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अल्मोड़ा में बच्चों ने धूमधाम से मनाया त्योहार, घुघुत राजा से जुड़ा है इतिहास - मकर संक्रांति न्यूज

कुमाऊं में घुघुतिया पर्व मनाने के पीछे कई लोक कथाएं प्रचलित है. इसमें से कथा एक घुघुत राजा से जुड़ी हुई है.

almora
अल्मोड़ा
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Published : Jan 16, 2020, 7:41 PM IST

अल्मोड़ा: कुमाऊं में मकर संक्रांति के अवसर पर मनाये जाने वाला घुघुतिया त्योहार अपनी अलग ही पहचान रखता है. कुमाऊं में मनाये जाने वाले इस त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है. बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुती कौवे को खिलाने के लिए 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले' गाकर कौवों को बुलाते हैं.

मकर संक्रांति के दिन अल्मोड़ा में गुड़ मिले आटे को तेल में पकाकर घुघुतिया बनायी जाती है. बच्चों के लिए विशेष तौर पर घुघुतियों की अलग-अलग आकृतियां बनायी जाती है. बाद में सभी आकृतियों को मिलाकर एक माला बना दी जाती है. आज के दिन सुबह बच्चों को स्नान कराया जाता है. इसके बाद बच्चों को घुघुतियों से बनी माला पहनायी जाती है.

बच्चों ने धूमधाम से मनाया घुघुतिया त्योहार.

पढ़ें- कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार की धूम, पर्व की ये है रोचक कथा

कुमाऊं का घुघुतिया त्योहार लोक पर्व के रूप में जाना जाता है. यह त्योहार कुमाऊं में दो दिन मनाया जाता है. इन दिनों का विभाजन बागेश्वर जनपद में बहने वाली सरयू नदी से किया जाता है. सरयू नदी के पूर्वी भाग में उस पार इसका आयोजन एक दिन पहले होता है जबकि, सरयू नदी के इस पार इसका आयोजन एक दिन बाद होता है.

पढ़ें- खुशखबरी: 5 करोड़ की लागत से रेलवे स्टेशन का होगा कायाकल्प, यात्रियों को मिलेगी सहूलियत

कुमाऊं में घुघुतिया पर्व मनाने के पीछे कई लोक कथाएं प्रचलित है. जिनमें से एक लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि बहुत समय पहले घुघुत नाम का एक राजा हुआ करता था. एक ज्योतिषी ने उसे बताया कि मकर संक्रांति की सुबह कौवों द्वारा उसकी हत्या कर दी जायेगी.

ऐसे में राजा ने इसे टालने का एक उपाय सोचा. उसने राज्यभर में घोषणा कर दी कि सभी लोग गुड़ मिले आटे के विशेष प्रकार के पकवान बनाकर अपने बच्चों से कौवों को अपने-अपने घर बुलायेंगे. इन पकवानों का आकर सांप के आकार के रखने के आदेश दिए गये, ताकि कौवा इन पर जल्दी झपटे.

पढ़ें- पहाड़ पर शिक्षकों की कमी हुई दूर, उच्च शिक्षा विभाग को मिले 53 असिस्टेंट प्रोफेसर

राजा का अनुमान था कि पकवान खाने में उलझकर कौवा उन पर आक्रमण की घड़ी को भूल जायेंगे. ऐसे में लोगों ने राजा के नाम से बनाये जाने वाले इस पकवान का नाम ही घुघुत रख दिया. तभी से यह परम्परा चली आ रही है.

अल्मोड़ा: कुमाऊं में मकर संक्रांति के अवसर पर मनाये जाने वाला घुघुतिया त्योहार अपनी अलग ही पहचान रखता है. कुमाऊं में मनाये जाने वाले इस त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है. बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुती कौवे को खिलाने के लिए 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले' गाकर कौवों को बुलाते हैं.

मकर संक्रांति के दिन अल्मोड़ा में गुड़ मिले आटे को तेल में पकाकर घुघुतिया बनायी जाती है. बच्चों के लिए विशेष तौर पर घुघुतियों की अलग-अलग आकृतियां बनायी जाती है. बाद में सभी आकृतियों को मिलाकर एक माला बना दी जाती है. आज के दिन सुबह बच्चों को स्नान कराया जाता है. इसके बाद बच्चों को घुघुतियों से बनी माला पहनायी जाती है.

बच्चों ने धूमधाम से मनाया घुघुतिया त्योहार.

पढ़ें- कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार की धूम, पर्व की ये है रोचक कथा

कुमाऊं का घुघुतिया त्योहार लोक पर्व के रूप में जाना जाता है. यह त्योहार कुमाऊं में दो दिन मनाया जाता है. इन दिनों का विभाजन बागेश्वर जनपद में बहने वाली सरयू नदी से किया जाता है. सरयू नदी के पूर्वी भाग में उस पार इसका आयोजन एक दिन पहले होता है जबकि, सरयू नदी के इस पार इसका आयोजन एक दिन बाद होता है.

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कुमाऊं में घुघुतिया पर्व मनाने के पीछे कई लोक कथाएं प्रचलित है. जिनमें से एक लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि बहुत समय पहले घुघुत नाम का एक राजा हुआ करता था. एक ज्योतिषी ने उसे बताया कि मकर संक्रांति की सुबह कौवों द्वारा उसकी हत्या कर दी जायेगी.

ऐसे में राजा ने इसे टालने का एक उपाय सोचा. उसने राज्यभर में घोषणा कर दी कि सभी लोग गुड़ मिले आटे के विशेष प्रकार के पकवान बनाकर अपने बच्चों से कौवों को अपने-अपने घर बुलायेंगे. इन पकवानों का आकर सांप के आकार के रखने के आदेश दिए गये, ताकि कौवा इन पर जल्दी झपटे.

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राजा का अनुमान था कि पकवान खाने में उलझकर कौवा उन पर आक्रमण की घड़ी को भूल जायेंगे. ऐसे में लोगों ने राजा के नाम से बनाये जाने वाले इस पकवान का नाम ही घुघुत रख दिया. तभी से यह परम्परा चली आ रही है.

Intro:मकर संक्रांति के अवसर पर अल्मोड़ा में घुघुतिया त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। मकर संक्रांति के दिन बुधवार को आटे और गुड़ से घुघुतिया व्यंजन बनाया गया। आज गुरूवार को सुबह छोटे बच्चों ने ‘काले कौआ काले, घुघुती माला खाले.’ गाकर कव्वों का आवहान किया। इस दौरान छोटे छोटे बच्चों में काफी उत्साह देखने को मिला।
Body:कुमाऊं में मकर संक्रांति के अवसर पर मनाये जाने वाले घुघुतिया त्योहार की अपनी अलग पहचान है। कुमाऊँ में मनाये जाने वाले इस त्यौहार का मुख्य आकर्षण कौवा है। बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुती कौवे को खिलाने के लिए काले कौवा काले घुघुति माला खा ले गाकर कौव्वों को बुलाते हैं। मकर संक्राति के दिन अल्मोड़ा में आटे और गुड़ को तेल में पका कर घुघुतिया बनायी जाती है। बच्चों के लिए विशेष तौर पर घुघुतियों की अलग-अलग आकृतियां बनायी जाती है। बाद में सभी आकृतियों को मिला कर एक माला बना दी जाती है। आज के दिन सुबह बच्चों को स्नान कराया जाता है। इसके बाद बच्चों को घुघुतियों से बनी माला पहनायी जाती है।
कुमाँऊ में इस घुघुतिया त्यौहार जिसको कुमाऊ में लोक पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।यह त्यौहार कुमाऊं में दो दिन मनाया जाता है।और इन दिनों का विभाजन बागेश्वर जनपद में बहने वाली सरयू नदी से किया जाता है। सरयू नदी के पूर्वी भाग में उस पार इसका आयोजन एक दिन पहले होता है जबकि सरयू नदी के इस पार इसका आयोजन एक दिन बाद होता है।
कुमाऊं में घुघुतिया पर्व मनाने के पीछे कई लोक कथाएं प्रचलित है। जिनमे से एक लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि बहुत समय पहले घुघुत नाम का एक राजा हुआ करता था। एक ज्योतिषी ने उसे बताया कि मकर संक्रांति की सुबह कव्वों द्वारा उसकी हत्या कर दी जायेगी।
राजा ने इसे टालने का एक उपाय सोचा। उसने राज्य भर में घोषणा कर दी कि सभी लोग गुड़ मिले आटे के विशेष प्रकार के पकवान बनाकर अपने बच्चों से कव्वों को अपने अपने घर बुलायेंगे। इन पकवानों का आकर सांप के आकार के रखने के आदेश दिए गये ताकि कव्वा इन पर और जल्दी झपटे।राजा का अनुमान था कि पकवान खाने में उलझ कर कव्वे उस पर आक्रमण की घड़ी को भूल जायेंगे।लोगों ने राजा के नाम से बनाये जाने वाले इस पकवान का नाम ही घुघुत रख दिया। तभी से यह परम्परा चली आ रही है।
बाईट - हीरा सिंह
बाइट नीतिज्ञा नेगीConclusion:
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