अल्मोड़ा: पहाड़ की समस्याएं भी पहाड़ जैसी ही हैं. सामरिक महत्व के बंद पड़े गांवों की हालत को देख हर किसी का दिल पसीज जाता है. लेकिन इन गांवों की तस्वीर को देखकर मानों ऐसा लगता है कि यहां के नुमाइंदों की आवाज सरकार के कानों तक नहीं पहुंच पा रही है. जिससे लोग पलायन करने को विवश है. जिनके दिलों में अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ने का दर्द हमेशा साफ झलकता है.
ETV भारत ने पहाड़ से हो रहे पलायन को लेकर एक मुहिम शुरू की है. जिसका मकसद पहाड़ों में बंद पड़े दरवाजे को फिर से खोलना है, ताकी वीरान और भुतहा पड़े गांवों को 'अपने' मिल सकें. ETV भारत की इस मुहिम का मकसद सूने पड़े गांवों को फिर से बसाने का है. अपने खेत-खलिहान, गली-कूचे छोड़ चुके लोगों को फिर से उन्हीं रास्तों से जोड़ने का है.
कहा जाता है भारत गांवों में बसता है, लेकिन जो तस्वीर उत्तराखंड के गांवों में देखने को मिल रही है उनसे तो ऐसा नहीं लगता. प्रदेश के कई गांवों में तेजी से पलायन हुआ है. पलायन आयोग की रिपोर्ट में पौड़ी के बाद दूसरा नंबर अल्मोड़ा जिले का है, जहां से पलायन तेजी से हुआ है.
अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा बड़चुरा गांव के ग्रामीण आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी सड़क सुविधा से महरूम हैं. जिन्हें रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए मीलों का सफर तय करना पड़ता है. वहीं, हॉस्पिटल की बात की जाए तो बीमार लोगों को डोली के सहारे मीलों का सफर तय कर सड़क तक पहुंचाया जाता है. कई बार तो गंभीर मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. जो इस गांव वालों की नियति बन गई है. ग्रामीण रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए शहरों का रुख कर रहे हैं. कुछ बुजुर्ग रहते भी हैं तो उनकी आंखें अपनों को तलाशती दिखाई देती हैं. बता दें कि बीते दिन बड़चुरा गांव में इसकी बानगी देखने को मिली. जहां एक बीमार महिला को डोली के सहारे ग्रामीणों ने मीलों का सफर तय कर हॉस्पिटल तक पहुंचाया.
कई बार क्षेत्र के ग्रामीण डबल इंजन की सरकार से गांव की बुनियादी सुविधाओं के बारे में अवगत करा चुके हैं. लेकिन शासन-प्रशासन के उदासीन रवैये से गांव की समस्याएं जस की तस बनी हुई है. ये सिर्फ अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा के बड़चुरा गांव की बात नहीं है, प्रदेश में ऐसे कई गांव हैं जहां विकास की चिंगारी आज तक नहीं पहुंची है. जहां सरकार पलायन पर लकीर पीट रही है वहीं पलायन को लेकर कारगर कार्ययोजना न होने से ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपनी बदहाली के आंसू रो रहे हैं. जो सरकार को दिखाई नहीं दे रहे हैं.