बेरीनाग: कोई भी काम करने के लिए जोश और जुनून का होना जरूरी होता है. अगर कोई सैनिक बनना चाहे तो फिर उसके लिए मेहनत और समर्पण का कोई पैमाना नहीं है. जितना पसीना बहाएंगे उतने ही श्रेष्ठ सैनिक बनेंगे. सेना में जाने का जुनून पाले पिथौरागढ़ जिले के पवन की मेहनत की कहानी आज हम अपने पाठकों और दर्शकों के लिए लाए हैं.
पवन कुमार की मेहनत को सलाम: बेरीनाग की सड़कों पर इन दिनों सुबह-सवेरे कमर में टायर बांधकर दौड़ते पवन कुमार को लोग देखते हैं. पवन का बस एक ही जुनून है कि उन्हें सेना में जाना है. भारत माता का सैनिक बनकर देश सेवा करनी है. इसलिए पवन कुमार अथाह मेहनत कर रहे हैं. पवन की मेहनत और उन्हें देखने वाले लोग भी कायल हैं. बच्चों को उन जैसी मेहनत करने की नसीहत दी जाती है.
तीन बार असफल लेकिन हौसला हिमालय जैसा: पवन तीन बार सेना भर्ती में असफल हो चुके हैं. लेकिन वो इससे हताश या निराश नहीं होते. अगली बार फिर ज्यादा जोर-शोर से मेहनत करने में जुट जाते हैं. पवन पिथौरागढ़ महाविद्यालय से आर्ट ऑनर्स में अंतिम वर्ष के छात्र हैं. पढ़ाई के साथ पवन ने अपने अंदर देश सेवा का जुनून पैदा कर लिया. इसलिए वो सेना में जाने के लिए हाड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं.
ये है पवन का शेड्यूल: पवन सुबह 6 बजे उठकर बजेटी से चंडाक रोड पर रोजाना पांच किलोमीटर कमर में टायर बाधंकर दौड़ते हैं. इस दौरान उनकी पीठ पर ईंट से भरा बैग होता है. दौड़ पूरी करने के बाद एक्सरसाइज का कठिन दौर शुरू होता है. पिछले दो साल से ये पवन की दिनचर्या का हिस्सा है. अगर आपको सुबह 6 बजे उठना देर से उठना लग रहा है तो बता दें कि इस इलाके में बारहों महीने कड़ाके की ठंड पड़ती है. इन दिनों भी जब मैदानी इलाकों में जोरदार गर्मी पड़ रही है, तब बेरीनाग का न्यूनतम तापमान 10 से 12 डिग्री सेल्सियस है. अंधेरे में बाघ और गुलदार का खौफ होता है.
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अब तक क्या हुआ: पवन ने बताया कि वो पिछले दो सालों से इसी तरह तैयारी कर रहे हैं. तीन बार सेना में भर्ती होने गये. लेकिन तीनों बार असफलता हाथ लगी. इसके बावजूद उनका हौसला बरकरार है. पवन का कहना है कि जो लोग गिरते हैं, वो फिर एक बार उठकर दौड़ते हैं. कोशिश करने पर सफलता अवश्य मिलती है. पवन ने बताया कि अब सीडीएस (Combined Defence Services) के लिए तैयारी कर रहा हूं.
उत्तराखंड का है सैनिकों का इतिहास: उत्तराखंड में 1,69,519 पूर्व सैनिकों के साथ ही करीब 72 हजार सेवारत सैनिक हैं. वर्ष 1948 के कबायली हमले से लेकर कारगिल युद्ध और इसके बाद आतंकवादियों के खिलाफ चले अभियान में उत्तराखंड के सैनिकों की अहम भूमिका रही है. खास बात यह है कि उत्तराखंड के युवा अंग्रेजी हुकूमत में भी सेना के लिए पहली पसंद में रहते थे.
बेहतर नेतृत्वकर्ता हैं उत्तराखंड के सैनिक: अंग्रेजों ने उत्तराखंडी सैनिकों को नेतृत्व के लिए बेहतर पाया था. भारतीय सैन्य अफसरों को प्रशिक्षण देने की नींव वर्ष 1922 में देहरादून में रखी गई थी. प्रिंस ऑफ वेल्स राय मिलिट्री कॉलेज (आरआईएमसी) देहरादून में खोला गया. वर्ष 1932 में आईएमए की शुरुआत हुई. गढ़वाली, कुमाऊंनी, गोरखा और नागाओं को प्रशिक्षण देने के लिए पर्वतीय हिस्से को चुना गया.
उत्तराखंड में हैं सेना की तीन रेजीमेंट: उत्तराखंड में सेना की तीन रेजीमेंट हैं. तीनों रेजीमेंट के हेडक्वार्टर भी उत्तराखंड में ही हैं. गढ़वाल रेजीमेंट का हेडक्वार्टर पौड़ी जिले के लैंसडाउन में है. कुमाऊं रेजीमेंट का हेडक्वार्टर अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में है. नागा रेजीमेंट का हेडक्वार्टर अल्मोड़ा में है.
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सीडीएस बिपिन रावत उत्तराखंड से थे: देश के पहले सीडीएस (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) बिपिन रावत थे. रावत उत्तराखंड के पौड़ी जिले के निवासी थे. पौड़ी से निकलकर थल सेना अध्यक्ष और फिर देश का पहला सीडीएस बनने तक का बिपिन रावत का सफर सेना में जाने की इच्छा रखने वाले हर युवा को प्रेरित करता है.