अल्मोडा: पर्वतीय इलाकों में अधिकतर चीड़ के जंगल हैं. चीड़ की पत्तियां बहुत ज्वलनशील होती हैं. एक चिंगारी से पूरा जंगल आग की चपेट में आ जाता है. जंगलों को आग से सुरक्षित रखने के लिए अब काश्तकारों और महिलाओं को ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध और व्यवस्थित करने के लिए जागरूक किया जा रहा है.
ओण जलाने की परंपरा व्यवस्थित करने की जरूरत: शीतलाखेत स्याही देवी विकास मंच के संयोजक गजेंद्र कुमार पाठक ने कहा कि जंगलों की आग जल स्रोतों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है. इससे जहां जंगलों को नुकसान पहुंच रहा है, वहीं मानव वन्य जीव संघर्ष बढ़ रहा है. पलायन की समस्या भी पैदा हो रही है. इसलिए जंगल में आग न लगे, इसके लिए ओण जलाने की परंपरा को व्यवस्थित किया जाना जरूरी है.
मार्च के बाद न जलाएं ओण: गजेंद्र पाठक ने बताया कि रबी की फसल तैयारी के दौरान महिलाएं खेत में लगी झाड़ियों को जलाती हैं, जिससे कई बार वहां से उठी चिंगारी जंगल में आग लगने का कारण बन जाती है. इसलिए महिलाओं को व्यवस्थित एवं समय में ओण जलाने के लिए प्रेरित किया गया है. उन्होंने कहा है कि जनवरी से मार्च तक ओण जलाएं. उसके बाद किसी भी कीमत में ओण न जलाएं. ऐसा करने से जंगलों की आग में कमी आयेगी.
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30 गांवों की महिलाओं को किया जागरूक: इसके लिए धामस गांव में क्षेत्र के 30 गांवों की महिलाओं को जागरूक किया गया है. वहीं प्रदेश में सभी को संदेश देने का कार्य किया है. विगत दिनों प्लस एप्रोच फाउंडेशन नई दिल्ली की ओर से दूसरा ओण दिवस का आयोजन ग्राम सभा धामस के निकट पंडित गोविंद बल्लभ पन्त संग्रहालय में आयोजित हुआ. कार्यक्रम में स्याहीदेवी-शीतलाखेत आरक्षित वन क्षेत्र के 30 गांवों के लोगों को इसके लिए प्रेरित किया गया है, जिससे जंगलों को आग से सुरक्षित रखने में सहायता मिलेगी.