देहरादून: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहां पर चारधाम बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री स्थित हैं. इसके साथ ही गढ़वाल व कुमाऊँ से लेकर मैदानी क्षेत्रों तक कई ऐसे सिद्ध मंदिर विराजमान हैं, जिनमें श्रद्धालुओं की अटूट श्रद्धा है. देवभूमि के कण-कण में ऐसे किस्से और कहानियां इन मंदिरों के आज भी सुनाई देती हैं, जो कि श्रद्धालुओं को रोमांचित करने के साथ ही भक्तिमय कर देती हैं.
जेन्तनवाला की पहाड़ी पर है मां सन्तला देवी का मंदिर: आज ईटीवी भारत देहरादून के एक ऐसे मंदिर से आपका परिचय करवाएगा, जो कि प्रदेश की जेन्तनवाला की पहाड़ी पर विराजमान है. ये मां सन्तला देवी का मंदिर है. यहां के बारे में कहा जाता है कि आज तक कोई भी श्रद्धालु यहां से खाली हाथ नहीं लौटा है. श्रद्धालु मन्नत पूरी होने के बाद दोबारा मंदिर में अवश्य आता है और अपनी श्रद्धा अनुसार मां को अपनी भेंट सहित हलवा पूरी और नारियल का भोग लगाता है. गढ़ी कैंट के वीरपुर में पोस्टिंग आने वाली गोरखा रेजिमेंट की पलटन अपने कार्यकाल में मां को कुछ न कुछ भेंट करके जाती है. जिससे मां सीमा पर उनकी सुरक्षा करती है.
औरंगजेब ने भेजा था शादी का प्रस्ताव: औरंगजेब के सेनापति ने अपने बादशाह को बताया कि देहरादून के सन्तोरगढ़ में एक बहुत ही खूबसूरत राजकुमारी रहती है. इस पर औरंगजेब ने शादी का प्रस्ताव सन्तला देवी के लिए भेजा. लेकिन सनातनी सन्तला देवी के मना करने पर मुगलों की सेना ने संतोरगढ़ पर हमला कर दिया. सन्तला देवी और उनके भाई संतोर ने मुगलों से युद्ध किया.
औरंगजेब की सेना पर हुआ वज्रपात: इस युद्ध के दौरान जब सन्तला देवी को लगा कि मुगल युद्ध में भारी पड़ रहे हैं तो वह एक स्थान पर बैठ कर ध्यानमग्न हो गईं. कहा जाता है कि इसी दौरान बिजली गिरने से सभी मुगल सैनिक अंधे हो गए. औरंगजेब के सैनिक सन्तोरगढ़ की पहाड़ियों से नीचे गिरने लगे. ऐसे में कई सैनिक जान बचा कर भागे. उसके बाद सन्तला देवी एक शिला में परिवर्तित हो गईं.
अपने वंशज के सपने में आईं मां सन्तला देवी: महंत अनिल शर्मा बताते हैं कि उसके बाद मां सन्तला देवी उनके वंश के पातीराम के सपने में आईं और सन्तोरगढ़ में उनकी शिला स्थापना और पूजा करने को कहा. जिसके बाद शर्मा जाति के ब्राह्मणों ने सन्तोरगढ़ की पहाड़ियों पर मां सन्तला देवी के मंदिर निर्माण कर पूजा अर्चना शुरू की. उसके बाद धीरे-धीरे श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए पहुंचने लगे. कहा जाता है कि श्रद्धालु जो भी मुराद मांगते वह पूरी होती. मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धालु अपनी भेंट चढ़ाने दोबारा मंदिर जरूर आते.
ये भी पढ़ें: शिव की बारात में ऐसे नाचे हनुमान कि सब कुछ भूले !, कीजिए बजरंग बली के दक्षिण मुखी दर्शन
ऐसे पहुंचें सन्तला देवी के मंदिर: बता दें कि सन्तला देवी मंदिर के लिए देहरादून जनपद मुख्यालय से 20 किमी दूरी पर सड़क मार्ग से बस सेवा या अन्य वाहन से जेन्तनवाला पहुंचा जा सकता है. उसके बाद श्रद्धालु करीब एक किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ कर मां सन्तला देवी मंदिर पहुंचा जाता है. चढ़ाई के मार्ग में श्रद्धालुओं के रेनशेड सहित मंदिर से 20 की दूरी पर एक कुंआ प्यास बुझाने के लिए है. सन्तला देवी में सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. रविवार को मां सन्तला देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ उमड़ती है.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में चारधाम के अलावा और भी हैं बेहद खूबसूरत टूरिस्ट स्पॉट, जानें उनके बारे में