सोमेश्वर: देवभूमि अलग-अलग परंपराओं और परिधानों की भूमि है. यहां हर कदम पर चलन और रीति-रिवाज बदलते रहते हैं. यहां की परंपराएं ही देवभूमि को औरों से अलग बनाती है. ऐसी ही एक परंपरा रैत गांव में आज भी मौजूद है. यहां के हरज्यू मंदिर में पीपल और वटवृक्ष का हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार विवाह करवाया जाता है. संत समाज और ग्रामीण इस विवाह में बाराती बनते हैं. पर्यावरण से जुड़ी इस परंपरा का आज रैत गांव में निर्वहन किया गया.
इस मौके पर पारम्परिक परिधानों में सजी-धजी महिलाओं ने क्षेत्र में भव्य कलश यात्रा निकाली. जिसके बाद वटवृक्ष पक्ष की ओर से गाजे-बाजे के साथ बारात हरज्यू मंदिर पहुंची. दो साल पहले रोपे गए पीपल और वट वृक्ष की हिन्दू रीति रिवाज के साथ विवाह की रस्में पूरी की गई. इस मौके पर आयोजित महाभंडारे में बारातियों और घरातियों को मीठे पकवानों का भोज करवाया गया.
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मान्यता है कि पीपल का वृक्ष पवित्र होने के साथ ही पूजन और अन्तिम संस्कार के बाद पीपलपानी के लिए उपयोगी होता है. मगर, पीपल का पेड़ तब तक पूजा और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता है जब तक उसका विवाह बरगद के पेड़ से नहीं किया जाता. परपंरा के तहत सोमवार को हरज्यू और गुरू गोरखनाथ मन्दिर में ये अनोखा विवाह आयोजित किया गया. मंदिर के पुजारी और देव डंगरियों ने पीपल कन्यादान की परंपरा का निर्वहन किया.
क्यों खास है पीपल
हिंदू धर्म में पीपल का बहुत महत्व है. पीपल के वृक्ष को संस्कृत में प्लक्ष भी कहा गया है. आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग किया जाता है. औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है. पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक में तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष पूजनीय माना गया है. पीपल के पेड़ पर जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं.
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पीपल की जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं. हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल का पेड़ सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करता है.