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बागेश्वर की नगरदेवी हैं माता चंडिका, चंद शासकों से जुड़ा है इतिहास - Temple of Mata Chandika on Bhileshwar Hill

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के भीलेश्वर पहाड़ी पर स्थित माता चंडिका का मंदिर है. माता चंडिका को बागेश्वर की नगरदेवी कहा जाता है. यहां वर्ष भर भक्तजनों का तांता लगा रहता है. शारदीय और चैत्र नवरात्र में मंदिर में भक्त भजन-कीर्तन कर मां चंडिका की आराधना करते हैं.

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बागेश्वर की नगरदेवी है माता चंडिका
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Published : Apr 9, 2022, 3:06 PM IST

Updated : Apr 9, 2022, 3:46 PM IST

बागेश्वर: नगर के भीलेश्वर पहाड़ी पर स्थित माता चंडिका को बागेश्वर की नगरदेवी का दर्जा प्राप्त है. माता चंडिका को चंद शासकों के कुल पुरोहित पांडेय वंशजों ने चंपावत से यहां लाकर स्थापित किया था. वर्ष भर जिले के भक्तजन माता के दरबार में आकर पूूजा-अर्चना करते हैं. शारदीय और चैत्र नवरात्र में मंदिर में भक्त अधिक संख्या में आते हैं. इस दौरान भजन-कीर्तन कर मां चंडिका की आराधना की जाती है.

चंडिका माता को मूल रूप से चंपावत का माना जाता है. वर्ष 1698 से 1701 में चंद राजाओं के शासनकाल में उनके कुलपुरोहित रहे सिमल्टा (चंपावत) गांव के पंडित श्रीराम पांडेय चंडिका देवी और गोल्ज्यू को लेकर बागेश्वर आए थे. ताम्र पत्र और शिलालेख में अंकित जानकारी के अनुसार भीलेश्वर पर्वत पर माता चंडिका का छोटा मंदिर (‌थान) बनाया गया. जिसके कुछ दूरी पर गोल्ज्यू की स्थापना की गई. जिन्हें अब चौरासी गोल्ज्यू के नाम से जाना जाता है.

बागेश्वर की नगरदेवी है माता चंडिका

पढ़ें- छह मई को खुलेंगे केदारनाथ धाम के कपाट, महाशिवरात्रि पर पंचांग की गणना से हुई घोषणा

पांडेय वंशजों ने मंदिर के समीप चौरासी गांव को अपनी निवास स्थली बनाया. जिसके बाद वे यहीं बस गए. पांडेय वंशजों की पीढ़ी चंडिका मंदिर के पुजारी के रूप में मां की सेवा कर रही है. कालांतर में समय बदला और बागेश्वर का भी विकास होता गया. पांडेय वंशजों के अलावा नगर और जिले के अन्य लोगों की आस्था भी चंडिका देवी में बढ़ने लगी.

क्षेत्रवासियों ने महिषासुर मर्दिनी के नाम से विख्यात चंडिका मंदिर की पूजा नगरदेवी के रूप में शुरू कर दी. वर्ष 1985 में मंदिर के नवीनीकरण को लेकर विचार विमर्श शुरु हुआ. नगरवासियों ने मंदिर में निर्माण कार्य कराने के लिए कमेटी के गठन का विचार किया. सर्वसम्मति से 1988 में चंडिका मंदिर कमेटी का गठन किया गया.

पढ़ें- चमोली में हिमपात जारी, बर्फ की सफेद चादर से ढका बदरीनाथ धाम

कमेटी की देखरेख में 90 के दशक में चंडिका माता का भव्य मंदिर निर्माण किया गया. जिसके बाद मंदिर परिसर का विस्तार, मंदिर के समीप विश्राम गृह की स्थापना, मंदिर परिसर में चाहरदीवारी निर्माण, मंदिर तक सड़क निर्माण आदि कार्य कराए जा चुके हैं. वर्तमान में यहां मां च‌ंडिका के अलावा मां चामुंडा, माता कालिका, संतोषी माता, महावीर हनुमान, लांगुड़ावीर, क्षेत्रपाल और भेलू देवता के मंदिर स्थापित हैं. मंदिर की देखरेख का कार्य कमेटी, ज‌बकि पूजा अर्चना की जिम्मेदारी चौरासी के पांडेय वंशजों के पास है.

पढ़ें- 3 मई से शुरू होगी उत्तराखंड की चारधाम यात्रा, ऐसे पहुंचें दर्शन करने

चंडिका मंदिर में यूं तो वर्ष भर पूजा अर्चना को भक्त आते हैं, लेकिन नवरात्र और अन्य ध‌ार्मिक पर्वों पर अधिक भीड़ उमड़ती है. मंदिर में समय-समय पर नौबत पूजा और भागवत कथा का आयोजन किया जाता है. पिछले कुछ वर्षों से मंदिर में शादी-विवाह भी संपन्न कराए जा रहे हैं. अ‌ार्थिक रूप से कमजोर और सादगी के साथ विवाह संपन्न कराने वाले माता के दरबार में आकर अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करते हैं. जिसमें कमेटी और पुजारियों का विशेष सहयोग मिलता है. पूर्व में मंदिर में अष्टबलि प्रथा का चलन था. जिसमें भैंसे की बलि भी दी जाती थी. न्यायालय के आदेश के बाद से बलि प्रथा बंद कर दी गई है.

बागेश्वर: नगर के भीलेश्वर पहाड़ी पर स्थित माता चंडिका को बागेश्वर की नगरदेवी का दर्जा प्राप्त है. माता चंडिका को चंद शासकों के कुल पुरोहित पांडेय वंशजों ने चंपावत से यहां लाकर स्थापित किया था. वर्ष भर जिले के भक्तजन माता के दरबार में आकर पूूजा-अर्चना करते हैं. शारदीय और चैत्र नवरात्र में मंदिर में भक्त अधिक संख्या में आते हैं. इस दौरान भजन-कीर्तन कर मां चंडिका की आराधना की जाती है.

चंडिका माता को मूल रूप से चंपावत का माना जाता है. वर्ष 1698 से 1701 में चंद राजाओं के शासनकाल में उनके कुलपुरोहित रहे सिमल्टा (चंपावत) गांव के पंडित श्रीराम पांडेय चंडिका देवी और गोल्ज्यू को लेकर बागेश्वर आए थे. ताम्र पत्र और शिलालेख में अंकित जानकारी के अनुसार भीलेश्वर पर्वत पर माता चंडिका का छोटा मंदिर (‌थान) बनाया गया. जिसके कुछ दूरी पर गोल्ज्यू की स्थापना की गई. जिन्हें अब चौरासी गोल्ज्यू के नाम से जाना जाता है.

बागेश्वर की नगरदेवी है माता चंडिका

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पांडेय वंशजों ने मंदिर के समीप चौरासी गांव को अपनी निवास स्थली बनाया. जिसके बाद वे यहीं बस गए. पांडेय वंशजों की पीढ़ी चंडिका मंदिर के पुजारी के रूप में मां की सेवा कर रही है. कालांतर में समय बदला और बागेश्वर का भी विकास होता गया. पांडेय वंशजों के अलावा नगर और जिले के अन्य लोगों की आस्था भी चंडिका देवी में बढ़ने लगी.

क्षेत्रवासियों ने महिषासुर मर्दिनी के नाम से विख्यात चंडिका मंदिर की पूजा नगरदेवी के रूप में शुरू कर दी. वर्ष 1985 में मंदिर के नवीनीकरण को लेकर विचार विमर्श शुरु हुआ. नगरवासियों ने मंदिर में निर्माण कार्य कराने के लिए कमेटी के गठन का विचार किया. सर्वसम्मति से 1988 में चंडिका मंदिर कमेटी का गठन किया गया.

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कमेटी की देखरेख में 90 के दशक में चंडिका माता का भव्य मंदिर निर्माण किया गया. जिसके बाद मंदिर परिसर का विस्तार, मंदिर के समीप विश्राम गृह की स्थापना, मंदिर परिसर में चाहरदीवारी निर्माण, मंदिर तक सड़क निर्माण आदि कार्य कराए जा चुके हैं. वर्तमान में यहां मां च‌ंडिका के अलावा मां चामुंडा, माता कालिका, संतोषी माता, महावीर हनुमान, लांगुड़ावीर, क्षेत्रपाल और भेलू देवता के मंदिर स्थापित हैं. मंदिर की देखरेख का कार्य कमेटी, ज‌बकि पूजा अर्चना की जिम्मेदारी चौरासी के पांडेय वंशजों के पास है.

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चंडिका मंदिर में यूं तो वर्ष भर पूजा अर्चना को भक्त आते हैं, लेकिन नवरात्र और अन्य ध‌ार्मिक पर्वों पर अधिक भीड़ उमड़ती है. मंदिर में समय-समय पर नौबत पूजा और भागवत कथा का आयोजन किया जाता है. पिछले कुछ वर्षों से मंदिर में शादी-विवाह भी संपन्न कराए जा रहे हैं. अ‌ार्थिक रूप से कमजोर और सादगी के साथ विवाह संपन्न कराने वाले माता के दरबार में आकर अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करते हैं. जिसमें कमेटी और पुजारियों का विशेष सहयोग मिलता है. पूर्व में मंदिर में अष्टबलि प्रथा का चलन था. जिसमें भैंसे की बलि भी दी जाती थी. न्यायालय के आदेश के बाद से बलि प्रथा बंद कर दी गई है.

Last Updated : Apr 9, 2022, 3:46 PM IST
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