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अच्छी खबरः कमाई का जरिया बनेगा पिरूल, वैज्ञानिकों की इस खोज से बचेगा जंगल और रुकेगा पलायन

चीड़ की सूखी पत्ती यानि पिरूल ज्वलनशील होती है. यह जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण है. जिससे वन संपदा के साथ ही जीव-जंतुओं को हर साल काफी नुकसान होता है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल निकाल लिया है.

Almora
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Published : May 13, 2019, 4:50 PM IST

Updated : May 13, 2019, 5:31 PM IST

अल्मोड़ा: उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण पिरूल (चीड़ की पत्तियां) अब पहाड़ के लोगों के लिए मुसीबत नहीं बल्कि आय का जरिया बनेगी. गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने इसकी तरकीब खोज निकाली है. पिरूल से फाइल, लिफाफे, कैरी बैग, फोल्डर और डिस्प्ले बोर्ड समेत इस तरह की कई सामग्री बनाई जाएगी.

वैज्ञानिकों की इस तरकीब से जहां पहाड़ों में रोजगार के अवसर खुलेंगे और पलायन पर रोक लगेगी तो वहीं जंगलों को आग से भी बचाया जा सकेगा. वन विभाग हर साल जंगलों को आग से बचाने के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा देता है. बावजूद जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं.

कमाई का जरिया बनेगा पिरूल

पढ़ें- तराई क्षेत्र के जंगलों में लगी आग, दमकल विभाग ने मजदूरों की बस्ती को बचाया

चीड़ की सूखी पत्ती यानि पिरूल ज्वलनशील होती है. यह जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण है. जिससे वन संपदा के साथ ही जीव-जंतुओं को हर साल काफी नुकसान होता है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल निकाल लिया है.

ऐसे बनेगी सामग्री
जीबी पंत पर्यावरण संस्थान ने कोसी में पाइन पत्ती प्रसंस्करण इकाई बनाई है. जिसमें चीड़ की पत्तियों को एकत्रित कर उससे विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है. इसके लिए उन्होंने पूरी योजना बनाकर तैयार कर ली है. सबसे पहले पिरूल को रैग चैपर में डालकर उसके छोटे-छोटे टुकड़े किये जाते हैं. उसके बाद हैमर मिल में इसकी कुटाई की जाती है. पिरूल की कुटाई करने के बाद इसे डायजेस्टर मशीन में स्ट्रीम की सहायता से पकाया जाता है.

पढ़ें- Reality Check: आग से निपटने के लिए सभी उपकरण मौजूद, कर्मचारियों का टोटा

इसके बाद बीटर मशीन में कॉटन के साथ उसे मिक्स किया जाता है. तत्पश्चात ऑटोवेट मशीन, हाइड्रोलिक प्रेस, डायर, स्क्रूप्रेस मशीनों से गुजारा जाता है. जिसके बाद गत्ता बनकर तैयार होता है फिर निर्मित इस गत्ते से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाई जा रही है.

शादी कार्ड बनाने में भी काम आएगा पिरूल
पिरूल से अब शादी के कार्ड भी बनने शुरू हो गए हैं. जिसकी मांग भी बढ़ रही है. पिरूल से बनाये गए शादी के कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोगों का कहना है कि पिरूल से बने कार्ड बाजार में बिक रहे हैं जो अन्य कार्डों से ज्यादा आकर्षक नज़र आ रहे हैं.

अल्मोड़ा: उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण पिरूल (चीड़ की पत्तियां) अब पहाड़ के लोगों के लिए मुसीबत नहीं बल्कि आय का जरिया बनेगी. गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने इसकी तरकीब खोज निकाली है. पिरूल से फाइल, लिफाफे, कैरी बैग, फोल्डर और डिस्प्ले बोर्ड समेत इस तरह की कई सामग्री बनाई जाएगी.

वैज्ञानिकों की इस तरकीब से जहां पहाड़ों में रोजगार के अवसर खुलेंगे और पलायन पर रोक लगेगी तो वहीं जंगलों को आग से भी बचाया जा सकेगा. वन विभाग हर साल जंगलों को आग से बचाने के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा देता है. बावजूद जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं.

कमाई का जरिया बनेगा पिरूल

पढ़ें- तराई क्षेत्र के जंगलों में लगी आग, दमकल विभाग ने मजदूरों की बस्ती को बचाया

चीड़ की सूखी पत्ती यानि पिरूल ज्वलनशील होती है. यह जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण है. जिससे वन संपदा के साथ ही जीव-जंतुओं को हर साल काफी नुकसान होता है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल निकाल लिया है.

ऐसे बनेगी सामग्री
जीबी पंत पर्यावरण संस्थान ने कोसी में पाइन पत्ती प्रसंस्करण इकाई बनाई है. जिसमें चीड़ की पत्तियों को एकत्रित कर उससे विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है. इसके लिए उन्होंने पूरी योजना बनाकर तैयार कर ली है. सबसे पहले पिरूल को रैग चैपर में डालकर उसके छोटे-छोटे टुकड़े किये जाते हैं. उसके बाद हैमर मिल में इसकी कुटाई की जाती है. पिरूल की कुटाई करने के बाद इसे डायजेस्टर मशीन में स्ट्रीम की सहायता से पकाया जाता है.

पढ़ें- Reality Check: आग से निपटने के लिए सभी उपकरण मौजूद, कर्मचारियों का टोटा

इसके बाद बीटर मशीन में कॉटन के साथ उसे मिक्स किया जाता है. तत्पश्चात ऑटोवेट मशीन, हाइड्रोलिक प्रेस, डायर, स्क्रूप्रेस मशीनों से गुजारा जाता है. जिसके बाद गत्ता बनकर तैयार होता है फिर निर्मित इस गत्ते से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाई जा रही है.

शादी कार्ड बनाने में भी काम आएगा पिरूल
पिरूल से अब शादी के कार्ड भी बनने शुरू हो गए हैं. जिसकी मांग भी बढ़ रही है. पिरूल से बनाये गए शादी के कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोगों का कहना है कि पिरूल से बने कार्ड बाजार में बिक रहे हैं जो अन्य कार्डों से ज्यादा आकर्षक नज़र आ रहे हैं.

Intro:जंगलों में लगातार बढ़ रही आग की घटनाओं से आज हर कोई चिंतित है ।वनों को आग से बचाने के लिए सरकार द्वारा कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं , फायर सीजन शुरू होने से पहले ही जंगल मैं आग लगनी शुरू हो जाती है । जिससे वन संपदा को काफी नुकसान पहुंचता है तो वहीं सरकार करोड़ों रुपया इस आग को बुझाने में पानी की तरह बहा देती है, लेकिन हालात ढाक के तीन पात वाली कहावत ही नजर आती है। जंगलों में आग लगने का मुख्य कारण पहाड़ों में चीड़ के पेड़ की पत्ती यानी पिरूल है जो सूख कर जमीन में गिर जाते हैं और छोटी सी चिंगारी एक बड़ा विकराल रूप ले लेती है। अब जंगलों को आग से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने इसकी तरकीब खोज निकाली है। प्लास्टिक बंद होने के बाद से कागज से निर्मित वस्तुओं की बाजार में काफी मांग उठने लगी है। जिसको देखते हुए अल्मोड़ा के गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के वैज्ञानिकों ने चीड़ के पेड़ की पत्तियों यानी पिरूल से गत्ते, बैग, फाइल कवर, शादी के कार्ड, लिफाफे, नोटपैड आदि अनेकों वस्तुएं बनाने की तरकीब खोज निकाली है, जिससे क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलेगा वहीं पहाड़ों से बढ़ रहे पलायन को भी रोका जा सकता है।


Body: जीबी पंत पर्यावरण संस्थान ने कोसी में पाइन पत्ती प्रसंस्करण इकाई बनाई है। जिसमें चीड़ की पत्तियों को एकत्रित कर उससे विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है । इसके लिए उन्होंने पूरी योजना बनाकर तैयार कर ली है । संस्थान ने कोसी में चीड़ पाईन पत्ती प्रसंस्करण इकाई में इसके लिए विभिन्न प्रकार की मशीनें लगाई है । जिसमें सबसे पहले पिरूल को रैग चैपर में डालकर उसके छोटे-छोटे टुकुडे किये जाते है। उसके बाद हैमर मिल में इसकी कुटाई की जाती है। पिरूल की कुटाई करने के बाद इसे डायजेस्टर मशीन में स्ट्रीम की सहायता से पकाया जाता है। इसके बाद बीटर मशीन में कॉटन के साथ उसे मिक्स किया जाता है। तत्पश्चात ऑटोवेट मशीन, हाइड्रोलिक प्रेस, डायर, स्कूप्रेस मशीनों से गुजारा जाता है। जिसके बाद गत्ता बनकर तैयार किया जाता है। फिर निर्मित इस गत्ते से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाई जा रही है। वैज्ञानिकों का जंगलो में लग लग रही आग से जहां पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है वही यहाँ के लोगो की इनकम का भी काफी नुकसान हो रहा है। जिसके लिए जीबी पंत ने पिरूल से गत्ता बनाने की विधि खोज निकाली है। पिरूल से गत्ता बनाने से जहाँ जंगलो को आग से बचाया जा सकता है वही स्थानीय लोगो को इससे रोजगार भी मुहैय्या होगा।
वही पिरूल से अब शादी के कार्ड भी बनने शुरू हो गए हैं।जिसकी मांग भी बढ़ रही है। पिरूल से बनाये गए शादी के कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोगो का कहना है कि पिरूल से बना कार्ड बाजार में बिक रहे अन्य कार्डो से ज्यादा आकर्षक नज़र आ रहे हैं।

खबर की बाइट विजुअल ftp से pirul नाम से भेजी है।

बाइट- आर सी सुंदरियाल, शोधकर्ता (वैज्ञानिक)
बाइट- राजू कांडपाल, स्थानीय
बाइट- हर्षत पंत, स्थानीय



Conclusion:पहाड़ों में रोजगार नहीं मिलने से यहां के नौजवान पलायन करने को मजबूर हैं लेकिन इस तरह की जगह जगह यूनिट स्थापित करने से यहां के लोगों को रोजगार मिलने के साथ पलायन थमेगा साथ ही पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है। जरूरत है कि पहाड़ों से बढ़ रहे पलायन को रोकने और यहां के नौजवानों को रोजगार देने के लिए सरकार की ओर ध्यान देना चाहिए।
Last Updated : May 13, 2019, 5:31 PM IST
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