अल्मोड़ा: उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में साल 1860 से शुरू हुई कुमाऊंनी रामलीला का अपना विशेष महत्व है. रामचरित्र मानस पर आधारित रामलीला का मंचन यहां लगातार चलता आ रहा है. जिसमें शास्त्रीय रागों पर आधारित गीतों का गायन के साथ रामलीला के पात्र स्वयं अभिनय करते हैं. अल्मोड़ा के नंदा देवी के मंदिर में होने वाली रामलीला सबसे पुरानी रामलीला है.
गायन एवं नाट्य शैली पर इस रामलीला का मंचन सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के बद्रेश्वर मंदिर से प्रारंभ हुआ. इस दौर में ना तो बिजली व संचार व्यवस्था थी ना ही पर्याप्त आवागमन के साधन थे. रामलीला का मंचन छिलकों (बिरोजा युक्त लकड़ी) की मशाल बनाकर किया जाता था. कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की सर्वप्रथम शुरुआत 1860 में अल्मोड़ा नगर के बीचों बीच बद्रेश्वर से हुई. जिसे तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व. देवीदत्त जोशी ने करवाया. इस रामलीला का मंचन रामचरितमानस पर आधारित था.
अब नंदा देवी के प्रांगण में होता है रामलीला का मंचन: कई वर्षों तक इस रामलीला का मंचन इसी स्थान पर होता रहा. लेकिन जानकारों के अनुसार, वर्ष 1950 के बाद भूमि विवाद होने से इस रामलीला का मंचन नंदा देवी के पास स्थित त्यूनरा मोहल्ले में होने लगा. उसके बाद से इसका मंचन नंदा देवी के प्रांगण में लगातार होता आ रहा है. यह उत्तराखंड की सबसे पुरानी रामलीला है. नंदा देवी की रामलीला से जुड़े अनेक लोगों ने अपने-अपने मोहल्लों में इस रामलीला का मंचन प्रारंभ किया. आज यह रामलीला अल्मोड़ा नगर के आठ स्थानों पर होने के साथ-साथ कुमाऊं के अन्य कस्बों में भी की जाती है. महानगरों में रहने वाले कुमाऊं के लोग इस रामलीला का मंचन महानगरों में भी कराने लगे हैं. नगरीय क्षेत्रों की रामलीला को आकर्षक बनाने में नवीनतम तकनीक, साज सज्जा, रोशनी व आधुनिक ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग किया जाने लगा है.
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कुमाऊंनी रामलीला से नृत्य सम्राट उदयशंकर भी रहे प्रभावित: कुमाऊंनी रामलीला से प्रभावित होकर अल्मोड़ा में साल 1940-41 के दौरान नृत्य सम्राट पं. उदयशंकर ने भी रामलीला का मंचन किया. उन्होंने अल्मोड़ा में इस रामलीला में छाया चित्रों का प्रयोग कर नवीनता लाने का प्रयास किया. हालांकि उनकी मंचन शैली कई मायनों में अलग रही, लेकिन उनके छाया चित्रों की छाप अल्मोड़ा नगर की रामलीला पर पड़ी. जिसके बाद रामलीला में छाया चित्रों का प्रयोग कर रामलीला को और मनमोहक बनाया जाने लगा. इस दौरान उदय शंकर ने पातालदेवी में अपनी नृत्य मंडली भी स्थापित की.
तीन माह की प्रशिक्षण में तैयार होते हैं पात्र: कुमाऊं की रामलीला की विशेषता है कि रामलीला के मंचन में नाटक मंडली के लोग ही नहीं, बल्कि स्थानीय आम लोग विभिन्न पात्रों का अभिनय करते हैं, जो तीन माह की प्रशिक्षण में दक्षता प्राप्त कर भगवान श्रीराम की लीला में अभिनय करते हैं. वहीं, मंच निर्माण से लेकर आर्थिक संसाधनों को जुटाने में भी रामलीला मंचन से जुड़े लोगों की मुख्य भूमिका रहती है.
अब महिलाएं भी निभाती हैं किरदार: कुमाऊंनी रामलीला में पारसी थियेटर की झलक भी मिलती है. विभिन्न संवादों के मंचन में राम चरित्र मानस के दोहों व चौपाईयों को विभिन्न रागों में पिरोया गया है, जो हारमोनियम और तबले के साथ गाए जाने पर कर्णप्रिय लगता है. कुमाऊंनी रामलीला में राग मालकोश, बिहाग, जैजवंती, मांड, खमाज, काफी, सहाना, दुर्गा, भैरवी परज आदि रागों पर आधारित गीतों का गायन होता है. रामलीला के पात्र अभिनय करते विभिन्न भाव भंगिमा (बॉडी लैंग्वेज) को दर्शाते हुए स्वयं गायन करते हैं. कभी-कभी पार्श्व गायन (प्लेबैक सिंगिंग) भी किया जाता है. मंचन के दौरान कला का प्रदर्शन कर सामाजिक कुरीतियों पर कटाक्ष करते हुए लोगों को खूब गुदगुदाता है. पूर्व में रामलीला में सभी पात्र पुरुष हुआ करते थे, लेकिन वर्तमान में महिला पात्रों की भूमिका महिलाएं निभाने लगी हैं.
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रामलीला के आकर्षक प्रसंग: कुमाऊंनी रामलीला में नारद मोह, सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद, दशरथ कैकई संवाद, रावण मारीच संवाद, सीता हरण, शबरी प्रसंग, लक्ष्मण शक्ति, अंगद रावण संवाद, मंदोदरी-रावण संवाद व राम-रावण युद्ध के प्रसंग मुख्य आकर्षण होते हैं. इस दौरान रामलीला मैदानों में रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. रामलीला मैदान में दर्शकों की भीड़ लगी रहती है.
रामलीला मंचन में 65 पात्र करते हैं अभिनय: शारदीय नवरात्र में होने वाली 10 दिनों की रामलीला के मंचन में करीब 65 पात्रों की आवश्यकता पड़ती है. जो राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान, दशरथ, कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा, परशुराम, सुमन्त, शूर्पणखा, जटायु, निषादराज, अंगद, शबरी, मन्थरा, मेघनाद, कुंभकर्ण, विभीषण के अभिनय के लिए होते हैं.
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