अल्मोड़ाः उत्तराखंड का आखिरी मोस्ट वांटेड इनामी माओवादी भाष्कर पांडे को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है. भास्कर के पकड़े जाने के बाद पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां उसके पास से बरामद हुए सामान की जांच में जुटी हुई है. जांच में भास्कर के पास से बरामद पेन ड्राइव से माओवाद से जुड़े कई अहम सबूत सामने आए हैं.
इस मामले में जांच अधिकारी बनाए गए रानीखेत के सीओ तपेश कुमार ने बताया कि भास्कर पांडे के पास से एक पेन ड्राइव बरामद हुई थी. कोर्ट के आदेश के बाद पेन ड्राइव की जांच की गई. प्रारंभिक जांच में अल्मोड़ा के सोमेश्वर, द्वाराहाट और नैनीताल के धारी में अंजाम दी गई माओवादी गतिविधियों का डाटा मिला है. जिससे इसकी भी पुष्टि होती है कि इन जगहों में घटी घटनाओं को माओवादियों ने ही अंजाम दिया था. शस्त्र प्रशिक्षण और छापामारी युद्ध का डाटा भी इस पेन ड्राइव में उपलब्ध है. जिसकी जांच जारी है, आगे भी कई अहम सबूत मिलने के आसार हैं.
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बता दें कि बीते 13 सितंबर को 20 हजार के इनामी माओवादी भास्कर पांडे को अल्मोड़ा पुलिस और एसटीएफ की संयुक्त टीम ने पेटशाल से गिफ्तार किया था. भास्कर पांडे साल 2017 से फरार चल रहा था. माओवादी भाष्कर पांडे ने पूछताछ के दौरान बताया कि वो माओवादी खीम सिंह बोरा की गिरफ्तारी के बाद से उत्तराखंड में एरिया कमांडर का जिम्मा संभाले था और प्रदेश में माओवाद की जड़ें जमाने के लिए ताना बाना बुन रहा था.
भाष्कर पांडे साल 2006 से माओवादी संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी से जुड़ा है. संगठन में उत्तराखंड के जोनल कमेटी का सचिव खीम सिंह बोरा था. भाष्कर पांडे के साथ देवेंद्र चम्याल और भगवती भोज सक्रिय थे. संगठन ने चारों को जनआंदोलन करने और उत्तराखंड में चुनावों को प्रभावित करने की जिम्मेदारी दी थी.
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जिसके बाद चारों अपने काम को अंजाम देने से पहले एकांत जंगल में कार्ययोजना तैयार करते और लक्ष्य बनाकर संबंधित स्थान पर पोस्टर व पैम्पेलट चिपकाते थे. साल 2017 में सोमेश्वर और द्वाराहाट में अपने कारनामों को अंजाम देने में वो सफल भी रहे, लेकिन एरिया कमांडर की गिरफ्तारी के बाद से यह जिम्मेदारी भाष्कर पांडे के कंधों पर आ गई थी.
2007 के बाद से छिन्न भिन्न होने लगा था संगठनः उत्तराखंड में माओवादियों की टॉप लीडरशिप पर शिकंजा कसने के बाद से संगठन की कमर टूटनी शुरू हो गई थी. 22 दिसंबर 2007 को नानकमत्ता में पुलिस व खुफिया एजेंसी के ऑपरेशन हंसपुर खत्ता की कामयाबी के बाद नेटवर्क छिन्न-भिन्न हो चुका था. कई शीर्ष नेता गिरफ्तार हो चुके थे. जबकि कई भूमिगत हो गए थे. जिसे संगठन असक्रिय हो गया था.
संगठन की गतिविधियों को बढ़ावा देने और अधूरे मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए मध्य व पिछली पंक्ति के सिपहसलारों को सक्रिय किया जाने लगा. जिसके लिए जंगलों में डेरा डाला गया, लेकिन पिछले कुछ सालों में माओवादी गतिविधियों के साथ ही सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट से गृह मंत्रालय भी हरकत में आया गया और एक-एक कर उत्तराखंड के सभी प्रमुख माओवादियों को पकड़ने में सफलता मिल सकी.