हल्द्वानी: आज विश्व दिवस के अवसर पर पूरे देश में धरती को हरा-भरा करने का संकल्प लिया जा रहा है. इस दिन की शुरुआत करने का श्रेय अमेरिका के गेलॉर्ड नेल्सन को जाता है. जिन्होंने सबसे पहले औद्योगिक विकास के कारण बढ़ रहे प्रदूषण और इससे होने वाले दुष्परिणामों की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था. वहीं आज इसी कड़ी में हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक धरोहर बनकर उभर रहा है.
एफटीआई परिसर में बने वन अनुसंधान केंद्र की पौधशाला पूरे भारत से 200 से अधिक विलुप्त होती और जैव विविधता से परिपूर्ण पौधों को संरक्षित कर रहा है. यही नहीं 45 से अधिक विलुप्त होते जा रहे औषधीय पौधों को भी यहां संरक्षित किया जा रहा है. पिछले 3 सालों से देश-विदेशों में एक लाख से अधिक औषधिय पौधे यहां से उत्पादित हो चुके हैं. कासनी नाम के औषधीय पौधे का जनक भी हल्द्वानी की पौधशाला को कहा जाता है.
पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीवों के पारंपरिक तंत्र को मजबूत करने में सहायक सभी पौधों को यहां संरक्षित किया जाता है. प्रदेश की सभी विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके पौधों की प्रजाति यहां सुरक्षित मौजूद है. इसके अलावा धार्मिक महत्व रखने वाले रुद्राक्ष, पंचवटी और नवग्रह सहित कई अन्य धार्मिक महत्त्व के पौधे भी पर्यावरण संरक्षण के तहत पौधशाला की शान बने हुए हैं. आगरा का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला और राष्ट्रपति भवन जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर भी यहां की पौधशाला से गये हजारों पौधे आज उन क्षेत्रों को सुगंधित कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं.
वन अनुसंधान के प्रभारी मदन सिंह बिष्ट के अनुसार दिल्ली पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल सहित विदेशों में भी इस अनुसंधान केंद्र से लोग निशुल्क पौधे ले जाते हैं. पृथ्वी दिवस के अवसर पर ऐसी पौधशाला के प्रयोग को नहीं भुलाया जा सकता है.