बार मेले में 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने मां कोट भ्रामरी के दर्शन किये. मेला प्रशासन और जिलाधिकारी ने समय-समय पर मेले में व्यवस्थाओं का जायजा लिया. आपको बता दें कि बागेश्वर जिले के डंगोली का यह मेला गढ़वाल और कुमाऊं की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है.

मां कोट भ्रामरी मेले का समापन.

यहां हर साल मेले के दिन चमोली, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, और अल्मोड़ा से हजारों श्रद्धालु आते हैं. गढ़वाल और कुमाऊं के लोग मां कोट भ्रामरी को अपनी इष्ट देवी के तौर पर पूजते हैं.

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बताया जाता है कि करीब 20 साल पहले तक यहां दर्जनों की संख्या में भैंसों और सैकड़ों की संख्या में बकरों की बलि दी जाती थी. सरकार की बलि प्रथा पर रोक के बाद अब यहां श्रद्धालु केवल नारियल और फल-फूल से मां की पूजा अर्चना करते हैं.

Intro:एंकर- कुमाऊ और गढ़वाल मंडल की सांस्कृतिक एकता का गवाह माॅ कोट भ्रामरी मेला आज संपन्न हो गया। दो दिवसीय मेले में पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने माॅ कोट भ्रामरी के दर्शन किये। मेले के दौरान श्रद्धालुओं के खान-पान और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे।

वीओ- बागेश्वर के डंगोली क्षेत्र में लगने वाला पौराणिक कोट भ्रामरी मेला आज डोली उठने के साथ ही संपन्न हो गया। मेला क्षेत्र में आज दिन भर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर चलता रहा। इस बार मेले में पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने माॅ कोट भ्रामरी के दर्शन किये। मेला प्रशासन और जिलाधिकारी ने समय समय पर मेले में व्यवस्थाओं का जायजा लिया। आपको बता दें कि बागेश्वर जिले के डंगोली का यह मेला गढ़वाल और कुमाऊ की सांस्कृतिक ऐकता का प्रतीक है। यहां हर साल मेले के दिन चमोली, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, और अल्मोड़ा से हजारों श्रद्धालु आते हैं। गढ़वाल और कुमाऊ के लोग माॅ कोट भ्रामरी को अपनी इष्ट देवी के तौर पर पूजते हैं। बताया जाता है कि करीब बीस साल पहले तक यहां दर्जनों की संख्या में भैंसों और सैकड़ों की संख्या में बकरों की बलि दी जाती थी। सरकार की रोक के बाद अब यहां श्रद्धालु केवल नारियल और फूल से माॅ की पूजा अर्चना करते हैं।
बाइट-1- रंजना राजगुरू, डीएम बागेश्वर।Body:वीओ- बागेश्वर के डंगोली क्षेत्र में लगने वाला पौराणिक कोट भ्रामरी मेला आज डोली उठने के साथ ही संपन्न हो गया। मेला क्षेत्र में आज दिन भर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर चलता रहा। इस बार मेले में पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने माॅ कोट भ्रामरी के दर्शन किये। मेला प्रशासन और जिलाधिकारी ने समय समय पर मेले में व्यवस्थाओं का जायजा लिया। आपको बता दें कि बागेश्वर जिले के डंगोली का यह मेला गढ़वाल और कुमाऊ की सांस्कृतिक ऐकता का प्रतीक है। यहां हर साल मेले के दिन चमोली, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, और अल्मोड़ा से हजारों श्रद्धालु आते हैं। गढ़वाल और कुमाऊ के लोग माॅ कोट भ्रामरी को अपनी इष्ट देवी के तौर पर पूजते हैं। बताया जाता है कि करीब बीस साल पहले तक यहां दर्जनों की संख्या में भैंसों और सैकड़ों की संख्या में बकरों की बलि दी जाती थी। सरकार की रोक के बाद अब यहां श्रद्धालु केवल नारियल और फूल से माॅ की पूजा अर्चना करते हैं।
बाइट-1- रंजना राजगुरू, डीएम बागेश्वर।Conclusion:
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