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जसपुर में बैसाखी पर्व की रही धूम, अर्दास और खंडपाठ का चलता रहा दौर

सिख समुदाय के पर्व बैसाखी की जसपुर मे खासी धूम रही. सुबह से ही क्षेत्र के गुरुद्वारों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. दिन भर अर्दास और खंडपाठ का दौर चलता रहा.

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Published : Apr 14, 2019, 8:12 PM IST

जसपुर में बैसाखी का पर्व.

जसपुर: सिख समुदाय के पर्व बैसाखी की जसपुर मे खासी धूम रही. सुबह से ही क्षेत्र के गुरुद्वारों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. दिन भर अर्दास और खंडपाठ का दौर चलता रहा. इस दौरान क्षेत्र के भोगपुर गांव में मेले का आयेजन किया गया. जहां भारी संख्या मे पहुंचे श्रद्धालुओं ने मेले का आनंद लिया.

जसपुर में बैसाखी का पर्व.

बता दें कि बैसाखी का पर्व उमंग और उत्साह का त्योहार है. जो हर साल बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. हर साल बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को मनाई जाती है. कहा जाता है कि साल 1699 में बैसाखी के दिन ही सिखों के 10वें और अंतिम गुरू गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी.

वहीं, जसपुर गुरुद्वारा के ग्रंथी अजेब सिंह ने बताया कि बैसाखी का पर्व देशभर में मनाया जाता है. लेकिन रीति रिवाजों और क्षेत्रीय असामनता के चलते हर जगह ये पर्व अलग-अलग नाम जाना जाता है. उन्होंने कहा कि हर जगह इस पर्व को मनाने के पीछे अलग-अलग कहानियां और किवदंतियां हैं.

जसपुर: सिख समुदाय के पर्व बैसाखी की जसपुर मे खासी धूम रही. सुबह से ही क्षेत्र के गुरुद्वारों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. दिन भर अर्दास और खंडपाठ का दौर चलता रहा. इस दौरान क्षेत्र के भोगपुर गांव में मेले का आयेजन किया गया. जहां भारी संख्या मे पहुंचे श्रद्धालुओं ने मेले का आनंद लिया.

जसपुर में बैसाखी का पर्व.

बता दें कि बैसाखी का पर्व उमंग और उत्साह का त्योहार है. जो हर साल बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. हर साल बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को मनाई जाती है. कहा जाता है कि साल 1699 में बैसाखी के दिन ही सिखों के 10वें और अंतिम गुरू गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी.

वहीं, जसपुर गुरुद्वारा के ग्रंथी अजेब सिंह ने बताया कि बैसाखी का पर्व देशभर में मनाया जाता है. लेकिन रीति रिवाजों और क्षेत्रीय असामनता के चलते हर जगह ये पर्व अलग-अलग नाम जाना जाता है. उन्होंने कहा कि हर जगह इस पर्व को मनाने के पीछे अलग-अलग कहानियां और किवदंतियां हैं.

Intro:एंकर-जसपुर मे बेसाखी पर्व की धूम रही।नगर गुरूद्वारों मे बडी संख्या मे पहुॅचे श्रद्धालुओं ने माथा टेका साथ ही लंगर भी छका।इस पावन अवसर लोगों ने मंनत मांगकर षीष नवाये।कई स्थानों पर मेले का भी आयेजन किया गया।Body:वीओं-सिख समुदाय के पर्व बेसाखी की जसपुर मे खासी धूम रही।आज सुभहा से ही क्षैत्र के गुरूद्वारों मे श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।दिन भर अर्दाष व खण्डपाट का दौर चलता रहा।बडी संख्या मे पहुॅचे सिखसमुदाय के लोगों ने अर्दाष की।इस अवसर पर क्षैत्र के ग्राम भेागपुर मे हर वर्ष मेले का आयेजन किया गया जहाॅ भारी संख्या मे पहुॅचे श्रद्धालुओं ने मेले का आनंद भी लिया।साथ ही गुरू का लंगर भी छका।Conclusion:एफ वीओं-बैसाखी का यह पर्व उमंग और उत्साह का त्यौहार माना जाता हे। जो हर साल बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को मनाई जाती है। कहा जाता है कि साल 1699 में बैसाखी के दिन ही सिखों के 10वें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी। ताकि मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्ति मिल सके। बैसाखी के समान ही और भी पर्व अलग अलग राज्यों में भी मनाए जाते हैं लेकिन रीति रिवाजों और क्षेत्रीय असामनता के चलते हर जगह ये पर्व अलग अलग नाम से मनाया जाता है। लेकिन हर जगह ये पर्व जुड़ा है फसलों से। हर जगह इस पर्व को मनाने के पीछे अलग अलग कहानियां और किवदंतियां हैं। बैसाखी यूं तो पूरे उत्तर भारत में ही धूमधाम से मनाई जाती है लेकिन पंजाब और हरियाणा में इसकी रौनक कुछ और ही होती है। बैसाखी का पर्व कृषि से जुड़ा है और ये दोनों ही राज्य कृषि प्रधान है। यहां नई फसल के कटने की खुशी में ये पर्व मनाया जाता है। लेकिन कृषि से अलग बैसाखी के पीछे कई और मान्यताएं भी जुड़ी हैं।
बाईट- अजेब सिंह,ग्रंथी गुरूद्वारा जसपुर।
बाईट- गुरपाल,स्थानीय निवासी जसपुर।
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