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सरकार! दिल का मामला है, कैसे इलाज होगा, न डॉक्टर हैं, ना ही सर्जन - patients suffering

सुशीला तिवारी और बेस हॉस्पिटल में हार्ट सर्जन की तैनाती न होने से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिससे लोगों को निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है. जहां मरीजों को इलाज के लिए काफी धन व्यय करना पड़ता है.

सरकारी हॉस्पिटलों में नहीं हार्ट सर्जन मरीजों को करना पड़ रहा निजी अस्पतालों में इलाज.
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Published : Apr 22, 2019, 12:22 PM IST

हल्द्वानी: आधुनिकता और भागदौड़ भरी जिंदगी लोगों के सेहत पर भारी पड़ रही है. दिनों-दिन दिल की बीमारी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. जिसके चलते आए दिन मरीजों को इलाज के लिए अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है. वहीं, शहर के सुशीला तिवारी और बेस हॉस्पिटल में हार्ट सर्जन के नहीं होने से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिससे लोगों को निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है. कुमाऊं के सुदूर अंचल से आने वाले मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ता है.

जानकारी देते सीएमएस बेस अस्पताल एस के शाह.

बता दें कि इन दिनों बड़ी संख्या में दिल के मरीज शहर के सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. सुशीला तिवारी और बेस अस्पताल में रोजाना 250 से 300 मरीजों की ओपीडी होती है. जिनमें रोजाना 15 से 20 हार्ट पेशेंट होते हैं. लेकिन सरकारी अस्पतालों में ना ही हार्ट के डाक्टर हैं और ना ही सर्जन, जिसके चलते मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने के लिए मजबूर हैं, जहां उनकी जेब जमकर काटी जा रही है.

जानकारी के मुताबिक प्राइवेट अस्पतालों में इको जांच करीब 1000 रुपये, इंज्योग्राफी 25000 और हार्ट में स्टंट डालने के डेढ़ लाख रुपए वसूले जाते हैं. वहीं ओपन हार्ट सर्जरी दो लाख से तीन लाख रुपए में की जाती है. एसे में गरीब मरीजों के लिए इलाज कराना मुश्किल हो जाता है. शहर के निजी हार्ट स्पेशलिस्ट अस्पताल आयुष्मान योजना से बाहर हैं, जिससे मरीजों को बेहतर इलाज नहीं मिल पा रहा है.

ये भी पढ़े: जांबाज गब्बर सिंह नेगी की वीरता की कहानी, जर्मन सेना से लोहा लेते हुए 20 साल की अल्पायु में हो गये थे शहीद

वहीं बेस अस्पताल के सीएमएस एस के शाह ने बताया कि हार्ट पेशेंट के मरीज सरकारी अस्पताल में आते हैं, लेकिन उनके इलाज के लिए कोई भी कॉर्डियोलॉजिस्ट या सर्जन नहीं है. जिसके चलते मरीजों को प्राइवेट अस्पताल में रेफर किया जाता है.

हल्द्वानी: आधुनिकता और भागदौड़ भरी जिंदगी लोगों के सेहत पर भारी पड़ रही है. दिनों-दिन दिल की बीमारी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. जिसके चलते आए दिन मरीजों को इलाज के लिए अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है. वहीं, शहर के सुशीला तिवारी और बेस हॉस्पिटल में हार्ट सर्जन के नहीं होने से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिससे लोगों को निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है. कुमाऊं के सुदूर अंचल से आने वाले मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ता है.

जानकारी देते सीएमएस बेस अस्पताल एस के शाह.

बता दें कि इन दिनों बड़ी संख्या में दिल के मरीज शहर के सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. सुशीला तिवारी और बेस अस्पताल में रोजाना 250 से 300 मरीजों की ओपीडी होती है. जिनमें रोजाना 15 से 20 हार्ट पेशेंट होते हैं. लेकिन सरकारी अस्पतालों में ना ही हार्ट के डाक्टर हैं और ना ही सर्जन, जिसके चलते मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने के लिए मजबूर हैं, जहां उनकी जेब जमकर काटी जा रही है.

जानकारी के मुताबिक प्राइवेट अस्पतालों में इको जांच करीब 1000 रुपये, इंज्योग्राफी 25000 और हार्ट में स्टंट डालने के डेढ़ लाख रुपए वसूले जाते हैं. वहीं ओपन हार्ट सर्जरी दो लाख से तीन लाख रुपए में की जाती है. एसे में गरीब मरीजों के लिए इलाज कराना मुश्किल हो जाता है. शहर के निजी हार्ट स्पेशलिस्ट अस्पताल आयुष्मान योजना से बाहर हैं, जिससे मरीजों को बेहतर इलाज नहीं मिल पा रहा है.

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वहीं बेस अस्पताल के सीएमएस एस के शाह ने बताया कि हार्ट पेशेंट के मरीज सरकारी अस्पताल में आते हैं, लेकिन उनके इलाज के लिए कोई भी कॉर्डियोलॉजिस्ट या सर्जन नहीं है. जिसके चलते मरीजों को प्राइवेट अस्पताल में रेफर किया जाता है.

Intro: स्लग-शहर के अस्पतालों में नहीं है एक भी हार्ड डॉक्टर और हार्ट सर्जन।
रिपोर्टर- भावनाथ पंडित/ हल्द्वानी
स्लग-कुमाऊं के सबसे बड़ा महानगर हल्द्वानी शहर के सरकारी अस्पतालों में एक भी हार्ड के डॉक्टर और उसके सर्जन नहीं हैं। प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा शहर और बड़े बड़े अस्पताल लेकिन तमाम तरह के सरकारी वादे गरीबों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ दिलाने की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली सरकार पूरी तरह से फेल है और गरीब मरीजों को हार्ड के इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों में भेज दिया जाता है। कुमाऊ का सबसे बड़ा अस्पताल सुशीला तिवारी अस्पताल हो या बेस अस्पताल दोनों में नही हार्ड के डॉक्टर हैं नही हार्ड के सर्जन।


Body:इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में सबसे ज्यादा मरीज हार्ड के मरीज शहर के अस्पताल में पहुंच रहे हैं। पर्दे सरकार गरीबों के स्वास्थ्य के लिए बड़ी-बड़ी बातें करती हैं लेकिन किसी गरीब को अगर हार्ड की दिक्कत होती है तो सरकारी इलाज के अभाव में दम तोड़ देता है या फिर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए अपने घर को गिरवी रख देता है। प्राइवेट अस्पतालों में दिल के इलाज का खर्च सुन मरीज मरीज दम तोड़ देता है। हार्ड पेशेंट गरीब रोगी को आयुष्मान योजना का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है क्योंकि शहर के हार्ड स्पेशलिस्ट अस्पताल आयुष्मान योजना से बाहर है।

बात अगर हार्ड पेशेंट के शुरुआती इलाज की करें तो

इको की जांच ₹1000 जबकि इन ज्योग्राफी ₹25000 जबकि हार्ट में स्टंट डालने के डेढ़ लाख रुपए हैं जबकि ओपन हार्ट सर्जरी दो लाख से ढाई लाख रूपए में की जाती है।
बात हल्द्वानी की सुशीला तिवारी और बेस सरकारी अस्पताल की करें तो यहां रोजाना ढाई सौ से तीन सौ ओपीडी होती है। जिसमें रोजाना जिसने रोजाना 15 से 20 हार्ड पेशेंट होते हैं।


Conclusion:बेस अस्पताल के सीएमएस इसके शाह का कहना है कि हार्ट पेशेंट के मरीज सरकारी अस्पताल में आते हैं लेकिन उनके इलाज के लिए कोई भी कडियोलॉजिस्टिक डॉक्टर या सर्जन नहीं है जिसके चलते मरीजों को प्राइवेट अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है।

बाइट- एस के शाह सीएमएस बेस अस्पताल
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