अल्मोड़ा: दर्जनों कलात्मक पुतलों के लिए देशभर में प्रसिद्ध अल्मोड़ा का दशहरा व रामलीला के आयोजन पर इस बार कोरोना का असर पड़ा है. अल्मोड़ा में जहां इस बार वर्चुअल रामलीला होगी. वहीं, मात्र एक पुतला बनाकर दशहरा पर्व की रस्म अदायगी की जाएगी.
हिमांचल के कुल्लू के दशहरे के बाद देशभर में उत्तराखंड के अल्मोड़ा का दशहरा काफी प्रसिद्ध दशहरा माना जाता है. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के दशहरे की खासियत यह है कि यहां मुहल्लों से रावण परिवार के दर्जनों की संख्या में विशालकाय कलात्मक पुतले बनाये जाते हैं, जो आकर्षण का केंद्र रहते हैं.
अल्मोड़ा नगर पालिका के अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी बताते हैं कि कुमाऊं में सबसे पहले रामलीला की शुरूआत बद्रेश्वर मंदिर से साल 1860 में हुई थी. रामलीला के समापन पर दशहरे के दिन पहले मात्र रावण का पुतला बनता था. माना जाता है कि दशहरे में साल 1865 में सबसे पहले रावण का पुतला बना था. उसके बाद धीरे-धीरे पुतलों की संख्या बढ़ती गई.
प्रकाश चंद्र जोशी के मुताबिक, इस बार कोरोना संकट के कारण इस साल रामलीला के आयोजन पर असर पड़ा है. इस वर्ष अल्मोड़ा में सिर्फ दो जगहों पर बिना दर्शकों के रामलीला का आयोजन होगा. वहीं सिर्फ रावण के एक पुतले के साथ दशहरा पर्व की रस्म अदायगी होगी.
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एसडीएम सीमा विश्वकर्मा ने बताया कि रामलीला कमेटी व जिला प्रशासन के बीच हुई बैठक में यह तय हुआ है कि इस वर्ष कोविड के कारण सिर्फ दो जगहों कर्नाटक खोला और नंदादेवी में रामलीला की अनुमति मिली है. कर्नाटक खोला में वर्चुअल रामलीला आयोजित की जाएगी, नंदादेवी में सिर्फ नवमी के दिन बिना दर्शकों के ढाई घंटे की रामलीला का मंचन होगा.