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गढ़वाली भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर भड़के कुंजवाल, कहा-कुमाउंनी का हुआ अपमान

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने सिर्फ गढ़वाली भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करने को लेकर विरोध जताया है. उन्होंने कहा कि त्रिवेंद्र सरकार को कुमाउंनी भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए. अगर जल्द ऐसा नहीं किया गया तो सरकार के खिलाफ आंदोलन किया जाएगा.

जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल
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Published : Aug 1, 2019, 7:31 PM IST


अल्मोड़ा: उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में सिर्फ गढ़वाली भाषा को लागू करने पर विपक्ष ने सवाल खड़े किये हैं. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. कुंजवाल ने सिर्फ गढ़वाली भाषा को ही पाठ्यक्रम में शामिल करने वाले फैसले को बांटने और भेदभाव को बढ़ावा देना वाला फैसला बताया.

कुमाउंनी भाषा पर गोविंद सिंह कुंजवाल

पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि प्रदेश में दो मंडल हैं. गढ़वाल की मातृ भाषा गढ़वाली तो कुमाऊं की भाषा कुमाउंनी है. लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा गढ़वाली को ही पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार को यहां के इतिहास एवं भविष्य को देखते हुए निर्णय लेना चाहिए था.

पढ़ें- देहरादून: विक्रमों के रंग पर खड़ा हुआ विवाद, अधिकारी करेंगे अब ये काम

उन्होंने कहा कि भाषा किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी भावना और सामाजिकता से जुड़ा हुआ संवेदनशील मुद्दा होता है. जिस कारण मुख्यमंत्री द्वारा सिर्फ गढ़वाली भाषा को ही पाठ्यक्रम में शामिल करना सही फैसला नहीं है.

मुख्यमंत्री पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि एक अच्छे राजनीतिक व्यक्ति को समाज में भेदभाव फैलाने वाले निर्णय नहीं लेना चाहिए. वह पूरे प्रदेश के मुखिया हैं, इसलिए उन्हें पूरे प्रदेश के हर नागरिक का हित सोचना चाहिए. कुंजवाल ने इस निर्णय पर पुनर्विचार की मांग करते हुए सरकार से शासनादेश में कुमाउंनी और गढ़वाली भाषा दोनों को शामिल किये जाने की मांग की.

वहीं त्रिवेंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए गोंविद सिंह कुंजवाल ने कहा कि सरकार अगर इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करेगी तो एक बड़ा सामाजिक आंदोलन शुरू किया जाएगा.


अल्मोड़ा: उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में सिर्फ गढ़वाली भाषा को लागू करने पर विपक्ष ने सवाल खड़े किये हैं. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. कुंजवाल ने सिर्फ गढ़वाली भाषा को ही पाठ्यक्रम में शामिल करने वाले फैसले को बांटने और भेदभाव को बढ़ावा देना वाला फैसला बताया.

कुमाउंनी भाषा पर गोविंद सिंह कुंजवाल

पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि प्रदेश में दो मंडल हैं. गढ़वाल की मातृ भाषा गढ़वाली तो कुमाऊं की भाषा कुमाउंनी है. लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा गढ़वाली को ही पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार को यहां के इतिहास एवं भविष्य को देखते हुए निर्णय लेना चाहिए था.

पढ़ें- देहरादून: विक्रमों के रंग पर खड़ा हुआ विवाद, अधिकारी करेंगे अब ये काम

उन्होंने कहा कि भाषा किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी भावना और सामाजिकता से जुड़ा हुआ संवेदनशील मुद्दा होता है. जिस कारण मुख्यमंत्री द्वारा सिर्फ गढ़वाली भाषा को ही पाठ्यक्रम में शामिल करना सही फैसला नहीं है.

मुख्यमंत्री पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि एक अच्छे राजनीतिक व्यक्ति को समाज में भेदभाव फैलाने वाले निर्णय नहीं लेना चाहिए. वह पूरे प्रदेश के मुखिया हैं, इसलिए उन्हें पूरे प्रदेश के हर नागरिक का हित सोचना चाहिए. कुंजवाल ने इस निर्णय पर पुनर्विचार की मांग करते हुए सरकार से शासनादेश में कुमाउंनी और गढ़वाली भाषा दोनों को शामिल किये जाने की मांग की.

वहीं त्रिवेंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए गोंविद सिंह कुंजवाल ने कहा कि सरकार अगर इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करेगी तो एक बड़ा सामाजिक आंदोलन शुरू किया जाएगा.

Intro:उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में सिर्फ गढ़वाली भाषा को लागू किए जाने पर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। कुंजवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा सिर्फ गढ़वाली भाषा को ही पाठ्यक्रम में शामिल करना प्रदेश को बांटने और भेदभाव को बढ़ावा देने वाली राजनीति है। उन्होंने सरकार से इस निर्णय में पुनर्विचार कर एक साथ कुमाऊनी और गढ़वाली का शासनादेश लागू करने की मांग उठाई।


Body:पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि प्रदेश में दो मंडल है और दोनों ही मंडलों के प्रारंभिक भाषा कुमाऊनी और गढ़वाली है लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा गढ़वाली को ही पाठ्यक्रम में शामिल कर कुमाऊं की जनता में गलतफहमी फैलाने का काम किया है । उन्होंने कहा कि सरकार को यहां के इतिहास एवं भविष्य को देखते हुए निर्णय लेना चाहिए था। उन्होंने कहा कि भाषा किसी व्यक्ति के लिए भावना एवं सामाजिकता से जुड़ा हुआ अति संवेदनशील मुद्दा होती है। मुख्यमंत्री द्वारा गढ़वाली भाषा को ही पाठ्यक्रम में शामिल करना उचित निर्णय नहीं है । मुख्यमंत्री पर तंज कसते हुए कहा कि एक अच्छे राजनीतिक व्यक्ति को समाज में वैमनस्य फैलाने वाले निर्णय नहीं लेना चाहिए ।वह पूरे प्रदेश के मुखिया है इसलिए उन्हें पूरे प्रदेश के नागरिकों का हित सोचना चाहिए। उन्होंने निर्णय पर पुनर्विचार की मांग करते हुए सरकार से एक शासनादेश में कुमाऊनी गढ़वाली भाषा को शामिल करने को कहा उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार ने निर्णय पर पुनर्विचार नहीं किया तो आम जनता के साथ मिलकर विरोध में एक बड़ा सामाजिक आंदोलन छेड़ा जाएगा।

बाइट गोविंद सिंह कुंजवाल, पूर्व स्पीकर


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