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कोरापुट की महिलाओं ने बंजर क्षेत्र को हरे-भरे जंगल में बदला, प्रकृति मित्र पुरस्कार से सम्मानित

ओडिशा के कोरापुट के पहाड़ी क्षेत्र बंजर हो चुके थे. महिलाओं के सराहनीय प्रयासों के चलते अब यह क्षेत्र घने जंगल में बदल गया है.

Koraput Women Revive Forests Earn State Recognition in ecological conservation in Odisha
कोरापुट की महिलाओं ने बंजर क्षेत्र को हरे-भरे जंगल में बदला (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 2 hours ago

कोरापुट: ओडिशा के कोरापुट जिले के सिपेपुट, सेरुबांध, मंकडझोला, फुलकांडा और बयाडांगर गांवों की सैकड़ों महिलाओं ने अपने आस-पास के पहाड़ी क्षेत्रों को हरे-भरे वन क्षेत्र में बदल दिया है. ग्रामीण महिलाओं ने मिलकर वन क्षेत्र को किसी भी तरह के नुकसान और विनाश से बचाने का बीड़ा उठाया है. साथ ही दूसरों के लिए एक आदर्श भी स्थापित किया है.

सिपेपुट वन संरक्षण समिति के नेतृत्व में, इन महिलाओं ने लगभग 1,000 हेक्टेयर पहाड़ी भूमि को हरे-भरे जंगल में बदल दिया है. पारंपरिक खेती के कारण कभी बंजर और उजड़ा हुआ यह क्षेत्र अब घनी हरियाली से लहलहा रहा है, जिसका श्रेय ग्रामीणों द्वारा स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाने और उनकी रक्षा करने की प्रतिबद्धता को जाता है.

समिति की एक सदस्य मोती खारा ने बताया, "इन पहाड़ियों पर पेड़ लगाना कठिन कार्य था, लेकिन हमारे जंगलों को और अधिक नुकसान से बचाना जरूरी थी.

वनों के संरक्षण पर चर्चा करतीं महिलाएं
वनों के संरक्षण पर चर्चा करतीं महिलाएं (ETV Bharat)

इन पहाड़ी क्षेत्रों को फिर से हरा-भरा करने, संरक्षित करने और सुरक्षा प्रदान करने में उनके अथक प्रयासों के लिए हाल ही में ओडिशा सरकार की तरफ से इन महिलाओं को प्रतिष्ठित प्रकृति मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस पुरस्कार के जरिये पारिस्थितिकी संरक्षण में महिलाओं की अमूल्य भूमिका को मान्यता दी गई.

ग्रामीणों को भूमि पर अधिकार दिलाया
पोट्टांगी ब्लॉक में कार्यरत फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (FES) के प्रतिनिधि दिलीप कुमार चंपी के अनुसार, समिति की सफलता समुदाय के लोगों के आपसी सहयोग पर आधारित है. एफईएस ने पिछले कई वर्षों से बीज, पौधे और मार्गदर्शन के साथ समिति का समर्थन किया है. संगठन ने सामुदायिक वन अधिकारों को सुरक्षित करने की प्रक्रिया को सुगम बनाया, जिसने ग्रामीणों को भूमि पर औपचारिक रूप से अधिकार दिलाया. चंपी ने कहा, "कानूनी अधिकारों के साथ, उन्हें इस जंगल की रक्षा और पोषण करने का अधिकार और जिम्मेदारी दोनों मिल गई है."

कई औषधीय पेड़ों का घर
आज, यह जंगल कई तरह के औषधीय पेड़ों का घर है. इसके अलावा, यह विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का भी घर है, जिनमें मोर, सूअर, लोमड़ी और रंग-बिरंगे पक्षी शामिल हैं जो इस क्षेत्र में वापस आ गए हैं. सिपेपुट महिला समूह की एक अन्य सदस्य अरवती गलोब ने बताया, "हमने यहां जानवरों के लिए एक सुरक्षित आश्रय बनाया है और उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में बढ़ते देखना दिल को छू लेने वाला है."

कोरापुट की महिलाओं ने बंजर क्षेत्र को हरे-भरे जंगल में बदला
कोरापुट की महिलाओं ने बंजर क्षेत्र को हरे-भरे जंगल में बदला (ETV Bharat)

इन महिलाओं के लिए जंगल की रक्षा का मतलब यह सुनिश्चित करना है कि मनुष्यों के साथ-साथ वन्यजीव का भी विकास हो.

महिलाओं का समूह सुनिश्चित करता है कि कोई पेड़ न काटा जाए और उसी के अनुसार पहरा देता है. हालांकि, वे ग्रामीणों को ईंधन के लिए उचित तरीके से सूखी लकड़ी इकट्ठा करने की अनुमति देते हैं. अरवती कहती हैं, "हर महीने, 9 तारीख को, हमारे संगठन के सभी सदस्य जंगल में एक साथ चलते हैं ताकि इसकी वृद्धि पर नजर रख सकें और किसी भी जरूरत को पूरा कर सकें."

पेड़ काटने पर जुर्माना
इसके अलावा, किसी भी अनधिकृत पेड़ को काटने पर जुर्माना लगाया जाता है. उन्होंने कहा, "हम पेड़ों को काटने के दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति पर जुर्माना लगाते हैं. इसके अलावा, वैकल्पिक ईंधन के रूप में गाय के गोबर के उपलों के बढ़ते चलन ने समुदाय की जंगल की लकड़ी पर निर्भरता कम कर दी है."

कोरापुट जिला वन अधिकारी (डीएफओ) भास्कर राव ने महिलाओं के प्रयासों की सराहना की और कहा, "इस क्षेत्र में वन और वन्यजीव संरक्षण काफी हद तक महिलाओं की वजह से संभव हो पाया है. परिवार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता जैव विविधता को संरक्षित करने में उनके योगदान में भी समान रूप से परिलक्षित होती है."

कुछ सदस्यों ने एक स्वर में कहा, "हमें उम्मीद है कि हमारे प्रयास अन्य समुदायों को अपने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए वनों और वन्यजीवों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करेंगे."

यह भी पढ़ें- आयुष्मान वय वंदना कार्ड के लिए कैसे करें आवेदन? कार्ड डाउनलोड करते ही मुफ्त इलाज करवा सकेंगे बुजुर्ग

कोरापुट: ओडिशा के कोरापुट जिले के सिपेपुट, सेरुबांध, मंकडझोला, फुलकांडा और बयाडांगर गांवों की सैकड़ों महिलाओं ने अपने आस-पास के पहाड़ी क्षेत्रों को हरे-भरे वन क्षेत्र में बदल दिया है. ग्रामीण महिलाओं ने मिलकर वन क्षेत्र को किसी भी तरह के नुकसान और विनाश से बचाने का बीड़ा उठाया है. साथ ही दूसरों के लिए एक आदर्श भी स्थापित किया है.

सिपेपुट वन संरक्षण समिति के नेतृत्व में, इन महिलाओं ने लगभग 1,000 हेक्टेयर पहाड़ी भूमि को हरे-भरे जंगल में बदल दिया है. पारंपरिक खेती के कारण कभी बंजर और उजड़ा हुआ यह क्षेत्र अब घनी हरियाली से लहलहा रहा है, जिसका श्रेय ग्रामीणों द्वारा स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाने और उनकी रक्षा करने की प्रतिबद्धता को जाता है.

समिति की एक सदस्य मोती खारा ने बताया, "इन पहाड़ियों पर पेड़ लगाना कठिन कार्य था, लेकिन हमारे जंगलों को और अधिक नुकसान से बचाना जरूरी थी.

वनों के संरक्षण पर चर्चा करतीं महिलाएं
वनों के संरक्षण पर चर्चा करतीं महिलाएं (ETV Bharat)

इन पहाड़ी क्षेत्रों को फिर से हरा-भरा करने, संरक्षित करने और सुरक्षा प्रदान करने में उनके अथक प्रयासों के लिए हाल ही में ओडिशा सरकार की तरफ से इन महिलाओं को प्रतिष्ठित प्रकृति मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस पुरस्कार के जरिये पारिस्थितिकी संरक्षण में महिलाओं की अमूल्य भूमिका को मान्यता दी गई.

ग्रामीणों को भूमि पर अधिकार दिलाया
पोट्टांगी ब्लॉक में कार्यरत फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (FES) के प्रतिनिधि दिलीप कुमार चंपी के अनुसार, समिति की सफलता समुदाय के लोगों के आपसी सहयोग पर आधारित है. एफईएस ने पिछले कई वर्षों से बीज, पौधे और मार्गदर्शन के साथ समिति का समर्थन किया है. संगठन ने सामुदायिक वन अधिकारों को सुरक्षित करने की प्रक्रिया को सुगम बनाया, जिसने ग्रामीणों को भूमि पर औपचारिक रूप से अधिकार दिलाया. चंपी ने कहा, "कानूनी अधिकारों के साथ, उन्हें इस जंगल की रक्षा और पोषण करने का अधिकार और जिम्मेदारी दोनों मिल गई है."

कई औषधीय पेड़ों का घर
आज, यह जंगल कई तरह के औषधीय पेड़ों का घर है. इसके अलावा, यह विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का भी घर है, जिनमें मोर, सूअर, लोमड़ी और रंग-बिरंगे पक्षी शामिल हैं जो इस क्षेत्र में वापस आ गए हैं. सिपेपुट महिला समूह की एक अन्य सदस्य अरवती गलोब ने बताया, "हमने यहां जानवरों के लिए एक सुरक्षित आश्रय बनाया है और उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में बढ़ते देखना दिल को छू लेने वाला है."

कोरापुट की महिलाओं ने बंजर क्षेत्र को हरे-भरे जंगल में बदला
कोरापुट की महिलाओं ने बंजर क्षेत्र को हरे-भरे जंगल में बदला (ETV Bharat)

इन महिलाओं के लिए जंगल की रक्षा का मतलब यह सुनिश्चित करना है कि मनुष्यों के साथ-साथ वन्यजीव का भी विकास हो.

महिलाओं का समूह सुनिश्चित करता है कि कोई पेड़ न काटा जाए और उसी के अनुसार पहरा देता है. हालांकि, वे ग्रामीणों को ईंधन के लिए उचित तरीके से सूखी लकड़ी इकट्ठा करने की अनुमति देते हैं. अरवती कहती हैं, "हर महीने, 9 तारीख को, हमारे संगठन के सभी सदस्य जंगल में एक साथ चलते हैं ताकि इसकी वृद्धि पर नजर रख सकें और किसी भी जरूरत को पूरा कर सकें."

पेड़ काटने पर जुर्माना
इसके अलावा, किसी भी अनधिकृत पेड़ को काटने पर जुर्माना लगाया जाता है. उन्होंने कहा, "हम पेड़ों को काटने के दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति पर जुर्माना लगाते हैं. इसके अलावा, वैकल्पिक ईंधन के रूप में गाय के गोबर के उपलों के बढ़ते चलन ने समुदाय की जंगल की लकड़ी पर निर्भरता कम कर दी है."

कोरापुट जिला वन अधिकारी (डीएफओ) भास्कर राव ने महिलाओं के प्रयासों की सराहना की और कहा, "इस क्षेत्र में वन और वन्यजीव संरक्षण काफी हद तक महिलाओं की वजह से संभव हो पाया है. परिवार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता जैव विविधता को संरक्षित करने में उनके योगदान में भी समान रूप से परिलक्षित होती है."

कुछ सदस्यों ने एक स्वर में कहा, "हमें उम्मीद है कि हमारे प्रयास अन्य समुदायों को अपने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए वनों और वन्यजीवों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करेंगे."

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