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मसूरी के लंढौर से हटेगा 184 साल पुराना डाकघर, लोगों ने शुरू किया विरोध

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Published : Sep 27, 2021, 2:30 PM IST

Updated : Sep 28, 2021, 8:21 PM IST

लगता है मसूरी को किसी की नजर लग गई है. यहां लंबे समय से व्यवस्थित संस्थान धीरे-धीरे शिफ्ट किए जा रहे हैं. रस्किन बॉन्ड के अकाउंट वाले एसबीआई की ब्रांच, पीपीसीएल और सर्वे के बाद अब डाकघर का नंबर है. एक ओर जहां सरकार गांव-गांव शराब की दुकानें खोलने जा रही है, वहीं जमे-जमाए संस्थान हटाने से लोगों में नाराजगी है. मसूरी के लोगों ने डाकघर को हटाने का विरोध किया है.

Landhour post office
मसूरी डाकघर

मसूरी: लंढौर बाजार की पहचान व शान डाकघर को हटाने के विरोध में व्यापार संघ अध्यक्ष रजत अग्रवाल के नेतृत्व में रोड जाम कर धरना दिया गया. स्थानीय लोगों व व्यापारियों का कहना है कि यह डाकघर 184 साल से भी अधिक समय से चल रहा है. इसकी स्थापना ब्रिटिश काल में की गई थी और यह लंढौर बाजार की आर्थिकी का भी केंद्र रहा है.

दरअसल, जिस मकान में डाकघर संचालित हो रहा था, उसके मालिक की डाक विभाग के साथ केस चल रहा था. मकान मालिक अपनी जमीन खाली कराने के लिए डाक विभाग के खिलाफ कोर्ट में गया था. डाक विभाग यह मुकदमा हार गया है. कोर्ट के आदेश के अनुसार डाक विभाग को परिसर खाली करना है. वर्तमान डाकघर में लगभग नौ हजार खाताधारक हैं.

डाकघर हटाने का विरोध: मसूरी शहर के लंढौर बाजार के डाकघर को हटाये जाने का स्थानीय नागरिकों व व्यापारियों ने विरोध शुरू कर दिया है. इसके तहत लंढौर बाजार मुख्य मार्ग को बंद कर बीच सड़क में व्यापारियों ने धरना दिया. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि डाकघर को हटने नहीं दिया जायेगा. अगर हटा तो जनता आंदोलन करेगी.

मसूरी के लंढौर से हटेगा 184 साल पुराना डाकघर.

184 साल पुराना है डाकघर: इस मौके पर व्यापार संघ के अध्यक्ष रजत अग्रवाल ने कहा कि यह डाकघर 184 साल पुराना है. ये सालों से स्थानीय जनता, व्यापारियों व आसपास के ग्रामीणों को सेवा दे रहा है. लंढौर बाजार की आर्थिकी भी इससे जुड़ी है. लंढौर डाकघर में मसूरी के विभिन्न क्षेत्रों से या ग्रामीण क्षेत्रों से जो लोग आते हैं वह बाजार में खरीदारी भी करते हैं. इससे लंढौर बाजार का व्यवसाय चलता है. लेकिन अब यह भी हट गया तो बाजार की आर्थिकी पर इसका बुरा प्रभाव पडे़गा. उन्होंने कहा कि लंढौर क्षेत्र के विकास पर किसी का ध्यान नहीं है. जानबूझ कर लंढौर को बर्बाद किया जा रहा है.

मसूरी से शिफ्ट हो रही हैं कई धरोहरें: पहले पीपीसीएल गया. फिर सर्वे गया. अब डाकघर व दूरदर्शन केंद्र जा रहा है. ऐसे में लंढौर बाजार में बेरोजगारी फैल जायेगी. वहीं लगातार आर्थिकी प्रभावित होने के कारण अब यहां के दुकानदार पलायन को बाध्य हो गये हैं. आश्चर्य की बात है कि न ही सरकार व न ही पालिका द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए कोई योजना बनाई गई है. यहां के युवा बेरोजगार घूम रहे हैं.

इस मौके पर व्यापारी परमजीत कोहली ने कहा कि डाकघर जो लंढौर की शान है, उसे हटा कर लंढौर की पहचान को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है. पहले घंटाघर तोड़ दिया. अब डाकघर जा रहा है. एक ओर सरकार कहती है कि दूर-दराज के क्षेत्र में डाकघर खोलें. वहीं जो है उसे हटाया जा रहा है. पहले चारदुकान का डाकघर हटाया गया. यह साजिश के तहत किया जा रहा है.

इस अवसर पर स्थानीय निवासी मिथिलेश रस्तोगी ने कहा कि घंटाघर के निकट डाक विभाग की जमीन है. वहां पर डाकघर का भवन क्यों नहीं बनाते. लेकिन अधिकारी किराये में कमीशन के चक्कर में ऐसा कर रहे हैं. लेकिन लंढौर क्षेत्र से डाकघर हटाया गया तो बड़ा आंदोलन किया जायेगा.

ये भी पढ़ें: बैंक की ब्रांच शिफ्ट होने से लेखक रस्किन बॉन्ड काफी परेशान, जानें पूरा माजरा

डाकघर के विरोध में धरना देने व रोड जाम करने के कारण घंटाघर क्षेत्र में बड़ा जाम लग गया. हालत इतनी खराब हो गई कि पैदल जाने के लिए भी मार्ग नहीं बचा और लोगों को भी जाम में फंसे रहना पड़ा. सबसे अधिक परेशानी स्कूली बच्चों को हुई. क्योंकि स्कूल की छुट्टी के समय ही जाम लगा. वहीं इतनी अव्यवस्था होने के बावजूद पुलिस और प्रशासन मौके से नदारद रहा.

अंग्रेजों के लिए डाक घर की स्थापना: लंढौर में डाकघर की स्थापना मसूरी के संस्थापक कैप्टन फ्रेडरिक यंग ने की थी. शिक्षाविद् एवं लेखक गणेश शैली बताते हैं कि मसूरी के सबसे पुराने लंढौर बाजार के मध्य बावड़ी के पास डाकघर की स्थापना वर्ष 1837 में हुई थी. अंग्रेजों ने लंढौर को सैन्य छावनी के रूप में स्थापित किया था. यहां ब्रिटिश आर्मी के अधिकारी रहा करते थे.

लिहाजा उनकी सुविधा के लिए ही यहां डाकघर खोला गया. लंढौर डाकघर ने बतौर मुख्य डाकघर साल 1909 तक सेवा दी. इसके बाद डाक विभाग ने मध्य कुलड़ी में नया मुख्य डाकघर बना दिया. गणेश शैली बताते हैं कि प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट के पिता क्रिस्टोफर विलियम कार्बेट ने डाकघर में बतौर पोस्ट मास्टर 1850 से 1863 तक सेवा दी थी.

इसलिए खास है मसूरी के लंढौर का डाकघर: इस पोस्ट ऑफिस से पद्म भूषण रस्किन बॉन्ड के साथ ही मसूरी छावनी परिषद में कई लेखक और बुजुर्ग भी विभिन्न डाक सेवाएं लेते हैं. ऐसे में पोस्ट ऑफिस के बंद होने से लोगों में भारी आक्रोश है. लोगों ने कहा कि यह पोस्ट ऑफिस काफी पुराना है और इसका अपना इतिहास है जिसको संजोया जाना जरूरी है.

लंढौर डाकघर से जुड़ी हैं रस्किन की यादें: लंढौर छावनी एरिया निवासी अंग्रेजी के प्रसिद्ध बाल लेखक एवं कहानीकार रस्किन बॉन्ड वर्ष 1964 से लगातार लंढौर डाकघर की सेवाएं ले रहे हैं. अपनी कहानियों में भी उन्होंने इस डाकघर से घर पर डाक पहुंचाने वाले डाकिये का जिक्र किया है. पूर्व में यह डाकघर ही देश-दुनिया से संपर्क का एकमात्र जरिया रहा है.

अंतरराष्ट्रीय क्लाइंट भी कर रहे प्रयोग: मसूरी के लंढौर सब-पोस्ट ऑफिस को न केवल मसूरी लैंग्वेज स्कूल और वुडस्टाक स्कूल से अंतरराष्ट्रीय क्लाइंट प्रयोग कर रहे हैं, बल्कि 26 देशों के छात्रों के इस उप डाकघर में खाते हैं. ये उप डाकघर मसूरी के किमोटी, कोल्टी, कांडा, मथोली, मौद, खतापानी, तुनेता, जूडी, सैंजी, लुदुर, गिन्सी और कई अन्य दूरस्थ गांव के लोगों को सेवाएं दे रहा है.

मसूरी: लंढौर बाजार की पहचान व शान डाकघर को हटाने के विरोध में व्यापार संघ अध्यक्ष रजत अग्रवाल के नेतृत्व में रोड जाम कर धरना दिया गया. स्थानीय लोगों व व्यापारियों का कहना है कि यह डाकघर 184 साल से भी अधिक समय से चल रहा है. इसकी स्थापना ब्रिटिश काल में की गई थी और यह लंढौर बाजार की आर्थिकी का भी केंद्र रहा है.

दरअसल, जिस मकान में डाकघर संचालित हो रहा था, उसके मालिक की डाक विभाग के साथ केस चल रहा था. मकान मालिक अपनी जमीन खाली कराने के लिए डाक विभाग के खिलाफ कोर्ट में गया था. डाक विभाग यह मुकदमा हार गया है. कोर्ट के आदेश के अनुसार डाक विभाग को परिसर खाली करना है. वर्तमान डाकघर में लगभग नौ हजार खाताधारक हैं.

डाकघर हटाने का विरोध: मसूरी शहर के लंढौर बाजार के डाकघर को हटाये जाने का स्थानीय नागरिकों व व्यापारियों ने विरोध शुरू कर दिया है. इसके तहत लंढौर बाजार मुख्य मार्ग को बंद कर बीच सड़क में व्यापारियों ने धरना दिया. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि डाकघर को हटने नहीं दिया जायेगा. अगर हटा तो जनता आंदोलन करेगी.

मसूरी के लंढौर से हटेगा 184 साल पुराना डाकघर.

184 साल पुराना है डाकघर: इस मौके पर व्यापार संघ के अध्यक्ष रजत अग्रवाल ने कहा कि यह डाकघर 184 साल पुराना है. ये सालों से स्थानीय जनता, व्यापारियों व आसपास के ग्रामीणों को सेवा दे रहा है. लंढौर बाजार की आर्थिकी भी इससे जुड़ी है. लंढौर डाकघर में मसूरी के विभिन्न क्षेत्रों से या ग्रामीण क्षेत्रों से जो लोग आते हैं वह बाजार में खरीदारी भी करते हैं. इससे लंढौर बाजार का व्यवसाय चलता है. लेकिन अब यह भी हट गया तो बाजार की आर्थिकी पर इसका बुरा प्रभाव पडे़गा. उन्होंने कहा कि लंढौर क्षेत्र के विकास पर किसी का ध्यान नहीं है. जानबूझ कर लंढौर को बर्बाद किया जा रहा है.

मसूरी से शिफ्ट हो रही हैं कई धरोहरें: पहले पीपीसीएल गया. फिर सर्वे गया. अब डाकघर व दूरदर्शन केंद्र जा रहा है. ऐसे में लंढौर बाजार में बेरोजगारी फैल जायेगी. वहीं लगातार आर्थिकी प्रभावित होने के कारण अब यहां के दुकानदार पलायन को बाध्य हो गये हैं. आश्चर्य की बात है कि न ही सरकार व न ही पालिका द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए कोई योजना बनाई गई है. यहां के युवा बेरोजगार घूम रहे हैं.

इस मौके पर व्यापारी परमजीत कोहली ने कहा कि डाकघर जो लंढौर की शान है, उसे हटा कर लंढौर की पहचान को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है. पहले घंटाघर तोड़ दिया. अब डाकघर जा रहा है. एक ओर सरकार कहती है कि दूर-दराज के क्षेत्र में डाकघर खोलें. वहीं जो है उसे हटाया जा रहा है. पहले चारदुकान का डाकघर हटाया गया. यह साजिश के तहत किया जा रहा है.

इस अवसर पर स्थानीय निवासी मिथिलेश रस्तोगी ने कहा कि घंटाघर के निकट डाक विभाग की जमीन है. वहां पर डाकघर का भवन क्यों नहीं बनाते. लेकिन अधिकारी किराये में कमीशन के चक्कर में ऐसा कर रहे हैं. लेकिन लंढौर क्षेत्र से डाकघर हटाया गया तो बड़ा आंदोलन किया जायेगा.

ये भी पढ़ें: बैंक की ब्रांच शिफ्ट होने से लेखक रस्किन बॉन्ड काफी परेशान, जानें पूरा माजरा

डाकघर के विरोध में धरना देने व रोड जाम करने के कारण घंटाघर क्षेत्र में बड़ा जाम लग गया. हालत इतनी खराब हो गई कि पैदल जाने के लिए भी मार्ग नहीं बचा और लोगों को भी जाम में फंसे रहना पड़ा. सबसे अधिक परेशानी स्कूली बच्चों को हुई. क्योंकि स्कूल की छुट्टी के समय ही जाम लगा. वहीं इतनी अव्यवस्था होने के बावजूद पुलिस और प्रशासन मौके से नदारद रहा.

अंग्रेजों के लिए डाक घर की स्थापना: लंढौर में डाकघर की स्थापना मसूरी के संस्थापक कैप्टन फ्रेडरिक यंग ने की थी. शिक्षाविद् एवं लेखक गणेश शैली बताते हैं कि मसूरी के सबसे पुराने लंढौर बाजार के मध्य बावड़ी के पास डाकघर की स्थापना वर्ष 1837 में हुई थी. अंग्रेजों ने लंढौर को सैन्य छावनी के रूप में स्थापित किया था. यहां ब्रिटिश आर्मी के अधिकारी रहा करते थे.

लिहाजा उनकी सुविधा के लिए ही यहां डाकघर खोला गया. लंढौर डाकघर ने बतौर मुख्य डाकघर साल 1909 तक सेवा दी. इसके बाद डाक विभाग ने मध्य कुलड़ी में नया मुख्य डाकघर बना दिया. गणेश शैली बताते हैं कि प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट के पिता क्रिस्टोफर विलियम कार्बेट ने डाकघर में बतौर पोस्ट मास्टर 1850 से 1863 तक सेवा दी थी.

इसलिए खास है मसूरी के लंढौर का डाकघर: इस पोस्ट ऑफिस से पद्म भूषण रस्किन बॉन्ड के साथ ही मसूरी छावनी परिषद में कई लेखक और बुजुर्ग भी विभिन्न डाक सेवाएं लेते हैं. ऐसे में पोस्ट ऑफिस के बंद होने से लोगों में भारी आक्रोश है. लोगों ने कहा कि यह पोस्ट ऑफिस काफी पुराना है और इसका अपना इतिहास है जिसको संजोया जाना जरूरी है.

लंढौर डाकघर से जुड़ी हैं रस्किन की यादें: लंढौर छावनी एरिया निवासी अंग्रेजी के प्रसिद्ध बाल लेखक एवं कहानीकार रस्किन बॉन्ड वर्ष 1964 से लगातार लंढौर डाकघर की सेवाएं ले रहे हैं. अपनी कहानियों में भी उन्होंने इस डाकघर से घर पर डाक पहुंचाने वाले डाकिये का जिक्र किया है. पूर्व में यह डाकघर ही देश-दुनिया से संपर्क का एकमात्र जरिया रहा है.

अंतरराष्ट्रीय क्लाइंट भी कर रहे प्रयोग: मसूरी के लंढौर सब-पोस्ट ऑफिस को न केवल मसूरी लैंग्वेज स्कूल और वुडस्टाक स्कूल से अंतरराष्ट्रीय क्लाइंट प्रयोग कर रहे हैं, बल्कि 26 देशों के छात्रों के इस उप डाकघर में खाते हैं. ये उप डाकघर मसूरी के किमोटी, कोल्टी, कांडा, मथोली, मौद, खतापानी, तुनेता, जूडी, सैंजी, लुदुर, गिन्सी और कई अन्य दूरस्थ गांव के लोगों को सेवाएं दे रहा है.

Last Updated : Sep 28, 2021, 8:21 PM IST
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