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बिना सर्जरी के एम्स चिकित्सकों ने निकाली पेट में फंसी ईयररिंग, बच्ची को दिया नया जीवन

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Published : Dec 25, 2019, 10:43 PM IST

डॉ.ने बताया कि पेट के पाॅयलोरस में फंसी ईयररिंग लगभग 3.5 सेमी लंबी और 2.5 सेमी चौड़ी थी. जिसमें डेढ़ सेमी. लम्बा एक स्क्रू भी लगा था. 3 महीने की उम्र होने की वजह से बच्ची के पेट की सर्जरी नहीं की जा सकती थी. जिसके कारण उन्हें ये फैसला लेना पड़ा.

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बिना सर्जरी के एम्स चिकित्सकों ने निकाली पेट में फंसी कान की बाली

ऋषिकेश: एम्स ऋषिकेश के बाल रोग विभाग ने एक तीन माह के शिशु के पेट में फंसी ईयररिंग को बिना चीर फाड़ के बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की है. इस प्रक्रिया के बाद बच्ची पूर्णरूप से स्वस्थ है, उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है.

एम्स के निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि 3 माह के शिशु के पेट में फंसी ईयररिंग को बिना ऑपरेशन के बाहर निकालना अत्यंत जटिल काम था. बावजूद इसके संस्थान के चिकित्सकों को अपने अनुभव से इस जटिल काम में सफलता हासिल की है. उन्होंने बताया कि रायपुर (देहरादून) की एक महिला अपने 3 माह की नन्हीं बच्ची को लेकर एम्स ऋषिकेश पहुंची थी. महिला ने बताया कि उसके ढाई साल बेटे ने खेल-खेल में अपनी 3 माह की बहिन के मुंह में ईयररिंग डाल दी, जोकि बच्ची के पेट में फंस गई है. जिसके बाद एक्स-रे से पता चला कि रिंग बच्ची की पाॅयलोरस आंत में फंसी है.

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केस की सीरियसन्स को देखते हुए तत्काल शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नवनीत कुमार ने बच्ची को बचाने के प्रयास शुरू किए. डॉ. ने बताया कि पेट के पाॅयलोरस में फंसी रिंग लगभग 3.5 सेमी लंबी और 2.5 सेमी चौड़ी थी. जिसमें डेढ़ सेमी. लम्बा एक स्क्रू भी लगा था. 3 महीने की उम्र होने की वजह से बच्ची के पेट की सर्जरी नहीं की जा सकती थी. ऐसे में बच्ची को बेहोश कर आधुनिक उच्चस्तरीय मेडिकल तकनीक अपनाने का ही एकमात्र विकल्प बचा था. लिहाजा, उन्होंने बच्ची को बेहोश कर दूरबीन एंडोस्काेपी विधि से रिंग को बाहर निकालने का निर्णय लिया.

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उन्होंने बताया कि इतनी कम उम्र के मरीज में इस विधि का इस्तेमाल करना अत्यधिक खतरनाक होता है. डॉ. नवनीत कुमार ने बताया कि बावजूद इसके बेहद हाई रिस्क लेते हुए बच्ची के पेट की पाॅयलोरस में फंसी रिंग को बड़ी ही सूझबूझ से निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई. जिसमें उन्हें सफलता हासिल हुई.

ऋषिकेश: एम्स ऋषिकेश के बाल रोग विभाग ने एक तीन माह के शिशु के पेट में फंसी ईयररिंग को बिना चीर फाड़ के बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की है. इस प्रक्रिया के बाद बच्ची पूर्णरूप से स्वस्थ है, उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है.

एम्स के निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि 3 माह के शिशु के पेट में फंसी ईयररिंग को बिना ऑपरेशन के बाहर निकालना अत्यंत जटिल काम था. बावजूद इसके संस्थान के चिकित्सकों को अपने अनुभव से इस जटिल काम में सफलता हासिल की है. उन्होंने बताया कि रायपुर (देहरादून) की एक महिला अपने 3 माह की नन्हीं बच्ची को लेकर एम्स ऋषिकेश पहुंची थी. महिला ने बताया कि उसके ढाई साल बेटे ने खेल-खेल में अपनी 3 माह की बहिन के मुंह में ईयररिंग डाल दी, जोकि बच्ची के पेट में फंस गई है. जिसके बाद एक्स-रे से पता चला कि रिंग बच्ची की पाॅयलोरस आंत में फंसी है.

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केस की सीरियसन्स को देखते हुए तत्काल शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नवनीत कुमार ने बच्ची को बचाने के प्रयास शुरू किए. डॉ. ने बताया कि पेट के पाॅयलोरस में फंसी रिंग लगभग 3.5 सेमी लंबी और 2.5 सेमी चौड़ी थी. जिसमें डेढ़ सेमी. लम्बा एक स्क्रू भी लगा था. 3 महीने की उम्र होने की वजह से बच्ची के पेट की सर्जरी नहीं की जा सकती थी. ऐसे में बच्ची को बेहोश कर आधुनिक उच्चस्तरीय मेडिकल तकनीक अपनाने का ही एकमात्र विकल्प बचा था. लिहाजा, उन्होंने बच्ची को बेहोश कर दूरबीन एंडोस्काेपी विधि से रिंग को बाहर निकालने का निर्णय लिया.

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उन्होंने बताया कि इतनी कम उम्र के मरीज में इस विधि का इस्तेमाल करना अत्यधिक खतरनाक होता है. डॉ. नवनीत कुमार ने बताया कि बावजूद इसके बेहद हाई रिस्क लेते हुए बच्ची के पेट की पाॅयलोरस में फंसी रिंग को बड़ी ही सूझबूझ से निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई. जिसमें उन्हें सफलता हासिल हुई.

Intro:ऋषिकेश-- एम्स ऋषिकेश के बाल रोग विभाग ने एक तीन माह के अबोध शिशु के पेट में फंसी कान की बाली को बिना चीर फाड़ व जटिल सर्जरी के विशेष तकनीक से बाहर निकालने में कामियाबी हासिल की है। इस प्रक्रिया के बाद बच्चा पूर्णरूप से स्वस्थ है और उसे एम्स अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।   


Body:वी/ओ-- निदेशक पद्मश्री प्रोफसर रवि कांत ने एन्डोस्काॅपी दूरबीन विधि अपनाकर बच्चे की जान बचाने में कामियाबी हासिल करने वाली चिकित्सीय टीम को इस सफलता के लिए बधाई दी है। निदेशक एम्स प्रो. रवि कांत ने बताया कि 3 माह के शिशु के पेट में फंसी हैंगिग इयर रिंग को बिना ऑपरेशन के बाहर निकालना अत्यंत जटिल और हाई रिस्की कार्य था। बावजूद इसके संस्थान के चिकित्सकों को अपने अनुभव से इस जटिल कार्य में सफलता प्राप्त की और बच्चे को नया जीवन प्रदान किया। उन्होंने बताया कि रायपुर, देहरादून की एक महिला अपने 3 माह की नन्हीं बच्ची को लेकर एम्स ऋषिकेश पहुंची। महिला ने बताया कि उसके ढाई वर्षीय बेटे ने खेल-खेल में अपनी 3 माह की नन्हीं बहिन के मुहं में कान की बाली ( हैंगिग ईअर रिंग ) डाल दी है, जो बच्ची के पेट में फंस गई है। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि जिस वक्त बच्ची को एम्स अस्पताल में लाया गया, उस समय उसकी हालत अत्यधिक नाजुक थी। एक्स-रे से पता चला कि वो रिंग बच्ची की पाॅयलोरस आंत में फंस गई है।

 


Conclusion:वी/ओ--केस की जटिलता को देखते हुए तत्काल शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डा. नवनीत कुमार ने हाई रिस्क लेते हुए बच्ची को बचाने के लिए प्रयास शुरू किए। डा.ने बताया कि पेट के पाॅयलोरस में फंसी यह रिंग लगभग 3.5 सेमी लंबी और 2.5 सेमी चौड़ी थी। जिसमें डेढ़ सेमी. लम्बा एक स्क्रू भी लगा था। बताया कि बच्ची को बचाना आवश्यक था, मगर महज 3 महीने की उम्र होने की वजह से उसके पेट की सर्जरी नहीं की जा सकती थी। ऐसे में बच्ची को बेहोश कर आधुनिक उच्चस्तरीय मेडिकल तकनीक अपनाने का ही एकमात्र विकल्प बचा था। लिहाजा उन्होंने बच्ची को बेहोश कर दूरबीन एण्डोस्काेपी विधि से रिंग को बाहर निकालने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि इतनी कम उम्र के मरीज में इस विधि का इस्तेमाल करना भी अत्यधिक खतरनाक होता है। उन्होंने बताया कि बावजूद इसे बेहद हाईरिस्क स्थिति में बच्ची के पेट की पाॅयलोरस में फंसी रिंग को बड़ी ही सूझबूझ से निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई और टीम बच्ची को बचाने में सफल रही। उन्होंने बताया कि अब बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है, अस्पताल में दो दिन एडमिट रखने के बाद सामान्य हालत को देखते हुए उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है।

 

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