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देवभूमि में पलायन के दर्द से सुबक रहे गांव, लोग कर रहे बेहतर दिन लौटने का इंतजार - Special Story

Etv भारत ने पहाड़ से हो रहे पलायन को लेकर एक मुहिम शुरू की है. जिसका मकसद पहाड़ों में फिर से बंद पड़े दरवाजे खुल सकें, वीरान और भुतहा पड़े गांवों को 'अपने' मिल सकें. Etv भारत की इस मुहिम का मकसद सूने पड़े गांवों को फिर से बसाने का है.

देवभूमि में पलायन के दर्द से सुबक रहे गांव.
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Published : Jul 4, 2019, 4:04 PM IST

अल्मोड़ा: पहाड़ की समस्याएं भी पहाड़ जैसी ही हैं. सामरिक महत्व के बंद पड़े गांवों की हालत को देख हर किसी का दिल पसीज जाता है. लेकिन इन गांवों की तस्वीर को देखकर मानों ऐसा लगता है कि यहां के नुमाइंदों की आवाज सरकार के कानों तक नहीं पहुंच पा रही है. जिससे लोग पलायन करने को विवश है. जिनके दिलों में अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ने का दर्द हमेशा साफ झलकता है.

देवभूमि में पलायन के दर्द से सुबक रहे गांव.

ETV भारत ने पहाड़ से हो रहे पलायन को लेकर एक मुहिम शुरू की है. जिसका मकसद पहाड़ों में बंद पड़े दरवाजे को फिर से खोलना है, ताकी वीरान और भुतहा पड़े गांवों को 'अपने' मिल सकें. ETV भारत की इस मुहिम का मकसद सूने पड़े गांवों को फिर से बसाने का है. अपने खेत-खलिहान, गली-कूचे छोड़ चुके लोगों को फिर से उन्हीं रास्तों से जोड़ने का है.

कहा जाता है भारत गांवों में बसता है, लेकिन जो तस्वीर उत्तराखंड के गांवों में देखने को मिल रही है उनसे तो ऐसा नहीं लगता. प्रदेश के कई गांवों में तेजी से पलायन हुआ है. पलायन आयोग की रिपोर्ट में पौड़ी के बाद दूसरा नंबर अल्मोड़ा जिले का है, जहां से पलायन तेजी से हुआ है.

अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा बड़चुरा गांव के ग्रामीण आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी सड़क सुविधा से महरूम हैं. जिन्हें रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए मीलों का सफर तय करना पड़ता है. वहीं, हॉस्पिटल की बात की जाए तो बीमार लोगों को डोली के सहारे मीलों का सफर तय कर सड़क तक पहुंचाया जाता है. कई बार तो गंभीर मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. जो इस गांव वालों की नियति बन गई है. ग्रामीण रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए शहरों का रुख कर रहे हैं. कुछ बुजुर्ग रहते भी हैं तो उनकी आंखें अपनों को तलाशती दिखाई देती हैं. बता दें कि बीते दिन बड़चुरा गांव में इसकी बानगी देखने को मिली. जहां एक बीमार महिला को डोली के सहारे ग्रामीणों ने मीलों का सफर तय कर हॉस्पिटल तक पहुंचाया.

कई बार क्षेत्र के ग्रामीण डबल इंजन की सरकार से गांव की बुनियादी सुविधाओं के बारे में अवगत करा चुके हैं. लेकिन शासन-प्रशासन के उदासीन रवैये से गांव की समस्याएं जस की तस बनी हुई है. ये सिर्फ अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा के बड़चुरा गांव की बात नहीं है, प्रदेश में ऐसे कई गांव हैं जहां विकास की चिंगारी आज तक नहीं पहुंची है. जहां सरकार पलायन पर लकीर पीट रही है वहीं पलायन को लेकर कारगर कार्ययोजना न होने से ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपनी बदहाली के आंसू रो रहे हैं. जो सरकार को दिखाई नहीं दे रहे हैं.

अल्मोड़ा: पहाड़ की समस्याएं भी पहाड़ जैसी ही हैं. सामरिक महत्व के बंद पड़े गांवों की हालत को देख हर किसी का दिल पसीज जाता है. लेकिन इन गांवों की तस्वीर को देखकर मानों ऐसा लगता है कि यहां के नुमाइंदों की आवाज सरकार के कानों तक नहीं पहुंच पा रही है. जिससे लोग पलायन करने को विवश है. जिनके दिलों में अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ने का दर्द हमेशा साफ झलकता है.

देवभूमि में पलायन के दर्द से सुबक रहे गांव.

ETV भारत ने पहाड़ से हो रहे पलायन को लेकर एक मुहिम शुरू की है. जिसका मकसद पहाड़ों में बंद पड़े दरवाजे को फिर से खोलना है, ताकी वीरान और भुतहा पड़े गांवों को 'अपने' मिल सकें. ETV भारत की इस मुहिम का मकसद सूने पड़े गांवों को फिर से बसाने का है. अपने खेत-खलिहान, गली-कूचे छोड़ चुके लोगों को फिर से उन्हीं रास्तों से जोड़ने का है.

कहा जाता है भारत गांवों में बसता है, लेकिन जो तस्वीर उत्तराखंड के गांवों में देखने को मिल रही है उनसे तो ऐसा नहीं लगता. प्रदेश के कई गांवों में तेजी से पलायन हुआ है. पलायन आयोग की रिपोर्ट में पौड़ी के बाद दूसरा नंबर अल्मोड़ा जिले का है, जहां से पलायन तेजी से हुआ है.

अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा बड़चुरा गांव के ग्रामीण आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी सड़क सुविधा से महरूम हैं. जिन्हें रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए मीलों का सफर तय करना पड़ता है. वहीं, हॉस्पिटल की बात की जाए तो बीमार लोगों को डोली के सहारे मीलों का सफर तय कर सड़क तक पहुंचाया जाता है. कई बार तो गंभीर मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. जो इस गांव वालों की नियति बन गई है. ग्रामीण रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए शहरों का रुख कर रहे हैं. कुछ बुजुर्ग रहते भी हैं तो उनकी आंखें अपनों को तलाशती दिखाई देती हैं. बता दें कि बीते दिन बड़चुरा गांव में इसकी बानगी देखने को मिली. जहां एक बीमार महिला को डोली के सहारे ग्रामीणों ने मीलों का सफर तय कर हॉस्पिटल तक पहुंचाया.

कई बार क्षेत्र के ग्रामीण डबल इंजन की सरकार से गांव की बुनियादी सुविधाओं के बारे में अवगत करा चुके हैं. लेकिन शासन-प्रशासन के उदासीन रवैये से गांव की समस्याएं जस की तस बनी हुई है. ये सिर्फ अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा के बड़चुरा गांव की बात नहीं है, प्रदेश में ऐसे कई गांव हैं जहां विकास की चिंगारी आज तक नहीं पहुंची है. जहां सरकार पलायन पर लकीर पीट रही है वहीं पलायन को लेकर कारगर कार्ययोजना न होने से ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपनी बदहाली के आंसू रो रहे हैं. जो सरकार को दिखाई नहीं दे रहे हैं.

Intro:उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में सड़क, स्वस्थ्य , शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण यहाँ के लोग लगातार पलायन को मजबूर हो रहे हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट में इस बार भी पौड़ी के बाद दूसरा नंबर अल्मोड़ा जिले का है जहां से पलायन ज्यादा हो रहा है। अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा बड़चुरा के ग्रामीण आजादी के 70 साल से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी सड़क से नही जुड़ पाए हैं यही कारण है कि गांव में बीमार व्यक्तियों को आज भी डोली के सहारे कई किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल ले जाया जाता है। Body:सल्ट विधानसभा के दुर्गम गांव बड़चुरा की एक तस्वीर सामने आई है जो सरकारों द्वारा विकास नाम पर पीटे जा रहे ढोल की पोल खोलने के काफी है। इस तस्वीर को देखकर अन्दाजा लगा सकते है कि यहाँ के लोगों की जिदंगी कितनी कठिन है। सल्ट के दुर्गम गांव बड़चुरा के ग्रामीण एक महिला के बीमार होने पर उसे गांव के ऊबड़ खाबड़ रास्तो से डोली के सहारे कई किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल ले जा रहे हैं और ग्रामीण बार बार उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार और स्थानीय विधायको को कोसते हुए इस क्षेत्र की सुध लेने की गुहार लगा रहे है। यही हालत उत्तराखंड के अन्य गांवों की भी है। आजादी के सात दशक से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी आज उत्तराखंड के कई गांवों में आज तक सड़क नही पहुच पाई है । जनता जनप्रतिनिधियों से कहते कहते थक गई लेकिन सड़क आज तक नही पहुच पाई जिस कारण जनता पहाड़ो से पलायन को मजबूर है।Conclusion:
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