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रानीखेत: यूकेडी के संस्थापक सदस्य विपिन त्रिपाठी को पुण्यतिथि पर किया गया याद

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Published : Aug 31, 2020, 12:03 PM IST

उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक स्व. विपिन चंद्र त्रिपाठी की पुण्य तिथि पर उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण कर उनको श्रद्धांजलि दी गई. इस अवसर पर वक्ताओं ने उनके योगदान को याद किया.

Ranikhet
स्व. विपिन चंद्र त्रिपाठी की पुण्य तिथि

रानीखेत: उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्य थिंक टैंक स्व. बिपिन चंद्र त्रिपाठी की 16 वीं पुण्य तिथि मनाई गई. इस मौके पर उन्हें याद कर द्वाराहाट त्रिमूर्ति चैराहे पर बनी उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया. MD तिवारी इंटर कॉलेज में गोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी में शामिल वक्ताओं ने स्व. विपिन त्रिपाठी के योगदान को याद किया. वक्ताओं ने कहा कि स्व. विपिन के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.

उनके बेटे और पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी ने अपने स्व. पिता विपिन दा के द्वारा किए गए कार्यों की विस्तार से जानकारी दी. उधर वक्ताओं ने कहा कि समाजवादी चिंतक विपिन दा के विचार आज भी प्रासंगिक है. इस मौके पर गोष्ठी में शामिल वक्ताओं ने राज्य की वर्तमान स्थिति पर चिंता भी जाहिर की. वक्ताओं ने कहा कि जिन सपनों को लेकर उत्तराखंड आंदोलन किया गया था, वो आज किनारे कर दिए गए हैं. गोष्ठी के दौरान सामाजिक दूरी का पूरा ध्यान रखा गया.

ये भी पढ़ें: सभी धार्मिक स्थलों को खोलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

दरअसल प्रखर समाजवादी जन नेता स्व. विपिन चंद्र त्रिपाठी का जीवन जनसंघर्षों भरा रहा है. पृथक उत्तराखंड राज्य निर्माण और हिमालय हितों के लिए उन्होंने हमेशा से ही सजग प्रहरी की भूमिका निभाई. उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गए. तमाम तरह के प्रलोभन उनके ईमान को जरा भी नहीं डिगा पाए. उनके क्रांतिकारी विचार आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं. वन बचाओ आंदोलन, चिपको आंदोलन और चांचरीधार आंदोलन के अलावा महंगाई के खिलाफ आवाज बुलंद करने में वो हमेशा आगे रहे हैं. वो हमेशा से सादा जीवन उच्च विचार वाले रहे.

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विपिन दा साल 1967 से आंदोलनों में शामिल होने लगे. 1972 में प्रजा सोशलिस्ट द्वारा चलाये गये भूमि आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही. साल 1988 में वन अधिनियम और 1989 में भूमि संरक्षण आंदोलन में भी भागीदार रहे. आपातकाल के दौरान साल 1975 में उन्हें जेल जाना पड़ा. फिर साल 1989 में द्वाराहाट के ब्लॉक प्रमुख बने. इस दौरान उन्होंने द्वाराहाट इंजीनियरिंग कालेज, पॉलिटेक्निक और राजकीय महाविद्यालय खोलने के अलावा अन्य विकास कार्य भी किए. साल 1984 में नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन में भी उन्होंने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. इतने संघर्षों के बाद आखिरकार 30 अगस्त साल 2004 को उनका निधन हो गया. अब उनकी यादें और संघर्ष ही शेष रह गए हैं.

रानीखेत: उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्य थिंक टैंक स्व. बिपिन चंद्र त्रिपाठी की 16 वीं पुण्य तिथि मनाई गई. इस मौके पर उन्हें याद कर द्वाराहाट त्रिमूर्ति चैराहे पर बनी उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया. MD तिवारी इंटर कॉलेज में गोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी में शामिल वक्ताओं ने स्व. विपिन त्रिपाठी के योगदान को याद किया. वक्ताओं ने कहा कि स्व. विपिन के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.

उनके बेटे और पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी ने अपने स्व. पिता विपिन दा के द्वारा किए गए कार्यों की विस्तार से जानकारी दी. उधर वक्ताओं ने कहा कि समाजवादी चिंतक विपिन दा के विचार आज भी प्रासंगिक है. इस मौके पर गोष्ठी में शामिल वक्ताओं ने राज्य की वर्तमान स्थिति पर चिंता भी जाहिर की. वक्ताओं ने कहा कि जिन सपनों को लेकर उत्तराखंड आंदोलन किया गया था, वो आज किनारे कर दिए गए हैं. गोष्ठी के दौरान सामाजिक दूरी का पूरा ध्यान रखा गया.

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दरअसल प्रखर समाजवादी जन नेता स्व. विपिन चंद्र त्रिपाठी का जीवन जनसंघर्षों भरा रहा है. पृथक उत्तराखंड राज्य निर्माण और हिमालय हितों के लिए उन्होंने हमेशा से ही सजग प्रहरी की भूमिका निभाई. उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गए. तमाम तरह के प्रलोभन उनके ईमान को जरा भी नहीं डिगा पाए. उनके क्रांतिकारी विचार आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं. वन बचाओ आंदोलन, चिपको आंदोलन और चांचरीधार आंदोलन के अलावा महंगाई के खिलाफ आवाज बुलंद करने में वो हमेशा आगे रहे हैं. वो हमेशा से सादा जीवन उच्च विचार वाले रहे.

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विपिन दा साल 1967 से आंदोलनों में शामिल होने लगे. 1972 में प्रजा सोशलिस्ट द्वारा चलाये गये भूमि आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही. साल 1988 में वन अधिनियम और 1989 में भूमि संरक्षण आंदोलन में भी भागीदार रहे. आपातकाल के दौरान साल 1975 में उन्हें जेल जाना पड़ा. फिर साल 1989 में द्वाराहाट के ब्लॉक प्रमुख बने. इस दौरान उन्होंने द्वाराहाट इंजीनियरिंग कालेज, पॉलिटेक्निक और राजकीय महाविद्यालय खोलने के अलावा अन्य विकास कार्य भी किए. साल 1984 में नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन में भी उन्होंने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. इतने संघर्षों के बाद आखिरकार 30 अगस्त साल 2004 को उनका निधन हो गया. अब उनकी यादें और संघर्ष ही शेष रह गए हैं.

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