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अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी में गूंजने लगी बैठकी होली की स्वरलहरियां, 150 साल पुरानी है परम्परा

सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की बैठकी-होली का इतिहास 150 साल से भी ज्यादा पुराना है. पौष माह के पहले रविवार से गणपति वंदना के साथ ही बैठकी होली की शुरूआत होती है. हाडकपाने वाली ठंड में भी होली गीतों के रसिक बैठकी-होली गायन में देर रात्रि तक उत्साहपूर्वक भागीदारी करते हैं.

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बैठकी होली
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Published : Dec 30, 2019, 2:44 PM IST

Updated : Jan 4, 2020, 7:20 PM IST

अल्मोड़ा: आमतौर पर देशभर में होली फरवरी- मार्च यानी फाल्गुन से शुरू होती है, लेकिन कुमाऊं क्षेत्र में बैठकी-होली पौष माह के हाड़ कंपा देने वाली ठंड में शुरू हो जाती है. यह होली शास्त्रीय संगीत पर आधारित होली है. कुमाऊं में होली गायन की परंपरा ऐतिहासिक सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई, जिसके बाद कुमाऊं के अन्य जगहों पर होली गायन की परंपरा शुरू हुई.

बैठकी होली

जानिए क्या है इस होली की विशेषता:
सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की इस बैठकी-होली का इतिहास 150 साल से भी अधिक पुराना है. पौष माह के पहले रविवार से गणपति वंदना के साथ ही बैठकी होली शुरू हो जाती है. कड़ाके की ठंड में भी होली गीतों के रसिक इस बैठकी होली गायन में देर रात्रि तक उत्साहपूर्वक भागीदारी करते हैं. इन दिनों देर रात तक अल्मोड़ा में होली की महफिलें सज रही है. यह होली पूरे तीन महीनों तक चलेगी.

इसके साथ ही इस होली की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि यह शास्त्रीय रागों पर आधारित होती है वहीं यह होली शिवरात्रि तक बिना रंगों के सिर्फ संगीत के साथ मनाई जाती है. सायं होते ही संगीत प्रेमियों द्वारा अपने अपने घरों में शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी-होली का गायन शुरू हो जाता है. इस होली की एक खास बात यह है कि इस होली में न केवल हिन्दु धर्म के लोग हिस्सेदारी करते हैं, बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं.

क्या है इस होली का इतिहास:
जानकारों के अनुसार कुमाऊं में होली गीतों के गायन की परम्परा सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से 1860 में शुरू हुई थी. इस होली में गायी जाने वाली बंदिशे विभिन्न रागों पर आधारित होती हैं, जो समय के अनुसार गाये जाते हैं. बैठकी-होली में गाये जाने वाले गानों का एक तरीका होता है जो कि राग काफी, जंगला काफी, खमाज, देश, विहाग, जैजेवन्ती, जोगिया आदि रागों में होली के पद गाये जाते हैं. होली रसिक बताते है कि अब कुछ नये रागों पर भी होली के पद गाये जाने की परम्परा नई पीढ़ी ने शुरू कर दी है.

इसके साथ कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि चन्द राजाओं की राजधानी रही अल्मोड़ा में चन्द राजाओं के समय से ही संगीत का खासा असर रहा है, क्योंकि संगीत राजघरानों से ही निकलकर आता था. चन्द राजा भी संगीत के खासा शौकीन थे. इसलिए अल्मोड़ा में उस दौर के प्रख्यात शास्त्रीय गायक अमानत अली खां और ठुमरी गायिका राम प्यारी ने इस गायकी को लेकर यहां आए थे. उस समय में अल्मोड़ा के संगीत प्रेमियों ने उनसे संगीत सीखकर गाने लगे और तब से ही यहां शास्त्रीय संगीत पर आधारित इस अनोखी परम्परा की शुरूआत हुई.

ये भी पढ़ें: यूनिवर्सिटी में लगातार घट रही कुमाऊंनी भाषा के छात्रों की संख्या, अभीतक नहीं हो पाई स्थाई नियुक्ति

अल्मोड़ा में बैठकी होली गायन कई चरणों में पूरा होता है. पहला चरण पौष मास के प्रथम रविवार से बसंत पंचमी तक चलता है इसमें निर्वाण पद गाए जाते हैं. जिसे आध्यात्मिक होली भी कहा जाता है. जिसमें गणेश वंदना से शुरूआत करके सूरदास की रचना, कबीर, तुलसीदास समेत कई रागों के गीत गाये जाते हैं. उसके बाद बसंत पंचमी से महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व तक श्रृंगारिक होली में भगवान कृष्ण के प्रेम गीतों का गायन किया जाता है. तीसरे चरण में महाशिवरात्रि से रंगों से युक्त एवं हंसी मजाक व ठिठोली युक्त गीतों का गायन होता है.

अल्मोड़ा के हुक्का क्लब एवं त्रिपुरा सुन्दरी नवयुवक कला केन्द्र सहित कई जगहों में पौष माह के पहले रविवार से इसका आयोजन लगातार जारी है, जो कि छलड़ी तक चलेगा.

अल्मोड़ा: आमतौर पर देशभर में होली फरवरी- मार्च यानी फाल्गुन से शुरू होती है, लेकिन कुमाऊं क्षेत्र में बैठकी-होली पौष माह के हाड़ कंपा देने वाली ठंड में शुरू हो जाती है. यह होली शास्त्रीय संगीत पर आधारित होली है. कुमाऊं में होली गायन की परंपरा ऐतिहासिक सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई, जिसके बाद कुमाऊं के अन्य जगहों पर होली गायन की परंपरा शुरू हुई.

बैठकी होली

जानिए क्या है इस होली की विशेषता:
सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की इस बैठकी-होली का इतिहास 150 साल से भी अधिक पुराना है. पौष माह के पहले रविवार से गणपति वंदना के साथ ही बैठकी होली शुरू हो जाती है. कड़ाके की ठंड में भी होली गीतों के रसिक इस बैठकी होली गायन में देर रात्रि तक उत्साहपूर्वक भागीदारी करते हैं. इन दिनों देर रात तक अल्मोड़ा में होली की महफिलें सज रही है. यह होली पूरे तीन महीनों तक चलेगी.

इसके साथ ही इस होली की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि यह शास्त्रीय रागों पर आधारित होती है वहीं यह होली शिवरात्रि तक बिना रंगों के सिर्फ संगीत के साथ मनाई जाती है. सायं होते ही संगीत प्रेमियों द्वारा अपने अपने घरों में शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी-होली का गायन शुरू हो जाता है. इस होली की एक खास बात यह है कि इस होली में न केवल हिन्दु धर्म के लोग हिस्सेदारी करते हैं, बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं.

क्या है इस होली का इतिहास:
जानकारों के अनुसार कुमाऊं में होली गीतों के गायन की परम्परा सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से 1860 में शुरू हुई थी. इस होली में गायी जाने वाली बंदिशे विभिन्न रागों पर आधारित होती हैं, जो समय के अनुसार गाये जाते हैं. बैठकी-होली में गाये जाने वाले गानों का एक तरीका होता है जो कि राग काफी, जंगला काफी, खमाज, देश, विहाग, जैजेवन्ती, जोगिया आदि रागों में होली के पद गाये जाते हैं. होली रसिक बताते है कि अब कुछ नये रागों पर भी होली के पद गाये जाने की परम्परा नई पीढ़ी ने शुरू कर दी है.

इसके साथ कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि चन्द राजाओं की राजधानी रही अल्मोड़ा में चन्द राजाओं के समय से ही संगीत का खासा असर रहा है, क्योंकि संगीत राजघरानों से ही निकलकर आता था. चन्द राजा भी संगीत के खासा शौकीन थे. इसलिए अल्मोड़ा में उस दौर के प्रख्यात शास्त्रीय गायक अमानत अली खां और ठुमरी गायिका राम प्यारी ने इस गायकी को लेकर यहां आए थे. उस समय में अल्मोड़ा के संगीत प्रेमियों ने उनसे संगीत सीखकर गाने लगे और तब से ही यहां शास्त्रीय संगीत पर आधारित इस अनोखी परम्परा की शुरूआत हुई.

ये भी पढ़ें: यूनिवर्सिटी में लगातार घट रही कुमाऊंनी भाषा के छात्रों की संख्या, अभीतक नहीं हो पाई स्थाई नियुक्ति

अल्मोड़ा में बैठकी होली गायन कई चरणों में पूरा होता है. पहला चरण पौष मास के प्रथम रविवार से बसंत पंचमी तक चलता है इसमें निर्वाण पद गाए जाते हैं. जिसे आध्यात्मिक होली भी कहा जाता है. जिसमें गणेश वंदना से शुरूआत करके सूरदास की रचना, कबीर, तुलसीदास समेत कई रागों के गीत गाये जाते हैं. उसके बाद बसंत पंचमी से महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व तक श्रृंगारिक होली में भगवान कृष्ण के प्रेम गीतों का गायन किया जाता है. तीसरे चरण में महाशिवरात्रि से रंगों से युक्त एवं हंसी मजाक व ठिठोली युक्त गीतों का गायन होता है.

अल्मोड़ा के हुक्का क्लब एवं त्रिपुरा सुन्दरी नवयुवक कला केन्द्र सहित कई जगहों में पौष माह के पहले रविवार से इसका आयोजन लगातार जारी है, जो कि छलड़ी तक चलेगा.

Intro:आमतौर पर देशभर में होली फरवरी- मार्च यानि फाल्गुन से शुरू होती है लेकिन देवभूमि उत्तराखण्ड के कुमाऊॅ क्षेत्र में बैठकी होली पौष माह के हाड़कपा देने वाली ठण्ड से शुरू हो जाती है। इस होली की खासियत यह है कि यह होली शास्त्रीय संगीत पर आधारित होली होती है। उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को इस बैठकी होली का उद्गम स्थल माना जाता है। पहले यह होली गायन की परम्परा अल्मोड़ा से ही शुरू हुई थी, लेकिन धीरे धीरे अब कुमाऊॅ के अन्य हिस्सों में भी गायी जाने लगी है। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में इस बैठकी होली का इतिहास 150 साल से भी अधिक समय का है। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में पौष माह के पहले रविवार से गणपति वंदना के साथ ही बैठकी होली शुरू हो जाती है। कड़ाके की ठण्ड में भी होली गीतों के रसिक इस बैठकी होली गायन में देर रात्रि तक उत्साहपूर्वक भागीदारी करते हैं। इन दिनों देर रात तक अल्मोड़ा में होली की महफिलें सज रही है। यह होली पूरे तीन महीनों तक चलेगी।

Body:इस होली की विशेषता शास्त्रीय रागों पर आधारित तो है ही वहीं इस होली की एक विशेषता यह है कि यह होली शिवरात्रि तक बिना रंगों के सिर्फ संगीत की होली होती है। सांय होते ही संगीत प्रेमियों द्वारा अपने अपने घरों में शास्त्रीय रागो पर आधारित बैठकी होली का गायन शुरू हो जाता है। इन दिनों सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के हुक्का क्लब एवं त्रिपुरा सुन्दरी नव युवक कला केन्द्र सहित कई जगहों में पौष माह के पहले रविवार से इसका आयोजन लगातार जारी है जो छलड़ी तक चलेगा।

जानकारों के अनुसार कुमाऊॅ में होली गीतों के गायन की परंपरा सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुआ। जानकार बताते हैं इस होली की शुरूआत अल्मोड़़ा में 1860 में इसकी शुरूआत की थी। और इस होली की एक खास बात यह है कि इस होली में न केवल हिन्दु धर्म के लोग हिस्सेदारी करते हैं बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी ब़ढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। होली में गायी जाने वाली बंदिशे विभिन्न रागो पर आधारित होती है जो समय के अनुसार गाये जाते है। बैठक में होली को गाये जाने का एक तरीका है। राग काफी, जंगला काफी, खमाज, देश, विहाग, जैजेवन्ती, जोगिया आदि रागो में होली के पद गाये जाते रहे है। होली रसिक बताते है कि अब कुछ नये रागो पर भी होली के पद गाये जाने की परम्परा नई पीड़ी ने शुरू कर दी है।
कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि चन्द राजाओं की राजधानी रही अल्मोड़ा में चन्द राजाओं के समय से ही संगीत का खासा असर रहा है। क्योंकि संगीत राजघरानों से ही निकलकर आता था चन्द राजा भी संगीत के खासा शौकीन थे। अल्मोड़ा में उस दौर के प्रख्यात शास्त्रीय गायक अमानत अली खां और ठुमरी गायिका राम प्यारी इस गायकी को लेकर यहां आए थे उस समय में अल्मोडा के संगीत प्रेमियों ने उनसे संगीत सीखा। तब से ही यहां शास्त्रीय संगीत पर आधारित इस अनोखी परम्परा की शुरूआत हुई।


अल्मोड़ा में होली गायन कई चरणों में पूरा होता है। पहला चरण पौष मास के प्रथम रविवार से बसंत पंचमी तक निर्वाण पद गाए जाते हैं। जिसे अध्यात्मिक होली भी कहा जाता है जिसमें गणेश वंदना से शुरू होकर सूरदास की रचना, कबीर, तुलसीदास समेत कई रागों में गाई जाती है। उसके बाद बसंत पंचमी से महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व तक श्रृगारिक होली जैसे भगवान कृष्ण का प्रेम गीतों का गायन किया जाता है। तीसरे चरण में महाशिवरात्रि से रंगों से युक्त एवं हंसी मजाक व ठिठौली युक्त गीतों का गायन होता है।

बाइट अनिल सनवाल, रंगकर्मी
Conclusion:
Last Updated : Jan 4, 2020, 7:20 PM IST
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