अल्मोड़ा: उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में सिर्फ गढ़वाली भाषा को लागू करने पर विपक्ष ने सवाल खड़े किये हैं. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. कुंजवाल ने सिर्फ गढ़वाली भाषा को ही पाठ्यक्रम में शामिल करने वाले फैसले को बांटने और भेदभाव को बढ़ावा देना वाला फैसला बताया.
पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि प्रदेश में दो मंडल हैं. गढ़वाल की मातृ भाषा गढ़वाली तो कुमाऊं की भाषा कुमाउंनी है. लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा गढ़वाली को ही पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार को यहां के इतिहास एवं भविष्य को देखते हुए निर्णय लेना चाहिए था.
पढ़ें- देहरादून: विक्रमों के रंग पर खड़ा हुआ विवाद, अधिकारी करेंगे अब ये काम
उन्होंने कहा कि भाषा किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी भावना और सामाजिकता से जुड़ा हुआ संवेदनशील मुद्दा होता है. जिस कारण मुख्यमंत्री द्वारा सिर्फ गढ़वाली भाषा को ही पाठ्यक्रम में शामिल करना सही फैसला नहीं है.
मुख्यमंत्री पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि एक अच्छे राजनीतिक व्यक्ति को समाज में भेदभाव फैलाने वाले निर्णय नहीं लेना चाहिए. वह पूरे प्रदेश के मुखिया हैं, इसलिए उन्हें पूरे प्रदेश के हर नागरिक का हित सोचना चाहिए. कुंजवाल ने इस निर्णय पर पुनर्विचार की मांग करते हुए सरकार से शासनादेश में कुमाउंनी और गढ़वाली भाषा दोनों को शामिल किये जाने की मांग की.
वहीं त्रिवेंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए गोंविद सिंह कुंजवाल ने कहा कि सरकार अगर इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करेगी तो एक बड़ा सामाजिक आंदोलन शुरू किया जाएगा.