नैनाताल: सरोवर नगरी के नाम से देश-विदेश में विख्यात नैनीताल शहर जितना खूबसूरत है. उतनी ही सुंदर नैनीझील में तैरती नाव भी दिखती है. जो इस शहर की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. शहर में आने वाले पर्यटक भी झील में नौकायन का भरपूर आनंद उठाते हैं. ऐसे में ईटीवी भारत आपको नैनीझील में नौकायन के रोचक इतिहास से वाकिफ कराने जा रहा है. देखिए खास रिपोर्ट...
बता दें कि 1804 में अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन नैनीताल में सबसे पहले नाव लेकर आए थे. झील में नाव को तैरता देख स्थानीय लोगों ने नाव को विष्णु भगवान अवतार मान लिया और नाव कि पूजा करने लगे. वहीं, पीटर बैरन को नैनीताल की खूबसूरती से इतने प्रभावित किया कि उन्होनें आजीवन यहीं रहने का फैसला कर लिया.
कुछ समय बाद पीटर बैरन नैनीताल के थोकदार दान सिंह को नौकायन के लिए नैनीझील में ले गए. इस दौरान थोकदार ने बैरन को झील में आत्महत्या करने की धमकी देकर शहर को अपने नाम करवा लिया. इसी बीच ब्रिटिश शासक सरोवर नगरी आए और नैनीताल शहर को बसाया. जिसके बाद इस नगर को पर्यटक नगरी के रूप में पहचान दिलाई और नौकायन को व्यवसायिक रूप दिया.
वहीं, ब्रिटिश शासन काल में नावों को विदेशी कारीगरों से ही रिपेयर कराया जाता था. लेकिन बदलते समय के साथ स्थानीय लोग भी नौक संचालन और रिपेयरिंग का कार्य करने लगे. वहीं, हर साल गर्मी के सीजन की शुरुवात में इन नावों को मरम्मत का कार्य भी किया जाता है. ताकि, नाव को किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचाया जा सके और पर्यटक भी सुरक्षित रहें.
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वैसे नैनीझील में 6 मीटर लंबी नावों से ही नौकायन कराया जाता है. एक नाव को रिपेयर करने में एक महीने का समय और लगभग 30,000 रुपए का खर्च आता है. जबकि, नाव बनाने में तुन की लकड़ी, फेविकोल, बांधनी प्रिंट, और तांबे की कील का प्रयोग किया जाता है. कारीगरों का कहना है कि साल में दो बार नाव को मरम्मत की जरुरत पड़ती है.