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ब्रिटिशकाल से नैनीझील में हो रहा नौकायन, जानिए इसका रोचक इतिहास

1804 में अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन नैनीताल में सबसे पहले नाव लेकर आए थे. झील में नाव को तैरता देख स्थानीय लोगों ने नाव को विष्णु भगवान अवतार मान लिया और नाव कि पूजा करने लगे. वहीं, पीटर बैरन को नैनीताल की खूबसूरती से इतने प्रभावित किया कि उन्होनें आजीवन यहीं रहने का फैसला कर लिया.

नौका की मरम्मत करते कारीगर, साल में दो बार होती है नाव की मरम्मत ताकि नौकायन सुरक्षित रहे.
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Published : Apr 24, 2019, 2:29 PM IST

नैनाताल: सरोवर नगरी के नाम से देश-विदेश में विख्यात नैनीताल शहर जितना खूबसूरत है. उतनी ही सुंदर नैनीझील में तैरती नाव भी दिखती है. जो इस शहर की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. शहर में आने वाले पर्यटक भी झील में नौकायन का भरपूर आनंद उठाते हैं. ऐसे में ईटीवी भारत आपको नैनीझील में नौकायन के रोचक इतिहास से वाकिफ कराने जा रहा है. देखिए खास रिपोर्ट...

जानकारी देते नाव चालक.

बता दें कि 1804 में अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन नैनीताल में सबसे पहले नाव लेकर आए थे. झील में नाव को तैरता देख स्थानीय लोगों ने नाव को विष्णु भगवान अवतार मान लिया और नाव कि पूजा करने लगे. वहीं, पीटर बैरन को नैनीताल की खूबसूरती से इतने प्रभावित किया कि उन्होनें आजीवन यहीं रहने का फैसला कर लिया.

कुछ समय बाद पीटर बैरन नैनीताल के थोकदार दान सिंह को नौकायन के लिए नैनीझील में ले गए. इस दौरान थोकदार ने बैरन को झील में आत्महत्या करने की धमकी देकर शहर को अपने नाम करवा लिया. इसी बीच ब्रिटिश शासक सरोवर नगरी आए और नैनीताल शहर को बसाया. जिसके बाद इस नगर को पर्यटक नगरी के रूप में पहचान दिलाई और नौकायन को व्यवसायिक रूप दिया.

वहीं, ब्रिटिश शासन काल में नावों को विदेशी कारीगरों से ही रिपेयर कराया जाता था. लेकिन बदलते समय के साथ स्थानीय लोग भी नौक संचालन और रिपेयरिंग का कार्य करने लगे. वहीं, हर साल गर्मी के सीजन की शुरुवात में इन नावों को मरम्मत का कार्य भी किया जाता है. ताकि, नाव को किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचाया जा सके और पर्यटक भी सुरक्षित रहें.

ये भी पढ़े: गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला लेने का मौका, 20 अप्रैल से 18 मई तक आवेदन होंगे जमा

वैसे नैनीझील में 6 मीटर लंबी नावों से ही नौकायन कराया जाता है. एक नाव को रिपेयर करने में एक महीने का समय और लगभग 30,000 रुपए का खर्च आता है. जबकि, नाव बनाने में तुन की लकड़ी, फेविकोल, बांधनी प्रिंट, और तांबे की कील का प्रयोग किया जाता है. कारीगरों का कहना है कि साल में दो बार नाव को मरम्मत की जरुरत पड़ती है.

नैनाताल: सरोवर नगरी के नाम से देश-विदेश में विख्यात नैनीताल शहर जितना खूबसूरत है. उतनी ही सुंदर नैनीझील में तैरती नाव भी दिखती है. जो इस शहर की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. शहर में आने वाले पर्यटक भी झील में नौकायन का भरपूर आनंद उठाते हैं. ऐसे में ईटीवी भारत आपको नैनीझील में नौकायन के रोचक इतिहास से वाकिफ कराने जा रहा है. देखिए खास रिपोर्ट...

जानकारी देते नाव चालक.

बता दें कि 1804 में अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन नैनीताल में सबसे पहले नाव लेकर आए थे. झील में नाव को तैरता देख स्थानीय लोगों ने नाव को विष्णु भगवान अवतार मान लिया और नाव कि पूजा करने लगे. वहीं, पीटर बैरन को नैनीताल की खूबसूरती से इतने प्रभावित किया कि उन्होनें आजीवन यहीं रहने का फैसला कर लिया.

कुछ समय बाद पीटर बैरन नैनीताल के थोकदार दान सिंह को नौकायन के लिए नैनीझील में ले गए. इस दौरान थोकदार ने बैरन को झील में आत्महत्या करने की धमकी देकर शहर को अपने नाम करवा लिया. इसी बीच ब्रिटिश शासक सरोवर नगरी आए और नैनीताल शहर को बसाया. जिसके बाद इस नगर को पर्यटक नगरी के रूप में पहचान दिलाई और नौकायन को व्यवसायिक रूप दिया.

वहीं, ब्रिटिश शासन काल में नावों को विदेशी कारीगरों से ही रिपेयर कराया जाता था. लेकिन बदलते समय के साथ स्थानीय लोग भी नौक संचालन और रिपेयरिंग का कार्य करने लगे. वहीं, हर साल गर्मी के सीजन की शुरुवात में इन नावों को मरम्मत का कार्य भी किया जाता है. ताकि, नाव को किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचाया जा सके और पर्यटक भी सुरक्षित रहें.

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वैसे नैनीझील में 6 मीटर लंबी नावों से ही नौकायन कराया जाता है. एक नाव को रिपेयर करने में एक महीने का समय और लगभग 30,000 रुपए का खर्च आता है. जबकि, नाव बनाने में तुन की लकड़ी, फेविकोल, बांधनी प्रिंट, और तांबे की कील का प्रयोग किया जाता है. कारीगरों का कहना है कि साल में दो बार नाव को मरम्मत की जरुरत पड़ती है.

Intro:स्लग- सीजन की तैयारी

रिपोर्ट गौरव जोशी

स्थान नैनीताल

एंकर- सरोवर नगरी नैनीताल जितनी सुंदर है उतनी ही सुंदर है नैनी झील में तैरती नाव,, जो नैनीताल खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं और नैनीताल आने वाले पर्यटक नौकायन का भरपूर आनंद उठाते हैं और ताउम्र इसे याद रखते हैं लेकिन कम ही लोगों को पता है कि यहां के नावो का भी रोचक इतिहास है,,,
ब्रिटिश शासन काल में उन्नाव को रिपेयर करने के लिए विदेशों से कार्य कराते थे लेकिन बदलते समय के साथ साथ स्थानीय नाव चालकों ने नाव रिपेयर करने का जिम्मा ले लिया है और हर सीजन कि शुरूआत होते ही नाव की दुरुस्ती भी शुरू हो जाता है,,,


Body:वी ओ- इन दिनों सरोवर नगरी नैनीताल मेहमान नवाजी के लिए तैयारी में जुटा है होटल व्यवसाय पर्यटकों के लिए होटल तैयार कर रहे हैं तो वहीं दूसरी नैनी झील की शान कही जाने वाली रोइंग बोट शौचालय रिपेयर कर रहे हैं और नामों को दुल्हन की तरह सजा रहे है ना वो को तुन की लकड़ी रिपेयर किया जा रहा है ताकि पेट कम होने का समय कोई घटना ना हो नाव बनाने में तुन की लकड़ी फेविकोल बांधनी प्रिंट तांबे की कील का प्रयोग किया जाता है साथ ही 6 मीटर लंबी नामों को तैयार करने में एक महीना 30,000 का खर्चा आ रहा है साल में दो बार नावो को रिपेयर करते हैं ताकि पर्यटकों के साथ कोई घटना ना हो और उनकी नाव भी सुरक्षित रहे और नैनीताल आने वाले पर्यटक झील की सफारी को का उम्र याद रख सकें,,,

बाईट-देव सिंह


Conclusion:वी ओ- अगर नाम नावो के इतिहास पर गौर करें तो इनका इतिहास बार रोचक रहा है,, सबसे पहले नैनीताल मैं अंग्रेज व्यापारी पीटर बेरंन 1840 में नाव लेकर आया जिसको झील में तैरता देख यहां के स्थानीय लोगों ने विष्णु भगवान का अवतार बता दिया और नाव कि पूजा करने लगे,,
जिसके बाद पीटर बैरन यहां की खूबसूरती प्रभावित हुए की यही रहने का फैसला कर दिया कुछ समय बाद पीटर बेरंन ने 1842 नैनीताल के मालिक दान सिंह थोकदार को वोटिंग के लिए नैनी झील में ले गए और उनको डरा कर नैनीताल नाम करा लिया,,,
जिसके बाद से ही नैनीताल में ब्रिटिश शासक आये और उनके द्वारा ही नैनीताल को बसाया गया और ब्रिटिश शासकों द्वारा ही सरोवर नगरी नैनीताल को पर्यटक नगरी के रूप में पहचान दी,,,

बाईट-गोपल सिंह नाव चालक ओर रिपेयर करने वाला।
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