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'ब्रांड' बना शिकारी जिम कॉर्बेट का नाम, रामनगर में ऐसे चल रही लोगों की रोजी-रोटी

विश्व प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट को इस दुनिया से गए 65 साल से अधिक हो गए हैं. इसके बावजूद उनके नाम का डंका अभी भी बज रहा है. एक ओर उनके नाम से बने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में हर साल लाखों पर्यटक आकर वन्य जीवों का दीदार करते हैं. दूसरी ओर उनके नाम से कॉर्बेट के प्रवेश द्वार रामनगर शहर में लोगों का रोजगार चल रहा है.

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जिम कॉर्बेट पार्क
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Published : Aug 18, 2021, 1:53 PM IST

Updated : Aug 18, 2021, 6:17 PM IST

रामनगर: विश्व प्रसिद्ध शिकारी एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का देहांत हुए भले ही कई वर्षों का समय हो गया हो, लेकिन जिम कॉर्बेट के नाम को रामनगर के लोगों ने भी खूब जिंदा रखा हुआ है. आज भी उनके नाम पर कई व्यवसाई अपने प्रतिष्ठानों के नाम रखे हुए हैं. ढेरों रिजॉर्ट भी कॉर्बेट के नाम पर चल रहे हैं.

कॉर्बेट के नाम से चल रहा रोजगार: बता दें कि विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क देश-विदेश में बाघों के घनत्व के साथ ही अन्य वन्यजीवों के लिए चर्चित है. एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट को इस दुनिया से गए आज करीब 66 साल हो गये हैं. आज भी उनके नाम पर रामनगर व आसपास के क्षेत्रों में कई प्रतिष्ठान, रिजॉर्ट और यहां तक की सैलून की दुकानें भी चल रही हैं. आज भी व्यवसाय करने वाले कहते हैं कि जिम कॉर्बेट पार्क रामनगर में अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं. इसलिए आज भी वे जिंदा हैं.

जिम कॉर्बेट का नाम ही काफी है.

आदमखोर बाघों का किया शिकार: कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम देश-विदेश में प्रसिद्ध है. इसके पीछे एक सबसे बड़ा नाम जुड़ा है, वह है एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का. जिम कॉर्बेट जिन्होंने कई आदमखोर बाघ और तेंदुओं का शिकार कर लोगों को भय से मुक्त कराया था. उन्होंने 1907 से 1938 के बीच कुमाऊं और गढ़वाल दोनों जगह नरभक्षी बाघ और तेंदुए के आतंक से छुटकारा दिलाया था. जिम ने 31 साल में 19 आदमखोर बाघ और 14 तेंदुआ को ढेर किया था.

नैनीताल में जन्मे थे जिम कॉर्बेट: एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ था. नैनीताल में जन्म होने के कारण कॉर्बेट को नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्रों से बेहद लगाव था. जिम कॉर्बेट ने अपने प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में पूरी की. अपनी युवावस्था में पश्चिम बंगाल में रेलवे में नौकरी कर ली. लेकिन नैनीताल का प्रेम उन्हें नैनीताल की हसीन वादियों की ओर खींचता रहा.

कालाढूंगी में बनाया था घर: जिम कॉर्बेट ने साल 1915 में स्थानीय व्यक्ति से कालाढूंगी क्षेत्र के छोटी हल्द्वानी में जमीन खरीदी. वे यहां रहने लगे. उन्होंने यहां घर भी बना लिया था. नैनीताल के समय में यहां रहने आया करते थे. उन्होंने अपने सहयोगियों के लिए अपनी 221 एकड़ जमीन को खेती और रहने के लिए दे दिया. जिसे आज कॉर्बेट का गांव छोटी हल्द्वानी के नाम से जाना जाता है.

1947 में विदेश चले गए थे: बता दें कि आज भी देश-विदेश से सैलानी कॉर्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी घूमने के लिए आते हैं. साल 1947 में जिम कॉर्बेट देश छोड़कर विदेश चले गए. जाते समय कालाढूंगी में स्थित घर को अपने मित्र चिरंजीलाल साहब को दे गए.

चौ. चरण सिंह ने खरीदा कॉर्बेट का बंगला: 1965 में चौधरी चरण सिंह वन मंत्री बने तो उन्होंने इस ऐतिहासिक बंगले को आने वाली नस्लों को जिम कॉर्बेट के महान व्यक्तित्व को बताने के लिए चिरंजीलाल शाह से 20 हज़ार रुपये देकर खरीद दिया. इसे एक धरोहर के रूप में वन विभाग के सुपुर्द कर दिया. तब से यह बंगला वन विभाग के पास है. हजारों की तादाद में देश-विदेश से सैलानी जिम कॉर्बेट से जुड़ी यादों को देखने के लिए यहां आते हैं.

ये भी पढ़ें: PM मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कॉर्बेट रेस्क्यू सेंटर तैयार, अक्टूबर में उद्घाटन, ये है खासियत

आखिर एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट ने ऐसा क्या किया: जिम कॉर्बेट की वीरता के कारनामे हैरत में डालने वाले रहे हैं. जिम कॉर्बेट एक महान शिकारी थे. उनको तत्कालीन अंग्रेज सरकार आदमखोर बाघों को मारने के लिए बुलाती थी. गढ़वाल और कुमाऊं में उस वक्त आदमखोर बाघ और गुलदार ने आतंक मचा रखा था. उनके खात्मे का श्रेय जिम कॉर्बेट को जाता है. उन्होंने ऐसे बाघों को भी मारा जिन्होंने 436 लोगों को अपना निवाला बना लिया था.

महान शिकारी थे जिम कॉर्बेट: बता दें कि कई आदमखोर बाघ और तेंदुए का शिकार करने के कारण उन्हें महान शिकारी भी कहा जाने लगा. कई आदमखोर बाघों का शिकार करने के बाद उनके मन में वन्यजीवों के प्रति प्रेम बढ़ गया. हृदय परिवर्तन होने के कारण जिम कॉर्बेट ने बाघों के संरक्षण के लिए काम करना शुरू कर दिया. इसके बाद जिम कॉर्बेट ने कभी बाघों व अन्य जानवरों को मारने के लिए बंदूक नहीं उठाई.

रामगंगा नेशनल पार्क का नाम रखा कॉर्बेट पार्क: जिम कॉर्बेट ने सामाजिक कार्यों से लोगों की मदद की. इस कारण उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1955 में राष्ट्रीय उद्यान रामगंगा नेशनल पार्क का नाम बदलकर कॉर्बेट नेशनल पार्क रख दिया. यह आज भी विश्व में बाघों की राजधानी के रूप में जाना जाता है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों पर्यटक हर वर्ष रामनगर आते हैं.

कॉर्बेट के नाम से चल रहा है रोजगार: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क रामनगर शहर में आज भी जिम कॉर्बेट का नाम जिंदा है. आज भी जिम कॉर्बेट के नाम को रामनगर के लोगों ने जिंदा रखा हुआ है. उनके नाम से लोग आज रोजगार कर रहे हैं. जिम कॉर्बेट के नाम पर रामनगर में तमाम दुकानें ऐसी हैं, जिनके नाम कॉर्बेट के नाम पर ही रखे गए हैं. इनमें होटल से लेकर वेल्डिंग तक की दुकानें व सैलून की दुकानें शामिल हैं.

ब्रांड बन चुका है कॉर्बेट का नाम: वर्तमान में कॉर्बेट का नाम एक ब्रांड बन चुका है. एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट के नाम से रखे गए पार्क से जोड़कर सैकड़ों लोग पर्यटन से अपने व अपने परिवार की आजीविका चला रहे हैं. इसमें ऐसे भी लोग हैं जो कॉर्बेट के नाम के सहारे अपनी दुकान चला रहे हैं. कॉर्बेट का नाम इतना प्रसिद्ध हो चला है कि कई लोगों ने अपने छोटे-बड़े प्रतिष्ठानों के नाम कॉर्बेट के नाम से ही रखे हैं. यहां तक पर्यटकों की बुकिंग करने वाले प्राइवेट लोगों ने भी अपनी साइटों के नाम कॉर्बेट के नाम पर रखे हैं.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में कृत्रिम तरीके से बढ़ेगा घड़ियालों का कुनबा

इन प्रतिष्ठानों में कॉर्बेट रिजॉर्ट, कॉर्बेट गारमेंट्स, कॉर्बेट वेल्डिंग वर्कर्स, कॉर्बेट टी स्टॉल, कॉर्बेट होटल, कॉर्बेट सैलून, कॉर्बेट किंग्डम शामिल हैं. बता दें कि वर्ष 1955 में दुनिया से रुखसत हो चुके एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट जाने के बाद भी लोगों को अपना नाम दे गए. यह नाम आज लोगों के रोजगार का जरिया बना हुआ है. आज सैकड़ों लोगों के प्रतिष्ठानों को कॉर्बेट के नाम का सहारा है. कॉर्बेट आज भी रामनगर के लोगों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बने हुए हैं.

रामनगर: विश्व प्रसिद्ध शिकारी एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का देहांत हुए भले ही कई वर्षों का समय हो गया हो, लेकिन जिम कॉर्बेट के नाम को रामनगर के लोगों ने भी खूब जिंदा रखा हुआ है. आज भी उनके नाम पर कई व्यवसाई अपने प्रतिष्ठानों के नाम रखे हुए हैं. ढेरों रिजॉर्ट भी कॉर्बेट के नाम पर चल रहे हैं.

कॉर्बेट के नाम से चल रहा रोजगार: बता दें कि विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क देश-विदेश में बाघों के घनत्व के साथ ही अन्य वन्यजीवों के लिए चर्चित है. एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट को इस दुनिया से गए आज करीब 66 साल हो गये हैं. आज भी उनके नाम पर रामनगर व आसपास के क्षेत्रों में कई प्रतिष्ठान, रिजॉर्ट और यहां तक की सैलून की दुकानें भी चल रही हैं. आज भी व्यवसाय करने वाले कहते हैं कि जिम कॉर्बेट पार्क रामनगर में अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं. इसलिए आज भी वे जिंदा हैं.

जिम कॉर्बेट का नाम ही काफी है.

आदमखोर बाघों का किया शिकार: कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम देश-विदेश में प्रसिद्ध है. इसके पीछे एक सबसे बड़ा नाम जुड़ा है, वह है एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का. जिम कॉर्बेट जिन्होंने कई आदमखोर बाघ और तेंदुओं का शिकार कर लोगों को भय से मुक्त कराया था. उन्होंने 1907 से 1938 के बीच कुमाऊं और गढ़वाल दोनों जगह नरभक्षी बाघ और तेंदुए के आतंक से छुटकारा दिलाया था. जिम ने 31 साल में 19 आदमखोर बाघ और 14 तेंदुआ को ढेर किया था.

नैनीताल में जन्मे थे जिम कॉर्बेट: एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ था. नैनीताल में जन्म होने के कारण कॉर्बेट को नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्रों से बेहद लगाव था. जिम कॉर्बेट ने अपने प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में पूरी की. अपनी युवावस्था में पश्चिम बंगाल में रेलवे में नौकरी कर ली. लेकिन नैनीताल का प्रेम उन्हें नैनीताल की हसीन वादियों की ओर खींचता रहा.

कालाढूंगी में बनाया था घर: जिम कॉर्बेट ने साल 1915 में स्थानीय व्यक्ति से कालाढूंगी क्षेत्र के छोटी हल्द्वानी में जमीन खरीदी. वे यहां रहने लगे. उन्होंने यहां घर भी बना लिया था. नैनीताल के समय में यहां रहने आया करते थे. उन्होंने अपने सहयोगियों के लिए अपनी 221 एकड़ जमीन को खेती और रहने के लिए दे दिया. जिसे आज कॉर्बेट का गांव छोटी हल्द्वानी के नाम से जाना जाता है.

1947 में विदेश चले गए थे: बता दें कि आज भी देश-विदेश से सैलानी कॉर्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी घूमने के लिए आते हैं. साल 1947 में जिम कॉर्बेट देश छोड़कर विदेश चले गए. जाते समय कालाढूंगी में स्थित घर को अपने मित्र चिरंजीलाल साहब को दे गए.

चौ. चरण सिंह ने खरीदा कॉर्बेट का बंगला: 1965 में चौधरी चरण सिंह वन मंत्री बने तो उन्होंने इस ऐतिहासिक बंगले को आने वाली नस्लों को जिम कॉर्बेट के महान व्यक्तित्व को बताने के लिए चिरंजीलाल शाह से 20 हज़ार रुपये देकर खरीद दिया. इसे एक धरोहर के रूप में वन विभाग के सुपुर्द कर दिया. तब से यह बंगला वन विभाग के पास है. हजारों की तादाद में देश-विदेश से सैलानी जिम कॉर्बेट से जुड़ी यादों को देखने के लिए यहां आते हैं.

ये भी पढ़ें: PM मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कॉर्बेट रेस्क्यू सेंटर तैयार, अक्टूबर में उद्घाटन, ये है खासियत

आखिर एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट ने ऐसा क्या किया: जिम कॉर्बेट की वीरता के कारनामे हैरत में डालने वाले रहे हैं. जिम कॉर्बेट एक महान शिकारी थे. उनको तत्कालीन अंग्रेज सरकार आदमखोर बाघों को मारने के लिए बुलाती थी. गढ़वाल और कुमाऊं में उस वक्त आदमखोर बाघ और गुलदार ने आतंक मचा रखा था. उनके खात्मे का श्रेय जिम कॉर्बेट को जाता है. उन्होंने ऐसे बाघों को भी मारा जिन्होंने 436 लोगों को अपना निवाला बना लिया था.

महान शिकारी थे जिम कॉर्बेट: बता दें कि कई आदमखोर बाघ और तेंदुए का शिकार करने के कारण उन्हें महान शिकारी भी कहा जाने लगा. कई आदमखोर बाघों का शिकार करने के बाद उनके मन में वन्यजीवों के प्रति प्रेम बढ़ गया. हृदय परिवर्तन होने के कारण जिम कॉर्बेट ने बाघों के संरक्षण के लिए काम करना शुरू कर दिया. इसके बाद जिम कॉर्बेट ने कभी बाघों व अन्य जानवरों को मारने के लिए बंदूक नहीं उठाई.

रामगंगा नेशनल पार्क का नाम रखा कॉर्बेट पार्क: जिम कॉर्बेट ने सामाजिक कार्यों से लोगों की मदद की. इस कारण उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1955 में राष्ट्रीय उद्यान रामगंगा नेशनल पार्क का नाम बदलकर कॉर्बेट नेशनल पार्क रख दिया. यह आज भी विश्व में बाघों की राजधानी के रूप में जाना जाता है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों पर्यटक हर वर्ष रामनगर आते हैं.

कॉर्बेट के नाम से चल रहा है रोजगार: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क रामनगर शहर में आज भी जिम कॉर्बेट का नाम जिंदा है. आज भी जिम कॉर्बेट के नाम को रामनगर के लोगों ने जिंदा रखा हुआ है. उनके नाम से लोग आज रोजगार कर रहे हैं. जिम कॉर्बेट के नाम पर रामनगर में तमाम दुकानें ऐसी हैं, जिनके नाम कॉर्बेट के नाम पर ही रखे गए हैं. इनमें होटल से लेकर वेल्डिंग तक की दुकानें व सैलून की दुकानें शामिल हैं.

ब्रांड बन चुका है कॉर्बेट का नाम: वर्तमान में कॉर्बेट का नाम एक ब्रांड बन चुका है. एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट के नाम से रखे गए पार्क से जोड़कर सैकड़ों लोग पर्यटन से अपने व अपने परिवार की आजीविका चला रहे हैं. इसमें ऐसे भी लोग हैं जो कॉर्बेट के नाम के सहारे अपनी दुकान चला रहे हैं. कॉर्बेट का नाम इतना प्रसिद्ध हो चला है कि कई लोगों ने अपने छोटे-बड़े प्रतिष्ठानों के नाम कॉर्बेट के नाम से ही रखे हैं. यहां तक पर्यटकों की बुकिंग करने वाले प्राइवेट लोगों ने भी अपनी साइटों के नाम कॉर्बेट के नाम पर रखे हैं.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में कृत्रिम तरीके से बढ़ेगा घड़ियालों का कुनबा

इन प्रतिष्ठानों में कॉर्बेट रिजॉर्ट, कॉर्बेट गारमेंट्स, कॉर्बेट वेल्डिंग वर्कर्स, कॉर्बेट टी स्टॉल, कॉर्बेट होटल, कॉर्बेट सैलून, कॉर्बेट किंग्डम शामिल हैं. बता दें कि वर्ष 1955 में दुनिया से रुखसत हो चुके एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट जाने के बाद भी लोगों को अपना नाम दे गए. यह नाम आज लोगों के रोजगार का जरिया बना हुआ है. आज सैकड़ों लोगों के प्रतिष्ठानों को कॉर्बेट के नाम का सहारा है. कॉर्बेट आज भी रामनगर के लोगों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बने हुए हैं.

Last Updated : Aug 18, 2021, 6:17 PM IST
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