हल्द्वानी: गणेश चतुर्थी के अवसर पर नदियों में गणपति सहित अन्य मूर्तियों का विसर्जन पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. इस पर पर्यावरण प्रेमी भी आहत नजर आ रहे हैं. गंगा नदी सहित अन्य नदियों की सफाई के लिए सरकार और सामाजिक संगठन कई कदम उठा रहे हैं. जिससे नदियों को दूषित होने से बचाया जा रहा है. इसके अलावा नदियों में रहने वाले जीवों को लेकर भी ये संगठन काम करते रहते हैं. लेकिन आस्था के नाम पर हानिकारक कैमिकल पदार्थों से बनी मूर्तियां पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों के काम को पलीता लगा रही हैं. लोग बड़ी संख्या में इस तरह कू मूर्तियों का विसर्जन नदियों में कर रहे हैं जो कि पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है.
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बता दें कि, गणेश महोत्सव हो या दुर्गा पूजा महोत्सव जिले की सभी मूर्तियों का विसर्जन हल्द्वानी के रानी बाग स्थित पवित्र गारगी नदी में किया जाता है. इन मूर्तियों के विसर्जन से नदी के पर्यावरण पर खासा असर देखा जा रहा है. पर्यावरण प्रेमी यह मान रहे हैं कि पहले भगवान की मूर्तियां चिकनी मिट्टी से बनाई जाती थीं, लेकिन आधुनिक दौर में भगवान की मूर्तियों में मिलावट की जा रही है. प्लास्टर ऑफ पेरिस के साथ ही कई तरह के केमिकल रंगों से मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है. जिससे विसर्जन के दौरान नदियों का पानी दूषित होता जा रहा है.
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साथ ही नदियों में पलने वाले जीव जंतु भी इसका शिकार हो रहे हैं. केमिकल युक्त मूर्तियां महीनों और सालों तक पानी में नहीं घुलती हैं. वहीं पर्यावरण प्रेमी तनुजा जोशी का कहना है कि पहले चिकनी मिट्टी से मूर्तियों का निर्माण किया जाता था, जो विसर्जन के दौरान नदियों को दूषित नहीं करती थी. बदलते दौर में केमिकल से बनी मूर्तियां नदियों के पानी को दूषित करने में सबसे बड़ा कारण बन चुकी हैं.
पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पिछले कई दशक से नदियों में इस तरह के मूर्तियों को विसर्जन करने को लेकर वह आवाज बुलंद कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस आस्था के नाम पर नदियों को लगातार दूषित किया जा रहा है, जो बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. यह नदियां दूषित न हो इसके लिए सभी को जागरुक होने की जरूरत है.