अल्मोड़ा: उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण पिरूल (चीड़ की पत्तियां) अब पहाड़ के लोगों के लिए मुसीबत नहीं बल्कि आय का जरिया बनेगी. गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने इसकी तरकीब खोज निकाली है. पिरूल से फाइल, लिफाफे, कैरी बैग, फोल्डर और डिस्प्ले बोर्ड समेत इस तरह की कई सामग्री बनाई जाएगी.
वैज्ञानिकों की इस तरकीब से जहां पहाड़ों में रोजगार के अवसर खुलेंगे और पलायन पर रोक लगेगी तो वहीं जंगलों को आग से भी बचाया जा सकेगा. वन विभाग हर साल जंगलों को आग से बचाने के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा देता है. बावजूद जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं.
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चीड़ की सूखी पत्ती यानि पिरूल ज्वलनशील होती है. यह जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण है. जिससे वन संपदा के साथ ही जीव-जंतुओं को हर साल काफी नुकसान होता है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल निकाल लिया है.
ऐसे बनेगी सामग्री
जीबी पंत पर्यावरण संस्थान ने कोसी में पाइन पत्ती प्रसंस्करण इकाई बनाई है. जिसमें चीड़ की पत्तियों को एकत्रित कर उससे विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है. इसके लिए उन्होंने पूरी योजना बनाकर तैयार कर ली है. सबसे पहले पिरूल को रैग चैपर में डालकर उसके छोटे-छोटे टुकड़े किये जाते हैं. उसके बाद हैमर मिल में इसकी कुटाई की जाती है. पिरूल की कुटाई करने के बाद इसे डायजेस्टर मशीन में स्ट्रीम की सहायता से पकाया जाता है.
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इसके बाद बीटर मशीन में कॉटन के साथ उसे मिक्स किया जाता है. तत्पश्चात ऑटोवेट मशीन, हाइड्रोलिक प्रेस, डायर, स्क्रूप्रेस मशीनों से गुजारा जाता है. जिसके बाद गत्ता बनकर तैयार होता है फिर निर्मित इस गत्ते से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाई जा रही है.
शादी कार्ड बनाने में भी काम आएगा पिरूल
पिरूल से अब शादी के कार्ड भी बनने शुरू हो गए हैं. जिसकी मांग भी बढ़ रही है. पिरूल से बनाये गए शादी के कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोगों का कहना है कि पिरूल से बने कार्ड बाजार में बिक रहे हैं जो अन्य कार्डों से ज्यादा आकर्षक नज़र आ रहे हैं.