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आखिर कब निर्मल होगी गंगा की धारा? पानी की तरह बहाया जा रहा पैसा - Namami Gange Project

मां गंगा में आज भी कई गंदे नाले, सीवर, प्लास्टिक और कूड़ा बड़ी संख्या में बह रहे हैं. जिसके चलते विश्व कि सबसे स्वच्छ नदी सबसे ज्यादा दूषित हो रही है.

नमामि गंगे परियोजना पर उठने लगे हैं सवाल.
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Published : Jun 5, 2019, 8:17 AM IST

हरिद्वार: सनातन धर्म में गंगा को महज एक नदी नहीं बल्कि मां के रूप में पूजा जाता है. लेकिन वर्तमान में मां गंगा का दैवीय अस्तित्व खतरे में हैं. मां गंगा में आज भी कई गंदे नाले, सीवर, प्लास्टिक, कूड़ा-करकट को बड़ी संख्या में बह रहे हैं. जिसके चलते विश्व कि सबसे स्वच्छ नदी सबसे ज्यादा दूषित हो रही है. वहीं गंगा नदी की स्वच्छता को लेकर सरकार भले ही लाख दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत ठीक उलट है. आज गंगा नदी अविरलता और निर्मलता के लिए तड़पती नजर आ रही है.

जानकारी देते गंगा, एक्टिविस्ट रामेश्वर गौड़ , शिखर पालीवाल और वरिष्ठ पर्यावरणविद प्रो डीएस मलिक.

बता दें कि साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा के जीर्णोद्धार के लिए गंगा कायाकल्प मंत्रालय का निर्माण कराया था. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने ड्रीम प्रोजेक्ट नमामि गंगे परियोजना के लिए 20 हजार करोड़ रुपए का बजट रखा था, जिसका लक्ष्य 2020 से पहले गंगा को निर्मल और अविरल रूप देना है. लेकिन वर्तमान स्थिति देखकर ये नामुमकिन सा लगने लगा है. गंगा में बहने वाले नालों और सीवर को रोकने के लिए एसटीपी बनाए जा रहे हैं, लेकिन नालों और सीवर की संख्या के सामने एसटीपी की क्षमता नाम मात्र की रह गई है.

वहीं गंगा स्वच्छ अभियान में कार्यरत संस्था बीग भागीरथ के प्रमुख शिखर पालीवाल का कहना है कि गंगा पर मोदी सरकार ने वह काम कर दिखाया है जो कि पिछले 50 सालों में भी नहीं हुआ था. गंगा में गिरने वाले नालों को टेप किया जा रहा है . वहीं गंगा एक्टिविस्ट रामेश्वर गौड बताते हैं कि भले ही गंगा को मां का दर्जा प्राप्त हो लेकिन प्रदूषण से गंगा रोज मैली होती जा रही है. उनका कहना है कि आज भी लगाता है गंगा में मल-मूत्र युक्त सीवर जा रहे हैं. भले ही गंदे नालों और सीवर को रोकने के लिए एसटीपी और पंपिंग स्टेशन बनाने की बात की जा रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि यह जमीनी स्तर पर कार्य नहीं हो रहा है.

साथ ही उनका कहना है कि नमामि गंगे परियोजना के अंतर्गत कई सौ करोड़ रुपए खर्च करके गंगा घाट बनाए जा रहे हैं, जो केवल पैसे की बर्बादी है. क्योंकि गंगा घाट बनाने से गंगा कभी भी स्वच्छ नहीं होगी. ईटीवी भारत संवाददाता ने इस संदर्भ में पर्यावरणविद प्रो. डीएस मलिक से विस्तार से बात की.उन्होंने बताया कि गंगा के उत्तराखंड क्षेत्र में गंगा पर बने हाइड्रो प्रोजेक्ट और बांध परियोजनाएं गंगा के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं. भले ही उत्तराखंड को इन परियोजनाओं के चलते कार्य ऊर्जा राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ हो, लेकिन इन परियोजनाओं की वजह से गंगा में अस्तित्व खत्म हो रहा है. साथ ही गंगा में रहने वाले जलीय जीवों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.

प्रों डीएस मलिक ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी परियोजना ऑल वेदर रोड के कंस्ट्रक्शन के कारण उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में बहने वाली छोटी-छोटी गंगा की सहायक नदियां खत्म हो रही हैं. जिससे गंगा के जल की गुणवत्ता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन गंगा को सही मायनों में स्वच्छ और अविरल बनाना है तो आमजनता को जागरूक होकर इस मिशन का साथ देना होगा. ये कार्य जनमानस के सहयोग के से ही पूरा हो सकता है.

हरिद्वार: सनातन धर्म में गंगा को महज एक नदी नहीं बल्कि मां के रूप में पूजा जाता है. लेकिन वर्तमान में मां गंगा का दैवीय अस्तित्व खतरे में हैं. मां गंगा में आज भी कई गंदे नाले, सीवर, प्लास्टिक, कूड़ा-करकट को बड़ी संख्या में बह रहे हैं. जिसके चलते विश्व कि सबसे स्वच्छ नदी सबसे ज्यादा दूषित हो रही है. वहीं गंगा नदी की स्वच्छता को लेकर सरकार भले ही लाख दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत ठीक उलट है. आज गंगा नदी अविरलता और निर्मलता के लिए तड़पती नजर आ रही है.

जानकारी देते गंगा, एक्टिविस्ट रामेश्वर गौड़ , शिखर पालीवाल और वरिष्ठ पर्यावरणविद प्रो डीएस मलिक.

बता दें कि साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा के जीर्णोद्धार के लिए गंगा कायाकल्प मंत्रालय का निर्माण कराया था. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने ड्रीम प्रोजेक्ट नमामि गंगे परियोजना के लिए 20 हजार करोड़ रुपए का बजट रखा था, जिसका लक्ष्य 2020 से पहले गंगा को निर्मल और अविरल रूप देना है. लेकिन वर्तमान स्थिति देखकर ये नामुमकिन सा लगने लगा है. गंगा में बहने वाले नालों और सीवर को रोकने के लिए एसटीपी बनाए जा रहे हैं, लेकिन नालों और सीवर की संख्या के सामने एसटीपी की क्षमता नाम मात्र की रह गई है.

वहीं गंगा स्वच्छ अभियान में कार्यरत संस्था बीग भागीरथ के प्रमुख शिखर पालीवाल का कहना है कि गंगा पर मोदी सरकार ने वह काम कर दिखाया है जो कि पिछले 50 सालों में भी नहीं हुआ था. गंगा में गिरने वाले नालों को टेप किया जा रहा है . वहीं गंगा एक्टिविस्ट रामेश्वर गौड बताते हैं कि भले ही गंगा को मां का दर्जा प्राप्त हो लेकिन प्रदूषण से गंगा रोज मैली होती जा रही है. उनका कहना है कि आज भी लगाता है गंगा में मल-मूत्र युक्त सीवर जा रहे हैं. भले ही गंदे नालों और सीवर को रोकने के लिए एसटीपी और पंपिंग स्टेशन बनाने की बात की जा रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि यह जमीनी स्तर पर कार्य नहीं हो रहा है.

साथ ही उनका कहना है कि नमामि गंगे परियोजना के अंतर्गत कई सौ करोड़ रुपए खर्च करके गंगा घाट बनाए जा रहे हैं, जो केवल पैसे की बर्बादी है. क्योंकि गंगा घाट बनाने से गंगा कभी भी स्वच्छ नहीं होगी. ईटीवी भारत संवाददाता ने इस संदर्भ में पर्यावरणविद प्रो. डीएस मलिक से विस्तार से बात की.उन्होंने बताया कि गंगा के उत्तराखंड क्षेत्र में गंगा पर बने हाइड्रो प्रोजेक्ट और बांध परियोजनाएं गंगा के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं. भले ही उत्तराखंड को इन परियोजनाओं के चलते कार्य ऊर्जा राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ हो, लेकिन इन परियोजनाओं की वजह से गंगा में अस्तित्व खत्म हो रहा है. साथ ही गंगा में रहने वाले जलीय जीवों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.

प्रों डीएस मलिक ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी परियोजना ऑल वेदर रोड के कंस्ट्रक्शन के कारण उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में बहने वाली छोटी-छोटी गंगा की सहायक नदियां खत्म हो रही हैं. जिससे गंगा के जल की गुणवत्ता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन गंगा को सही मायनों में स्वच्छ और अविरल बनाना है तो आमजनता को जागरूक होकर इस मिशन का साथ देना होगा. ये कार्य जनमानस के सहयोग के से ही पूरा हो सकता है.

Intro:एंकर- सनातन हिंदू धर्म में गंगा महज एक नदी नहीं है बल्कि इसे माता का दर्जा प्राप्त है, गंगा के बारे में हिंदू धर्म में माना जाता है कि यह पतित पावनी एवं कलिमल नाशिनी है जिसमें स्नान मात्र से व्यक्ति के सभी पाप कर्म दूर हो जाते हैं एवं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिस गंगा में स्नान करके मनुष्य को पाप से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है आज हालात यह है कि मनुष्य मनुष्य के पाप के कारण ही मां गंगा को स्वयं मोक्ष नहीं मिल पा रहा है। गंगा में आज भी कई गंदे नाले, मल मूत्र के सीवर, प्लास्टिक कूड़ा करकट बड़ी संख्या में जा रहा है, सरकार भले ही कितने भी दावे क्यों न करें लेकिन हकीकत तो यही है कि गंगा आज भी अपनी अविरलता और निर्मलता के लिए तड़पती नजर आती है।


Body:VO1 - गंगा के जीर्णोद्धार के लिए 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग से एक मंत्रालय का निर्माण किया था जिसका नाम था जल संसाधन मंत्रालय नदी विकास और गंगा कायाकल्प, लेकिन अब इस मंत्रालय से गंगा का नाम गायब है मंत्रालय का नया नाम है जल शक्ति मंत्रालय। गंगा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने ड्रीम प्रोजेक्ट नमामि गंगे परियोजना के तहत 20 हजार करोड़ रुपए का बजट रखा था, लक्ष्य था 2020 से पहले गंगा को पूरी तरीके से निर्मल और अविरल किया जाएगा, लेकिन आज की स्थिति देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि आने वाले 1 साल में गंगा पूरी तरीके से स्वच्छ हो सकती है क्योंकि आज भी गंगा में तमाम तरीके का प्रदूषण जारी है एवं इसकी अविरलता को नुकसान पहुंचने के लिए कई प्रोजेक्ट और बांध गंगा के सीने पर खड़े है और कई प्रस्तावित हैं। सरकार का दावा है कि गंगा में गिरने वाले नालो और सीवेज को रोकने के लिए एसटीपी बनाए जा रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत बताती है कि इन एसटीपी की क्षमता ही उतनी नहीं है जितने की आवश्यकता है।

VO2 - गंगा पर काम करने वाली संस्था बीग भागीरथ प्रमुख एवं गंगा एक्टिविस्ट शिखर पालीवाल का कहना है कि गंगा पर मोदी सरकार ने वह काम कर दिखाया है जो कि पिछले 50 सालों में भी नहीं हुआ था, गंगा में गिरने वाले नालों को टेप किया जा रहा है एवं कभी-कभी आने वाली तकनीकी समस्याओं से भी निपटने का पूरा बंदोबस्त सरकार द्वारा किया जा रहा है, वहीं गंगा एक्टिविस्ट रामेश्वर गौड बताते हैं कि भले ही गंगा को मां का दर्जा प्राप्त हो लेकिन सरकारें गंगा को मां जैसी इज्जत नहीं देती दिख रही हैं, उनका कहना है कि आज भी लगाता है गंगा में मल मूत्र युक्त सीवर जा रहा है, भले ही गंदे नालों और सीवर को रोकने के लिए एसटीपी और पंपिंग स्टेशन बनाने की बात की जा रही हो लेकिन हकीकत यह है कि यह जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रहे हैं। वही उनका आरोप है कि नमामि गंगे परियोजना के अंतर्गत कई सौ करोड़ रुपए खर्च करके गंगा घाट बनाए जा रहे हैं जो कि पूरे तरीके से पैसे की बर्बादी है क्योंकि गंगा घाट बनाने से गंगा कभी भी स्वक्ष नहीं होगी।

बाइट- शिखर पालीवाल, गंगा एक्टिविस्ट, हरिद्वार

बाइट- रामेश्वर गौड़, गंगा एक्टिविस्ट, हरिद्वार


Conclusion:VO2- ईटीवी भारत ने जब इस पूरे विषय में विशेषज्ञ की राय जाननी चाही तो बड़े ही चौंकाने वाले खुलासे हुए, पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से गंगा और गंगा में रहने वाले जल जीवो पर काम कर रहे हो पर्यावरणविद प्रो डीएस मलिक बताते हैं कि गंगा के अपर बेसिन यानी उत्तराखंड वाले क्षेत्र में गंगा पर बने हाइड्रो प्रोजेक्ट और बांध परियोजनाएं गंगा के लिए बड़ी ही हानिकारक साबित हो रही हैं, भले ही उत्तराखंड को इन परियोजनाओं के कार्य ऊर्जा राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ लेकिन इन परियोजनाओं की वजह से गंगा में गंगात्व खत्म हो रहा है साथ ही इसका गंगा में रहने वाले जल जीव एवं मछलियों पर बड़ा ही नकारात्मक असर पड़ रहा है, गंगा पर खड़े बांधो की वजह से गंगा की प्राकृतिक अभियंता को हानी पहुंच रही है जो कि बड़ा ही नुकसानदायक है। प्रो डीएस मलिक बताते है कि उत्तराखंड में गंगा को हानि पहुंचाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक ऑल वेदर रोड का भी बड़ा हाथ है, ऑल वेदर रोड के कंस्ट्रक्शन के कारण उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में बहने वाली छोटी छोटी गंगा की सहायक नदियां खत्म हो रही है जिससे गंगा और गंगा के जल की गुणवत्ता पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है। प्रो डीएस मलिक का मानना है कि सरकार की तरफ से तो कई योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन अगर गंगा को सही मायनों में स्वच्छ और अविरल बनाना है तो उस पर आम लोगों को भी जागरूक होकर साथ देना पड़ेगा, बिना जनमानस के सहयोग के गंगा कभी भी स्वक्ष नहीं हो सकती।


बाइट- प्रो डीएस मलिक, वरिष्ठ पर्यावरणविद
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