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पर्यावरण बचाने की राह में आस्था बन रही रोड़ा, कैमिकल से बनी मूर्तियां पहुंचा रही नदियों को नुकसान - चिकनी मिट्टी से मूर्तियों

आस्था के नाम पर भगवान की मूर्तियों में भी कई तरह के कैमिकल मिलाये जा रहे हैं. जो विसर्जन के दौरान जल पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक साबित हो रहा है. इस पर पर्यावरण प्रेमी काफा आहत नजर आ रहे हैं. पर्यावरण प्रेमियों ने सरकार से इसे लेकर एक्ट बनाने की मांग की है.

मूर्ति विसर्जन से पर्यावरण को पहुंच रहा नुकसान.
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Published : Sep 12, 2019, 9:57 PM IST

हल्द्वानी: गणेश चतुर्थी के अवसर पर नदियों में गणपति सहित अन्य मूर्तियों का विसर्जन पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. इस पर पर्यावरण प्रेमी भी आहत नजर आ रहे हैं. गंगा नदी सहित अन्य नदियों की सफाई के लिए सरकार और सामाजिक संगठन कई कदम उठा रहे हैं. जिससे नदियों को दूषित होने से बचाया जा रहा है. इसके अलावा नदियों में रहने वाले जीवों को लेकर भी ये संगठन काम करते रहते हैं. लेकिन आस्था के नाम पर हानिकारक कैमिकल पदार्थों से बनी मूर्तियां पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों के काम को पलीता लगा रही हैं. लोग बड़ी संख्या में इस तरह कू मूर्तियों का विसर्जन नदियों में कर रहे हैं जो कि पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है.

मूर्ति विसर्जन से पर्यावरण को पहुंच रहा नुकसान.

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बता दें कि, गणेश महोत्सव हो या दुर्गा पूजा महोत्सव जिले की सभी मूर्तियों का विसर्जन हल्द्वानी के रानी बाग स्थित पवित्र गारगी नदी में किया जाता है. इन मूर्तियों के विसर्जन से नदी के पर्यावरण पर खासा असर देखा जा रहा है. पर्यावरण प्रेमी यह मान रहे हैं कि पहले भगवान की मूर्तियां चिकनी मिट्टी से बनाई जाती थीं, लेकिन आधुनिक दौर में भगवान की मूर्तियों में मिलावट की जा रही है. प्लास्टर ऑफ पेरिस के साथ ही कई तरह के केमिकल रंगों से मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है. जिससे विसर्जन के दौरान नदियों का पानी दूषित होता जा रहा है.

यह भी पढ़ें: कोटद्वारः पुलिस चेकिंग के दौरान पकड़ा गया अवैध शराब से लदा ट्रक, चालक फरार

साथ ही नदियों में पलने वाले जीव जंतु भी इसका शिकार हो रहे हैं. केमिकल युक्त मूर्तियां महीनों और सालों तक पानी में नहीं घुलती हैं. वहीं पर्यावरण प्रेमी तनुजा जोशी का कहना है कि पहले चिकनी मिट्टी से मूर्तियों का निर्माण किया जाता था, जो विसर्जन के दौरान नदियों को दूषित नहीं करती थी. बदलते दौर में केमिकल से बनी मूर्तियां नदियों के पानी को दूषित करने में सबसे बड़ा कारण बन चुकी हैं.

पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पिछले कई दशक से नदियों में इस तरह के मूर्तियों को विसर्जन करने को लेकर वह आवाज बुलंद कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस आस्था के नाम पर नदियों को लगातार दूषित किया जा रहा है, जो बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. यह नदियां दूषित न हो इसके लिए सभी को जागरुक होने की जरूरत है.

हल्द्वानी: गणेश चतुर्थी के अवसर पर नदियों में गणपति सहित अन्य मूर्तियों का विसर्जन पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. इस पर पर्यावरण प्रेमी भी आहत नजर आ रहे हैं. गंगा नदी सहित अन्य नदियों की सफाई के लिए सरकार और सामाजिक संगठन कई कदम उठा रहे हैं. जिससे नदियों को दूषित होने से बचाया जा रहा है. इसके अलावा नदियों में रहने वाले जीवों को लेकर भी ये संगठन काम करते रहते हैं. लेकिन आस्था के नाम पर हानिकारक कैमिकल पदार्थों से बनी मूर्तियां पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों के काम को पलीता लगा रही हैं. लोग बड़ी संख्या में इस तरह कू मूर्तियों का विसर्जन नदियों में कर रहे हैं जो कि पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है.

मूर्ति विसर्जन से पर्यावरण को पहुंच रहा नुकसान.

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बता दें कि, गणेश महोत्सव हो या दुर्गा पूजा महोत्सव जिले की सभी मूर्तियों का विसर्जन हल्द्वानी के रानी बाग स्थित पवित्र गारगी नदी में किया जाता है. इन मूर्तियों के विसर्जन से नदी के पर्यावरण पर खासा असर देखा जा रहा है. पर्यावरण प्रेमी यह मान रहे हैं कि पहले भगवान की मूर्तियां चिकनी मिट्टी से बनाई जाती थीं, लेकिन आधुनिक दौर में भगवान की मूर्तियों में मिलावट की जा रही है. प्लास्टर ऑफ पेरिस के साथ ही कई तरह के केमिकल रंगों से मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है. जिससे विसर्जन के दौरान नदियों का पानी दूषित होता जा रहा है.

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साथ ही नदियों में पलने वाले जीव जंतु भी इसका शिकार हो रहे हैं. केमिकल युक्त मूर्तियां महीनों और सालों तक पानी में नहीं घुलती हैं. वहीं पर्यावरण प्रेमी तनुजा जोशी का कहना है कि पहले चिकनी मिट्टी से मूर्तियों का निर्माण किया जाता था, जो विसर्जन के दौरान नदियों को दूषित नहीं करती थी. बदलते दौर में केमिकल से बनी मूर्तियां नदियों के पानी को दूषित करने में सबसे बड़ा कारण बन चुकी हैं.

पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पिछले कई दशक से नदियों में इस तरह के मूर्तियों को विसर्जन करने को लेकर वह आवाज बुलंद कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस आस्था के नाम पर नदियों को लगातार दूषित किया जा रहा है, जो बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. यह नदियां दूषित न हो इसके लिए सभी को जागरुक होने की जरूरत है.

Intro:sammry- नदियों में गणपति सहित अन्य मूर्तियों की विसर्जन पर्यावरण के लिए हो रहा है खतरनाक, पर्यावरण प्रेमी भी आहत। एंकर- गंगा नदी सहित अन्य नदियों की सफाई के लिए सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं। जिससे कि नदियों का पर्यावरण दूषित ना हो और लोगों को स्वच्छ जल के साथ साथ नदियों के जीव भी सुरक्षित रहें लेकिन आस्था के नाम पर नदियों मे मूर्ति विसर्जन कर पर्यावरण के साथ जमकर खिलवाड़ किया जा रहा है। गणेश महोत्सव हो या दुर्गा पूजा महोत्सव जिले की सभी मूर्तियों का विसर्जन हल्द्वानी के रानी बाग स्थित पवित्र गागरी नदी मे किया जाता है लेकिन इन मूर्तियों के विसर्जन से नदी के पर्यावरण पर खासा असर देखा जा रहा है। पर्यावरण प्रेमी भी मान रहे हैं कि आधुनिक मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस सहित कई तरह की केमिकल के प्रयोग से बनाई गई मूर्तियां होती है जो पर्यावरण के साथ साथ जल जंतु के लिए भी खतरा बन रहा है।


Body:हिंदू धर्म में भगवान के प्रति सभी का गहरा आस्था होता है। लेकिन आस्था के नाम पर भगवान की मूर्तियों में भी कई तरह की कैमिकल का मिलावट किया जा रहा है जो विसर्जन के दौरान जल पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक है जो नदी के जल को दूषित भी कर रहा।पहले भगवान की मूर्तियां मिट्टी और घास कागज की बनाई जाती थी लेकिन आधुनिक दौर में भगवान की मूर्तियों में भी मिलावट की जा रही है प्लास्टर पेरिस के साथ-साथ कई तरह के केमिकल और केमिकल के अंगों द्वारा मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है जो विसर्जन के दौरान नदियों को पानी को दूषित कर रहा है साथ ही नदियों में पलने वाले जीव जंतु भी इसका शिकार हो रहे हैं। केमिकल युक्त बनी मूर्तियां महीनों और सालों तक पानी में नहीं खुलती है । पर्यावरण प्रेमी तनुजा जोशी का कहना है कि पहले चिकनी मिट्टी और लकड़ी और कागज से मूर्तियों का निर्माण किया जाता था जो विसर्जन के दौरान नदियों को दूषित नहीं करता था लेकिन बदलते हुए और में केमिकल से बनी मूर्तियां नदियों के पानी को दूषित करें में सबसे बड़ा कारण बन रहा है।


Conclusion:पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पिछले कई दशक से नदियों में इस तरह के मूर्तियों को विसर्जन करने को लेकर वह दो आवाज बुलंद कर रहे हैं। उनका भी भगवान के प्रति सभी का आस्था होता है लेकिन इस आस्था के नाम पर नदियों को लगातार दूषित किया जा रहा है जो बढ़ा खतरा पैदा हो सकता है। उनका कहना है कि हमारी नदियां दूषित ना हो इसके लिए सब को जागरूक होने की जरूरत है। बाइट -तनूजा जोशी पर्यावरण प्रेमी
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