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Shardiya Navratri 2021: पार्वती के रूप में पूजी जाती है अल्मोड़ा की नंदा देवी

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Published : Oct 7, 2021, 3:47 PM IST

Updated : Oct 7, 2021, 7:05 PM IST

अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर का निर्माण चंद वंश के राजाओं ने किया था. हर सितंबर महीने में अल्मोड़ा में नंदादेवी मेला आयोजित होता है. इस मेले में हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ये मेला 400 से अधिक वर्षों से इस मंदिर का अभिन्न हिस्सा है.

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पार्वती के रूप में पूजी जाती है अल्मोड़ा की नंदा देवी

अल्मोड़ा: उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को अष्ट भैरव, नौ दुर्गा की नगरी भी कहा जाता है. इन नौ दुर्गाओं में मां नंदादेवी का खास स्थान है. मां नंदा का अल्मोड़ा में भव्य मंदिर है. मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है. अल्मोड़ा नगर में स्थित मां नंदादेवी का मंदिर सैकड़ों साल पुराना है. इस मंदिर की स्थापना चंद वंश के शासकों ने की थी. चंद शासक नंदा देवी को कुल देवी के रूप में पूजते थे. नवरात्रों में इस मंदिर में नौ दुर्गाओं की पूजा की जाती है. इस दौरान यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. भक्त बड़ी संख्या में मनौतियां लेकर यहां पहुंचते हैं.

उत्तराखंड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है. सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है. मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है. मां नंदा की सात बहनें मानी जाती हैं. उत्तराखंड में नंदा देवी पर्वत शिखर, रूपकुंड एवं हेमकुंड नंदा देवी के प्रमुख पवित्र स्थलों में एक हैं. माना जाता है कि नंदा ने ससुराल जाते समय रूप कुंड में पानी पिया था. प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शिव की पत्नी पार्वती को ही मां नंदा माना गया है.

पार्वती के रूप में पूजी जाती है अल्मोड़ा की नंदा देवी

पढ़ें- PM मोदी के दौरे पर हरीश रावत का कटाक्ष, कहा- आपके डबल इंजन ने निराश किया है, इसे वापस लेकर जाइए

पौराणिक ग्रंथों की बात करें तो इनमें देवी के अनेक स्वरूप गिनाए गए हैं. इनमें शैलपुत्री नंदा को योग माया एवं शक्ति स्वरूपा का नाम दिया गया है. कुमाऊं में मां नंदा की पूजा चंद शासकों के जमाने से की जाती है. इतिहासकारों के मुताबिक 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा लाए. उसे यहां मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्ट्रेट परिसर अल्मोड़ा) में स्थापित किया. तब से उन्होंने मां नंदा का कुलदेवी के रूप में पूजन शुरू किया. बाद में कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को मल्ला महल से हटाकर दीप चंदेश्वर मंदिर यानी वर्तमान नंदादेवी मंदिर में स्थापित करवाया.

पढ़ें- प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने जा रही थीं आशा मनोरमा डोबरियाल, पुलिस ने हिरासत में लिया

इतिहासकारों के अनुसार कहा जाता है कि चंद राजाओं के शासन काल में इन मंदिरों को बनाया गया था. तत्कालीन राजा उद्योतचंद्र ने अल्मोड़ा में इस मंदिर का निर्माण किया था. वर्तमान में नंदा देवी परिसर में तीन देवालय हैं. इनमें पार्वतेश्वर और उद्योतचंद्रेश्वर देवालय काफी प्राचीन देवालयों में हैं. दीपचंद्रेश्वर देवालय का निर्माण राजा दीप चंद ने बाद में किया था. इसमें वर्तमान में नंदा देवी का मंदिर है.

पढ़ें- Shardiya Navratri 2021 : जानिए पहले दिन कैसे करें मां शैलपुत्री की पूजा

इस परिसर को उस समय दीपचंद्रेश्वर मंदिर के नाम से ही जाना जाता था. उसके बाद गोरखा शासन काल में इस परिसर को मां नंदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा. वर्तमान में इसी परिसर में नंदा देवी का मेला लगता है. यहां हर वर्ष भाद्रपद माह में नंदादेवी का भव्य मेला आयोजित किया जाता है. पंचमी तिथि से प्रारंभ नंदा देवी मेला दशमी के दिन डोला यात्रा के साथ संपन्न हो जाता है. इस अवसर पर नंदा-सुनंदा की दो भव्य देवी प्रतिमाएं बनायी जाती हैं. यह प्रतिमाएं कदली वृक्ष से निर्मित की जाती हैं. नंदा की प्रतिमा का स्वरूप उत्तराखंड की सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी की तरह बनाया जाता है.

पढ़ें- PM मोदी ने देश को समर्पित किए 35 ऑक्सीजन प्लांट, बोले- देवभूमि से नाता 'मर्म' और 'कर्म' का है

अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर की निर्माण शैली भी काफी पुरानी है. यहां उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर की स्थापना 17वीं शताब्दी के अंत में मानी जाती है. उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर के ऊपरी हिस्से में एक लकड़ी का छज्जा है. मंदिर में बनी कलाकृति खजुराहो मंदिरों की तर्ज पर है. ये मंदिर संरक्षित श्रेणी में शामिल है. अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है. पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं. वर्तमान में चंद वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा राजा के रूप में सपरिवार पूजा में बैठते हैं.

पढ़ें-PM मोदी ने मंच से धामी को कहा 'मित्र', थपथपाई पीठ, बोले- इस सरकार में युवा उत्साह

हिमालय की पुत्री को नंदा बताया गया है. देवी भागवत में नंदा को नौ दुर्गाओं में एक बताया गया है. नंदा देवी के नाम से हिमालय की अनेक चोटियां हैं. इनमें नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाघुंटी, नंदाखाट प्रमुख चोटियां हैं. इसके अलावा नंदाकिनी नदी का नाम भी नंदा देवी के नाम पर हैं.

कैसे पहुंचें नंदा देवी मंदिर

बाय एयर:अल्मोड़ा का नजदीकी हवाई अड्डा, एक प्रसिद्ध कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर में स्थित है, जो अल्मोड़ा से लगभग 127 किलोमीटर दूर है.

ट्रेन से ऐसे पहुंचें: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित है. काठगोदाम रेलवे से सीधी ट्रेन दिल्ली भारत की राजधानी, लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी, देहरादून उत्तराखंड राज्य की राजधानी के लिए है.

सड़क मार्ग से: नंदा देवी मन्दिर, अल्मोड़ा सड़क नेटवर्क के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. उत्तराखंड में हवाई और रेल संपर्क सीमित है. सड़क नेटवर्क सबसे अच्छा और आसानी से उपलब्ध परिवहन विकल्प है. आप या तो अल्मोड़ा के लिए ड्राइव कर सकते हैं या टैक्सी से दिल्ली या किसी भी दूसरे शहर से अल्मोड़ा तक पहुंच सकते हैं.

अल्मोड़ा: उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को अष्ट भैरव, नौ दुर्गा की नगरी भी कहा जाता है. इन नौ दुर्गाओं में मां नंदादेवी का खास स्थान है. मां नंदा का अल्मोड़ा में भव्य मंदिर है. मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है. अल्मोड़ा नगर में स्थित मां नंदादेवी का मंदिर सैकड़ों साल पुराना है. इस मंदिर की स्थापना चंद वंश के शासकों ने की थी. चंद शासक नंदा देवी को कुल देवी के रूप में पूजते थे. नवरात्रों में इस मंदिर में नौ दुर्गाओं की पूजा की जाती है. इस दौरान यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. भक्त बड़ी संख्या में मनौतियां लेकर यहां पहुंचते हैं.

उत्तराखंड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है. सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है. मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है. मां नंदा की सात बहनें मानी जाती हैं. उत्तराखंड में नंदा देवी पर्वत शिखर, रूपकुंड एवं हेमकुंड नंदा देवी के प्रमुख पवित्र स्थलों में एक हैं. माना जाता है कि नंदा ने ससुराल जाते समय रूप कुंड में पानी पिया था. प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शिव की पत्नी पार्वती को ही मां नंदा माना गया है.

पार्वती के रूप में पूजी जाती है अल्मोड़ा की नंदा देवी

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पौराणिक ग्रंथों की बात करें तो इनमें देवी के अनेक स्वरूप गिनाए गए हैं. इनमें शैलपुत्री नंदा को योग माया एवं शक्ति स्वरूपा का नाम दिया गया है. कुमाऊं में मां नंदा की पूजा चंद शासकों के जमाने से की जाती है. इतिहासकारों के मुताबिक 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा लाए. उसे यहां मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्ट्रेट परिसर अल्मोड़ा) में स्थापित किया. तब से उन्होंने मां नंदा का कुलदेवी के रूप में पूजन शुरू किया. बाद में कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को मल्ला महल से हटाकर दीप चंदेश्वर मंदिर यानी वर्तमान नंदादेवी मंदिर में स्थापित करवाया.

पढ़ें- प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने जा रही थीं आशा मनोरमा डोबरियाल, पुलिस ने हिरासत में लिया

इतिहासकारों के अनुसार कहा जाता है कि चंद राजाओं के शासन काल में इन मंदिरों को बनाया गया था. तत्कालीन राजा उद्योतचंद्र ने अल्मोड़ा में इस मंदिर का निर्माण किया था. वर्तमान में नंदा देवी परिसर में तीन देवालय हैं. इनमें पार्वतेश्वर और उद्योतचंद्रेश्वर देवालय काफी प्राचीन देवालयों में हैं. दीपचंद्रेश्वर देवालय का निर्माण राजा दीप चंद ने बाद में किया था. इसमें वर्तमान में नंदा देवी का मंदिर है.

पढ़ें- Shardiya Navratri 2021 : जानिए पहले दिन कैसे करें मां शैलपुत्री की पूजा

इस परिसर को उस समय दीपचंद्रेश्वर मंदिर के नाम से ही जाना जाता था. उसके बाद गोरखा शासन काल में इस परिसर को मां नंदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा. वर्तमान में इसी परिसर में नंदा देवी का मेला लगता है. यहां हर वर्ष भाद्रपद माह में नंदादेवी का भव्य मेला आयोजित किया जाता है. पंचमी तिथि से प्रारंभ नंदा देवी मेला दशमी के दिन डोला यात्रा के साथ संपन्न हो जाता है. इस अवसर पर नंदा-सुनंदा की दो भव्य देवी प्रतिमाएं बनायी जाती हैं. यह प्रतिमाएं कदली वृक्ष से निर्मित की जाती हैं. नंदा की प्रतिमा का स्वरूप उत्तराखंड की सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी की तरह बनाया जाता है.

पढ़ें- PM मोदी ने देश को समर्पित किए 35 ऑक्सीजन प्लांट, बोले- देवभूमि से नाता 'मर्म' और 'कर्म' का है

अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर की निर्माण शैली भी काफी पुरानी है. यहां उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर की स्थापना 17वीं शताब्दी के अंत में मानी जाती है. उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर के ऊपरी हिस्से में एक लकड़ी का छज्जा है. मंदिर में बनी कलाकृति खजुराहो मंदिरों की तर्ज पर है. ये मंदिर संरक्षित श्रेणी में शामिल है. अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है. पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं. वर्तमान में चंद वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा राजा के रूप में सपरिवार पूजा में बैठते हैं.

पढ़ें-PM मोदी ने मंच से धामी को कहा 'मित्र', थपथपाई पीठ, बोले- इस सरकार में युवा उत्साह

हिमालय की पुत्री को नंदा बताया गया है. देवी भागवत में नंदा को नौ दुर्गाओं में एक बताया गया है. नंदा देवी के नाम से हिमालय की अनेक चोटियां हैं. इनमें नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाघुंटी, नंदाखाट प्रमुख चोटियां हैं. इसके अलावा नंदाकिनी नदी का नाम भी नंदा देवी के नाम पर हैं.

कैसे पहुंचें नंदा देवी मंदिर

बाय एयर:अल्मोड़ा का नजदीकी हवाई अड्डा, एक प्रसिद्ध कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर में स्थित है, जो अल्मोड़ा से लगभग 127 किलोमीटर दूर है.

ट्रेन से ऐसे पहुंचें: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित है. काठगोदाम रेलवे से सीधी ट्रेन दिल्ली भारत की राजधानी, लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी, देहरादून उत्तराखंड राज्य की राजधानी के लिए है.

सड़क मार्ग से: नंदा देवी मन्दिर, अल्मोड़ा सड़क नेटवर्क के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. उत्तराखंड में हवाई और रेल संपर्क सीमित है. सड़क नेटवर्क सबसे अच्छा और आसानी से उपलब्ध परिवहन विकल्प है. आप या तो अल्मोड़ा के लिए ड्राइव कर सकते हैं या टैक्सी से दिल्ली या किसी भी दूसरे शहर से अल्मोड़ा तक पहुंच सकते हैं.

Last Updated : Oct 7, 2021, 7:05 PM IST
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