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प्रवासियों ने करीपत्ते को बनाया रोजगार का साधन, मार्केट में नहीं मिल रही कीमत

रामनगर के टेड़ा गांव के कई ग्रामीण कोरोना काल में घर लौट आए हैं. अब रोजगार की तलाश कर रहे ये ग्रामीण खुद को आत्मनिर्भर बना रहे हैं.

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रामनगर में करीपत्ते का रोजगार.
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Published : Jun 14, 2020, 7:11 PM IST

Updated : Jun 14, 2020, 7:44 PM IST

रामनगर: कोरोना संकट के बीच प्रवासियों का अपने गांव लौटने का सिलसिला जारी है. वहीं घर वापसी के बाद इन प्रवासियों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है. ऐसे में ग्रामीणों ने सरकार की ओर से कोई मदद न मिलने पर स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ा लिए हैं. इन दिनों ग्रामीण घर चलाने के लिए करीपत्तों को जंगलों से तोड़कर बाजारों में बेच रहे हैं. लेकिन बाजार में उनकी लागत तक नहीं मिल पा रही है.

रामनगर में करीपत्ते का रोजगार.

रामनगर के टेड़ा गांव के कई ग्रामीण कोरोना काल में घर लौट आए हैं. अब रोजगार की तलाश कर रहे ये ग्रामीण खुद को आत्मनिर्भर बना रहे हैं. ग्रामीण जंगलों से करीपत्ता तोड़कर उसे आजीविका का साधन बना रहे हैं. लेकिन बाजार में उनकी लागत तक नहीं मिल पा रही है और करीपत्तों का दाम मात्र 8 से 10 रुपए किलो ही मिल पा रहा है. अब ऐसे में ग्रामीणों के सामने घर चलाने की मजबूरी भी है. जिसके चलते इन्हें दिनभर की कड़ी मेहनत के बावजूद दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

यह भी पढ़ें: बिना मास्क दिखे या क्वारंटाइन का किया उल्लंघन तो लगेगा बड़ा जुर्माना, राज्यपाल ने अध्यादेश को दी मंजूरी

करीपत्ता जंगलों में बहुत बड़ी मात्रा में होता है. घर लौटे प्रवासी अब इसको रोजगार का साधन बना रहे हैं. जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके. स्थानीय महिला बसंती देवी का कहना है कि इसे तोड़ने और सूखाने में काफी मेहनत लगती है लेकिन बाजार में उन्हें इसका उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा कहते हैं कि गांव वालों के लिए करीपत्ते को तोड़कर बेचना लॉकडाउन के समय संजीवनी साबित हुआ है. जिसे उन्होंने रोजगार का साधन बना लिया है.

उन्होंने आगे कहा कि जितनी मेहनत ग्रामीण कर रहे हैं, उस हिसाब से इसकी कीमत नहीं मिल पा रही है. उनका कहना है कि लोग बहुत ही सस्ते दाम में इसे खरीदते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार इस ओर ध्यान दे तो ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है. जिससे लोगों को रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा.

बता दें कि यह कोई पहला वाक्या नहीं है. लॉकडाउन के समय बेरोजगार हुए टीहरी जिले के एक प्रवासी ने अपना रोजगार खुद चुना. युवा प्रवासी आशीष डंगवाल ने अपनी आजीविका चलाने के लिए अपने घर पर ही पशु-पालन कर डेरी का उद्योग शुरू किया. आशीष पहले होटल में शेफ का काम करता थे और हर महीने करीब 80 से 90 हजार रुपए महीने कमाते थे.

क्या हैं करीपत्ते के गुण...

  • करीपत्ता को मीठी नीम भी कहा जाता है. इन पत्तों को इनकी सुगंध के लिए जाना जाता है.
  • इसे भारतीय खान-पान को बेहतर स्वाद देने के लिए किया जाता है. साथ ही ये भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी माना जाता है.
  • भोजन में इस्तेमाल के अलावा कई हर्बल मेडिसिन में भी इसका प्रयोग किया जाता है.
  • इसमें विटामिन ए, बी, और सी पाया जाता है. करीपत्ता के सेवन से कोलेस्ट्रॉल को भी कम किया जा सकता है.
  • करी पत्ते में बालों को मॉइश्‍चराइजिंग करने वाले कई गुण भी मौजूद होते हैं.
  • करी पत्ते में कई प्रकार के एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो कैंसर जैसे गंभीर बीमारियों से बचाते हैं.

रामनगर: कोरोना संकट के बीच प्रवासियों का अपने गांव लौटने का सिलसिला जारी है. वहीं घर वापसी के बाद इन प्रवासियों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है. ऐसे में ग्रामीणों ने सरकार की ओर से कोई मदद न मिलने पर स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ा लिए हैं. इन दिनों ग्रामीण घर चलाने के लिए करीपत्तों को जंगलों से तोड़कर बाजारों में बेच रहे हैं. लेकिन बाजार में उनकी लागत तक नहीं मिल पा रही है.

रामनगर में करीपत्ते का रोजगार.

रामनगर के टेड़ा गांव के कई ग्रामीण कोरोना काल में घर लौट आए हैं. अब रोजगार की तलाश कर रहे ये ग्रामीण खुद को आत्मनिर्भर बना रहे हैं. ग्रामीण जंगलों से करीपत्ता तोड़कर उसे आजीविका का साधन बना रहे हैं. लेकिन बाजार में उनकी लागत तक नहीं मिल पा रही है और करीपत्तों का दाम मात्र 8 से 10 रुपए किलो ही मिल पा रहा है. अब ऐसे में ग्रामीणों के सामने घर चलाने की मजबूरी भी है. जिसके चलते इन्हें दिनभर की कड़ी मेहनत के बावजूद दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

यह भी पढ़ें: बिना मास्क दिखे या क्वारंटाइन का किया उल्लंघन तो लगेगा बड़ा जुर्माना, राज्यपाल ने अध्यादेश को दी मंजूरी

करीपत्ता जंगलों में बहुत बड़ी मात्रा में होता है. घर लौटे प्रवासी अब इसको रोजगार का साधन बना रहे हैं. जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके. स्थानीय महिला बसंती देवी का कहना है कि इसे तोड़ने और सूखाने में काफी मेहनत लगती है लेकिन बाजार में उन्हें इसका उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा कहते हैं कि गांव वालों के लिए करीपत्ते को तोड़कर बेचना लॉकडाउन के समय संजीवनी साबित हुआ है. जिसे उन्होंने रोजगार का साधन बना लिया है.

उन्होंने आगे कहा कि जितनी मेहनत ग्रामीण कर रहे हैं, उस हिसाब से इसकी कीमत नहीं मिल पा रही है. उनका कहना है कि लोग बहुत ही सस्ते दाम में इसे खरीदते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार इस ओर ध्यान दे तो ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है. जिससे लोगों को रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा.

बता दें कि यह कोई पहला वाक्या नहीं है. लॉकडाउन के समय बेरोजगार हुए टीहरी जिले के एक प्रवासी ने अपना रोजगार खुद चुना. युवा प्रवासी आशीष डंगवाल ने अपनी आजीविका चलाने के लिए अपने घर पर ही पशु-पालन कर डेरी का उद्योग शुरू किया. आशीष पहले होटल में शेफ का काम करता थे और हर महीने करीब 80 से 90 हजार रुपए महीने कमाते थे.

क्या हैं करीपत्ते के गुण...

  • करीपत्ता को मीठी नीम भी कहा जाता है. इन पत्तों को इनकी सुगंध के लिए जाना जाता है.
  • इसे भारतीय खान-पान को बेहतर स्वाद देने के लिए किया जाता है. साथ ही ये भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी माना जाता है.
  • भोजन में इस्तेमाल के अलावा कई हर्बल मेडिसिन में भी इसका प्रयोग किया जाता है.
  • इसमें विटामिन ए, बी, और सी पाया जाता है. करीपत्ता के सेवन से कोलेस्ट्रॉल को भी कम किया जा सकता है.
  • करी पत्ते में बालों को मॉइश्‍चराइजिंग करने वाले कई गुण भी मौजूद होते हैं.
  • करी पत्ते में कई प्रकार के एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो कैंसर जैसे गंभीर बीमारियों से बचाते हैं.
Last Updated : Jun 14, 2020, 7:44 PM IST
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