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देश-विदेश में मशहूर है अल्मोड़ा की बाल मिठाई, ऐसे होती है तैयार

सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की बाल मिठाई का इतिहास 150 साल पुराना है. यह मिठाई न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपने स्वाद के लिए जानी जाती है.

देश में नहीं विदेशों में भी मशहूर
देश में नहीं विदेशों में भी मशहूर
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Published : Jun 13, 2021, 2:23 PM IST

अल्मोड़ा: मिठाई का नाम जहन में आते ही मुंह मे पानी आ जाता है और यदि मिठाई ऐसी हो जिसके चाहने वाले न केवल देश बल्कि विदेशों में भी हो तो फिर क्या कहने? सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की बाल मिठाई ऐसी ही एक मिठाई है जिसने देश में ही नहीं विदेशों में भी खास पहचान है. इस नगरी को बाल मिठाई का शहर कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

वहीं पर्यटक नगरी अल्मोड़ा जाकर यदि आप वहां की बाल मिठाई का स्वाद न लें तो फिर आपकी अल्मोड़ा की यात्रा अधूरी मानी जाएगी. इसे स्थानीय गांवों से आने वाले शुद्ध खोया से तैयार किया जाता है. जब इस मिठाई को बनाया जाता है तो इसकी खुशबू काफी दूर तक आती है, जिससे इसके बनने का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.

देश में नहीं विदेशों में भी मशहूर है, अल्मोड़ा की बाल मिठाई

बाल मिठाई की नगरी और अल्मोड़ा दोनों शब्द एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं. इस मिठाई की डिमांड विदेशों में बसे भारतीय करते रहते हैं. बाहर से आने वाले पर्यटक वापस लौटते समय अल्मोड़ा की बाल मिठाई ले जाना नहीं भूलते हैं. शुद्ध खोये से बनी इस मिठाई की एक खासियत यह है कि यह मिठाई जल्द खराब नहीं होती है.

बाल मिठाई ऐसे होती है तैयार

मिठाई बनाने के लिए खोया, चीनी, खसखस और पानी की आवश्यकता होती है. खोया जिसे मावा भी कहा जाता है, उसे एक कड़ाई में डाल कर खूब पकाया जाता है. फिर उसमें चीनी मिलाई जाती है. जब तक मावे का रंग भूरा नहीं हो जाता तब तक इसे पकाया जाता है. फिर उसे ट्रे में ठंडा होने तक रखा जाता है.

ठंडा होने के बाद उसे चाकू की मदद से काट कर छोटे-छोटे पीस बना दिए जातें है. फिर चीनी की चासनी में पीस बनाकर छाना जाता है. उसके बाद उसको एक बर्तन में ठण्डा करके आयताकार टुकड़ों में काटा जाता है. फिर पोस्त यानि खसखस और चीनी को मिलाकर छोटे छोटे बाल दाने तैयार किए जाते हैं.

पढ़ें: आज से शुरू हुई एमडीडीए की ओटीएस स्कीम, ऑनलाइन करें आवेदन

इन छोटे-छोटे दानों को उन आयतकार टुकड़ों के बाहर से चिपकाया जाता है. फिर भुने हुए पोस्ते को आपस में मिलाकर बाल मिठाई में लगने वाले दाने बनाये जाते हैं, जिन्हें बाल दाने के नाम से जाना जाता है.

पीएम मोदी भी ले चुके हैं इस मिठाई का आनंद

बाल मिठाई के बारे में कहा जाता है कि एक बार इसका स्वाद किसी की जवान पर चढ़ जाए तो वो फिर इसे भूला नहीं पाता. पीएम मोदी भी अल्मोड़ा की इस मिठाई का आनंद ले चुके हैं. उन्होंने कोरोनाकाल के दौरान जब हल्द्वानी निवासी पूरन चंद्र शर्मा से बात की थी तो कहा था कि वे बाल मिठाई का स्वाद एक बार फिर से लेना चाहते हैं.

150 साल पुराना है मिठाई का इतिहास

इस मिठाई का इतिहास डेढ़ सौ साल से अधिक पुराना है. अल्मोड़ा में बाल मिठाई के अविष्कारक हलवाई स्व. जोगा लाल शाह माने जाते हैं. जोगा लाल शाह ने 1857 में इस मिठाई का निर्माण ब्रिटिश शासन काल में शुरू किया था. धीरे धीरे इस मिठाई ने अपनी पहचान बनानी शुरू की.

उन दिनों ब्रिटिश भी यहां की मिठाई को पसंद करते थे. वे बाल मिठाई को पानी के जहाजों के माध्यम से इंग्लैंड ले जाते थे. आज यह मिठाई न केवल अपने देश में प्रसिद्ध है वरन यह विदेशों में भी आज अपनी पहचान बना चुकी है.

अल्मोड़ा: मिठाई का नाम जहन में आते ही मुंह मे पानी आ जाता है और यदि मिठाई ऐसी हो जिसके चाहने वाले न केवल देश बल्कि विदेशों में भी हो तो फिर क्या कहने? सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की बाल मिठाई ऐसी ही एक मिठाई है जिसने देश में ही नहीं विदेशों में भी खास पहचान है. इस नगरी को बाल मिठाई का शहर कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

वहीं पर्यटक नगरी अल्मोड़ा जाकर यदि आप वहां की बाल मिठाई का स्वाद न लें तो फिर आपकी अल्मोड़ा की यात्रा अधूरी मानी जाएगी. इसे स्थानीय गांवों से आने वाले शुद्ध खोया से तैयार किया जाता है. जब इस मिठाई को बनाया जाता है तो इसकी खुशबू काफी दूर तक आती है, जिससे इसके बनने का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.

देश में नहीं विदेशों में भी मशहूर है, अल्मोड़ा की बाल मिठाई

बाल मिठाई की नगरी और अल्मोड़ा दोनों शब्द एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं. इस मिठाई की डिमांड विदेशों में बसे भारतीय करते रहते हैं. बाहर से आने वाले पर्यटक वापस लौटते समय अल्मोड़ा की बाल मिठाई ले जाना नहीं भूलते हैं. शुद्ध खोये से बनी इस मिठाई की एक खासियत यह है कि यह मिठाई जल्द खराब नहीं होती है.

बाल मिठाई ऐसे होती है तैयार

मिठाई बनाने के लिए खोया, चीनी, खसखस और पानी की आवश्यकता होती है. खोया जिसे मावा भी कहा जाता है, उसे एक कड़ाई में डाल कर खूब पकाया जाता है. फिर उसमें चीनी मिलाई जाती है. जब तक मावे का रंग भूरा नहीं हो जाता तब तक इसे पकाया जाता है. फिर उसे ट्रे में ठंडा होने तक रखा जाता है.

ठंडा होने के बाद उसे चाकू की मदद से काट कर छोटे-छोटे पीस बना दिए जातें है. फिर चीनी की चासनी में पीस बनाकर छाना जाता है. उसके बाद उसको एक बर्तन में ठण्डा करके आयताकार टुकड़ों में काटा जाता है. फिर पोस्त यानि खसखस और चीनी को मिलाकर छोटे छोटे बाल दाने तैयार किए जाते हैं.

पढ़ें: आज से शुरू हुई एमडीडीए की ओटीएस स्कीम, ऑनलाइन करें आवेदन

इन छोटे-छोटे दानों को उन आयतकार टुकड़ों के बाहर से चिपकाया जाता है. फिर भुने हुए पोस्ते को आपस में मिलाकर बाल मिठाई में लगने वाले दाने बनाये जाते हैं, जिन्हें बाल दाने के नाम से जाना जाता है.

पीएम मोदी भी ले चुके हैं इस मिठाई का आनंद

बाल मिठाई के बारे में कहा जाता है कि एक बार इसका स्वाद किसी की जवान पर चढ़ जाए तो वो फिर इसे भूला नहीं पाता. पीएम मोदी भी अल्मोड़ा की इस मिठाई का आनंद ले चुके हैं. उन्होंने कोरोनाकाल के दौरान जब हल्द्वानी निवासी पूरन चंद्र शर्मा से बात की थी तो कहा था कि वे बाल मिठाई का स्वाद एक बार फिर से लेना चाहते हैं.

150 साल पुराना है मिठाई का इतिहास

इस मिठाई का इतिहास डेढ़ सौ साल से अधिक पुराना है. अल्मोड़ा में बाल मिठाई के अविष्कारक हलवाई स्व. जोगा लाल शाह माने जाते हैं. जोगा लाल शाह ने 1857 में इस मिठाई का निर्माण ब्रिटिश शासन काल में शुरू किया था. धीरे धीरे इस मिठाई ने अपनी पहचान बनानी शुरू की.

उन दिनों ब्रिटिश भी यहां की मिठाई को पसंद करते थे. वे बाल मिठाई को पानी के जहाजों के माध्यम से इंग्लैंड ले जाते थे. आज यह मिठाई न केवल अपने देश में प्रसिद्ध है वरन यह विदेशों में भी आज अपनी पहचान बना चुकी है.

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