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झोपड़ी में रहती है उत्तराखंड की पहली इंटरनेशनल रग्बी प्लेयर, मेडल जीतने के बाद भी ठेले पर बेच रही चाय!

International rugby player Saloni is selling tea उत्तराखंड की पहली इंटरनेशनल रग्बी खिलाड़ी सलोनी आज भी झुग्गी झोपड़ी में रह रही है. सलोनी ने इसी साल सितंबर के आखिर में ताइवान में हुई इंटरनेशनल रग्बी चैंपियनशिप में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता था. टीम का नसीब बदलने वाली सलोनी अपनी आर्थिक हालत नहीं बदल पाई है.

International rugby player Saloni is selling tea
उत्तराखंड प्लेयर समाचार
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 8, 2023, 11:18 AM IST

Updated : Nov 8, 2023, 3:27 PM IST

इंटरनेशनल रग्बी प्लेयर सलोनी की कहानी

देहरादून (उत्तराखंड): रुड़की में एक झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली सलोनी ने ना केवल गरीबी और अभाव की तमाम पराकाष्ठाओं को लांघा है, बल्कि मात्र 17 साल की सलोनी धानिया ने अपने कठिन परिश्रम और मेहनत के दम पर उत्तराखंड की पहली इंटरनेशनल रग्बी खिलाड़ी का गौरव हासिल किया है. सलोनी उस भारती टीम की सदस्य रही जिसने 31 सितंबर से 1 अक्टूबर तक ताइवान में हुई इंटरनेशनल रग्बी चैंपियनशिप में U-18 आयु वर्ग में सिल्वर मेडल हासिल किया. इससे सलोनी ने ना केवल उत्तराखंड का नाम रोशन किया, बल्कि देश का भी मान बढ़ाया है.

rugby player Saloni
सलोनी रग्बी खिलाड़ी हैं

इंटरनेशनल रग्बी खिलाड़ी ठेले पर बेच रही चाय: लेकिन अफसोस इस बात का है कि देश के लिए अंतराष्ट्रीय मंच पर सिल्वर मेडल हासिल करने के बाद भी सलोनी वापस अपने ठेले पर चाय ही बेच रही है. सलोनी अपनी पढ़ाई के साथ साथ अपनी माता सुदेश के साथ ठेले पर चाय बेचने में मदद करती है. सलोनी के पापा ई-रिक्शा चालक हैं और परिवार की आमदनी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पिछले कई महीनों से सलोनी के पिता के पास पैसे ना होने की वजह से वो अपने ई-रिक्शा की बैटरी नहीं बदलवा पाए और उनका रिक्शा खड़ा है. इस कारण इन दिनों वो मजदूरी कर रहे हैं.

rugby player Saloni
सलोनी उत्तराखंड की पहली इंटरनेशनल रग्बी खिलाड़ी हैं

सलोनी मेडल लेकर आई तो फोटो खिंचवाने वालों का लगा था तांता: समाज का स्वार्थीपन इतना है कि जब सलोनी ताइवान से देश के लिए सिल्वर मेडल जीत कर लाई थी, तो उनके स्वागत में फोटो सेशन करने वालो ने खूब पलक पांवड़े बिछाए. लेकिन मदद के लिए कम ही लोग सामने आये. सलोनी की मदद के नाम पर रुड़की के मेयर ने 51 सौ रुपए दिए. एक कोचिंग सेंटर के बच्चों ने मिलकर कुछ हजार और रोटरी क्लब के अलावा कुछ लोगों ने व्यक्तिगत रूप से मदद कर दी.

rugby player Saloni
सलोनी के पास इंटरनेशनल मेडल है

आगे बढ़ने को कड़ी मेहनत कर रही सलोनी: बहरहाल सलोनी की जिंदगी भले ही उसी ढर्रे पर है, लेकिन सलोनी के सपने अभी भी उड़ान भर रहे हैं. सलोनी के रग्बी कोच आयुष सैनी ने बताया की कक्षा 11वीं की छात्रा सलोनी सुबह 5 बजे उठ कर 7:30 बजे तक रग्बी प्रेक्टिस करती है. उसके बाद कुछ घर के काम निपटाने के बाद शाम 3:30 बजे तक स्कूल में रहती है.

rugby player Saloni
मेडल जीतने वाली सलोनी के साथ हरिद्वार सांसद निशंक

प्रैक्टिस के बाद चाय बेचती है सलोनी: शाम को अपनी झोपड़ी के ऊपर सड़क की तरफ बनी ठेली पर चाय बेचने में अपनी मां की मदद करती है. सलोनी के परिवार में उसके माता-पिता और पांच भाई-बहन हैं. उसके पिता ई-रिक्शा चलाकर मामूली आय अर्जित करते थे, जो इन दिनों बंद है. ऐसे में सलोनी का परिवार आर्थिक रूप से बड़ा संघर्ष कर रहा है.

rugby player Saloni
आर्थिक तंगी के बावजूद सलोनी रोज प्रैक्टिस करती हैं

सलोनी ने क्या कहा: ईटीवी भारत से बात करते हुए सलोनी ने बताया कि वो अपनी झुग्गी के पास मौजूद सोनाली नदी पार्क में रग्बी की प्रैक्टिस करती है. उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में उनका इंडिया कैंप में उत्तराखंड के कुछ और लड़कियों के साथ चयन हुआ था. वो चयन प्रक्रिया में वह आखिरी राउंड तक बची रहीं. फिर उनका इंटरनेशनल के लिए चयन हुआ. फिर एशियन चैंपियनशिप में उनकी टीम ने सिल्वर मेडल जीता.

rugby player Saloni
सलोनी के मेडल जीतने पर फोटो खिंचवाने वालों की होड़ रहती है.

आर्थिक दिक्कतों के बाद भी सलोनी के साथ खड़ा है परिवार: अपने परिवार के आर्थिक हालातों के बारे में सलोनी ने बताया कि परेशानियां तो सभी परिवारों में होती हैं, लेकिन गरीब परिवार में ये परेशानियां थोड़ा ज्यादा दुखदाई होती हैं. सलोनी ने बताया कि तमाम परेशानियों के बावजूद भी उनके परिवार ने उन्हें रग्बी खेल में आगे बढ़ने के लिए सपोर्ट किया. साथ ही उनके कोच आयुष सैनी ने उन्हें निशुल्क ट्रेनिंग दी. उन्होंने भी अपनी पूरी ताकत इस खेल में झोंक दी. उनकी कोशिश है कि अगली बार उनकी टीम गोल्ड मेडल लाए.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड के लाल ने तंगहाली को नहीं आने दिया आड़े, गोवा 37वें राष्ट्रीय खेलों में जीता गोल्ड, रुला देगी पिता की संघर्ष की कहानी

सलोनी के कोच ने क्या कहा: सलोनी के कोच आयुष सैनी जो कि उत्तराखंड हैंड रग्बी एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष हैं, ने बताया कि सलोनी बहुत अच्छा खेल रही है. बस उसे थोड़ा फाइनेंशियल सपोर्ट की जरूरत है. उन्होंने बताया कि सलोनी की गोल्ड मेडल के साथ जब वापसी हुई थी तो कई छोटे बड़े नेता उनसे मिलने और फोटो खिंचवाने पहुंचे थे. लेकिन यह केवल सोशल मीडिया का कंटेंट बन कर रह गया. किसी ने बड़ी आर्थिक मदद का हाथ नहीं बढ़ाया. उन्होंने बताया कि वह खेल विभाग के लिए सलोनी के सभी डॉक्यूमेंट्स तैयार कर रहे हैं. अगले साल होने वाले नेशनल गेम्स में भी सलोनी प्रतिभाग करेगी.
ये भी पढ़ें: पीठ पर घास का गट्ठर लादे पहाड़ पर हवा से बातें करती है ये लड़की, सोशल मीडिया पर हुई वायरल

इंटरनेशनल रग्बी प्लेयर सलोनी की कहानी

देहरादून (उत्तराखंड): रुड़की में एक झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली सलोनी ने ना केवल गरीबी और अभाव की तमाम पराकाष्ठाओं को लांघा है, बल्कि मात्र 17 साल की सलोनी धानिया ने अपने कठिन परिश्रम और मेहनत के दम पर उत्तराखंड की पहली इंटरनेशनल रग्बी खिलाड़ी का गौरव हासिल किया है. सलोनी उस भारती टीम की सदस्य रही जिसने 31 सितंबर से 1 अक्टूबर तक ताइवान में हुई इंटरनेशनल रग्बी चैंपियनशिप में U-18 आयु वर्ग में सिल्वर मेडल हासिल किया. इससे सलोनी ने ना केवल उत्तराखंड का नाम रोशन किया, बल्कि देश का भी मान बढ़ाया है.

rugby player Saloni
सलोनी रग्बी खिलाड़ी हैं

इंटरनेशनल रग्बी खिलाड़ी ठेले पर बेच रही चाय: लेकिन अफसोस इस बात का है कि देश के लिए अंतराष्ट्रीय मंच पर सिल्वर मेडल हासिल करने के बाद भी सलोनी वापस अपने ठेले पर चाय ही बेच रही है. सलोनी अपनी पढ़ाई के साथ साथ अपनी माता सुदेश के साथ ठेले पर चाय बेचने में मदद करती है. सलोनी के पापा ई-रिक्शा चालक हैं और परिवार की आमदनी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पिछले कई महीनों से सलोनी के पिता के पास पैसे ना होने की वजह से वो अपने ई-रिक्शा की बैटरी नहीं बदलवा पाए और उनका रिक्शा खड़ा है. इस कारण इन दिनों वो मजदूरी कर रहे हैं.

rugby player Saloni
सलोनी उत्तराखंड की पहली इंटरनेशनल रग्बी खिलाड़ी हैं

सलोनी मेडल लेकर आई तो फोटो खिंचवाने वालों का लगा था तांता: समाज का स्वार्थीपन इतना है कि जब सलोनी ताइवान से देश के लिए सिल्वर मेडल जीत कर लाई थी, तो उनके स्वागत में फोटो सेशन करने वालो ने खूब पलक पांवड़े बिछाए. लेकिन मदद के लिए कम ही लोग सामने आये. सलोनी की मदद के नाम पर रुड़की के मेयर ने 51 सौ रुपए दिए. एक कोचिंग सेंटर के बच्चों ने मिलकर कुछ हजार और रोटरी क्लब के अलावा कुछ लोगों ने व्यक्तिगत रूप से मदद कर दी.

rugby player Saloni
सलोनी के पास इंटरनेशनल मेडल है

आगे बढ़ने को कड़ी मेहनत कर रही सलोनी: बहरहाल सलोनी की जिंदगी भले ही उसी ढर्रे पर है, लेकिन सलोनी के सपने अभी भी उड़ान भर रहे हैं. सलोनी के रग्बी कोच आयुष सैनी ने बताया की कक्षा 11वीं की छात्रा सलोनी सुबह 5 बजे उठ कर 7:30 बजे तक रग्बी प्रेक्टिस करती है. उसके बाद कुछ घर के काम निपटाने के बाद शाम 3:30 बजे तक स्कूल में रहती है.

rugby player Saloni
मेडल जीतने वाली सलोनी के साथ हरिद्वार सांसद निशंक

प्रैक्टिस के बाद चाय बेचती है सलोनी: शाम को अपनी झोपड़ी के ऊपर सड़क की तरफ बनी ठेली पर चाय बेचने में अपनी मां की मदद करती है. सलोनी के परिवार में उसके माता-पिता और पांच भाई-बहन हैं. उसके पिता ई-रिक्शा चलाकर मामूली आय अर्जित करते थे, जो इन दिनों बंद है. ऐसे में सलोनी का परिवार आर्थिक रूप से बड़ा संघर्ष कर रहा है.

rugby player Saloni
आर्थिक तंगी के बावजूद सलोनी रोज प्रैक्टिस करती हैं

सलोनी ने क्या कहा: ईटीवी भारत से बात करते हुए सलोनी ने बताया कि वो अपनी झुग्गी के पास मौजूद सोनाली नदी पार्क में रग्बी की प्रैक्टिस करती है. उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में उनका इंडिया कैंप में उत्तराखंड के कुछ और लड़कियों के साथ चयन हुआ था. वो चयन प्रक्रिया में वह आखिरी राउंड तक बची रहीं. फिर उनका इंटरनेशनल के लिए चयन हुआ. फिर एशियन चैंपियनशिप में उनकी टीम ने सिल्वर मेडल जीता.

rugby player Saloni
सलोनी के मेडल जीतने पर फोटो खिंचवाने वालों की होड़ रहती है.

आर्थिक दिक्कतों के बाद भी सलोनी के साथ खड़ा है परिवार: अपने परिवार के आर्थिक हालातों के बारे में सलोनी ने बताया कि परेशानियां तो सभी परिवारों में होती हैं, लेकिन गरीब परिवार में ये परेशानियां थोड़ा ज्यादा दुखदाई होती हैं. सलोनी ने बताया कि तमाम परेशानियों के बावजूद भी उनके परिवार ने उन्हें रग्बी खेल में आगे बढ़ने के लिए सपोर्ट किया. साथ ही उनके कोच आयुष सैनी ने उन्हें निशुल्क ट्रेनिंग दी. उन्होंने भी अपनी पूरी ताकत इस खेल में झोंक दी. उनकी कोशिश है कि अगली बार उनकी टीम गोल्ड मेडल लाए.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड के लाल ने तंगहाली को नहीं आने दिया आड़े, गोवा 37वें राष्ट्रीय खेलों में जीता गोल्ड, रुला देगी पिता की संघर्ष की कहानी

सलोनी के कोच ने क्या कहा: सलोनी के कोच आयुष सैनी जो कि उत्तराखंड हैंड रग्बी एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष हैं, ने बताया कि सलोनी बहुत अच्छा खेल रही है. बस उसे थोड़ा फाइनेंशियल सपोर्ट की जरूरत है. उन्होंने बताया कि सलोनी की गोल्ड मेडल के साथ जब वापसी हुई थी तो कई छोटे बड़े नेता उनसे मिलने और फोटो खिंचवाने पहुंचे थे. लेकिन यह केवल सोशल मीडिया का कंटेंट बन कर रह गया. किसी ने बड़ी आर्थिक मदद का हाथ नहीं बढ़ाया. उन्होंने बताया कि वह खेल विभाग के लिए सलोनी के सभी डॉक्यूमेंट्स तैयार कर रहे हैं. अगले साल होने वाले नेशनल गेम्स में भी सलोनी प्रतिभाग करेगी.
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Last Updated : Nov 8, 2023, 3:27 PM IST

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