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उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया गया फूलदेई, देहरी पूजन के लिए घर-घर पहुंचीं फुलारी - phooldei festival

उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा है. कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ दिनों तक यह त्योहार मनाया जाता है. बच्चों ने सुबह से ही हाथों में फूलों की टोकरी लेकर लोगों के घर-घर जाकर फूलों से देहली पूजन किया. उन्होंने फूलदेई छम्मा देई का मंगल गान गाकर हर घर में सुख और समृद्धि का आशीर्वाद भी दिया.

folk festival phooldei
लोकपर्व फूलदेई
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Published : Mar 14, 2022, 3:44 PM IST

Updated : Mar 14, 2022, 10:12 PM IST

बागेश्वरः उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा है. कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ दिनों तक यह त्योहार मनाया जाता है. बच्चों ने सुबह से ही हाथों में फूलों की टोकरी लेकर लोगों के घर-घर जाकर फूलों से देहली पूजन किया. उन्होंने फूलदेई छम्मा देई का मंगल गान गाकर हर घर में सुख और समृद्धि का आशीर्वाद भी दिया. यह पर्व उत्तराखंडी समाज के लिए विशेष महत्व रखता है. चैत्र संक्रांत यानि फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने बच्चे घरों की दहलीज पर फूल डालते हैं. इसी को गढ़वाल में फूल संक्रांत और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है.

फूलदेई छम्मा देई का मंगल गान, फूलदई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार, पूजैं द्वार बारंबार, फूले द्वार.. इसका अर्थ है कि आपकी देहरी (दहलीज) फूलों से भरी और सबकी रक्षा करने वाली (क्षमाशील) हो, घर व समय सफल रहे, भंडार भरे रहें, इस देहरी को बार-बार नमस्कार, द्वार खूब फूले-फले. गीत की पंक्तियों को गाते हुए बच्चे-बड़े सभी लोग झूमते नाचते रहे. इस दौरान सभी ने एक साथ फूलदेई का त्योहार भी मनाया.

उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया गया फूलदेई

उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा है. कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ दिनों तक यह त्योहार मनाया जाता है. वहीं, टिहरी के कुछ इलाकों में एक माह तक भी यह पर्व मनाने की परंपरा है. फूलदेई से एक दिन पहले शाम को बच्चे रिंगाल की टोकरी लेकर फ्यूंली, बुरांस, बासिंग, आडू, पुलम, खुबानी के फूलों को इकट्ठा करते हैं. अगले दिन सुबह नहाकर वह घर-घर जाकर लोगों की सुख-समृद्धि के पारंपरिक गीत गाते हुए देहरियों में फूल बिखेरते हैं. इस अवसर पर कुमाऊं के कुछ स्थानों में देहरियों में ऐपण (पारंपरिक चित्र कला जो जमीन और दीवार पर बनाई जाती है) बनाने की परंपरा भी है. अंतिम दिन पूजन किया जाता है.

‘घोघा माता फुल्यां फूल, दे-दे माई दाल चौंल’ और ‘फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार’ गीत गाते हैं और लोग इसके बदले में बच्चों को दाल, चावल, आटा, गुड़, घी और दक्षिणा (रुपए) दान करते हैं. पूरे माह में यह सब जमा किया जाता है. इसके बाद घोघा (सृष्टि की देवी) की पूजा की जाती है. चावल, गुड़, तेल से मीठा भात बनाकर प्रसाद के रूप में सबको बांटा जाता है. कुछ क्षेत्रों में बच्चे घोघा की डोली बनाकर देव डोलियों की तरह घुमाते हैं. अंतिम दिन उसका पूजन किया जाता है. पहाड़ में वसंत के आगमन पर फूलदेई मनाने की परंपरा है. यह त्योहार गढ़वाल और कुमाऊं के अधिकांश क्षेत्रों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है.

पढ़ें: फूल देई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार...बच्चों संग बड़ों ने भी मनाई "फूलदेई"

बागेश्वर: कुमाऊं के बागेश्वर जिले में भी फूलदेई पर्व भरपूर उत्साह के साथ मनाया गया. बच्चों ने घर-घर जाकर फूलों से देहली पूजन किया. उन्होंने फूलदेई छम्मा देई का मंगल गीत गाकर हर घर में सुख और समृद्धि की कामना की. चैत्र मास के पहले दिन को फूल संक्रांत के रूप में भी जाना जाता है. फूलदेई के लिए रविवार शाम से ही बच्चे तैयारियों में जुट गए थे. उन्होंने शाम को ही रंग-बिरंगे फूल चुनकर एकत्र करना शुरू कर दिया था.

बेरीनागः पिथौरागढ़ के बेरीनाग में भी छोटे-छोटे बच्चों ने फूलदेई पर्व को बड़े धूम-धाम से मनाया. बच्चों ने बुरांश, प्योली, सरसों आदि के फूलों से सजी थाली से प्रत्येक घरों की दहलीज की पूजा की. फूलदेई पर्व का सीधा संबंध प्रकृति से जुड़ा है. पर्व के मौके पर गांव-गांव में वसंत ऋतु के आगमन की खुशी में घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए गए. साथ ही बच्चों ने परिवार के बुजुर्गों से आशीर्वाद भी लिया.

ये भी पढे़ेंः फूलदेई पर फूलों से महकी सीएम आवास की चौखट, धामी ने बच्चों को दिया शगुन

उत्तरकाशीः चैत्र माह की संक्रांति से चलने वाला पारंपरिक फूलदेई का पर्व आज प्रदेश भर में उत्साह के साथ मनाया गया. उत्तरकाशी जिले के गांव व नगर क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चों ने घरों की दहलीज को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया. यह पर्व 8 दिनों तक चलेगा. इस क्रम में पहले दिन क्षेत्र के बच्चों ने काशी विश्वनाथ मंदिर सहित लोगों के दहलीज को फूलों से सजाया. काशी विश्वनाथ के महंत अजय पुरी ने बताया कि अगले 8 दिन तक इसी तरह मंदिरों की दहलीज पर फूलों की पंखुड़ियां अर्पित की जाएंगी.

देहरादूनः उत्तराखंड के ज्यादातर पर्व सीधे तौर से प्रकृति से जुड़े हुए हैं. सोमवार को उत्तराखंड में होली के पर्व के साथ ही कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा फूलदेई पर्व को भी धूमधाम से मनाया गया. पिछले कई सालों से फूलदेई पर्व को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देने में लगे उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी ने मुख्यमंत्री आवास और राजभवन के साथ-साथ कई अन्य जगहों पर होली पर्व का आयोजन किया, जिसमें छोटी-छोटी बच्चियां द्वारा फूलदेई पर्व भी मनाया गया.

बागेश्वरः उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा है. कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ दिनों तक यह त्योहार मनाया जाता है. बच्चों ने सुबह से ही हाथों में फूलों की टोकरी लेकर लोगों के घर-घर जाकर फूलों से देहली पूजन किया. उन्होंने फूलदेई छम्मा देई का मंगल गान गाकर हर घर में सुख और समृद्धि का आशीर्वाद भी दिया. यह पर्व उत्तराखंडी समाज के लिए विशेष महत्व रखता है. चैत्र संक्रांत यानि फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने बच्चे घरों की दहलीज पर फूल डालते हैं. इसी को गढ़वाल में फूल संक्रांत और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है.

फूलदेई छम्मा देई का मंगल गान, फूलदई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार, पूजैं द्वार बारंबार, फूले द्वार.. इसका अर्थ है कि आपकी देहरी (दहलीज) फूलों से भरी और सबकी रक्षा करने वाली (क्षमाशील) हो, घर व समय सफल रहे, भंडार भरे रहें, इस देहरी को बार-बार नमस्कार, द्वार खूब फूले-फले. गीत की पंक्तियों को गाते हुए बच्चे-बड़े सभी लोग झूमते नाचते रहे. इस दौरान सभी ने एक साथ फूलदेई का त्योहार भी मनाया.

उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया गया फूलदेई

उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्योहार मनाने की परंपरा है. कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ दिनों तक यह त्योहार मनाया जाता है. वहीं, टिहरी के कुछ इलाकों में एक माह तक भी यह पर्व मनाने की परंपरा है. फूलदेई से एक दिन पहले शाम को बच्चे रिंगाल की टोकरी लेकर फ्यूंली, बुरांस, बासिंग, आडू, पुलम, खुबानी के फूलों को इकट्ठा करते हैं. अगले दिन सुबह नहाकर वह घर-घर जाकर लोगों की सुख-समृद्धि के पारंपरिक गीत गाते हुए देहरियों में फूल बिखेरते हैं. इस अवसर पर कुमाऊं के कुछ स्थानों में देहरियों में ऐपण (पारंपरिक चित्र कला जो जमीन और दीवार पर बनाई जाती है) बनाने की परंपरा भी है. अंतिम दिन पूजन किया जाता है.

‘घोघा माता फुल्यां फूल, दे-दे माई दाल चौंल’ और ‘फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार’ गीत गाते हैं और लोग इसके बदले में बच्चों को दाल, चावल, आटा, गुड़, घी और दक्षिणा (रुपए) दान करते हैं. पूरे माह में यह सब जमा किया जाता है. इसके बाद घोघा (सृष्टि की देवी) की पूजा की जाती है. चावल, गुड़, तेल से मीठा भात बनाकर प्रसाद के रूप में सबको बांटा जाता है. कुछ क्षेत्रों में बच्चे घोघा की डोली बनाकर देव डोलियों की तरह घुमाते हैं. अंतिम दिन उसका पूजन किया जाता है. पहाड़ में वसंत के आगमन पर फूलदेई मनाने की परंपरा है. यह त्योहार गढ़वाल और कुमाऊं के अधिकांश क्षेत्रों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है.

पढ़ें: फूल देई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार...बच्चों संग बड़ों ने भी मनाई "फूलदेई"

बागेश्वर: कुमाऊं के बागेश्वर जिले में भी फूलदेई पर्व भरपूर उत्साह के साथ मनाया गया. बच्चों ने घर-घर जाकर फूलों से देहली पूजन किया. उन्होंने फूलदेई छम्मा देई का मंगल गीत गाकर हर घर में सुख और समृद्धि की कामना की. चैत्र मास के पहले दिन को फूल संक्रांत के रूप में भी जाना जाता है. फूलदेई के लिए रविवार शाम से ही बच्चे तैयारियों में जुट गए थे. उन्होंने शाम को ही रंग-बिरंगे फूल चुनकर एकत्र करना शुरू कर दिया था.

बेरीनागः पिथौरागढ़ के बेरीनाग में भी छोटे-छोटे बच्चों ने फूलदेई पर्व को बड़े धूम-धाम से मनाया. बच्चों ने बुरांश, प्योली, सरसों आदि के फूलों से सजी थाली से प्रत्येक घरों की दहलीज की पूजा की. फूलदेई पर्व का सीधा संबंध प्रकृति से जुड़ा है. पर्व के मौके पर गांव-गांव में वसंत ऋतु के आगमन की खुशी में घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए गए. साथ ही बच्चों ने परिवार के बुजुर्गों से आशीर्वाद भी लिया.

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उत्तरकाशीः चैत्र माह की संक्रांति से चलने वाला पारंपरिक फूलदेई का पर्व आज प्रदेश भर में उत्साह के साथ मनाया गया. उत्तरकाशी जिले के गांव व नगर क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चों ने घरों की दहलीज को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया. यह पर्व 8 दिनों तक चलेगा. इस क्रम में पहले दिन क्षेत्र के बच्चों ने काशी विश्वनाथ मंदिर सहित लोगों के दहलीज को फूलों से सजाया. काशी विश्वनाथ के महंत अजय पुरी ने बताया कि अगले 8 दिन तक इसी तरह मंदिरों की दहलीज पर फूलों की पंखुड़ियां अर्पित की जाएंगी.

देहरादूनः उत्तराखंड के ज्यादातर पर्व सीधे तौर से प्रकृति से जुड़े हुए हैं. सोमवार को उत्तराखंड में होली के पर्व के साथ ही कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा फूलदेई पर्व को भी धूमधाम से मनाया गया. पिछले कई सालों से फूलदेई पर्व को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देने में लगे उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी ने मुख्यमंत्री आवास और राजभवन के साथ-साथ कई अन्य जगहों पर होली पर्व का आयोजन किया, जिसमें छोटी-छोटी बच्चियां द्वारा फूलदेई पर्व भी मनाया गया.

Last Updated : Mar 14, 2022, 10:12 PM IST
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