देहरादून: होली को लेकर लोगों में अभी से ही उत्साह देखने को मिल रहा है. बात उत्तराखंड की पारंपरिक होली की करें ये दिसंबर माह के आखिरी सप्ताह से ही शुरू हो जाती है. इस होली की बड़ी बात ये है कि ये रंगों वाली होली नहीं होती है. इस होली में पारंपरिक होली गीत गाए जाते हैं, जो ब्रज की होली की याद दिलाते हैं.
राजधानी देहरादून में साल 2016 से युवाओं का एक समूह इसी तरह उत्तराखंड की पारंपरिक खड़ी होली को घर-घर तक ले जाने का काम कर रहा है. मौल्यार सामाजिक संगठन पिछले कुछ सालों से पहाड़ की संस्कृति को युवाओं तक पहुंचाने के प्रयासों में जुटा हुआ है. इसी के तहत हर साल होली के मौके पर युवाओं का यह समूह घर घर जाकर पारंपरिक खड़ी होली की प्रस्तुति देता है.
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ईटीवी भारत इन युवा होल्यारों के माध्यम से आपको उत्तराखंड की खड़ी होली से रूबरू करवाने जा रहा है. इसमें ब्रज मंडल में गाये जाने वाले होली के रागों को उत्तराखंड के पारंपरिक अंदाज में गाया जाता है. वहीं इसमें युवाओं द्वारा उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है. जिसमें ढोल, दमौ, मजीरा, ढोलक इत्यादि शामिल होता है.
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मौल्यार समूह के सदस्यों ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि मौल्यार सामाजिक संगठन को शुरू करने का उनका मुख्य उद्देश्य युवाओं को उत्तराखंड के पारंपरिक लोक संस्कृति से रूबरू करवाना है. उनके द्वारा होली के जो गीत प्रस्तुत किए जाते हैं वो पहाड़ के दूरस्थ अंचलों में गाये जाने वाले होली के गीतों की तरह होते हैं.