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GROUND REPORT: शिक्षक-पुस्तक का मिले अधिकार, इन छात्रों की फरियाद सुने सरकार

प्रदेश की सीमांत क्षेत्र पिथौरागढ़ में शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे छात्रों का कहना है कि महाविद्यालय में 80 के दशक की किताबें पड़ी हुई हैं. सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के बाद तमाम किताबें ओवरडेट हो चुकी हैं.

शिक्षक-पुस्तक आंदोलन
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Published : Jul 12, 2019, 6:30 PM IST

पिथौरागढ़: सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के छात्र शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर लगातार आंदोलित हैं. महाविद्यालय में चल रही परीक्षाओं के बावजूद पिछले 26 दिनों से छात्र धरने पर डटे हुए हैं. छात्रों के इस आंदोलन को प्रदेशभर से समर्थन मिल रहा है. वहीं बात अगर शासन-प्रशासन की करे तो वो छात्रों की मांगों को लेकर गंभीर नहीं दिख रहा है. पेश है पिथौरागढ़ छात्र-शिक्षक आंदोलन पर ईटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट...

शिक्षक-पुस्तक आंदोलन.

शिक्षा सिर्फ मौलिक अधिकार ही नहीं बल्कि ये छात्रों का भविष्य भी तय करती है. मगर बिना शिक्षक-पुस्तक के आखिर कैसे छात्रों का भविष्य संवर पायेगा ये बड़ा सवाल है. कुछ ऐसे ही सवालों को लेकर पिथौरागढ़ महाविद्यालय के छात्र आंदोलनरत हैं. छात्रों का कहना है कि दूर-दराज के इलाकों से वे यहां पढ़ने आते हैं मगर महाविद्यालय में शिक्षकों की कमी और पुस्तकों के न होने की वजह से उन्हें मायूस ही लौटना पड़ता है. महाविद्यालय में शिक्षकों की कमी और पुस्तकों के न होने से उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है.

पढ़ें- दिव्यांग सीटिंग वॉलीबॉल खिलाड़ी शबाना ने जीता गोल्ड मेडल, हुईं सम्मानित

शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को आंदोलन कर रहे छात्रों का कहना है कि महाविद्यालय में 80 के दशक की किताबें पड़ी हुई हैं. सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के बाद तमाम किताबें ओवरडेट हो चुकी हैं. अपना दर्द ईटीवी भारत के साथ साझा करते हुए छात्रों ने कहा कि सीमांत जिले के छात्रों को किताबें लेने के लिए दिल्ली-हल्द्वानी के चक्कर काटने पड़ते हैं.

पिथौरागढ़ महाविद्यालय में 7000 से अधिक छात्र-छात्राऐं अपना भविष्य बनाने का सपना लेकर आते हैं. मगर इनमें से अधिकतर छात्रों के पढ़ने के लिए किताबें और पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं मिल पाते. यहां की लाइब्रेरी में जो किताबें मौजूद हैं वो काफी पुरानी हैं. यहां की इतिहास की किताबों में अभी तक सोवियत संघ का विघटन हीं नहीं हुआ है. ऐसा ही हाल शिक्षकों का भी है. महाविद्यालय में शिक्षकों के 121 पद स्वीकृत हैं. जिनमे से 63 पदों पर ही स्थायी अध्यापक हैं. जबकि 36 शिक्षक संविदा और काम चलाऊ व्यवस्था के तहत रखे गए हैं. जिसके कारण यहां कई विषयों में शिक्षण कार्य बुरी तरह प्रभावित रहता है.

पढ़ें-बेंगलुरु की तर्ज पर डोइवाला नगर पालिका में बनेगा मल-जल ट्रीटमेंट प्लांट, गंदगी से मिलेगी निजात

पिथौरागढ़ महाविद्यालय छात्र आंदोलनों की रणभूमि रहा है. 70 के दशक में पर्वतीय यूनिवर्सिटी की मांग को लेकर महाविद्यालय के दो छात्र सज्जन लाल शाह और सोबन सिंह नेपाली ने अपनी जान गंवाई थी, जिसके बाद ही कुमाऊं और गढ़वाल यूनिवर्सिटी अस्तित्व में आई. मगर आज ये महाविद्यालय ही सबसे ज्यादा उपेक्षित है.

पिथौरागढ़ महाविद्यालय में शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर उठा ये आंदोलन अब प्रदेशभर के उपेक्षित महाविद्यालयों के लिए एक नजीर बनता जा रहा है.कई लोग अब छात्रों की मदद को आगे आ रहे हैं. मगर सरकार इन छात्रों की फरियाद कब सुनेगी और कब इन छात्रों को पर्याप्त शिक्षक और पुस्तक मिलेंगे ये देखने वाली बात होगी.

पिथौरागढ़: सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के छात्र शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर लगातार आंदोलित हैं. महाविद्यालय में चल रही परीक्षाओं के बावजूद पिछले 26 दिनों से छात्र धरने पर डटे हुए हैं. छात्रों के इस आंदोलन को प्रदेशभर से समर्थन मिल रहा है. वहीं बात अगर शासन-प्रशासन की करे तो वो छात्रों की मांगों को लेकर गंभीर नहीं दिख रहा है. पेश है पिथौरागढ़ छात्र-शिक्षक आंदोलन पर ईटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट...

शिक्षक-पुस्तक आंदोलन.

शिक्षा सिर्फ मौलिक अधिकार ही नहीं बल्कि ये छात्रों का भविष्य भी तय करती है. मगर बिना शिक्षक-पुस्तक के आखिर कैसे छात्रों का भविष्य संवर पायेगा ये बड़ा सवाल है. कुछ ऐसे ही सवालों को लेकर पिथौरागढ़ महाविद्यालय के छात्र आंदोलनरत हैं. छात्रों का कहना है कि दूर-दराज के इलाकों से वे यहां पढ़ने आते हैं मगर महाविद्यालय में शिक्षकों की कमी और पुस्तकों के न होने की वजह से उन्हें मायूस ही लौटना पड़ता है. महाविद्यालय में शिक्षकों की कमी और पुस्तकों के न होने से उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है.

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शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को आंदोलन कर रहे छात्रों का कहना है कि महाविद्यालय में 80 के दशक की किताबें पड़ी हुई हैं. सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के बाद तमाम किताबें ओवरडेट हो चुकी हैं. अपना दर्द ईटीवी भारत के साथ साझा करते हुए छात्रों ने कहा कि सीमांत जिले के छात्रों को किताबें लेने के लिए दिल्ली-हल्द्वानी के चक्कर काटने पड़ते हैं.

पिथौरागढ़ महाविद्यालय में 7000 से अधिक छात्र-छात्राऐं अपना भविष्य बनाने का सपना लेकर आते हैं. मगर इनमें से अधिकतर छात्रों के पढ़ने के लिए किताबें और पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं मिल पाते. यहां की लाइब्रेरी में जो किताबें मौजूद हैं वो काफी पुरानी हैं. यहां की इतिहास की किताबों में अभी तक सोवियत संघ का विघटन हीं नहीं हुआ है. ऐसा ही हाल शिक्षकों का भी है. महाविद्यालय में शिक्षकों के 121 पद स्वीकृत हैं. जिनमे से 63 पदों पर ही स्थायी अध्यापक हैं. जबकि 36 शिक्षक संविदा और काम चलाऊ व्यवस्था के तहत रखे गए हैं. जिसके कारण यहां कई विषयों में शिक्षण कार्य बुरी तरह प्रभावित रहता है.

पढ़ें-बेंगलुरु की तर्ज पर डोइवाला नगर पालिका में बनेगा मल-जल ट्रीटमेंट प्लांट, गंदगी से मिलेगी निजात

पिथौरागढ़ महाविद्यालय छात्र आंदोलनों की रणभूमि रहा है. 70 के दशक में पर्वतीय यूनिवर्सिटी की मांग को लेकर महाविद्यालय के दो छात्र सज्जन लाल शाह और सोबन सिंह नेपाली ने अपनी जान गंवाई थी, जिसके बाद ही कुमाऊं और गढ़वाल यूनिवर्सिटी अस्तित्व में आई. मगर आज ये महाविद्यालय ही सबसे ज्यादा उपेक्षित है.

पिथौरागढ़ महाविद्यालय में शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर उठा ये आंदोलन अब प्रदेशभर के उपेक्षित महाविद्यालयों के लिए एक नजीर बनता जा रहा है.कई लोग अब छात्रों की मदद को आगे आ रहे हैं. मगर सरकार इन छात्रों की फरियाद कब सुनेगी और कब इन छात्रों को पर्याप्त शिक्षक और पुस्तक मिलेंगे ये देखने वाली बात होगी.

Intro:पिथौरागढ़: एक तरफ देश को विश्वगुरु बनाने के दावे किए जा रहे वहीं सीमांत जिले पिथौरागढ़ के छात्र शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर आंदोलन करने को मजबूर है। महाविद्यालय में चल रही परीक्षाओं के बावजूद पिछले 26 दिनों से छात्र धरने पर डटे हुए है। छात्रों के इस आंदोलन को प्रदेश भर से समर्थन मिल रहा है। मगर शासन-प्रशासन छात्रों की मांगों को गंभीरता से नही ले रहा है। पेश है एक ग्राउंड रिपोर्ट।

शिक्षा सिर्फ मौलिक अधिकार ही नही बल्कि ये छात्रों का भविष्य भी तय करती है। मगर बिना शिक्षक-पुस्तक के आखिर कैसे छात्रों का भविष्य संवर पायेगा ये एक बड़ा सवाल है। इसी बात से परेशान है पिथौरागढ़ महाविद्यालय के छात्र। छात्रों का कहना है कि वो दूर दराज से महाविद्यालय पड़ने आते है मगर शिक्षकों की भारी कमी के चलते उनकी पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। साथ ही आंदोलनकारी छात्रों का कहना है कि महाविद्यालय में 80 के दशक की किताबें पड़ी हुई है और सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के बाद तमाम किताबें ओवरडेट हो चुकी है। सीमांत जिले के छात्रों को किताबें लेने के लिए दिल्ली-हल्द्वानी के चक्कर काटने पड़ते है।

पिथौरागढ़ महाविद्यालय में 7000 से अधिक छात्र-छात्राऐं अपना भविष्य बनाने का सपना लेकर आते है। मगर इनमे से अधिकतर छात्रों के पड़ने के लिए पुस्तक तक नही। जो किताबें लाइब्रेरी में मौजूद है वो काफी पुरानी है। लाइब्रेरी में पड़ी 80 और 90 के दशक की इतिहास की किताबों में अभी तक सोवियत संघ का विघटन नही हुआ है और शीत युद्ध अभी भी अपने चरम पर है। वही लाइब्रेरी में नई पुस्तकें नाम मात्र की ही है। ऐसा ही हाल शिक्षकों का भी है। महाविद्यालय में शिक्षकों के 121 पद स्वीकृत है जिनमे से 63 पदों पर ही स्थायी अध्यापक है। जबकि 36 शिक्षक संविदा और काम चलाऊ व्यवस्था के तहत रखे गए है। जिस कारण कई विषयों में शिक्षण कार्य बुरी तरह प्रभावित है। वहीं छात्र सब रजिस्टार कार्यालय खोलने और पीएचडी के छात्रों को स्कोलरशिप देने की भी मांग कर रहे है।

पिथौरागढ़ महाविद्यालय छात्र आंदोलनों की रणभूमि रहा है। 70 कि दशक में पर्वतीय यूनिवर्सिटी की मांग को लेकर महाविद्यालय के दो छात्र सज्जन लाल शाह और सोभन सिंह नेपाली अपनी जान गवां चुके है जिसके बाद ही कुमाऊं और गढ़वाल यूनिवर्सिटी अस्तित्व में आई। मगर आज ये महाविद्यालय ही सबसे ज्यादा उपेक्षित है। पिथौरागढ़ महाविद्यालय में शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर उठा ये आंदोलन अब प्रदेश भर के उपेक्षित महाविद्यालयों के लिए नाजिर बनता जा रहा है। कई लोग अब छात्रों की मदद को आगे आ रहे है। मगर सरकार इन छात्रों की फरियाद कब सुनेगी और कब इन छात्रों को पर्याप्त शिक्षक और पुस्तक मिलेंगे ये देखने वाली बात होगी।

Byte1: मोहित पांडे, आंदोलनकारी छात्र
Byte2: दीपक, आंदोलनकारी छात्र
Byte3: आंशिक, आंदोलनकारी छात्रा
Byte4: चेतना पाटनी, आंदोलनकारी छात्रा


Body:पिथौरागढ़: एक तरफ देश को विश्वगुरु बनाने के दावे किए जा रहे वहीं सीमांत जिले पिथौरागढ़ के छात्र शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर आंदोलन करने को मजबूर है। महाविद्यालय में चल रही परीक्षाओं के बावजूद पिछले 26 दिनों से छात्र धरने पर डटे हुए है। छात्रों के इस आंदोलन को प्रदेश भर से समर्थन मिल रहा है। मगर शासन-प्रशासन छात्रों की मांगों को गंभीरता से नही ले रहा है। पेश है एक ग्राउंड रिपोर्ट।

शिक्षा सिर्फ मौलिक अधिकार ही नही बल्कि ये छात्रों का भविष्य भी तय करती है। मगर बिना शिक्षक-पुस्तक के आखिर कैसे छात्रों का भविष्य संवर पायेगा ये एक बड़ा सवाल है। इसी बात से परेशान है पिथौरागढ़ महाविद्यालय के छात्र। छात्रों का कहना है कि वो दूर दराज से महाविद्यालय पड़ने आते है मगर शिक्षकों की भारी कमी के चलते उनकी पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। साथ ही आंदोलनकारी छात्रों का कहना है कि महाविद्यालय में 80 के दशक की किताबें पड़ी हुई है और सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के बाद तमाम किताबें ओवरडेट हो चुकी है। सीमांत जिले के छात्रों को किताबें लेने के लिए दिल्ली-हल्द्वानी के चक्कर काटने पड़ते है।

पिथौरागढ़ महाविद्यालय में 7000 से अधिक छात्र-छात्राऐं अपना भविष्य बनाने का सपना लेकर आते है। मगर इनमे से अधिकतर छात्रों के पड़ने के लिए पुस्तक तक नही। जो किताबें लाइब्रेरी में मौजूद है वो काफी पुरानी है। लाइब्रेरी में पड़ी 80 और 90 के दशक की इतिहास की किताबों में अभी तक सोवियत संघ का विघटन नही हुआ है और शीत युद्ध अभी भी अपने चरम पर है। वही लाइब्रेरी में नई पुस्तकें नाम मात्र की ही है। ऐसा ही हाल शिक्षकों का भी है। महाविद्यालय में शिक्षकों के 121 पद स्वीकृत है जिनमे से 63 पदों पर ही स्थायी अध्यापक है। जबकि 36 शिक्षक संविदा और काम चलाऊ व्यवस्था के तहत रखे गए है। जिस कारण कई विषयों में शिक्षण कार्य बुरी तरह प्रभावित है। वहीं छात्र सब रजिस्टार कार्यालय खोलने और पीएचडी के छात्रों को स्कोलरशिप देने की भी मांग कर रहे है।

पिथौरागढ़ महाविद्यालय छात्र आंदोलनों की रणभूमि रहा है। 70 कि दशक में पर्वतीय यूनिवर्सिटी की मांग को लेकर महाविद्यालय के दो छात्र सज्जन लाल शाह और सोभन सिंह नेपाली अपनी जान गवां चुके है जिसके बाद ही कुमाऊं और गढ़वाल यूनिवर्सिटी अस्तित्व में आई। मगर आज ये महाविद्यालय ही सबसे ज्यादा उपेक्षित है। पिथौरागढ़ महाविद्यालय में शिक्षकों और पुस्तकों की मांग को लेकर उठा ये आंदोलन अब प्रदेश भर के उपेक्षित महाविद्यालयों के लिए नाजिर बनता जा रहा है। कई लोग अब छात्रों की मदद को आगे आ रहे है। मगर सरकार इन छात्रों की फरियाद कब सुनेगी और कब इन छात्रों को पर्याप्त शिक्षक और पुस्तक मिलेंगे ये देखने वाली बात होगी।

Byte1: मोहित पांडे, आंदोलनकारी छात्र
Byte2: दीपक, आंदोलनकारी छात्र
Byte3: आंशिक, आंदोलनकारी छात्रा
Byte4: चेतना पाटनी, आंदोलनकारी छात्रा


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