धीरज सजवाण, देहरादून: उत्तराखंड के लोगों को पिछले एक दशक से मेट्रो प्रोजेक्ट का सपना दिखाया जा रहा है. पिछले कई सालों से देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार में मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर खूब चर्चाएं तो हुई, लेकिन अब तक धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा है. मेट्रो को लेकर लोगों ने अपने मन में जितने भी सपने बुने, वो आज तक केवल सपने ही रह गए. अब उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी भी 31 जनवरी को रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर आगे क्या होगा, इसकी जानकारी से आपको रूबरू करवाते हैं. साथ ही जानते हैं उत्तराखंड में मेट्रो के साथ जाम में फंसते शहर के आंकड़े.
तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने देहरादून में मेट्रो ट्रेन चलाने की थी घोषणा: कांग्रेस की तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने देहरादून में मेट्रो रेल चलाने की घोषणा की थी. उसके बाद साल 2017 में विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस विधानसभा की चुनाव हार गई और बीजेपी की सरकार बन गई. फिर साल 2022 में दोबारा बीजेपी सत्ता में लौटी. इस दौरान मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर कुछ ना कुछ चर्चाएं होती रहीं, लेकिन धरातल पर ज्यादा कुछ भी नजर नहीं आया.
साल 2017 में ही उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन का गठन किया गया. उत्तराखंड मेट्रो कॉरपोरेशन के पहले अध्यक्ष के रूप में दिल्ली मेट्रो से एक अनुभवी अधिकारी जितेंद्र त्यागी को मेट्रो रेल कॉरपोरेशन का एमडी (MD) भी नियुक्त किया गया. अब उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी 31 जनवरी को रिटायर हो रहे हैं, लेकिन पिछले 8 सालों से लगातार होमवर्क करने के बावजूद भी मेट्रो लाइन उत्तराखंड में नहीं खींच पाई है.
31 जनवरी को रिटायर्ड हो जाएंगे MD, जानिए कौन हैं जितेंद्र त्यागी? उत्तराखंड में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने मेट्रो का सपना देखा था, जिसे देखते हुए देश की सबसे प्रतिष्ठित दिल्ली मेट्रो के डायरेक्टर जितेंद्र त्यागी को उत्तराखंड लाया गया. 1 फरवरी 2017 को दिल्ली मेट्रो के डायरेक्टर जितेंद्र त्यागी ने उत्तराखंड मेट्रो रेल अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर एंड बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन लिमिटेड (UKMRC) में प्रबंध निदेशक के पद पर ज्वाइनिंग की. वहीं, अब 31 जनवरी 2025 को जितेंद्र त्यागी रिटायर होने जा रहे हैं.
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उत्तराखंड के भगवानपुर के चुड़ियाला में 1 अप्रैल 1958 को जन्मे जितेंद्र त्यागी एक अनुभवी अधिकारी हैं, लेकिन उनके रहते उत्तराखंड में मेट्रो को लेकर के होमवर्क तो काफी हुआ, लेकिन धरातल पर अभी कुछ नहीं आ पाया है. साल 1987 में इंडियन रेलवे सर्विसेज ऑफ इंजीनियरिंग (IRSE) से अपने करियर की शुरुआत करने वाले जितेंद्र त्यागी को साल 2004 में दिल्ली मेट्रो में प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में बुलाया गया.
इसके बाद साल 2012 में जब देश के मेट्रो मैन कहे जाने वाले ई. श्रीधनरण ने 78 साल की उम्र में रिटायरमेंट लिया तो जितेंद्र त्यागी को दिल्ली मेट्रो का डायरेक्टर बनाया गया. साल 2012 से 2017 तक दिल्ली मेट्रो में डायरेक्टर के पद पर रहे. इसके बाद साल 2017 में जितेंद्र त्यागी को तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ई. श्रीधनरण के रिकमेंडेशन पर ही उत्तराखंड बुलाया था. उत्तराखंड में मेट्रो का सपना साकार हो, इसको लेकर कवायद शुरू की गई.
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साल 2017 से 2024 तक इन 8 सालों में केवल कागजों पर चली मेट्रो: उत्तराखंड में अपने इन 8 सालों के सफर के बारे में बताते हुए उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी बताते हैं कि जब वो उत्तराखंड में आए थे, तब उत्तराखंड में मेट्रो के नाम पर केवल एक सपना था. जिसे उन्हें धरातल पर उतारने की जिम्मेदारी दी गई थी. एमडी जितेंद्र त्यागी ने बताया कि उन्होंने 1 फरवरी 2017 को उत्तराखंड में मेट्रो कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर जॉइनिंग ली.
इसके बाद सबसे पहले उत्तराखंड में देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश और रुड़की को मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया. फिर कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (CMP) बनाया गया. जिसमें देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार और रुड़की के पूरे क्षेत्र के ट्रैफिक के दृष्टिकोण से बारीकी से अध्ययन किया गया. जिसके बाद इसे सरकार से अप्रूव करवाया गया.
CMP ने देहरादून में 2 कॉरिडोर का दिया था सुझाव: उत्तराखंड रेल मेट्रो कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी बताते हैं कि सीएमपी सर्वे में देहरादून शहर में दो फर्स्ट ऑर्डर कॉरिडोर जो कि आईएसबीटी से लेकर राजपुर रोड, लोटस चौक तक और दूसरा एफआरआई (FRI) से रायपुर का सुझाव दिया गया था. जिसमें मास रैपिड ट्रांजिस्टर सिस्टम (MRTS) की बात कही गई.
इसी तरह से बहादराबाद से ऋषिकेश तक भी एक (MRTS) का सुझाव दिया गया. इसके अलावा देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार में कई अन्य छोटे सेकंड ऑर्डर कॉरिडोर का भी सुझाव दिया गया. इस तरह से सीएमपी में सुझाए गए फर्स्ट ऑर्डर कॉरिडोर के लिए एक और स्टडी की जाती है, जिसे अल्टरनेटिव एनालिसिस रिपोर्ट के लिए सर्वे किया गया. जिसमें फर्स्ट ऑर्डर कॉरिडोर में रूट सर्वे और ट्रांसपोर्ट टेक्नोलॉजी कौन से इस्तेमाल की जानी है, इसको लेकर स्टडी की जाती है.
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— India Investment Grid (@IIG_GoI) December 27, 2024
Under #NIP, the 22 km Neo Metro project will reshape #Dehradun’s urban infrastructure, offering residents a modern and efficient transport solution.
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लाइट मेट्रो के बाद रोपवे पर किया गया विचार, फिर मेट्रो नियो पर आगे बढ़ी बात: इस तरह से सभी फर्स्ट ऑर्डर कॉरिडोर के लिए लाइट मेट्रो की डीपीआर दिल्ली मेट्रो की ओर से तैयार की गई, लेकिन इस प्रस्ताव पर चर्चा करने के बाद कि शहर छोटे हैं और निर्माण के लिए जगह कम है तो रोपवे पर विचार किया गया.
इसके बाद रोपवे को लेकर डीपीआर तैयार की गई, लेकिन यह कॉन्सेप्ट भी इसलिए खारिज कर दिया गया. क्योंकि, रोपवे शहर और शहर की सुंदरता के लिए ठीक नहीं थे. ऐसे में वापस मेट्रो पर ही विचार किया जाने लगा. लाइट मेट्रो में बजट बेहद ज्यादा था और इसी को देखते हुए बिल्कुल नए कांसेप्ट मेट्रो नियो पर ही प्रक्रिया आगे बढ़ाई गई.
2021 से केंद्र में लंबित देहरादून मेट्रो नियो का प्रस्ताव, अपने खर्च पर मेट्रो लाएगा उत्तराखंड: लाइट मेट्रो से आधी से कम लागत वाली इस मेट्रो नियो को लेकर सबसे पहले देहरादून के दो कॉरिडोर के लिए डीपीआर तैयार की गई. साल 2021 में इसे भारत सरकार से अप्रूवल के लिए भेज दिया गया, लेकिन उत्तराखंड के इस प्रस्ताव पर भारत सरकार से अब तक कोई स्वीकृति नहीं मिली है.
इसकी वजह ये भी है, क्योंकि भारत सरकार में पहले से ही देश के कई शहरों के मेट्रो प्रस्ताव लंबित है. लंबे समय से भारत सरकार में लंबित मेट्रो के प्रस्ताव के बाद उत्तराखंड सरकार ने खुद अपने दम पर मेट्रो प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने की कवायद शुरू की.
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एमडी जितेंद्र त्यागी बताते हैं कि राज्य सरकार के अपने खर्चे से इस प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने के लिए दो अलग-अलग फाइनेंशियल मॉडल बनाए गए. यह दोनों अलग-अलग फाइनेंशियल मॉडल उत्तराखंड मेट्रो बोर्ड ने पास करके उत्तराखंड शासन को दे दिए हैं, जिस पर शासन में नियोजन ने अपना अप्रूवल दे दिया है तो वहीं अब फाइनेंस इस मामले पर अपनी संस्तुति देगा. जिसके बाद मेट्रो को कैबिनेट से मंजूरी मिल जाएगी.
देहरादून की सड़कों पर लगातार बदतर हो रही स्थिति: उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी की मानें तो उत्तराखंड में खासकर देहरादून और हरिद्वार में ट्रैफिक का हाल भयावह तरीके से बदतर हो रही है. वो बताते हैं कि साल 2019 में कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (CMP) की रिपोर्ट तैयार की गई थी तो वहीं मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स (MHUA) के मानकों के अनुसार हर 5 साल में सीएमपी सर्वे होना जरूरी है.
जिसके आधार पर साल 2019 के बाद 2024 में एक बार फिर उत्तराखंड के सबसे व्यस्ततम शहर देहरादून का सर्वे किया गया. उन्होंने बताया सीएमपी रिपोर्ट ही नहीं, बल्कि आम नागरिक भी इसे महसूस कर रहा है कि सड़कों पर भयावह तरीके से ट्रैफिक का दबाव बढ़ा है. सीएमपी सर्वे की तकनीक को लेकर जितेंद्र त्यागी बताते हैं कि इस सर्वे में एक V/C (वॉल्यूम टू कपैसिटी) अनुपात निकाला जाता है.
दरअसल, यह किसी भी सड़क का प्रति घंटे में उस सड़क की वहन क्षमता पर निकलने वाला ट्रैफिक होता है. वो बताते हैं कि हर एक सड़क की इंडियन रोड कांग्रेस (IRC) के मानकों के अनुसार उसकी चौड़ाई को देखते हुए उसकी वहन क्षमता निर्धारित की जाती है. आईआरसी के मानकों के अनुसार किसी भी सड़क का V/C अनुपात यदि 0.8% से ज्यादा होता है तो यह माना जाता है कि उसे सड़क पर एक अतिरिक्त ट्रांसपोर्ट व्यवस्था की जरूरत है.
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देहरादून की इन सड़कों पर रेंग रहा ट्रैफिक, IRC के डराने वाले आंकड़े बता रहे स्थिति: देहरादून की गांधी रोड जो कि प्रिंस चौक से घंटाघर है, वहां पर साल 2018 में V/C अनुपात 0.87% था, जो अब बढ़कर 1.80% हो गया है. ये साफ बताता है कि इस सड़क पर हमेशा ट्रैफिक की समस्या रहती है.
इसी तरह से आईएसबीटी से रिस्पना पुल (हरिद्वार बाइपास रोड) पर साल 2019 में V/C अनुपात 1.32% था. सड़क चौड़ीकरण के बावजूद भी साल 2024 में इसका अनुपात बढ़कर 1.52% हो गया है. साल 2018-19 में हुए सर्वे के अनुसार देहरादून की कोई भी सड़क ऐसी नहीं है, जिस पर V/C अनुपात 0.80% से कम हो.
सबसे ज्यादा ट्रैफिक वाली सड़कों में रायपुर रोड 1.06%, प्रिंस चौक से आराघर चौक 1%, धर्मपुर चौक से रिस्पना पुल चौक 1%, रिस्पना पुल से जोगीवाला चौक 1.32% और सबसे ज्यादा रेलवे स्टेशन से सहारनपुर चौक 1.52% V/C अनुपात था. जो कि 5 सालों में भयावह स्थिति से बढ़कर काफी ज्यादा हो चुका है.
ये साफ बताता है कि देहरादून में सड़कों में लगने वाले जाम की क्या स्थिति है और यहां पर वैकल्पिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था की कितनी ज्यादा जरूरत है.
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