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क्या है नोटा और आखिर EVM में 'NOTA' का विकल्प क्यों लाया गया, यहां जानें - ईवीएम

मतदाता को अगर कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आता है तो ऐसे में बैलेट यूनिट में वोटर के लिए नोटा भी एक विकल्प के रूप में होता है. ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है कि आखिर ये नोटा होता क्या है और किस तरह वोटर्स इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

Etv Bharat के जरिए जानें क्या होता है नोटा.
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Published : Mar 31, 2019, 9:10 PM IST

Updated : Mar 31, 2019, 10:01 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में लोकसभा की पांचों सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है. ऐसे में जहां निर्वाचन आयोग अपनी अंतिम तैयारियों में जुटा है. वहीं, सभी पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपने चुनाव प्रचार-प्रसार में पूरी ताकत झोंक दी है. हालांकि, मतदान के दिन वोटर अपने पसंद के प्रत्याशी को ही वोट देता है. लेकिन मतदाता को अगर कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आता है तो ऐसे में बैलेट यूनिट में वोटर के लिए नोटा भी एक विकल्प के रूप में होता है. ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है कि आखिर ये नोटा होता क्या है और किस तरह वोटर्स इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

Etv Bharat के जरिए जानें क्या होता है नोटा.

पढ़ें-लोकसभा चुनाव के सियासी रंग, कहीं हुए भावुक तो कहीं थिरकते दिखे प्रत्याशी


NOTA का मतलब होता है None of the above यानी 'उपयुक्त में से कोई नहीं'. बैलेट यूनिट में प्रत्याशियों के नाम और उनके पार्टी सिंबल की सूची के बाद अंत में नोटा का विकल्प होता है. ये विकल्प अक्सर वोटर तब प्रयोग में लाते हैं, जब उन्हें चुनाव में खड़े प्रत्याशियों में से कोई भी पसंद नहीं है और वे अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहते. लिहाजा वोटर NOTA का विकल्प चुन सकता है.

क्यों चुनाव प्रक्रिया में शामिल किया गया NOTA

भारत निर्वाचन आयोग ने साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दिया था कि मतदाताओ को 'उपरोक्त में से कोई नही' विकल्प प्रदान करें ताकि मतदाताओं चुनाव में खड़े उम्मीदवारों को खारिज करने की भी आज़ादी हो. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निर्वाचन आयोग ने 27 सितंबर 2013 को ईवीएम में नोटा का विकल्प उपलब्ध करवाया था.

हालांकि, इसके पीछे यह भी तर्क है कि निर्वाचन आयोग वोटिंग प्रणाली में ऐसी व्यवस्था लागू करना चाहता था जिससे यह मालूम हो सके कि कितने फीसदी लोग किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते है. ताकि वोटों की गिनती के समय प्रत्याशियों को मिले वोटों को गिनने के साथ ही नोटा विकल्प में दिए गए वोटों की भी गिनती हो सके.

पढ़ें-लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने झोंकी पूरी ताकत, कल आएंगे गृह मंत्री राजनाथ सिंह, करेंगे चार जनसभा

लेकिन जब चुनाव के दौरान नोटा की व्यवस्था नहीं थी. तब अक्सर ऐसे मतदाता चुनाव में प्रतिभाग नहीं करते थे. ऐसे में उनका मत जाया हो जाता था. इसी वजह से नोटा के विकल्प को चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया गया. ताकि सभी मतदाता अपने मत का प्रयोग कर सकें.

गुलाबी रंग का बटन

  • वोटर को अगर कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं है तो ऐसे में वो नोटा का विकल्प चुन सकता है. नोटा का विकल्प बैलेट यूनिट में सबसे नीचे होता है. नोटा विकल्प के सामने गुलाबी रंग का बटन होता है. जिस बटन को दबाकर मतदाता अपना वोट दे सकता है.


नोटा से जुड़े कुछ रोचक किस्से

नोटा से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से भी मौजूद है. इंडोनेशिया में मेयर के चुनाव हो रहे थे और मेयर के चुनाव में मात्र एक ही उम्मीदवार खड़ा था. लेकिन मतदाताओं को वह उम्मीदवार पसंद नहीं था. ऐसे में लोगों के पास नोटा का विकल्प था और उन्होंने इसक भरपूर इस्तेमाल किया. जिसके बाद नतीजा ये निकला की इकलौते उम्मीदवार को पड़े कुल वोटों की संख्या में नोटा में पड़े वोटों की संख्या ज्यादा था. लिहाजा, इंडोनेशिया में मेयर के पद पर दोबारा इलेक्शन करवाने पड़े.

इसके अलावा नोटा की वजह से पोलैंड और रूस की जनता ने चुनाव में मौजूदा सरकार को ही आईना दिखा दिया और उसका अंजाम ये हुआ कि वहां की तत्कालीन प्रधानमंत्री ही चुनाव हार गए थे. लेकिन भारत में अभी नोटा को लेकर जागरुकता कम है. लिहाजा यहां हमेशा ही नोटा का प्रतिशत कुल मतदान के प्रतिशत से कम ही रहता है. उत्तराखंड की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश में करीब 48,000 वोट नोटा में पड़े थे. जबकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में 50,000 से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया था.

देहरादून: उत्तराखंड में लोकसभा की पांचों सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है. ऐसे में जहां निर्वाचन आयोग अपनी अंतिम तैयारियों में जुटा है. वहीं, सभी पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपने चुनाव प्रचार-प्रसार में पूरी ताकत झोंक दी है. हालांकि, मतदान के दिन वोटर अपने पसंद के प्रत्याशी को ही वोट देता है. लेकिन मतदाता को अगर कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आता है तो ऐसे में बैलेट यूनिट में वोटर के लिए नोटा भी एक विकल्प के रूप में होता है. ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है कि आखिर ये नोटा होता क्या है और किस तरह वोटर्स इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

Etv Bharat के जरिए जानें क्या होता है नोटा.

पढ़ें-लोकसभा चुनाव के सियासी रंग, कहीं हुए भावुक तो कहीं थिरकते दिखे प्रत्याशी


NOTA का मतलब होता है None of the above यानी 'उपयुक्त में से कोई नहीं'. बैलेट यूनिट में प्रत्याशियों के नाम और उनके पार्टी सिंबल की सूची के बाद अंत में नोटा का विकल्प होता है. ये विकल्प अक्सर वोटर तब प्रयोग में लाते हैं, जब उन्हें चुनाव में खड़े प्रत्याशियों में से कोई भी पसंद नहीं है और वे अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहते. लिहाजा वोटर NOTA का विकल्प चुन सकता है.

क्यों चुनाव प्रक्रिया में शामिल किया गया NOTA

भारत निर्वाचन आयोग ने साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दिया था कि मतदाताओ को 'उपरोक्त में से कोई नही' विकल्प प्रदान करें ताकि मतदाताओं चुनाव में खड़े उम्मीदवारों को खारिज करने की भी आज़ादी हो. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निर्वाचन आयोग ने 27 सितंबर 2013 को ईवीएम में नोटा का विकल्प उपलब्ध करवाया था.

हालांकि, इसके पीछे यह भी तर्क है कि निर्वाचन आयोग वोटिंग प्रणाली में ऐसी व्यवस्था लागू करना चाहता था जिससे यह मालूम हो सके कि कितने फीसदी लोग किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते है. ताकि वोटों की गिनती के समय प्रत्याशियों को मिले वोटों को गिनने के साथ ही नोटा विकल्प में दिए गए वोटों की भी गिनती हो सके.

पढ़ें-लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने झोंकी पूरी ताकत, कल आएंगे गृह मंत्री राजनाथ सिंह, करेंगे चार जनसभा

लेकिन जब चुनाव के दौरान नोटा की व्यवस्था नहीं थी. तब अक्सर ऐसे मतदाता चुनाव में प्रतिभाग नहीं करते थे. ऐसे में उनका मत जाया हो जाता था. इसी वजह से नोटा के विकल्प को चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया गया. ताकि सभी मतदाता अपने मत का प्रयोग कर सकें.

गुलाबी रंग का बटन

  • वोटर को अगर कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं है तो ऐसे में वो नोटा का विकल्प चुन सकता है. नोटा का विकल्प बैलेट यूनिट में सबसे नीचे होता है. नोटा विकल्प के सामने गुलाबी रंग का बटन होता है. जिस बटन को दबाकर मतदाता अपना वोट दे सकता है.


नोटा से जुड़े कुछ रोचक किस्से

नोटा से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से भी मौजूद है. इंडोनेशिया में मेयर के चुनाव हो रहे थे और मेयर के चुनाव में मात्र एक ही उम्मीदवार खड़ा था. लेकिन मतदाताओं को वह उम्मीदवार पसंद नहीं था. ऐसे में लोगों के पास नोटा का विकल्प था और उन्होंने इसक भरपूर इस्तेमाल किया. जिसके बाद नतीजा ये निकला की इकलौते उम्मीदवार को पड़े कुल वोटों की संख्या में नोटा में पड़े वोटों की संख्या ज्यादा था. लिहाजा, इंडोनेशिया में मेयर के पद पर दोबारा इलेक्शन करवाने पड़े.

इसके अलावा नोटा की वजह से पोलैंड और रूस की जनता ने चुनाव में मौजूदा सरकार को ही आईना दिखा दिया और उसका अंजाम ये हुआ कि वहां की तत्कालीन प्रधानमंत्री ही चुनाव हार गए थे. लेकिन भारत में अभी नोटा को लेकर जागरुकता कम है. लिहाजा यहां हमेशा ही नोटा का प्रतिशत कुल मतदान के प्रतिशत से कम ही रहता है. उत्तराखंड की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश में करीब 48,000 वोट नोटा में पड़े थे. जबकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में 50,000 से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया था.

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क्या है नोटा और आखिर EVM में 'NOTA' का विकल्प क्यों लाया गया, यहां जानें 



देहरादून: उत्तराखंड में लोकसभा की पांचों सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है. ऐसे में जहां निर्वाचन आयोग अपनी अंतिम तैयारियों में जुटा है. वहीं, सभी पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपने चुनाव प्रचार-प्रसार में पूरी ताकत झोंक दी है. हालांकि, मतदान के दिन वोटर अपने पसंद के प्रत्याशी को ही वोट देता है. लेकिन मतदाता को अगर कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आता है तो ऐसे में बैलेट यूनिट में वोटर के लिए नोटा भी एक विकल्प के रूप में होता है. ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है कि आखिर ये नोटा होता क्या है और किस तरह वोटर्स इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

NOTA का मतलब होता है None of the above यानी 'उपयुक्त में से कोई नहीं'. बैलेट यूनिट में प्रत्याशियों के नाम और उनके पार्टी सिंबल की सूची के बाद अंत में नोटा का विकल्प होता है. ये विकल्प अक्सर वोटर तब प्रयोग में लाते हैं, जब उन्हें चुनाव में खड़े प्रत्याशियों में से कोई भी पसंद नहीं है और वे अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहते. लिहाजा वोटर NOTA का विकल्प चुन सकता है. 

क्यों चुनाव प्रक्रिया में शामिल किया गया NOTA

भारत निर्वाचन आयोग ने साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दिया था कि मतदाताओ को 'उपरोक्त में से कोई नही' विकल्प प्रदान करें ताकि मतदाताओं चुनाव में खड़े उम्मीदवारों को खारिज करने की भी आज़ादी हो. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निर्वाचन आयोग ने 27 सितंबर 2013 को ईवीएम में नोटा का विकल्प उपलब्ध करवाया था. 

हालांकि, इसके पीछे यह भी तर्क है कि निर्वाचन आयोग वोटिंग प्रणाली में ऐसी व्यवस्था लागू करना चाहता था जिससे यह मालूम हो सके कि कितने फीसदी लोग किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते है. ताकि वोटों की गिनती के समय प्रत्याशियों को मिले वोटों को गिनने के साथ ही नोटा विकल्प में दिए गए वोटों की भी गिनती हो सके. 

लेकिन जब चुनाव के दौरान नोटा की व्यवस्था नहीं थी. तब अक्सर ऐसे मतदाता चुनाव में प्रतिभाग नहीं करते थे. ऐसे में उनका मत जाया हो जाता था. इसी वजह से नोटा के विकल्प को चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया गया. ताकि सभी मतदाता अपने मत का प्रयोग कर सकें.

गुलाबी रंग का बटन

वोटर को अगर कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं है तो ऐसे में वो नोटा का विकल्प चुन सकता है. नोटा का विकल्प बैलेट यूनिट में सबसे नीचे होता है. नोटा विकल्प के सामने गुलाबी रंग का बटन होता है. जिस बटन को दबाकर मतदाता अपना वोट दे सकता है.

 नोटा से जुड़े कुछ रोचक किस्से

नोटा से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से भी मौजूद है. इंडोनेशिया में मेयर के चुनाव हो रहे थे और मेयर के चुनाव में मात्र एक ही उम्मीदवार खड़ा था. लेकिन मतदाताओं को वह उम्मीदवार पसंद नहीं था. ऐसे में लोगों के पास नोटा का विकल्प था और उन्होंने इसक भरपूर इस्तेमाल किया. जिसके बाद नतीजा ये निकला की इकलौते उम्मीदवार को पड़े कुल वोटों की संख्या में नोटा में पड़े वोटों की संख्या ज्यादा था. लिहाजा, इंडोनेशिया में मेयर के पद पर दोबारा इलेक्शन करवाने पड़े. 

इसके अलावा नोटा की वजह से पोलैंड और रूस की जनता ने चुनाव में मौजूदा सरकार को ही आईना दिखा दिया और उसका अंजाम ये हुआ कि वहां की तत्कालीन प्रधानमंत्री ही चुनाव हार गए थे. लेकिन भारत में अभी नोटा को लेकर जागरुकता कम है. लिहाजा यहां हमेशा ही नोटा का प्रतिशत कुल मतदान के प्रतिशत से कम ही रहता है. उत्तराखंड की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश में करीब 48,000 वोट नोटा में पड़े थे. जबकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में 50,000 से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. 


Conclusion:
Last Updated : Mar 31, 2019, 10:01 PM IST
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