अल्मोड़ा: कुमाऊं में मकर संक्रांति के अवसर पर मनाये जाने वाला घुघुतिया त्योहार अपनी अलग ही पहचान रखता है. कुमाऊं में मनाये जाने वाले इस त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है. बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुती कौवे को खिलाने के लिए 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले' गाकर कौवों को बुलाते हैं.
मकर संक्रांति के दिन अल्मोड़ा में गुड़ मिले आटे को तेल में पकाकर घुघुतिया बनायी जाती है. बच्चों के लिए विशेष तौर पर घुघुतियों की अलग-अलग आकृतियां बनायी जाती है. बाद में सभी आकृतियों को मिलाकर एक माला बना दी जाती है. आज के दिन सुबह बच्चों को स्नान कराया जाता है. इसके बाद बच्चों को घुघुतियों से बनी माला पहनायी जाती है.
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कुमाऊं का घुघुतिया त्योहार लोक पर्व के रूप में जाना जाता है. यह त्योहार कुमाऊं में दो दिन मनाया जाता है. इन दिनों का विभाजन बागेश्वर जनपद में बहने वाली सरयू नदी से किया जाता है. सरयू नदी के पूर्वी भाग में उस पार इसका आयोजन एक दिन पहले होता है जबकि, सरयू नदी के इस पार इसका आयोजन एक दिन बाद होता है.
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कुमाऊं में घुघुतिया पर्व मनाने के पीछे कई लोक कथाएं प्रचलित है. जिनमें से एक लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि बहुत समय पहले घुघुत नाम का एक राजा हुआ करता था. एक ज्योतिषी ने उसे बताया कि मकर संक्रांति की सुबह कौवों द्वारा उसकी हत्या कर दी जायेगी.
ऐसे में राजा ने इसे टालने का एक उपाय सोचा. उसने राज्यभर में घोषणा कर दी कि सभी लोग गुड़ मिले आटे के विशेष प्रकार के पकवान बनाकर अपने बच्चों से कौवों को अपने-अपने घर बुलायेंगे. इन पकवानों का आकर सांप के आकार के रखने के आदेश दिए गये, ताकि कौवा इन पर जल्दी झपटे.
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राजा का अनुमान था कि पकवान खाने में उलझकर कौवा उन पर आक्रमण की घड़ी को भूल जायेंगे. ऐसे में लोगों ने राजा के नाम से बनाये जाने वाले इस पकवान का नाम ही घुघुत रख दिया. तभी से यह परम्परा चली आ रही है.