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यहां हर जगह फैली हैं प्लास्टिक की जड़ें, ऐसे कैसे साकार होगा पीएम मोदी के प्लास्टिक मुक्त भारत का सपना?

देवभूमि उत्तराखंड में कभी सरकारों ने तो कभी न्यायालय के हस्तक्षेप से कई बार प्लास्टिक को हटाने को लेकर प्रयास किए गए, लेकिन अब तक इस मामले में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लग पाई है. अब पीएम मोदी ने खुद प्लास्टिक मुक्त भारत बनाने का संकल्प किया है.

ऐसे कैसे साकार होगा पीएम मोदी के प्लास्टिक मुक्त भारत का सपना.
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Published : Aug 24, 2019, 7:27 AM IST

Updated : Aug 24, 2019, 9:51 AM IST

देहरादून: इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से प्लास्टिक मुक्त भारत की कल्पना देश के सामने रखी, लेकिन इस कल्पना के परवान चढ़ने से पहले कई ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं जिन्हें दूर किया जाना जरुरी है. आज के दौर में प्लास्टिक ने सभी क्षेत्रों में अपनी एक मजबूत भूमिका बनाई है. हर राज्य और शहर के बड़े-बड़े कृषि केंद्र या फिर सब्जी मंडी इसका बड़ा उदाहरण हैं. प्लास्टिक मुक्त करना सरकार के लिए इसलिए भी टेढ़ी खीर है क्योंकि जितना प्लास्टिक यहां बाहर देखने को मिलता है उतना ही प्लास्टिक की जड़ें यहां अंदर तक फैली हुई हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने राजधानी देहरादून की निरंजनपुर कृषि उत्पादन मंडी समिति का जायजा लिया. यहां पहुंचकर हमने जाना कि मंडी को प्लास्टिक मुक्त बनाना सरकार के लिए कितनी बड़ी चुनौती है. देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

देवभूमि उत्तराखंड में कभी सरकारों ने तो कभी न्यायालय के हस्तक्षेप से कई बार प्लास्टिक को हटाने को लेकर प्रयास किए गए, लेकिन अब तक इस मामले में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लग पाई है. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस अभियान को लेकर गंभीर हैं. उन्होंने लाल किले की प्राचीर से प्लास्टिक मुक्त समाज और देश बनाने का संकल्प लिया है. पीएम मोदी के अब तक के रिकॉर्ड को देखें तो उन्होंने जिस मुहिम की शुरुआत की है उसके अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं, जिससे लोगों को काफी उम्मीदें हैं.

ऐसे कैसे साकार होगा पीएम मोदी के प्लास्टिक मुक्त भारत का सपना?

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इन सबके बीच बात अगर देवभूमि उत्तराखंड की करें तो यहां से प्लास्टिक को हटाना बड़ी चुनौती है. उत्तराखंड को प्लास्टिक मुक्त बनाने में सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश की सरकारी कृषि मंडियां हैं. जहां हर रोज लाखों की सब्जी, फलों और अन्य खाद्य पदार्थों की आड़ में प्लास्टिक का भी जमकर व्यापार होता है. आज की तारीख में यहां प्लास्टिक की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इसके बिना मंडी की कल्पना करना मजाक सा लगता है. राजधानी की निरंजनपुर कृषि मंडी में प्लास्टिक की उपयोगिता केवल सब्जी बेचने तक ही सीमित नहीं है बल्कि कोल्ड स्टोरों से लेकर अलग-अलग तरह की खाद्य सामग्रियों की पैकिंग के लिए भी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. सब्जी मंडी से जुड़े अलग-अलग व्यवसाय के लोगों से ईटीवी भारत ने बातचीत की और प्लास्टिक की उपयोगिता को लेकर बात की.

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निरंजनपुर मंडी से अलग-अलग शिक्षण संस्थानों में सब्जियां सप्लाई करने वाले अनिल कुमार का कहना है कि वे हर रोज सब्जी मंडी से कई कुंतल सब्जियां स्कूलों और कॉलेजों को भेजते हैं.जहां से उन्हें प्लास्टिक की ही पैकिंग दी जाती है. उन्होंने कहा कि वे प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से वाकिफ हैं. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक के अलावा इतनी बड़ी खपत के लिए कोई विकल्प नहीं है. सब्जी विक्रेता जीशान का कहना है कि उन्हें भी पॉलिथीन में सब्जी बेचने का कोई शौक नहीं है लेकिन उनके पास और कोई विकल्प नहीं है.

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वहीं अगर मंडी में मौजूद बड़े व्यापारियों की बात करें तो उनकी भी अपनी ही अलग परेशानियां हैं. कृषि मंडी में कई सालों से आढ़त का काम करने वाले कमल आहूजा का कहना है कि अगर सब्जी मंडी की छोटी दुकानों पर सरकार सख्ताई करके प्लास्टिक पर नियंत्रण कर लेगी लेकिन बड़े दुकानदारों पर कौन हाथ डालेगा? आलू और प्याज का व्यवसाय करने वाले कमल आहूजा का कहना है कि कृषि मंडी में बिना प्लास्टिक के कोई काम नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि इस मामले में प्लास्टिक बनाने वाली बड़ी कंपनियों पर शिकंजा कसने से ही इसका प्रयोग रुक सकेगा.

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आढ़त का काम करने वाले एक और व्यापारी अनू सिंह सचदेवा का कहना है कि प्लास्टिक आज मंडी के लिए नासूर बन चुका है. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक का धंधा जितना छोटा दिखता है उतना है नहीं, इसकी जड़ें बहुत अंदर तक फैली हुई हैं. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक की शुरुआत फसल के खेत से बाहर आते ही हो जाती है, जोकि कोल्ड स्टोर से होते हुए सब्जी मंडी तक पहुंचती है.उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोर से आलू और प्याज प्लास्टिक की जाली में आता है और अगर किसान इस जाली का इस्तेमाल न कर और इसकी जगह जूट के बोरे का इस्तेमाल करता है तो उसे ₹40 प्रति बोरा नुकसान होता है. जिससे उसे नुकसान उठाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को बड़े स्तर पर कदम उठाना होगा. मंडी व्यापारी अनूप सिंह सचदेवा का कहना है कि आज की तारीख में प्लास्टिक मंडी के रोगों में घुल चुका है.

देहरादून: इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से प्लास्टिक मुक्त भारत की कल्पना देश के सामने रखी, लेकिन इस कल्पना के परवान चढ़ने से पहले कई ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं जिन्हें दूर किया जाना जरुरी है. आज के दौर में प्लास्टिक ने सभी क्षेत्रों में अपनी एक मजबूत भूमिका बनाई है. हर राज्य और शहर के बड़े-बड़े कृषि केंद्र या फिर सब्जी मंडी इसका बड़ा उदाहरण हैं. प्लास्टिक मुक्त करना सरकार के लिए इसलिए भी टेढ़ी खीर है क्योंकि जितना प्लास्टिक यहां बाहर देखने को मिलता है उतना ही प्लास्टिक की जड़ें यहां अंदर तक फैली हुई हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने राजधानी देहरादून की निरंजनपुर कृषि उत्पादन मंडी समिति का जायजा लिया. यहां पहुंचकर हमने जाना कि मंडी को प्लास्टिक मुक्त बनाना सरकार के लिए कितनी बड़ी चुनौती है. देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

देवभूमि उत्तराखंड में कभी सरकारों ने तो कभी न्यायालय के हस्तक्षेप से कई बार प्लास्टिक को हटाने को लेकर प्रयास किए गए, लेकिन अब तक इस मामले में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लग पाई है. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस अभियान को लेकर गंभीर हैं. उन्होंने लाल किले की प्राचीर से प्लास्टिक मुक्त समाज और देश बनाने का संकल्प लिया है. पीएम मोदी के अब तक के रिकॉर्ड को देखें तो उन्होंने जिस मुहिम की शुरुआत की है उसके अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं, जिससे लोगों को काफी उम्मीदें हैं.

ऐसे कैसे साकार होगा पीएम मोदी के प्लास्टिक मुक्त भारत का सपना?

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इन सबके बीच बात अगर देवभूमि उत्तराखंड की करें तो यहां से प्लास्टिक को हटाना बड़ी चुनौती है. उत्तराखंड को प्लास्टिक मुक्त बनाने में सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश की सरकारी कृषि मंडियां हैं. जहां हर रोज लाखों की सब्जी, फलों और अन्य खाद्य पदार्थों की आड़ में प्लास्टिक का भी जमकर व्यापार होता है. आज की तारीख में यहां प्लास्टिक की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इसके बिना मंडी की कल्पना करना मजाक सा लगता है. राजधानी की निरंजनपुर कृषि मंडी में प्लास्टिक की उपयोगिता केवल सब्जी बेचने तक ही सीमित नहीं है बल्कि कोल्ड स्टोरों से लेकर अलग-अलग तरह की खाद्य सामग्रियों की पैकिंग के लिए भी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. सब्जी मंडी से जुड़े अलग-अलग व्यवसाय के लोगों से ईटीवी भारत ने बातचीत की और प्लास्टिक की उपयोगिता को लेकर बात की.

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निरंजनपुर मंडी से अलग-अलग शिक्षण संस्थानों में सब्जियां सप्लाई करने वाले अनिल कुमार का कहना है कि वे हर रोज सब्जी मंडी से कई कुंतल सब्जियां स्कूलों और कॉलेजों को भेजते हैं.जहां से उन्हें प्लास्टिक की ही पैकिंग दी जाती है. उन्होंने कहा कि वे प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से वाकिफ हैं. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक के अलावा इतनी बड़ी खपत के लिए कोई विकल्प नहीं है. सब्जी विक्रेता जीशान का कहना है कि उन्हें भी पॉलिथीन में सब्जी बेचने का कोई शौक नहीं है लेकिन उनके पास और कोई विकल्प नहीं है.

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वहीं अगर मंडी में मौजूद बड़े व्यापारियों की बात करें तो उनकी भी अपनी ही अलग परेशानियां हैं. कृषि मंडी में कई सालों से आढ़त का काम करने वाले कमल आहूजा का कहना है कि अगर सब्जी मंडी की छोटी दुकानों पर सरकार सख्ताई करके प्लास्टिक पर नियंत्रण कर लेगी लेकिन बड़े दुकानदारों पर कौन हाथ डालेगा? आलू और प्याज का व्यवसाय करने वाले कमल आहूजा का कहना है कि कृषि मंडी में बिना प्लास्टिक के कोई काम नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि इस मामले में प्लास्टिक बनाने वाली बड़ी कंपनियों पर शिकंजा कसने से ही इसका प्रयोग रुक सकेगा.

पढ़ें-जाम से निपटने के लिए पुलिस जनता को बनाएगी 'मित्र', तैयार होगा 'मास्टर प्लान'

आढ़त का काम करने वाले एक और व्यापारी अनू सिंह सचदेवा का कहना है कि प्लास्टिक आज मंडी के लिए नासूर बन चुका है. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक का धंधा जितना छोटा दिखता है उतना है नहीं, इसकी जड़ें बहुत अंदर तक फैली हुई हैं. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक की शुरुआत फसल के खेत से बाहर आते ही हो जाती है, जोकि कोल्ड स्टोर से होते हुए सब्जी मंडी तक पहुंचती है.उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोर से आलू और प्याज प्लास्टिक की जाली में आता है और अगर किसान इस जाली का इस्तेमाल न कर और इसकी जगह जूट के बोरे का इस्तेमाल करता है तो उसे ₹40 प्रति बोरा नुकसान होता है. जिससे उसे नुकसान उठाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को बड़े स्तर पर कदम उठाना होगा. मंडी व्यापारी अनूप सिंह सचदेवा का कहना है कि आज की तारीख में प्लास्टिक मंडी के रोगों में घुल चुका है.

Intro:Note- ये स्पेशल स्टोरी है और इस ख़बर की फीड FTP से (uk_deh_02_challenges_for_plastic_remove_vis_byte_7205800) नाम से भेजी जा रही है।

एंकर- इस स्वतंत्रता दिवस पर भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से प्लास्टिक मुक्त भारत की कल्पना देश के सामने रखी हो, लेकिन इस कल्पना के परवान चढ़ने से पहले कई ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं जहां पर पिछले कई सालों से प्लास्टिक ने अपनी एक मजबूत भूमिका बनाई है जिसका हर राज्य और शहर के बड़े कृषि केंद्र या फिर सब्जी मंडीया बड़ा उदाहरण है। इन्हें प्लास्टिक मुक्त करना सरकार के लिए इसलिए भी टेढ़ी खीर है क्योंकि प्लास्टिक जितना यहां बाहरी रूप से दिखता है उतनी ही प्लास्टिक की जड़ें यहां अंदर तक फैली हुई हैं। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून निरंजनपुर में मौजूद राज्य के कृषि उत्पादन मंडी समिति का ईटीवी भारत ने जायजा लिया और जाना की मंडी को प्लास्टिक मुक्त बनाना सरकार के लिए कितनी बड़ी चुनौती है। देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट-----


Body:वीओ- देवभूमि उत्तराखंड में कभी सरकारों द्वारा तो कभी न्यायालय के हस्तक्षेप से कई बार प्रदेश में प्लास्टिक को हटाने के लिए प्रयास किए गए लेकिन अफसोस कि हर बार यह प्रयास हवाई साबित हुए हालांकि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस अभियान को लेकर गंभीर है और उन्होंने लाल किले की प्राचीर से प्लास्टिक मुक्त समाज देश बनाने का संकल्प लिया और पीएम मोदी के अब तक के रिकॉर्ड को देखें तो उन्होंने जिस मुहिम की शुरुआत की है उस पर अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं और यही वजह है कि लोगों में उम्मीदें भी काफी हैं।

लेकिन इन्हीं सबके बीच अगर बात देवभूमि उत्तराखंड की करें जहां प्राकृतिक धरोहर राज्य की सबसे बड़ी संपदा है तो यहां से प्लास्टिक को हटाना उससे भी बड़ी चुनौती है। उत्तराखंड को प्लास्टिक मुक्त बनाने में सबसे बड़ी चुनौती है प्रदेश की सरकारी कृषि मंडियां जहां पर हर रोज लाखों की सब्जी, फलों और अन्य खाद्य पदार्थों की आड़ में प्लास्टिक का भी व्यापार होता है और आज की तारीख में यहां प्लास्टिक की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी है कि बिना प्लास्टिक के मंडी की कल्पना करना मजाक सा लगता है।

उत्तराखंड की राजधानी स्थित निरंजनपुर कृषि मंडी में प्लास्टिक की उपयोगिता केवल सब्जी बेचने मात्र नहीं बल्कि कोल्ड स्टोरों से लेकर अलग-अलग तरह की खाद्य सामग्रियों की पैकिंग के लिए भी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। सब्जी मंडी से जुड़े अलग-अलग व्यवसाय के लोगों से हमने बात की और जाना की मंडी में प्लास्टिक की क्या उपयोगिता है और उसे खत्म करने की राह में किन किन चुनौतियों से गुजरना होगा।

देहरादून निरंजनपुर मंडी से अलग अलग शिक्षण संस्थानों में सब्जियों की सप्लाई का काम करने वाले अनिल कुमार चांदना का कहना है कि वह हर रोज सब्जी मंडी से कई कुंटल सब्जियां स्कूलों और कॉलेजों में सप्लाई करते हैं लेकिन मंडी से उन्हें प्लास्टिक की ही पैकिंग दी जाती है उन्होंने कहा कि वह प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से भलीभांति वाकिफ है और वह नहीं चाहते हैं कि प्लास्टिक का इस्तेमाल करें लेकिन ना तो उनके पास कोई विकल्प है और ना ही सब्जी विक्रेता उन्हें प्लास्टिक के अलावा कोई और पैकिंग उपलब्ध करवाते हैं तो वहीं सब्जी विक्रेता जीशान का कहना है कि उन्हें भी प्लास्टिक की पॉलिथीन में सब्जी बेचने का शौक नहीं है लेकिन उनके पास और कोई विकल्प मौजूद नहीं है साथ ही प्लास्टिक के पॉलीबैग सस्ते होते हैं और इसके अलावा कोई विकल्प बाजार में है तो बहुत महंगे हैं और हर दिन सौ दो सौ बचाने वाला गरीब सब्जी विक्रेता इतना नुकसान उठाने की हालत में नहीं होता है।

बाइट- अनिल कुमार चांदना, सब्जी सप्लायर
बाइट- जीशान, सब्जी विक्रेता
बाइट- तलवार, स्थानीय

वहीं अगर किसी मंडी में मौजूद बड़े व्यापारियों की बात करें तो उनकी भी अपनी आवाज परेशानियां हैं कृषि मंडी में पिछले कई सालों से औरत का काम करने वाले कमल आहूजा का कहना है कि अगर सब्जी मंडी की छोटी दुकान पर सरकार सख्त आई कर प्लास्टिक पर नियंत्रण भी कर ले लेकिन इस प्लास्टिक के धंधे में जो बड़ी मछलियां है उन पर कौन हाथ डालेगा मंडी में आलू और प्याज का व्यवसाय करने वाले कमल आहूजा का कहना है कि कृषि मंडी में बिना प्लास्टिक के कोई काम नहीं है उन्होंने कहा कि छोटे व्यापारियों पर धंधा करने से कोई फायदा नहीं है बल्कि प्लास्टिक बनाने वाली बड़ी कंपनियों पर पहले शिकंजा कसने की जरूरत है उन्होंने कहा कि मंडी में प्लास्टिक की शुरुआत मंडी से नहीं बल्कि कोल्ड स्टोर से हो जाती है उन्होंने कहा कि प्लास्टिक हटाने में चुनौती तो है लेकिन सरकार अगर वाकई में गंभीर हो जाए तो इस समस्या से निपटना इतना भी मुश्किल नहीं है।

बाइट- कमल आहूजा, मंडी व्यापारी

कृषि मंडी में पिछले कई सालों से अड़ात का काम करने वाले एक और व्यापारी अनू सिंह सचदेवा का कहना है कि प्लास्टिक आज मंडी के लिए नासूर बन चुका है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक का धंधा जितना छोटा दिखता है उतना है नहीं, इसकी जड़ें बहुत अंदर तक फैली हुई है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक की शुरुआत फसल के खेत से बाहर आते ही हो जाती है जोकि कोल्ड स्टोर से होते हुए सब्जी मंडी तक आता है। उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोर से आलू और प्याज प्लास्टिक की जाली में आता है और अगर किसान इस जाली का इस्तेमाल ना कर इसकी जगह जूट के बोरे का इस्तेमाल करता है तो उसे ₹40 प्रति बोरा नुकसान होता है। और उसकी मेहनत घट जाती है। उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को बड़े स्तर पर कदम उठाना होगा। मंडी व्यापारी अनूप सिंह सचदेवा का कहना है कि आज की तारीख में प्लास्टिक मंडी के रोगों में घुल चुका है। और प्लास्टिक की सस्ती उपलब्धता इसका एक बड़ा कारण है।उन्होंने कहा कि वर्तमान केंद्र की मोदी सरकार चाहे तो एक काम बहुत आसानी से पूरा हो सकता है।

बाइट- अनूप सिंह सचदेवा, कृषि मंडी अड़ात

PTC धीरज सजवाण



Conclusion:
Last Updated : Aug 24, 2019, 9:51 AM IST
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