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उत्तराखंड में 19 सालों में बढ़ा खुदकुशी का ग्राफ, ये बनी वजह - उत्तराखंड में खुदकुशी का ग्राफ

देवभूमि उत्तराखंड में सुसाइड के मामलों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. प्रतिदिन औसतन एक आत्महत्या से मौत हो रही है. गौर करें तो पिछले 19 साल के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. पारिवारिक क्लेश, प्रेम प्रसंग और परीक्षा में असफल होना खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण रहा है. 14 से 35 साल के युवा सबसे ज्यादा खुदकुशी कर रहे हैं.

उत्तराखंड में बढ़ा खुदकुशी का ग्राफ.
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Published : Sep 14, 2019, 5:01 PM IST

Updated : Sep 15, 2019, 8:16 AM IST

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में विदेशों के तर्ज पर सुसाइड (आत्महत्या) का ग्राफ हर साल तेजी से बढ़ रहा है. हैरानी वाली बात ये है कि 14 से 35 साल की उम्र वाले युवा ही सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं. वहीं, महिलाओं के मुकाबले ज्यादातर पुरुष आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं. उत्तराखंड में पिछले 19 सालों में हुईं आत्महत्याओं पर एक रिपोर्ट.

आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड बनने के बाद 19 सालों में लगभग 5675 लोगों ने अलग-अलग कारणों से मौत को गले लगाया है. हालांकि, ये आंकड़े पुलिस डायरी में दर्ज उन आत्महत्या केस के हैं जिनके पोस्टमार्टम हुए हैं जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक खुदकुशी के मामले पुलिस आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं. प्रदेशभर में आत्महत्या के की मामलों का न तो पुलिस केस दर्ज हुआ है और न ही पोस्टमार्टम हुए हैं.

उत्तराखंड में बढ़े खुदकुशी के मामले.

पढ़ें: ऋषिकेश नगर निगम के खिलाफ मानवाधिकार आयोग में याचिका दायर, बस्ती तोड़ने का मामला

युवाओं में आत्महत्याओं में सबसे अधिक मामले
उत्तराखंड में आत्महत्याओं के मामले सबसे ज्यादा युवाओं में देखे जा रहे हैं, जिनकी उम्र महज 14 से 35 साल की है. पारिवारिक समस्याएं, प्रेम प्रसंग, नशे की लत और परीक्षा में असफल होना इस उम्र के ज्यादातर लोगों में खुदकुशी का कारण रहा है. इसके अलावा लंबी बीमारी, बेरोजगारी, संपत्ति विवाद, तलाक, दहेज विवाद के ज्यादातर आत्महत्या के मामले अज्ञात रूप से भी सामने आए हैं, जिनके कारण मरने वाले के साथ ही ख़त्म हो जाता है.

आत्महत्या का आंकड़ा पुरुषों में ज्यादा
पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 से दिसम्बर 2018 तक 5472 खुदकुशी के मामले सामने आए, जिसमें पुरुषों की संख्या 3396 है जबकि महिलाओं की मौत की संख्या 2075 है.

उत्तराखंड में साल 2001 जनवरी लेकर 2018 दिसंबर तक आत्महत्या करने वाले महिला व पुरुषों के आंकड़े (उत्तराखंड पुलिस विभाग से लिए गए अधिकारिक आंकड़े)

वर्ष पुरुष महिला कुल
2001 182 129 311
2002 205 156 361
2003 262 129 391
2004 148 89 237
2005 180 93 273
2006 173 153 326
2007 130 118 248
2008 104 87 191
2009 202 140 342
2010 164 117 281
2011 192 125 317
2012 249 275 424
2013 244 121 365
2014 151 56 207
2015 346 129 475
2016 99 53 152
2017 167 75 242
2018 198 131 329


कुल पुरुष आत्महत्या - 3396
कुल महिला आत्महत्या- 2075
कुल संख्या आत्महत्या - 5472


पारिवारिक मेल मिलाप की कमी एक बड़ा कारण
उत्तराखंड में साल दर साल आत्महत्याओं बढ़ने वाले मामलों को लेकर राज्य में अपराध व कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने वाले डीजी लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार की मानें तो विदेशों की तुलना में उत्तराखंड यह केस कम हैं लेकिन उसके बावजूद देवभूमि में सालाना 300 से ज्यादा खुदकुशी के मामले बेहद चिंताजनक हैं.

उनका कहना है कि परिवार के साथ पहले जिस तरह से मेल-मिलाप होता था वो आज के दौर में खत्म हो रहा है, जिसके चलते युवा लोग अकेलेपन के शिकार होकर नशे की तरफ और अन्य नकारात्मक विषयों की तरफ जा रहे हैं. यही वजह आत्महत्या को बढ़ावा दे रही है.

युवाओं का जीवन से मोहभंग: मनोवैज्ञानिक
वहीं, इन घटनाओं पर चिंता जताते हुए ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए देहरादून निवासी मनोवैज्ञानिक डॉ मुकुल शर्मा बताते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में साल दर साल 30 से 40% आत्महत्या के मामले बढ़ना बेहद चिंताजनक है. खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण अबतक के आंकड़ों के अनुसार पारिवारिक समस्या है जो पहले स्थान पर है.

डॉ शर्मा के अनुसार, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी राज्यों से 80 प्रतिशत छात्र-छात्राएं देहरादून जैसे शहरों में आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. ऐसे उन बच्चों के माता पिता को इस बात की सुध भी कम हो रही है कि उनका बच्चा किस हाल में अकेला घर से बाहर शिक्षा ग्रहण कर रहा है. कम उम्र में पढ़ाई के बोझ के अलावा अन्य कई तरह के अकेलेपन वाले मसलों को जानने के साथ उनके पास समय से न पहुंचना माता-पिता की बड़ी लापरवाही सामने आ रही हैं जिसकी वजह से कच्ची उम्र के बच्चे गलत रास्तों पर भटक रहे हैं और कई विषयों पर भारी तनाव व हताश में आने के बाद खुदकुशी जैसा घातक कदम उठा रहे हैं.

मनोवैज्ञानिक डॉक्टर शर्मा के अनुसार उनके सर्वे के मुताबिक, आज के समय में मोबाइल व सोशल मीडिया पर 17 से 18 घंटे युवा का समय बिताना यह किसी बड़ी घातक बीमारी से कम नहीं है. सर्वे के अनुसार जिस तरह से सोशल मीडिया और मोबाइल में अपराध को बढ़ाने वाले विषय परोसे जा रहे हैं उससे भी युवा पीढ़ी कई के मामलों से भटक कर गलत कदम बढ़ा रही है.

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में विदेशों के तर्ज पर सुसाइड (आत्महत्या) का ग्राफ हर साल तेजी से बढ़ रहा है. हैरानी वाली बात ये है कि 14 से 35 साल की उम्र वाले युवा ही सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं. वहीं, महिलाओं के मुकाबले ज्यादातर पुरुष आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं. उत्तराखंड में पिछले 19 सालों में हुईं आत्महत्याओं पर एक रिपोर्ट.

आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड बनने के बाद 19 सालों में लगभग 5675 लोगों ने अलग-अलग कारणों से मौत को गले लगाया है. हालांकि, ये आंकड़े पुलिस डायरी में दर्ज उन आत्महत्या केस के हैं जिनके पोस्टमार्टम हुए हैं जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक खुदकुशी के मामले पुलिस आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं. प्रदेशभर में आत्महत्या के की मामलों का न तो पुलिस केस दर्ज हुआ है और न ही पोस्टमार्टम हुए हैं.

उत्तराखंड में बढ़े खुदकुशी के मामले.

पढ़ें: ऋषिकेश नगर निगम के खिलाफ मानवाधिकार आयोग में याचिका दायर, बस्ती तोड़ने का मामला

युवाओं में आत्महत्याओं में सबसे अधिक मामले
उत्तराखंड में आत्महत्याओं के मामले सबसे ज्यादा युवाओं में देखे जा रहे हैं, जिनकी उम्र महज 14 से 35 साल की है. पारिवारिक समस्याएं, प्रेम प्रसंग, नशे की लत और परीक्षा में असफल होना इस उम्र के ज्यादातर लोगों में खुदकुशी का कारण रहा है. इसके अलावा लंबी बीमारी, बेरोजगारी, संपत्ति विवाद, तलाक, दहेज विवाद के ज्यादातर आत्महत्या के मामले अज्ञात रूप से भी सामने आए हैं, जिनके कारण मरने वाले के साथ ही ख़त्म हो जाता है.

आत्महत्या का आंकड़ा पुरुषों में ज्यादा
पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 से दिसम्बर 2018 तक 5472 खुदकुशी के मामले सामने आए, जिसमें पुरुषों की संख्या 3396 है जबकि महिलाओं की मौत की संख्या 2075 है.

उत्तराखंड में साल 2001 जनवरी लेकर 2018 दिसंबर तक आत्महत्या करने वाले महिला व पुरुषों के आंकड़े (उत्तराखंड पुलिस विभाग से लिए गए अधिकारिक आंकड़े)

वर्ष पुरुष महिला कुल
2001 182 129 311
2002 205 156 361
2003 262 129 391
2004 148 89 237
2005 180 93 273
2006 173 153 326
2007 130 118 248
2008 104 87 191
2009 202 140 342
2010 164 117 281
2011 192 125 317
2012 249 275 424
2013 244 121 365
2014 151 56 207
2015 346 129 475
2016 99 53 152
2017 167 75 242
2018 198 131 329


कुल पुरुष आत्महत्या - 3396
कुल महिला आत्महत्या- 2075
कुल संख्या आत्महत्या - 5472


पारिवारिक मेल मिलाप की कमी एक बड़ा कारण
उत्तराखंड में साल दर साल आत्महत्याओं बढ़ने वाले मामलों को लेकर राज्य में अपराध व कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने वाले डीजी लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार की मानें तो विदेशों की तुलना में उत्तराखंड यह केस कम हैं लेकिन उसके बावजूद देवभूमि में सालाना 300 से ज्यादा खुदकुशी के मामले बेहद चिंताजनक हैं.

उनका कहना है कि परिवार के साथ पहले जिस तरह से मेल-मिलाप होता था वो आज के दौर में खत्म हो रहा है, जिसके चलते युवा लोग अकेलेपन के शिकार होकर नशे की तरफ और अन्य नकारात्मक विषयों की तरफ जा रहे हैं. यही वजह आत्महत्या को बढ़ावा दे रही है.

युवाओं का जीवन से मोहभंग: मनोवैज्ञानिक
वहीं, इन घटनाओं पर चिंता जताते हुए ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए देहरादून निवासी मनोवैज्ञानिक डॉ मुकुल शर्मा बताते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में साल दर साल 30 से 40% आत्महत्या के मामले बढ़ना बेहद चिंताजनक है. खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण अबतक के आंकड़ों के अनुसार पारिवारिक समस्या है जो पहले स्थान पर है.

डॉ शर्मा के अनुसार, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी राज्यों से 80 प्रतिशत छात्र-छात्राएं देहरादून जैसे शहरों में आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. ऐसे उन बच्चों के माता पिता को इस बात की सुध भी कम हो रही है कि उनका बच्चा किस हाल में अकेला घर से बाहर शिक्षा ग्रहण कर रहा है. कम उम्र में पढ़ाई के बोझ के अलावा अन्य कई तरह के अकेलेपन वाले मसलों को जानने के साथ उनके पास समय से न पहुंचना माता-पिता की बड़ी लापरवाही सामने आ रही हैं जिसकी वजह से कच्ची उम्र के बच्चे गलत रास्तों पर भटक रहे हैं और कई विषयों पर भारी तनाव व हताश में आने के बाद खुदकुशी जैसा घातक कदम उठा रहे हैं.

मनोवैज्ञानिक डॉक्टर शर्मा के अनुसार उनके सर्वे के मुताबिक, आज के समय में मोबाइल व सोशल मीडिया पर 17 से 18 घंटे युवा का समय बिताना यह किसी बड़ी घातक बीमारी से कम नहीं है. सर्वे के अनुसार जिस तरह से सोशल मीडिया और मोबाइल में अपराध को बढ़ाने वाले विषय परोसे जा रहे हैं उससे भी युवा पीढ़ी कई के मामलों से भटक कर गलत कदम बढ़ा रही है.

Intro:pls नोट डेस्क- महोदय यह स्टोरी स्पेशल है..इस स्पेशल स्टोरी के विजुअल,बाईट और one to one सभी फ़ीड लाइव व्यू 08 से भेजे गए हैं- फ़ाइल- Suicide case


summary-देवभूमि उत्तराखंड में तेज़ी से बढ़ता सुसाइड केस का ग्राफ़, प्रतिदिन औसतन एक आत्महत्या से मौत,18 साल के आंकड़े चौकानें वाले, पारिवारिक क्लेश और प्रेम प्रसंग, परीक्षा में असफल होना सबसे बड़ा कारण, 14 से 35 साल के युवा कर रहे हैं सबसे ज्यादा खुदकुशी..


देवभूमि उत्तराखंड में विदेशों के तर्ज पर सुसाइड (आत्महत्या) का ग्राफ़ तेज़ी से साल दर साल बढ़ता जा रहा है.. जो अपने आप में चिंता का विषय हैं... राज्य में औसतन प्रतिदिन एक कि मौत आत्महत्या के कारण से हो रही है। वर्तमान समय में खुदकुशी के ज्यादातर कारण- पारिवारिक क्लेश,प्रेम प्रसंग,परीक्षा में असफल होना या फिर बीमारी जैसे विषय सबसे ज्यादा आ रहे हैं.. इतना ही नही सबसे हैरानी वाली बात यह है कि 14 से 35 साल की उम्र वाले युवा ही सबसे ज्यादा आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं। राज्य में महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादातर आत्महत्या जैसे दुखद कदम उठा रहे है।

उत्तराखंड में पिछले 19 सालों में लगभग 5675 लोगों ने अलग-अलग कारणों से आत्महत्या कर मौत को गले लगाया है। हालांकि यह आंकड़े पुलिस डायरी में दर्ज उन आत्महत्याओं केस हैं जिनके पोस्टमार्टम हुए है। जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक खुदकुशी मामलों के पुलिस आंकड़ो से कही ज्यादा संख्या में हैं क्योंकि प्रदेशभर कई आत्महत्या मामलों का नातो पुलिस केस हुआ हैं और नाही पोस्टमार्टम नहीं हुए हैं।


Body:पारिवारिक क्लेश, प्रेम प्रसंग ,परीक्षा में असफल होना आत्महत्या की सबसे ज्यादा कारण

उत्तराखंड में आत्महत्याओं के मामले सबसे ज्यादा युवाओं में देखे जा रहे हैं जिनकी उम्र 14 से 35 साल की है... इस उम्र के ज्यादातर लोग- पारिवारिक समस्याएं ,प्रेम प्रसंग,नशे की लत और परीक्षा में असफल होना सबसे अधिक कारण के रूप में सामने आ रहे हैं। इसके अलावा खुदकुशी के मामले- लंबी बीमारी बेरोजगारी, संपत्ति विवाद, बेरोजगारी, तलाक, दहेज विवाद के अलावा ज्यादातर आत्महत्या के मामले अज्ञात रूप से भी सामने आए हैं जिनके कारण मरने वाले के साथ ही ख़त्म हो जाता हैं।

महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की आत्महत्या की संख्या ज्यादा

पुलिस विभाग के आंकड़ों मुताबिक उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 से दिसम्बर 2018 तक 5472 खुदकुशी के मामले सामने आए हैं जिसमें से पुरुषों की संख्या 3396 है जबकि महिलाओं की मौत की संख्या 2075 है।



उत्तराखंड में 2001जनवरी लेकर 2018 दिसंबर तक आत्महत्या करने वाले महिला व पुरुषों के सरकारी आंकड़े..( उत्तराखंड पुलिस विभाग से लिए गए अधिकारी आंकड़े)


1- वर्ष- पुरुष - महिला- कुल
2- 2001- 182 129 311
3- 2002- 205 156 361
4- 2003- 262 129 391
5- 2004- 148 89 237
6- 2005- 180 93 273
7- 2006 173 153 326
8- 2007 130 118 248
9 2008 104 87 191
10 2009 202 140 342
11 2010 164 117 281
12 2011 192 125 317
13 2012 249 275 424
14 2013 244 121 365
15 2014 151 56 207
16 2015 346 129 475
17 2016 99 53 152
18 2017 167 75 242
19 2018 198 131 329

कुल पुरुष आत्महत्या - 3396
कुल महिला आत्महत्या- 2075
कुल संख्या आत्महत्या - 5472


पारिवारिक मेल मिलाप की कमी आत्महत्या का एक बड़ा कारण: डीजी

वहीं उत्तराखंड में साल दर साल आत्महत्याओं बढ़ने वाले मामलों को लेकर राज्य में अपराध व कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने वाले महानिदेशक अशोक कुमार की माने तो विदेशी स्टेटस की तुलना उत्तराखंड यह केस कम है लेकिन उसके बावजूद देवभूमि में सालाना 300 से ज्यादा खुदकुशी के मामलें अपने आप में बेहद चिंताजनक है। पारिवारिक समस्या प्रेम प्रसंग परीक्षाओं में असफल होना यह मुख्य कारण जो आंकड़ों के अनुसार सामने आए हैं इसके लिए कहीं ना कहीं जीवन में संतुष्टि को ना आप ना ना सबसे बड़ी समस्या सामने आ रही है परिवार के साथ पहले जिस तरह से मेल मिलाप होता था वह आज के दौर में बिछड़ता जा रहा है जिसके चलते युवा लोग अकेलेपन के शिकार होकर नशे की तरफ और अन्य नकारात्मक विषयों की तरफ जा रहे हैं जो आत्महत्या को बढ़ावा दे रही है।


बाइट- अशोक कुमार, महानिदेशक, अपराध व कानून व्यवस्था उत्तराखंड

छोटी-छोटी असफलता का सामना कर ही बड़ी सफलता को पाया जा सकता है: डीजी

डीजी अशोक कुमार के मुताबिक जीवन में चुनौतियों का सामना करना सबसे बड़ी बात है असफलता से भागने वाले गलत कदम उठा रहे हैं जीवन में दो तरह के रास्ते हैं एक फाइट और दूसरी फ्लाइट मतलब चुनौती का सामना करो या भाग जाओ ऐसे में जीवन में जो लोग फाइट को छोड़ फ्लाइट की तरफ जा रहे हैं वह असफलता को जीवन मानकर अपनी जीवन लीला समाप्त करने में लगे हैं जो बेहद दुख का विषय है छोटी-छोटी असफलताओं से इंसान को भागने के बजाय उनका सामना कर आगे बढ़ने की जरूरत है जीवन में हर छोटी से बड़ी चुनौती असफलता का सामना कर ही हम सफलता की ओर बढ़ सकते हैं तभी जीवन और सफलता का महत्व समझ आता है।

बाइट- अशोक कुमार, महानिदेशक, अपराध व कानून व्यवस्था उत्तराखंड


युवा पीढ़ी अपनी पूरी ऊर्जा सकारात्मक विषय पर लगाया ना की नकारात्मक पर: डीजी

डीजी अशोक कुमार के मुताबिक उनकी ओर से युवा पीढ़ी को यह संदेश जाता है कि वह अपनी पूरी ऊर्जा सकारात्मक चीजों में लगाया ना की नकारात्मक जैसे विषयों पर अपने धकेले... नकारात्मक दिशा में नशे की लत सबसे बड़ा जीवन को अंधकार में बनाती है उसके साथ ही एक तरफा प्रेम प्रसंग और सोशल मीडिया भी काफी हद तक जीवन को प्रभावित करती जा रही है।

बाइट- अशोक कुमार, महानिदेशक, अपराध व कानून व्यवस्था उत्तराखंड





Conclusion:परिवार का मेलजोल व माता-पिता की दूरियां बढ़ना युवाओं के जीवन से मोहभंग कर रही हैं: मनोवैज्ञानिक

वही उत्तराखंड में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ने पर चिंता जताते हुए ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए देहरादून के मनोवैज्ञानिक डॉ मुकुल शर्मा की माने तो देवभूमि उत्तराखंड में साल दर साल 30 से 40% आत्महत्या के मामले बढ़ना बेहद चिंता का विषय है.. खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण अब तक के आंकड़ों के अनुसार पारिवारिक समस्या पहले स्थान है.. पहले जिस तरह से माता - पिता परिवार एक दूसरे को समय देकर आपसी बातों पर चिंतन मनन कर एक दूसरे का सहयोग होता था वह वर्तमान समय में खत्म होता जा रहा है जो कहीं ना कहीं युवाओं के जीवन में भटकने का बड़ा कारण है। डॉ शर्मा के अनुसार आप हत्या के कारणों में एक तरफा प्रेम प्रसंग जैसी कई बार गलत फ़हमी भी आज युवा पीढ़ी में सामने आ रही है जब सच्चाई सामने आती है तो जीवन को खत्म करने की तरफ जाता है। इस मामले पर भी परिवार का समय पर सहयोग ना मिलना समस्या है। जिसके कारण नशा, तनाव ,फोबिया (डर) डांट-फटकार जैसी बातें भी युवाओं में खुदकुशी का कारण बन रही है।

प्रतिस्पर्धा के दौर में बड़े सपने टूटने की हताशा-युवाओं में ग़लत घर कर रही हैं: मनोवैज्ञानिक

मनोवैज्ञानिक डॉक्टर मुकुल शर्मा के अनुसार आज सबसे ज्यादा तादात में युवाओं द्वारा खुदकुशी के मामले आ रहे हैं जिसको रोकना बेहद जरूरी है आज के आधुनिक युग में बड़े-बड़े सपने देखना और उनके पूरे ना होने से हताशा का सामना करने वाले युवा आत्महत्या जैसे दुखद कदम की ओर की ओर बढ़ रहे हैं।
माता-पिता की सबसे बड़ी संपत्ति उनके बच्चे होते हैं ऐसे में उनको सबसे बड़ी प्राथमिकता देकर अपने साथ जोड़ने की जरूरत है जिससे इस तरह के दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को कम किया जा सकता हैं।

घर से बाहर आकर स्कूल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं से माता पिता लगाव कम होना आत्महत्या का एक कारण: मनोवैज्ञानिक

डॉ शर्मा के अनुसार उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी राज्यों से 80 प्रतिशत छात्र-छात्राएं देहरादून जैसे शहरों में आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ऐसे उन बच्चों के माता पिता को इस बात की सुध भी कम हो रही है कि उनका बच्चा किस हाल में अकेला घर से बाहर शिक्षा ग्रहण कर रहा है... कम उम्र में पढ़ाई बड़े बोझ के अलावा अन्य कई तरह के अकेलेपन वाले मसलों को जानने के साथ उनके पास समय से ना पहुंचना माता-पिता की बड़ी लापरवाही सामने आ रही हैं जिसकी वजह से कच्ची उम्र के बच्चे गलत रास्तों पर भटक रहे हैं और कई विषयों पर भारी तनाव व हताश में आने के बाद खुदकुशी जैसा घातक कदम उठा रहे हैं।

मोबाइल और सोशल मीडिया भी बड़ी बीमारी की तरह: मनोवैज्ञानिक

मनोवैज्ञानिक डॉक्टर शर्मा के अनुसार उनके सर्वे के मुताबिक आज के समय में मोबाइल व सोशल मीडिया पर 17 से 18 घंटे युवा का समय बिताना यह किसी बड़ी घातक बीमारी से कम नहीं हैं जबकि उनको इसकी जरूरत बड़ी लगती हैं। सर्वे के अनुसार जिस तरह से सोशल मीडिया और मोबाइल में अपराध को बढ़ाने वाले विषय परोसे जा रहे हैं उससे भी युवा पीढ़ी कई के मामलों से भटक कर गलत कदम बढ़ा रही है..जो बेहद चिंता का विषय बनता जा रहा हैं।


one to one
जाने वाले मनोवैज्ञानिक डॉ मुकुल शर्मा
Last Updated : Sep 15, 2019, 8:16 AM IST
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